Sunday, May 12, 2013

फिर छला गया बुंदेलखंड

फिर छला गया बुंदेलखंड


जोर-जुगाड़ से शुरू किए गए सफाई और खुदाई कार्य भी बजट के अभाव में ठंडे बस्ते में चले गए हैं. केन नदी प्रदूषण के चलते पहली बार काली पड़ी है. अधिकतर तालाबों, नहरों में धूल उड़ने लगी है, पर मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश के किए गए 1755 करोड़ के वादे अभी तक धरातल पर नहीं उतर पाए हैं. . .

आशीष सागर दीक्षित


बुंदेलखंड में गहराते जल संकट के कारण और निवारण का समाधान ढूंढने का प्रयास करती प्रदेश में सत्तासीन हर सरकार दिखती है, मगर यह प्रयास कभी पैकेज तो कभी आपदा कोष तक सिमटकर रह जाते हैं. हर बार बुंदेलखंड योजनाओं के नाम पर छला जाता है.

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प्रदूषण के चलते पहली बार काली पड़ी केन नदी

हाल ही में 5 अप्रैल 2013 को प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने नगर विकास मंत्री आजम खान, सिंचाई एवं लोक निर्माण विभाग मंत्री शिवपाल सिंह यादव, मुख्य सचिव जावेद उस्मानी और बुंदेलखंड पेयजल एक्सपर्ट कमेटी के 6 सदस्यों की उपस्थिति में बुंदेलखंड जल पैकेज के नाम पर 1755 करोड़ रुपए पेयजल समस्या के समाधान के लिए देने की घोषणा की थी.

बुंदेलखंड के सातों जनपदों के अधिकारियों को दूरगामी और तात्कालिक निदान वाली ऐसी योजनाएं बनाने के लिए निदेर्शित किया था, जिससे परंपरागत पेयजल स्रोत्रों को बहाल किया जा सके. इस कड़ी में झांसी के वेतवा नदी बैराज पर 500 करोड़, बुंदेलखंड के नगरी क्षेत्रों के पेयजल समस्या पर 1080 करोड़ और बांदा, झांसी, महोबा सहित तीन जिलों के 16 तालाबों के पुनर्निर्माण के लिए 105 करोड़ रुपए खर्च किए जाने की योजना को कागजी रूप में अमलीजामा पहनाया जाना था.

बांदा की पेयजल समस्या को हल करने के लिए बाघेन नदी पर 50 करोड़ की लागत से वियर बनाने के अतिरिक्त छाबी तालाब के लिए 54 लाख, महोबा के कीरत सागर के लिए 24 करोड़, रैपुरा बांध के लिए 58 करोड़, उरवारा तालाब के लिए 30 करोड़, कुल पहाड़ के लिए 20 करोड़ की कार्ययोजना जल संस्थान ने पेश की थी.  लेकिन बेतहाशा पड़ती गर्मी में हालात यह हैं कि सात जिलों की बरसाती नदियां सूखने की कगार पर हैं. इस बार केन नदी प्रदूषण के चलते पहली बार काली पड़ी है.

अधिकतर तालाबों, नहरों में धूल उड़ने लगी है, पर मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश के किए गए 1755 करोड़ के वादे अभी तक धरातल पर नहीं उतर पाए हैं. बानगी के तौर पर जिलाधिकारी बांदा जीएस नवीन कुमार के भागीरथ प्रयास से ग्राम पंचायत दुर्गापुर का आदर्श तालाब, सदर तहसील बांदा में प्राचीन नवाब टैंक तालाब के समीप नवीन सरोबर, छाबी तालाब और बाबू साहब तालाब में जोर-जुगाड़ से शुरू किए गए सफाई और खुदाई कार्य भी बजट के अभाव में ठंडे बस्ते में चले गए हैं. उनका कहना है कि शासन से अभी तक जल पैकेज के धनराशि का आवंटन नहीं किया गया है. ऐसे में आखिर नगरपालिका और दूसरे विभागों से लगाई गई जेसीबी मशीनें कब तक तालाबों की खुदाई कर सकती हैं.

