Saturday, May 11, 2013

दीदी के मिजाज खोने से बिगड़ रहा है उनका खेल!


दीदी के मिजाज खोने से बिगड़ रहा है उनका खेल!


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​


देश की महिला नेताओं सोनिया गांधी, सुषमा स्वराज, वसुंधरा राजे, शीला कौल, मायावती, जयललिता और दूसरों की तरह नाप तौलकर बोलने की अभ्यस्त नहीं हैं हमारी दीदी। विपक्षी नेता की हैसियत से आग उगलते रहने के कारण ही पूरे ब्रह्मांड में बतौर अग्निकन्या उनकी ख्याति फैली है। लेकिन मुख्यमंत्री बनने के बाद संवैधानिक जिम्मेवारी आन पड़ने से जिन्हें उम्मीद थी कि दीदी का मिजाज बदलेगा, उन्हें निराशा ही हाथ लगी है। इस वक्त वे अपने राजनीतिक जीवन के सबसे कठिन संकट से जूझ रही हैं। उनकी साख दांव पर है। वे भागने वाली नहीं हैं और चुनौतियों के मुकाबले ईंट का जवाब पत्थर से देने में उनकी कोई सानी नहीं है। लेकिन इधर दीदी कुछ ज्यादा ही आक्रामक हो गयी हैं। उनकी शारीरिक भाषा तनावपूर्ण तो है ही, उनके स्वास्त्य के लिए खतरनाक है। वे बेहद आक्रामक ढंग से पेश आ रही हैं।


कविताई भाषा में मुहावरों का जमकर इस्तेमाल करते हुए वे आम सभाओं में खूब तालियां बटोर रही हैं, पर शब्दों और छंदों के इस खेल में बंगाल के पूर्ववर्ती मुख्यमंत्रियों  डा. विधान राय. अजय मुखोपाध्याय, सिर्द्धार्थ शंकर राय और ज्योतिबसु द्वारा तैयार परंपराओं की वे रोजाना धज्जियां उड़ा रही हैं। विधान राय के समय राजनीतिक तनाव इतने चरमोत्कर्ष में नहीं था। लेकिन सत्तरदशक के रक्तरंजित राजनीतिक युग में भी ज्योति बसु और सिर्धार्थ शंकर राय की मित्रता अटूट रहने की कथा किंवदंती है। इसी तरह केंद्र पर निर्मम प्रहार करने वाले ज्योति बसु की त्तकालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी से घनिष्ठता सर्वविदित है। इंदिरा जी नाजुक मौके पर ज्योतिबाबू कि सलाह भी लिया करते थे।​

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​दीदी ने बाकी मुख्यमंत्रियों से अलहदा तौर तरीका अपनाया हआ है, जहां विपक्ष के साथ संवाद की कोई गुंजाइश नहीं ह। राज्य के हित में अपनी मजायज मांगों पर जोर देने के लिए वे केंद्र का तखता तक पलट देने की जिहाद में लग गयी है। इस सिलसिले में उनकी इस्तेमाल की हुई भाषा `पोस्टर बना देने', `जेल में ठूंस देने', `देख लेने' जैसे शब्दबंद से शुरु होते हैं और खत्म होते हैं। दागियों के बचाव के सिलसिले में वे हर मौके बेमौके पर चीख चीखकर कह रही हैं, चोरेर मायेर बड़ो गला यानी चोरो की मां सबसे ज्यादा चीख रही हैं। यह ऐसा मुहावरा है जो उनके विरोधी भी उनके खिलाफ इस्तेमाल कर सकते हैं।अविवाहित दीदी ने वर्दमान की आम सभा में अपनी तुलना सीता से की और कहा, `सीता को तो एक बार अग्निपरीक्षा में बैठना पड़ा, पर मुझे​ चौतीस सालों से बार बार अग्निपरीक्षा देनी पड़ रही है' अब रामायण बांचने वाले लोग ही इस वक्तव्य का तात्पर्य निकालें। किस प्रसंग में क्या क्या बोल नहीं रही हैं दीदी। बोलने से पहले शब्दों को तौल नहीं रही हैं दीदी।


मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बीते शुक्रवार को यूपीए सरकार को 'चोर-डकैतों की सरकार' करार दिया है| ममता ने यूपीए सरकार के खिलाफ जहर उगलते हुए कहा कि कोयला घोटाले के हीरो हमारे खिलाफ साजिश रच रहे है और इसमें कांग्रेस के साथ माकपा मिली हुई है।


गनीमत तो यह है कि राज्य में विपक्षी प्रमुख नेताओं ने शालीनता बनाये रखी है।वरना जो भाषा राजनीति की बनने लगी है, उससे अबतक खून की नदियां ही बह निकलती!


दीदी ने सीबीआई जांच का विरोध करते हुए सीबीआई निदेशक रंजीत सिंहा को निशाना बनाया है। सुप्रीम कोर्ट की पिंजरे में कैद तोता वाली टिप्पणी पर फेस बुक में उनहोंने राय जरुर मांगी है पर सार्वजनिक सभाओं में सीबीआई की कार्यपद्धति की आलोचना के बजाय वे बता रही हैं कि पूर्व रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव ने रंजीत सिन्हा की नियुक्ति रेलवे बोर्ड के सदस्य बतौर किया था। दीदी ने उन्हे खुद रेलमंत्री बनने के बाद हटा दिया। अब दीदी आशंका ​​जता रही हैं कि रंजीत सिंहा बदला चुकाने पर उतारु हैं और इसी बाबत उनके कार्यकाल में हुई नियुक्तियों की जांच चल रहीं है। उन्होंने कहा कि मेरी सरकार के खिलाफ केंद्र सरकार ने सारी एजेंसियां लगा रखी है| उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्रीय एजेंसियों का इस्तेमाल कर संप्रग सरकार उनकी पार्टी व सरकार को अस्थिर करना चाहती है। ममता ने कहा, "कोयला घोटाले के हीरो हमारे खिलाफ साजिश रच रहे हैं। इसमें कांग्रेस के साथ माकपा मिली हुई है।" रेलवे घूसकांड की जांच के क्रम में तृणमूल सांसदों के रेल मंत्री रहते हुए ट्रांसफर-पोस्टिंग के मामलों की पड़ताल शुरू होने ने पर ममता बनर्जी ने शुक्रवार को संप्रग सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि यदि केंद्र में हिम्मत है तो उन्हें छूकर दिखाए।


ममता ने कहा, "जब तृणमूल संप्रग सरकार में थी तब पार्टी पर इनकम टैक्स छापे की साजिश रची गई थी। पार्टी सांसदों की फाइलें मंगाई गई थीं। उस वक्त मैंने प्रधानमंत्री से कहा था कि वह जो चाहे वह कर सकते हैं।" साथ ही उन्होंने यह भी कहा, "केंद्र ने कहा था कि उसने मुलायम, मायावती व जयललिता को छूआ लेकिन ममता को नहीं छू पाई। केंद्र मेरा नाम भ्रष्टाचार में लाकर दिखाए। मेरा बाल छूकर दिखाए। मैं अपना सिर नहीं झुकाऊंगी। मैं राजा और रानी से कहती हूं कि वे आग से न खेलें। मैं गरीब परिवार से हूं किसी शाही परिवार से नहीं।"  


इतने सतही तर्क से वे अपनी कविताई भाषा से आम सभाओं में तालियां तो बटोर सकती हैं, लेकिन सीबीआई की जांच के दायरे से मुक्त नहीं हो सकतीं। जिस घोटाले की वजह से केंद्र से दो दो मंत्रियों की एक मुश्त विदाई हो गयी और प्रधानमंत्री से पूरा देश इस्तीफा मांग रहा है, उसमें लिप्त होने के आरोप के बचाव में उन्हें कुछ दमदार तर्क पेश करने चाहिए। पर उनका शब्द भंडार लोकप्रिय मुहावरों, जिनका लोग आपसी झगड़े में खुन्नस निकालने के लिए इस्तेमाल करते हैं, या मवाली मस्तानों के आर पार भेदने की भाषा के पार नहीं जा पा रही है।


