Saturday, 11 May 2013 10:42 |
शीतला सिंह विधायी शक्ति से हीन उसे इसलिए रखा गया है, ताकि वह अपने दायित्वों का निर्वहन कर सके। इसी प्रकार, जब वह कार्यपालिका की शक्तियों का प्रयोग करना चाहती है तब उस पर भी आपत्तियां उठाई जाती हैं। अगर वह चाहे तो विधि-सम्मत निर्देश देने में सक्षम है और इसीलिए उसे न्यायालयी मानहानि तय करने के अधिकार दिए गए हैं जिसमें वह ऐसे सभी अधिकारियों को, जिन्हें उन्मुक्ति (इम्युनिटी) प्राप्त नहीं है, आदेश का परिपालन न करने के लिए दोषी ठहरा कर सजा दे सकती है। लेकिन यह विशेषाधिकार राज्य के अन्य अंगों को भी है। कार्यपालिका को भी, अपने दायित्वों के निर्वहन के लिए किए गए कार्यों पर, संरक्षण के कारण, दंडित नहीं किया जा सकता। संसद और विधानमंडलों को भी विशेषाधिकार दिए गए हैं। विभिन्न संस्थाओं के बीच कभी-कभी ऐसे द्वंद्व भी होते हैं। यह द्वंद्व एक बार उत्तर प्रदेश विधानसभा और इलाहाबाद उच्च न्यायालय के बीच 1962 में सामने आ चुका है। सर्वोच्च न्यायालय केंद्रीय जांच ब्यूरो का जिस प्रकार का स्वरूप चाहता है, उसका निर्धारण उसके हाथ में नहीं है, बल्कि यह कार्यपालिका को तय करना है। विधायिका को विधायी प्रावधान करना है। कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका- इन तीनों को मिला कर ही राज्य की कल्पना पूर्ण होती है। इसलिए ये तीनों ही राज्य के उद्देश्यों की पूर्ति में सहायक हैं। दुनिया में जो विभिन्न प्रकार की व्यवस्थाएं विद्यमान हैं, उनमें लोकतांत्रिक व्यवस्था के सिलसिले में अमेरिका और ब्रिटेन का नाम लिया जाता है। लेकिन अमेरिका में भी जब एक बार सरकार को लगा कि न्यायपालिका में बहुमत अनुकूल नहीं है तो उसने आठ नए जजों की नियुक्ति करके इस उद्देश्य की पूर्ति की। ब्रिटेन में तो सर्वोच्च न्यायालय, जिसे 'प्रिवी काउंसिल' कहा जाता है, का न्यायाधीश ब्रिटिश मंत्रिपरिषद का न्यायमंत्री होता है। इस प्रकार वहां न्यायपालिका सरकार का सक्रिय अंग है, द्रष्टा और साक्षी नहीं। जहां तक कम्युनिस्ट व्यवस्था वाले राज्यों का संबंध है, लोग उनका उदाहरण इसलिए नहीं देते क्योंकि लोकतांत्रिक व्यवस्था के संदर्भ में वह मायने नहीं रखता। वे तर्क यह देते हैं कि जब वहां विरोधी दलों को संगठन बनाने और चुनाव लड़ने की स्वतंत्रता ही नहीं है तो कैसा लोकतंत्र! ऐसे देशों में न्यायपालिका राज्य के एक अंग के रूप में ही काम करती है। भारत में क्या कोई नया प्रयोग करने की स्वीकृति संविधान ने प्रदान की है? अगर नहीं तो इस संविधान में परिवर्तन का अधिकार, जब तक दूसरी संविधान सभा न बने, संसद को है। एक सौ से ऊपर संशोधन हो भी चुके हैं। लोकतंत्र में सर्वोच्च निर्णायक शक्ति मतदाता के पास है। मगर भारत का संविधान ब्रिटेन के अनुसार परंपराओं पर आधारित नहीं है, बल्कि लिखित रूप में साक्षात है। इसलिए परिवर्तन भी उसी में करने पडेÞंगे। इसलिए मूल प्रश्न यह है कि क्या भारतीय संविधान में केंद्रीय जांच ब्यूरो को निर्णायक शक्ति देना उचित होगा या नहीं! राज्य को कानून और व्यवस्था के नाम पर जो नियमन और नियंत्रण के अधिकार दिए गए हैं, उसमें क्या किसी नई व्याख्या और प्रावधान की आवश्यकता है, जिसे संसद भी स्वीकार करे? सर्वोच्च न्यायालय ने जनप्रतिनिधित्व कानून में ऐसे परिवर्तन का सुझाव दिया था, जिससे दोषियों को चुनाव लड़ने के अयोग्य करार दिया जा सके। लेकिन देश की सभी राजनीतिक पार्टियों ने इसे अस्वीकार करके वर्तमान विधि को ही चलते रहने की बात कही। इसी तरह का एक और उदाहरण पुलिस सुधार के बारे में सोराबजी समिति की रिपोर्ट का है। उच्चतम न्यायालय ने राज्य सरकारों से इस रिपोर्ट में दी गई सिफारिशें लागू करने को कहा। मगर राज्य सरकारें इन सिफारिशों को अपने अधिकार-क्षेत्र में अतिक्रमण कह कर लागू करने से बचती आ रही हैं। लिहाजा, सर्वोच्च न्यायालय के सुझाव निरर्थक हो गए, क्योंकि शासन और व्यवस्था की शक्ति उसे प्राप्त नहीं है। वह अपने आदेशों के पालन के लिए कार्यपालिका पर ही निर्भर है। इसलिए ये सब ऐसे प्रश्न हैं जो एकांगी या किसी आंशिक परिवर्तन से सुलझाए नहीं जा सकते, बल्कि इन्हें सर्वांगीण व्यवस्था के अंग के रूप में ही स्वीकार करना पड़ेगा। अण्णा हजारे और उनके साथियों ने एक ऐसा लोकपाल बनाने की मांग की गई थी जो सभी पर नियंत्रण रख सके। लेकिन इस संबंध में उनके प्रस्ताव को पूर्ण रूप से स्वीकार करने के लिए कोई राजनीतिक दल आगे नहीं आया। सीबीआइ को स्वतंत्र करने के लिए सर्वोच्च अदालत ने सरकार से कानून बनाने को कहा है। पर सरकार सिर्फ कानून का मसविदा बना सकती है, पारित उसे संसद में ही होना है। क्या तमाम राजनीतिक दल सीबीआइ की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने वाले कानून के पक्ष में होंगे? सवाल यह भी है कि सरकार से स्वतंत्र सीबीआइ किसके प्रति जवाबदेह होगी। http://www.jansatta.com/index.php/component/content/article/20-2009-09-11-07-46-16/44382-2013-05-11-05-13-02 |
Saturday, May 11, 2013
तोते का पिंजरा और आकाश
तोते का पिंजरा और आकाश
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