बिजली संकट को देखते हुए झुकना पड़ा एनटीपीसी को, कोलइंडिया के साथ युद्धविराम। गुणवत्ता का मामला लेकिन सुलझा नहीं।
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
देस के इस्पात संयंत्रों और बिजलीघरों को हमेशा कोल इंडिया से घटिया क्वालिटी के कोयले की आपूर्ति की शिकायत रहती है।कोलइंडिया पर जैसे कोयला आपूर्ति का दबाव है, उसीतरह बिजलीघरं पर भी आम उपभोक्ताओं को बिजली आपूर्ति जारी रखने की मजबूरी है। बिजली सेक्टर में निजी कंपनियों की तीव्र प्रतिद्वंद्वित की वजह से और केंद्र व राज्य सरकारों की ओर से उन्हें दी जाने वाली छूट, कोयला आपूर्ति की गारंटी की वजह से सरकारी क्षेत्र के बिजलीघर घाटे में चल रहे हैं। गर्मी में तो बिजली संकट सुलझने का नाम नहीं लेता। इसीलिए फिलहाल सरकारी श्क्षेत्र की एनटीपीसी ने कोलइंडिया के सामने हथियार डाल दिये है।अपने अड़ियल रुख में बदलाव लाते हुए एनटीपीसी ने कोल इंडिया लि. के साथ संयुक्त रूप से कोयले की गुणवत्ता के आकलन का काम शुरू कर दिया है। वह अपने बिजली संयंत्रों के लिए ईंधन की पूरी आपूर्ति चाह रही है।
ईस्टर्न कोलफील्ड्स के महाप्रबंधक नीलाद्रि रॉय ने कहा कि एनटीपीसी ने दो दिन पहले कोयले के नमूने की संयुक्त जांच में भाग लेना बंद कर दिया था। फरक्का और कहलगांव के अधिकारियों ने हमसे मुलाकात कर इस प्रक्रिया को जारी रखने का भरोसा दिलाया है, जब तक कि गुणवत्ता की जांच की किसी तीसरे पक्ष की एजेंसी को इस काम पर नहीं लगाया जाता। अप्रैल में संयुक्त रूप से गुणवत्ता जांच शुरू होने के बाद एनटीपीसी ने कोयले की गुणवत्ता से असहमति जताते हुए इस प्रक्रिया में भाग लेना बंद कर दिया था।
दरअसल कोयले की गुणवत्ता बनाये रखना कोयला कंपनियों के लिए बड़ी चुनौती है।बीसीसीएल के झरिया कोयलाक्षेत्र में इस्पात कारखानों में इस्तेमाल किये जाना वाला कोकिंग कोयला का सबसे बड़ा भंडार है तो ईस्टर्न कोलफील्ड्स के रानीगंज आसनसोल क्षेत्र में भी उच्चकोटि का कोयला है। जहां से एनटीपीसी को कोयला आपूर्ति होती है। पर कोयला माफिया के चलते खानों, डंपिंग यार्ड और वाशरी से कोयला तस्करी हो जाने और कोयले में कर्मचारियों की मिलीभगत से मिलावट कर देये जाने से अक्सर घटिया और पत्थर मिला कोयले की आपूर्ति होती रहती है।
यह कानून और व्यवस्था का मामला है, जिसपर कोयला कंपनियों का बस नहीं है।
माफिया संरक्षण में तस्करों के मददगार कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई करने की हालत में भी नहीं होती कोयला कंपनियां।
अब आयातित कोयले के जरिये कोयला आपूर्ति जारी रखने की केंद्र सरकार की नई नीति से आम उपभोक्ताओं और कोयला कंपनियों दोनों पर दबाव बढ़ गया है। जहां उपभोक्ताओं को महंगी कीमतों पर कोयला खरीदना होगा , वहीं कोयला कंपनियों को आयात के जरिये अपने विशाल कोयला भंडार होने के बावजूद आपूर्ति करते रहने की मजबूरी से घाटे से उबरना मुश्किल है। सरकार आयातित और घरेलू कोयले की कीमतों की पूलिंग के विचार को रद्द कर सकती है, लेकिन कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) आयात के जरिये बिजली कंपनियों के लिए कोयला उपलब्ध कराने की तैयारी कर रही है। कोयला उत्पादक कंपनी ने इस साल एमएमटीसी लिमिटेड और स्टेट ट्रेडिंग कॉरपोरेशन के साथ गठजोड़ के जरिये घरेलू बाजार के आकलन के बाद अगले साल से विद्युत संयंत्रों के लिए प्रत्यक्ष रूप से कोयला आयात करने की भी योजना बनाई है।
कोल इंडिया लिमिटेड इस आयात को व्यवस्थित करने के लिए 2 फीसदी का सेवा शुल्क लेगी। कोल इंडिया के चेयरमैन एस नरसिंह राव ने बताया, 'हमने उत्पादन एवं परिवहन कार्यक्रम और भंडारण कार्यक्रम चलाया है। शुरू में हमने अपनी ओर से कोयला आयात के लिए एमएमटीसी और एसटीसी से कहा था। लेकिन हमारा मानना है कि आखिर हमें स्वयं इसकी जिम्मेदारी लेनी चाहिए।' कंपनी को इस साल 1 करोड़ टन कोयले के आयात की जरूरत होगी।
