हिंसा हुई तो जिम्मेदारी किसकी होगी?
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
अदलती फैसले से केंद्रीय वाहिनी की तैनाती के बिना तीनचरणों में राज्म में पंचायत चुनाव कराने को राजी हो गयी है राज्य सरकार। लगता है कि राजनीतिक दलों की ओर से इस सिलसिले में कानूनी लड़ाई जारी रखने की कोशिश होगी नहीं, क्योंकि ऐसे में चुनाव टालने की उनकी जिम्मेदारी बन जायेगी।पहले से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एकमुश्त माकपा , कांग्रेस और भाजपा पर पंचायत चुनाव न होने देने की साजिश करने का आरोप लगाया हुआ है। चुनाव आयोग का अवस्थान स्पष्ट नहीं है। लेकिन चुनाव टालने का दोष वह भी नहीं लेना चाहेगा। इससे जून के भीतर अदालती आदेश से चुनाव हो जाने की संभावना जरुर उज्ज्वल हो गयी है बशर्ते कि कोई पक्ष फिर अदालत का दरवाजा खटखटा न दें।
लेकिन अभा राज्य के संवेदनशील बूथों का जो ताजा आंकड़ा आया है, वह जरुर चिंता का विषय हो सकता है। इन आंकड़ों के मुताबिक राज्य में आधे से ज्यादा मतदान केंद्र संवेदनशील हैं। जहां राज्य पुलिस के जरिये उपयुक्त सुरक्षा इंतजाम हो पायेगा या नहीं, यह विवेचना का विषय है। लेकिन इसमें राज्य सरकार को अपने विवेक के मुताबिक फैसला करना है और अदालती फैसले के मुताबिक चुनाव आयोग की शर्त नहीं माननी है। सरकार चाहे तो दूसरे राज्यों से या केंद्र से अतिरिक्त बल अपनी आवश्यकता के मुताबिक मंगा सकती है। अदालती बाधा पार हो जाने के बाद सकुशल चुनाव कराने की जिम्मेदारी लेकिन अब राज्य सरकार की ही है।
पंचायत चुनाव के बारे में सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने राज्य चुनाव आयोग को संवेदनशील और अति संवेदनशील मतदान केंद्रों की सूची सौंपने का निर्देश दिया, जहां सुरक्षा बलों का पुख्ता इंतजाम करना बेहद जरूरी है।इस पर जिलाधिकारियों को आपात निर्देश जारी करके जो आंकड़े चुनाव आयोग ने हासिल किये हैं, उनके मुताबिक पंचायत चुनाव के लिए कुल बूथों की संख्या ५७ हजार पंद्रह हैं। इनमें से आधे अतिसंवेदनशील हैं और १५ से लेकर २० फीसदी बूथ संवेदनशील हैं।
अब सवाल है कि अपर्याप्त सुरक्षा इंतजाम के की वजह से पंचायत चुनावों में अगर हिंसा की वारदातें हो गयीं , उसकी जिम्मेदारी किसकी होगी?कोलकाता उच्च न्यायालय ने मंगलवार को पश्चिम बंगाल सरकार को पंचायत चुनावों को तीन चरणों में 15 जुलाई तक पूरा कराने के आदेश दिए। इसके साथ ही न्यायालय ने राज्य सरकार को राज्य निर्वाचन आयोग के साथ मिलकर चुनावी तारीखों को अधिसूचित करने के लिए भी कहा। न्यायालय ने सरकार को चुनावी तारीखों को अधिसूचित करने के लिए तीन दिनों का समय दिया है।मुख्य न्यायाधीश अरुण मिश्रा तथा न्यायमूर्ति जेएम बागची की खंडपीठ ने यह फैसला राज्य सरकार द्वारा दाखिल एक याचिका की सुनवाई करते हुए दिया। पश्चिम बंगाल सरकार ने न्यायालय के एक पूर्व फैसले के खिलाफ याचिका दायर की थी। न्यायालय ने अपने पूर्व फैसले में जून में चुनाव कराने के निर्देश देने वाले राज्य निर्वाचन आयोग की श्रेष्ठता को बरकरार रखा था।राज्य सरकार ने एकल पीठ के इस फैसले को उच्च न्यायालय के खंडपीठ में चुनौती दी थी।
सुरक्षा संबंधी चुनाव आयोग की दलीलें तो अदालत में खारिज हो गयी है, लेकिन तब चुनाव आयोग यह कहकर पल्ला झाड़ सकता है कि उसने तो पहले ही चेतावनी दे दी थी।
गौरतलब है कि सुनवाई में मतदान के दौरान केंद्रीय सुरक्षा बलों की तैनाती बहस का प्रमुख मुद्दा रहा। राज्य के महाधिवक्ता विमल मित्रा से अदालत ने जानना चाहा कि राज्य सरकार को यदि केंद्रीय बलों की तैनाती पर आपत्ति थी तो फिर पंचायत चुनाव तीन या इससे अधिक चरणों में कराने के विकल्पों पर क्यों नहीं विचार किया गया। उनसे यह भी पूछा गया कि क्या राज्य सरकार के पास पर्याप्त संख्या में सुरक्षा बल है जिससे सभी मतदान केंद्रों पर कम से कम 2 सशस्त्र बलों की तैनाती की जा सके। इसके जवाब में महाधिवक्ता ने कहा कि सभी मतदान केंद्रों (बूथ) पर तो नहीं लेकिन सभी चुनाव केंद्रों (एक चुनाव केंद्र पर कई मतदान केंद्र हो सकते हैं) पर कम से कम दो सशस्त्र बलों की तैनाती की जा सकती है।
अदालत ने कहा है कि राज्य चुनाव आयोग के साथ सलाह-मशविरा कर राज्य सरकार चुनाव की तारीख अधिसूचित करे। चुनाव आयोग ने निष्पक्ष चुनाव के वास्ते केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल की 800 कंपनियों की तैनाती की मांग की थी। इस मसले पर खंडपीठ ने कहा कि अगर राज्य में सुरक्षा बलों कमी होती है तो इसके लिए बंगाल सरकार दूसरे राज्यों या केंद्र से सुरक्षा बलों की मांग कर सकती है। फैसले में कहा गया है कि अति संवेदनशील मतदान केंद्रों पर दो सशस्त्र पुलिस बल के साथ-साथ बिना हथियार वाले दो सिपाही तैनात होंगे। वहीं हरेक संवेदनशील मतदान केंद्रों पर केवल दो सशस्त्र पुलिस बल तैनात होंगे जबकि कम संवेदनशील मतदान केंद्रों पर एक सशस्त्र पुलिस बल तैनात करने का निर्देश दिया गया है। चुनाव आयोग को ऐसे मतदान केंद्रों की सूची राज्य सरकार को जल्द उपलब्ध करानी होगी।
अदालत ने पंचायत चुनाव के लिए चार श्रेणियों अति संवेदनशील, संवेदनशील, कम संवेदनशील और सामान्य श्रेणी में 57 हजार मतदान केंद्र बनाने की सीमा निर्धारित की। दूसरी तरफ, न्यायालय ने राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा मांगे गए 400 पर्यवेक्षकों में से शेष 134 पर्यवेक्षकों के नाम तीन दिन के भीतर मुहैया कराने का निर्देश राज्य सरकार को दिया है।
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