आरोप है कि रेल गेट में भ्रष्टाचार के अभियुक्त मौजूदा और पूर्व रेलवे बोर्ड चचेयरमैन की नियुक्ति तृणमूली रेलमंत्रियों के कार्य काल में हुई। आरोप है कि सत्रह जोन  के महाप्रबंधकों की नियुक्तियों में दीदी के जमाने से गोलमाल है। इन आरोपों के जवाब में दीदी को अपने बचाव में तथ्यों को सही परिप्रेक्ष्य में रखने पर बल्कि ज्यादा सहूलियत होगी।​रेलवे घूसकांड की जांच की आंच ममता बनर्जी के कार्यकाल तक पहुंच गई है। सीबीआई ने पवन बंसल से पहले मुकुल राय, दिनेश त्रिवेदी और ममता बनर्जी के कार्यकाल में रेलवे के अफसरों की ट्रांसफर-पोस्टिंग से लेकर बड़े खरीद सौदों तक की फाइलें टटोलनी शुरूकर दी हैं।


सूत्रों के मुताबिक बंसल के रेलमंत्री रहते पहली बार रेलवे बोर्ड के मेंबर की नियुक्ति में घूसखोरी की बात सामने आई है। इसकी जांच व पूछताछ में सीबीआई को कई ऐसे तथ्य पता चले हैं, जिनसे साबित होता है कि बंसल से पहले भी रेलवे बोर्ड में चेयरमैन व मेंबर के अलावा जोनों व मंडलों में जीएम व डीआरएम बनाने में नियमों की अनदेखी की जाती रही है। इसके बाद सीबीआई ने इन मामलों से जुड़ी तीन साल की फाइलें मांग ली हैं।


पिछले तीन साल में जिन अहम मामलों में गड़बड़ी का संदेह है उनमें ममता के समय में चेयरमैन की नियुक्ति अहम है। तब विवेक सहाय को पहले मेंबर ट्रैफिक बनाया गया और फिर चेयरमैन। परंतु चेयरमैन बनने के बावजूद उनसे मेंबर ट्रैफिक का कार्यभार नहीं लिया गया। एक साल बाद उनके रिटायर होने पर ही चेयरमैन और मेंबर ट्रैफिक पद पर अलग-अलग व्यक्तियों की नियुक्ति हुई। यही नहीं, सीवीसी की ओर से सवालों के बावजूद सहाय को चेयरमैन बनाया गया था। इस दौरान हुईं तीन-चार मेंबर और महाप्रबंधकों की नियुक्तियां भी सवालों के घेरे में हैं। इतना ही नहीं, कई जीएम व डीआरएम पदों पर नए अधिकारियों को लंबे अर्से तक प्रमोट नहीं किया गया। अंततः दिनेश त्रिवेदी के कार्यकाल में तीन जीएम व २६ डीआरएम की नियुक्ति को हरी झंडी दी गई।

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​कोई खुद अभियुक्त हो तो वह इस अभियोग से सिर्फ इस दलील से अपना बचाव कर ही नहीं सकता कि दूसरे लोग भी इसी अपराध के दोषी हैं। दुनियाभर में न्यायिक प्रक्रिया में परंपरा यही है कि कठघरे में खड़े अभिययुक्त को अपना बचाव करना होता है और अपनी सफाई देनी होती है। दूसरों पर आरोपों की वर्षा करके अपने अपराध को न्यायिक और वैध ठहराना अपराध कबूल करने के बराबर माना जाता है। दुनिया में जनता की अदालत से बड़ी कोई अदालत होती नहीं है। जहां से राजनेताओं को अंततः जनादेश मिलता है। दीर्घकालीन नतीजे के संदर्भ में दीदी की यह रणनीति उनके लिए बेहद नुकसानदेह साबित हो सकती है।


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