राव ने कहा कि आयात के साथ साथ कंपनी इस साल उपभोक्ताओं के साथ सौदेबाजी का श्रेष्ठï अनुभव चाहती है। उन्होंने कहा, 'हालांकि यह हमारा मुख्य कार्य नहीं है, लेकिन यह हमारी जिम्मेदारी है। जब उन छोटी कंपनियों की बात आती है जो दूसरों की तरफ से आयात करती हैं तो हमारे आकार की कंपनी भी ऐसा कर सकती है।'
चालू वर्ष के लिए विद्युत उत्पादकों को उन्हें जरूरी आयात की मात्रा का ब्योरा देने की जरूरत होगी। औसतन, जब मांग ब्यौरा प्राप्त हो जाएगा तो एमएमटीसी और एसटीसी को कीमत और स्थिति का संकेत देना होगा। उन्हें कीमत की पुष्टिï करने की जरूरत होगी और 90 फीसदी अग्रिम भुगतान करना होगा। 60 दिन के अंदर कोयले की आपूर्ति हो जाएगी। बताया भुगतान कोयले की आपूर्ति के बाद किया जाएगा। अनुभव के आधार पर कोल इंडिया अपनी स्वयं की व्यवस्था विकसित करना चाहती है। यह बिक्री विद्युत संयंत्र में डिलिवरी के आधार पर होगी। राव ने कहा, 'हम बंदरगाह स्तर के मुद्दों, रेलवे और गुणवत्ता पर जोर देना नहीं चाहते। इसी तरह, यदि हम वैश्विक निविदा दे रहे हैं तो हमें संबद्घ संयंत्रों पर अधिक मात्रा में आपूर्ति पर जोर देना होगा।'
सीआइएल) को एनटीपीसी समेत सभी बिजली कंपनियों से जल्द से जल्द ईधन आपूर्ति समझौते (एफएसए) करने का निर्देश दिया है। मंत्रालय ने कहा कि कोल इंडिया इसके लिए बिजली खरीद समझौतों (पीपीए) का इंतजार न करे।
गौरतलब है कि पिछले साल दिसंबर में प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने बिजली उत्पादकों को कोल इंडिया से एक महीने के अंदर एफएसए करने का निर्देश दिया था। अब तक 60 कंपनियां इस पर हस्ताक्षर कर चुकी हैं। हालांकि, कई कंपनियां विभिन्न कारणों के चलते अभी तक एफएसए नहीं कर पाई हैं। देश की सबसे बड़ी बिजली उत्पादक कंपनी एनटीपीसी ने सीआइएल के कोयले की गुणवत्ता को घटिया करार देकर एफएसए पर हस्ताक्षर करने से इन्कार कर दिया था।
एनटीपीसी चेयरमैन अरूप रॉय चौधरी ने कहा कि यदि कोल इंडिया हमें न्यूनतम गुणवत्ता का आश्वासन दे तो हम ज्यादातर शर्तो को मानने के लिए तैयार हैं। एनटीपीसी अच्छा कोयला मिलने पर ही एफएसए करने को तैयार है। कंपनी को 3,100 किलोकैलोरी गुणवत्ता के कोयले की जरूरत होती है। वहीं, कोल इंडिया 2,100 किलोकैलरी की क्षमता वाले कोयले का उत्पादन कर रही है।
यह हालत तब है जबकि बेहतरीन क्वालिटी का कोयला जमीन के नीचे राख हो रहा है, उसकी भरपायी मुश्किल है तो तस्करों और माफिया पर अंकुश लगाने के विकल्प को आजमाने की हालत में भी नहीं हैं कोयला कंपनियां। इसलिए फिलहाल परिस्थिति जन्य समझौता हो जाने के बावजूद यह समस्या सुलझती नहीं दीक रही है।
कोयल के नमूने की संयुक्त जांच पर सहमति नहीं होने के मद्देनजर कोल इंडिया ने पूर्वी भारत में स्थित एनटीपीसी संयंत्रों को आपूर्ति के लिए कोयले की न्यूट्रल गुणवत्ता के प्रमाणन के लिए हाल ही में निर्मित राष्ट्रीय स्तर की प्रयोगशाला सेंट्रल इंस्टीच्यूट आफ माइनिंग एंड फ्यूल रिसर्च (सीआईएमएफआर) धनबाद के साथ गठजोड़ किया है।
ईस्टर्न कोलफील्ड्स के महाप्रबंधक और अध्यक्ष के तकनीकी सचिव नीलाद्रि राय ने कहा ''एनटीपीसी के अधिकारियों द्वारा संयुक्त रूप से नमूने की जांच की प्रक्रिया में भाग लेना बंद करने के बाद हमने बिजली कंपनी के संयंत्रों को कोयले की आपूर्ति के लिए गुणवत्ता संबंधी स्वतंत्र प्रमाणपत्र प्रदान करने के लिए सीआईएमएफआर की मदद मांगने का फैसला किया है।'' उन्होंने कहा ''हमें उम्मीद है कि वे जल्दी ही अपनी सेवाएं शुरू करेंगे।'' राय ने कहा कि जब तक नमूना तैयार करने के लिए किसी एजेंसी की पहचान तीसरे पक्ष के तौर पर नहीं हो जाती तब तक के लिए यह अंतरिम व्यवस्था होगी।
उल्लेखनीय है कि चार अप्रैल को आपूर्ति शुरू करने के बाद कुछ दिनों तक कोल इंडिया और एनटीपीसी के अधिकारी नमूनों की जांच करते रहे लेकिन गुणवत्ता संबंधी मतभेद खत्म नहीं हुए।
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