साथियो !
24 अप्रैल को बांग्लादेश में एक आठ-मंजिला कपड़ा फैक्टरी के ढह जाने से मारे जाने वाले मज़दूरों की संख्या 1100 के क़रीब पहुँच चुकी है। इस घटना के अठारह दिन बीत जाने के बाद भी मलबे से मज़दूरों के शव अब तक बरामद किये जा रहे हैं। 1984 के भोपाल गैस त्रासदी के बाद इसे दुनिया की सबसे भीषण औद्योगिक दुर्घटना कहा जा रहा है। हममें से कुछ मज़दूर साथी सोच रहे होंगे कि बांग्लादेश की इस घटना से भारत के मज़दूरों का क्या लेना-देना ? साथियों, मज़दूरों का कोई देश नहीं होता। अलग-अलग देशों के पूँजीपति और मालिक वर्ग अपने निजी हितों के लिये उसे देशों की सरहदों में बाँटते हैं। हर देश में पूँजीपतियों, मालिकों, व्यापारियों, ठेकेदारों और ध्न्ना सेठों का वर्ग मज़दूरों की मेहनत को लूटने-खसोटने और उनके प्रतिरोध को दबाने कुचलने में कोई रू-रियायत नहीं बरतता। मज़दूर वर्ग के दमन, शोषण-उत्पीड़न की एक ही कहानी है- फिर चाहे वह मज़दूर भारत का हो, या नेपाल का, चीन का हो, या पाकिस्तान का – हर मुल्क़ में उसकी लड़ाई मालिकों के इस वर्ग के खि़लाफ़ ही है। बांग्लादेश में हमारे मज़दूर भाइयों-बहनों और मासूम बच्चों की जो निर्मम हत्यायें हुयी हैं, वह हम सबके जीवन की सच्चाई को बयान करती है, पूँजीपतियों-मालिकों के वर्ग के लिये – फिर चाहे वह किसी भी देश का क्यों न हो – मज़दूरों और उनके बच्चों की जान की क़ीमत कौड़ियों से भी ज़्यादा सस्ती है!
बांग्लादेश की इस प्रतीक-घटना को वहाँ का मालिक वर्ग और सरकार एक दुर्घटना के रूप में पेश कर रहे हैं। और हमेशा ही, ऐसी सभी निर्मम हत्याओं को दुर्घटना करार दे दिया जाता है। साथियों, ये दुर्घटनायें नहीं हैं, ये हमारे मज़दूर भाइयों-बहनों की बेरहम हत्यायें हैं। सुरक्षा के सभी मानदण्डों को ताक पर रखकर मुनाफ़ा कमाने की अन्धी हवस में दुनिया भर में हर दिन 6300 से भी ज़्यादा मज़दूरों की बलि चढ़ायी जाती है, हर पन्द्रह सैकण्ड पर एक मज़दूर इन ''दुर्घटनाओं'' में अपनी जान से हाथ धो बैठता है। हममें से बहुत से साथियों को कुछ साल पहले दिल्ली के लक्ष्मी नगर इलाके और अभी पिछले साल पीरागढ़ी औद्योगिक क्षेत्र में हुये हादसों की याद होगी। क्या ये महज़ दुर्घटनायें थीं ? नहीं साथियों, ये दुर्घटनायें नहीं थीं। ये मुनाप़फे के लालच में अन्धी व्यवस्था द्वारा मज़दूरों की रोज़-रोज़ की जाने वाली हत्यायें हैं!
साथियों, इसलिये अब हमें सोचना होगा कि हम कब तक यूँ ही चुपचाप बैठे रहेंगे ? कब तक अपनी आँखों के सामने अपने साथियों और बच्चों को दम तोड़ते हुये देखते रहेंगे ? क्या इतना सब होने के बावजूद हमें गुस्सा नहीं आता? हमारा दिल इस अन्याय, उत्पीड़न और घुटन भरी जि़न्दगी के खि़लाफ बग़ावत नहीं करना चाहता ? बांग्लादेश के हमारे मज़दूर साथियों की मौत यह सवाल चीख-चीखकर पूछ रही है, और हमारे बच्चे और आने वाली पीढि़याँ भी हमसे यही सवाल पूछेंगी। साथियों, आज हम बँटे हुए हैं, असंगठित हैं, इसलिये हमारा प्रतिरोध भी असंगठित है, कमज़ोर है, इसलिये हमें आज से ही संगठित होने के बारे में सोचना होगा। हमें आज से ही अपनी ग़ुलामी की ज़जीरों को तोड़ने के संघर्ष की शुरुआत करनी होगी।
साथियों, एक हज़ार एक कारण हैं कि शोषण और अन्याय पर टिकी इस पूँजीवादी व्यवस्था की कब्र खोदने के काम की शुरुआत की जाये और इनमें से एक ही कारण काफी है कि हम अपनी तैयारी आज से ही शुरू कर दें! बांग्लादेश के हमारे मज़दूर साथियों की मौत उन्हीं कारणों में से एक है !
जब तक पूँजीवाद रहेगा .
मेहनतकश बर्बाद रहेगाः
क्रान्तिकारी अभिवादन के साथ
बिगुल मज़दूर दस्ता स्त्री मज़दूर संगठन करावलनगर मज़दूर यूनियन
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