दूसरी तरफ सामाजिक कार्यकर्ता और तालाबों से जुड़े मुद्दों पर काम कर रहे लोगों की राय है कि आधे-अधूरे जल प्रबंधन कार्य योजना को नियोजित करने से बेहतर है प्रशासनिक स्तर पर मनरेगा, जल निगम द्वारा तालाबों के संरक्षण में जो कार्य अब तक किए गए हैं उनका समीक्षात्मक मूल्यांकन करते हुए विचार किया जाए कि क्या वास्तव में मनरेगा योजना से बनाए गए ग्रामीण स्तर के तालाब बुंदेलखंड के किसानों व आम जनता को पेयजल और सिंचाई का जल सुलभ कराने में सहायक हुए हैं या नहीं. तकनीकी अभाव और कार्ययोजना का सही तरीके से मानीटरिंग न करना भी इन तालाबों की उपयोगिता पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है.

गौरतलब है कि बुंदेलखंड में देश की औसत वर्षा से तीन चौथाई वर्षा ही होती है. बांदा जनपद में ही आबादी के मुताबिक प्रति व्यक्ति 40 एमएलडी पानी की आवश्यकता है. वर्षा का 65 प्रतिशत जल आमतौर पर बहकर व्यर्थ चला जाता है. निरंतर भूजल स्तर नीचे जाने से जल संचयन, तालाबों की दुर्दशा के परिणामस्वरूप अगले बीस वर्षों में यहां के 80 प्रतिशत परंपरागत जलस्रोत्रों के सूख जाने की संभावना व्यक्त की जा रही है.

बुंदेलखंड के शहरी इलाकों में हैंडपंप की गहराई एक दशक में भूमिगत जल निकालने के लिए 110-180 फीट होना आम बात है. पूर्व में 40 से 60 फीट होती थी. कम वर्षा वाले साल में हालात और बिगड़ जाते हैं. शायद इसी प्राकृतिक विडंबना को देखते हुए चंदेल काल, 900 से 1200 ईसवीं के दौरान यहां बडे़ पैमाने पर तालाबों का निर्माण कराया गया होगा. तालाबों की अमूल्य निधि को चित्रकूट मंडल के रसिन गांव से समझा जा सकता है जहां पर कभी 80 कुएं और 84 तालाब हुआ करते थे, लेकिन आज दूरदर्शिता के अभाव में यह कुएं और तालाब बदहाल हैं.

यदि छोटे-बडे़ सभी तालाबों और जलाशयों को जोड़ा जाए तो बुंदेलखंड के सातों जिलों में 20,000 से अधिक तालाब हैं. 24 फरवरी 2006 को राजस्व परिषद उत्तर प्रदेश के सदस्य टी. जार्ज जोसेफ द्वारा समस्त जिलाधिकारियों को कार्यालय पत्र में प्रेषित माननीय उच्च न्यायालय के आदेश 25 फरवरी 2005 के तत्क्रम में जारी शासनादेश दिनांक 29 नवंबर 2005 के अनुसार बांदा में तालाबों की संख्या 4572 और क्षेत्रफल 1549. 223 हेक्टेयर आंकी गई थी. वर्तमान में यह संख्या 4540, उनमें 1537. 122 हेक्टेयर क्षेत्रफल है. खतौनी में आई कमी की संख्या 32 तथा क्षेत्रफल 12. 101 हेक्टेयर दर्ज की गयी है, जिसमें अवैध कब्जों की संख्या 6 व क्षेत्रफल 3. 342 हेक्टेयर दर्शाया गया है.

http://www.janjwar.com/2011-05-27-09-00-20/25-politics/4005-fir-chhala-gaya-bundelkhand-by-ashish-sagar-dixit

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