Tuesday, May 14, 2013

बंद जूट मिल खुलने पर समझौता हो गया, लेकिन शोभनदेव और दोला की लड़ाई में मामला गुड़ गोबर!

बंद जूट मिल खुलने पर समझौता हो गया, लेकिन शोभनदेव और दोला की लड़ाई में मामला गुड़ गोबर!


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​


जूट मिल बंद होने के पीछे फिर वही जंगी मजदूर आंदोलन की पुरानी बीमारी! उसके साथ तृणमूल के अंतर्कलह को नत्थी कर देने से जो हो सकता है, सर्वत्र वही नजारा सामने आने लगा है।टीटीगढ़ की लुम्पेक्स जूट मिल २३ जनवरी को  बंद हो गयी। श्रम विभाग या राज्य सरकार की ओर से विवाद सुलझाकर मिल को दुबारा चालू करने की कोई पहल होती,इससे पहले ही इस मिल में सत्तापक्ष की यूनियन के नेता शोभनदेव चट्टोपाध्याय और तृकां के श्रमिक संगठन आईएनटीयूसी  की राज्य अध्यक्ष दोला सेन में इस मिल की हालत को लेकर हुई लेबर कमिशन की बैठक में शोभनदेव को सूचना दिये बिना आईएनटीयूसी की हिस्सेदारी और खुद दोला सेन की मौजूदगी  को लेकर जमकर ठन गयी। मजदूरों की समस्या, जूट उद्योग के संकट और मालिक पक्ष की मजबूरी , सबकुछ गौण हो गया। मिल चालू करने से ज्यादा जरुरी हो गया है दोनों नेताओं की नाक का सवाल। गुस्से में उबलते हुए दोला सेन ने धमकी दी है कि वे इस मामले को सांगठनिक स्तर पर निपटेंगी! इस निपटानिपटी के खेल में बेचारे मजदूर कहीं के नहीं रहे।


इस मिल में आईएनटीयूसी की जो युनियन है, उसके अध्यक्ष विधायक व वरिष्ठ तृणमूल नेता शोभनदेव चट्टोपाध्याय हैं। गुस्साए शोभनदेव ने फिर दोला सेन के खिलाफ गोलंदाजी शुरु कर दी। इससे पहले भी दोनों में ठनी हुई थी और बीच में इस मामले में खुद मुख्यमंत्री के मनाने पर ही ट्रेड यूनियन गतिविधियों में बने हुए है शोभनदेव। शोभनदेव चट्टोपाध्याय दोला सेन, जो उनसे जूनियर हैं, के वर्चस्व को कतई बर्दाश्त करने की स्थिति में नहीं है। मजदूरों के हितों के बदले निजी वर्चस्व की लड़ाई में दोनों नेताओं के उलझ जाने से मिल के खुलने की दिशा में कोई बात ही नहीं चल सकी।


इस बैठक में बंद मिल की यूनियनों के साथ लेबर कमिश्नर और मालिक पक्ष की बात हो रही थी कि मिल को कैसे फिर चालू किया जाये। बैठक में आईएनटीयूसी की की मौजूदगी में मिल चालू करेन पर समझौता भी हो गया।लेकिन शोभनदेव ने आरोप लगाया  है कि दोला सेन ने उन्हें सूचित किय.ये बिना लेबर कमिश्नर की सांठगांठ से तुरत फुरत बैठक का आयोजन करके समझौता करा लिया।​इस बैठक में दोला सेन खुद हाजिर थीं जबकि शोभनदेव की बिल्कुल अनदेखी कर दी गयी। लिहाजा अब इस जूट मिल के खुलने का मामला खटाई में पड़ गया है।

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​ अब ज्यादातर मजदूर इस समझौते को माने को तैयार नहीं हैं। उनका कहना है कि मालिक पक्ष ने लंबे अरसे से भविष्य निधि और ग्रेच्युटी की रकम जमा नहीं करायी है, लिहाजा वे इस समझौते को मानेंगे नहीं। कुल मिलाकर विवाद यह है कि यह समझौता दोला सेन की पहल पर क्यों हुआ और शोभनदेव को बैठक की जानकारी क्यों नहीं दी गयी। चूंकि मिल में नेता शोभनदेव ही हैं, मजदूर तो उनकी ही भाषा बोलेंगे।


शोभनदेव ने इस सिलसिले में लेबर कमिश्नर से बात की है और अब वे तृणमूल सुप्रीमो से भी बात करेंगे।जब तक उनकी आपत्तियां निरस्त न हो ​​जाये, मजदूरों का भविष्य अधर में लटका ही रहेगा।


इससे पहले भी पार्टी के वरिष्ठ नेता व विधानसभा में सत्ता पक्ष के मुख्य सचेतक शोभनदेव चट्टोपाध्याय ने अपने असंतोष का खुलकर इजहार किया था। उन्होंने पत्रकारों से कहा था कि तृणमूल प्रमुख चाहें तो उनसे मुख्य सचेतक का पद भी वापस ले लें।चट्टोपाध्याय से तृणमूल श्रमिक संगठन आईएनटीटीयूसी का कार्यभार वापस लेकर सुब्रत मुखर्जी को देने से नाराज चट्टोपाध्याय ने उक्त तल्खी बयान की। इस कार्रवाई से अपमानित महसूस कर रहे चट्टोपाध्याय के करीबी सूत्रों का कहना था कि दीदी वफादारों की कीमत पर गैरों को गले लगा रही हैं। सुब्रत मुखर्जी की बात फिर भी अलग थी।आखिर वे ट्रेड यूनियन के पुराने नेता हैं। उस मामले को शोभनदेव जल्दी ही भूल गये। लेकिन दोला सेन​​ से उनकी अक्सरहां टक्कर राज्य के ौद्योगिक परिवेश सुधरने के आड़े आ रही है। दी दी को जल्दी ही इसका इलाज खोजना होगा।


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