Thursday, May 16, 2013

कोयला की कमी दिखाकर निजी कंपनियों को बिजली दरें बढ़ाने की छूट! आयातित कोयले की कीमत का बोझ भी उपभोक्ताओं पर!

कोयला की कमी दिखाकर निजी कंपनियों को बिजली दरें बढ़ाने की छूट! आयातित कोयले की कीमत का बोझ भी उपभोक्ताओं पर!


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​


कोयला आपूर्ति में व्यवधान के कारण एनटीपीसी और निजी कंपनियों के कुल 37680 मेगावाट क्षमता की परियोजनाओं को घाटा हो सकता है और इसकी भरपाई उस परियोजना क्षेत्र में बिजली दरें बढ़ाकर करने का केंद्र सरकार ने फैसला किया है। देश भर के सभी थर्मल पावर प्लांटों को बिजली पैदा करने वाली टरबाइनें चलाने के लिए जरूरत भर कोयला उपलब्ध नहीं हो पा रहा है।अगर पिछले साल की तरह इस साल भी कोयले का संकट गहराया तो स्थिति और खराब हो सकती है। जाहिर है कि कोयला की कमी दिखाकर निजी कंपनियों को बिजली दरें बढ़ाने की छूट दी जी रही है।कोल इंडिया की समस्याओं का समाधान किये बिना निजी कंपनियों को अबाधित कोयला आपूर्ति करने के लिए पहले से लगातार बाध्य किया जा रहा है। घटिया कोयला आपूर्ति के बहाने इन बिजली कंपनियों को कोयला आयात करने की सहूलियत भी दी गयी है। ऊपर से कोलइंडिया को भी बिजली कंपनियों को आपूरर्ति के लिए कोयला कम पड़ने की हालत में कोयला आमदनी के लिए कहा जा रहा है। आयातित कोयले की कीमत का बोझ भी उपभोक्ताओं पर डाला जा रहा है।जबकि केंद्रीय बिजली मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा है कि बिजली वितरण कंपनियों की वित्तीय हालत में सुधार के लिए बिजली दरों में बढ़ौतरी आखिरी उपाय होना चाहिए। उनका सुझाव है कि बिजली दर बढ़ाने से पहले राज्यों को बिजली चोरी तथा वितरण और संप्रेषण में हानि रोकने पर ध्यान देना चाहिए। सिंधिया ने कहा कि केंद्रीय बिजली मंत्री के तौर पर मुझे लगता है कि शुल्क में बढ़ौतरी आखिरी उपाय होना चाहिए।लेकिन पिछले दरवाजे से निजी कंपनियों की मर्जी मुताबिक कोयला का बहाना बनाकर बिजली दरें बढ़ाने की पूरी तैयारी है। देश के 8 राज्यों में पहले ही एक बार फिर बिजली के दाम बढ़ा दिए गए हैं। ये राज्य हैं आंध्र प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, ओडिशा, मेघालय, नागालैंड, बिहार और गुजरात। इन राज्यों में पावर टैरिफ 3-24 फीसदी तक बढ़ाए गए हैं।


केंद्रीय विद्युत मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि देशभर में अब भी लगभग 10 फीसदी बिजली की कमी है और अब ईंधन की कमी के चलते प्लांटों का उत्पादन घट जाने से बिजली संकट बढ़ता जा रहा है।गैस आधारित सभी 53 प्लांट गैस की कमी से जूझ रहे हैं। गैस आधारित प्लांटों को सालाना 86.07 एमएमएससीएमडी गैस की जरूरत होती है।देश के कोयला आधारित संयंत्रों की क्षमता में काफी इजाफा किया गया लेकिन निजी क्षेत्र के परिचालक उन्हें चलाने के इच्छुक नहीं हैं क्योंकि कोयला अब काफी महंगा हो चुका है। इस बीच इस अनुमान के साथ गैस आधारित संयंत्र बनाए गए कि कृष्णा-गोदावरी (केजी) बेसिन से भारी मात्रा में सस्ती गैस की आपूर्ति मिलेगी, खासतौर पर केजी-डी6 में स्थित रिलायंस इंडस्ट्रीज के गैस कुओं से।हर मामले में सरकार निजी क्षेत्र को संतुष्टï करने का रुख अपनाया। सुझाव दिया गया कि आयातित कोयले और घरेलू कोयले की कीमतों की पूलिंग की जाए ताकि निजी क्षेत्र के उन संयंत्रों को भी सस्ते घरेलू कोयले का लाभ मिल सके जिन्हें इस अनुमान के आधार पर बोली से बाहर रखा गया था कि वे विदेशी कोयले का इस्तेमाल करेंगे। ऐसा इसलिए था क्योंकि इस बीच विदेशी कोयला महंगा हो गया था। इस बीच प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष सी रंगराजन की अध्यक्षता वाली एक समिति ने ने गैस मूल्य निर्धारण के सवाल पर सुझाव दिया कि सरकार को रिलायंस को गैस के लिए किए जाने वाले भुगतान की कीमत 4.2 डॉलर प्रति मिलियन मीट्रिक ब्रिटिश थर्मल यूनिट्स से बढ़ाकर करीब 8.8 डॉलर प्रति इकाई कर देनी चाहिए।इस बीच कोयले की पूलिंग पर सरकारी कंपनी कोल इंडिया लिमिटेड का रुख लगातार हमलावर रहा।कोयला संसाधन से समृद्घ अन्य राज्यों ने भी इसका विरोध किया क्योंकि उनको इस पूलिंग से नुकसान उठाना पड़ेगा।  


कोयला ब्लाकों के आबंटन से कम बड़ा घोटाला नही है यह। अब जब आईपीएल स्पाट फिक्सिंग की वजह से कोयला घोटाले से ही फोकस हटने जा रहा है। इस गड़बड़झाले पर लोगों की नजर कम पड़ने की संभावना कम है। पर कोयला और बिजली कीमतों की दोहरी मार से बच नहीं पायेंगे हम।पिछले वित्त वर्ष में 23 राज्यों और 5 केंद्र शासित प्रदेशों ने बिजली की दरें बढ़ाई थी। दरअसल राज्य के बिजली बोर्डों की आर्थिक स्थिति काफी कमजोर है और इन पर 2 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज है। बिजली की दरें बढ़ाए जाने से कंपनियों की आर्थिक हालत में कुछ सुधार होगा।हाल ही में कुछ प्राइवेट बिजली डिस्ट्रीब्यूशन कंपनियों ने सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी रेगुलेटरी कमीशन (सीईआरसी) से बिजली दरें बढ़ाने की मंजूरी मांगी थी। जिसके बाद सीईआरसी ने टाटा पावर और अदानी पावर को दरें बढ़ाने की मंजूरी दे दी थी। रिलायंस पावर ने भी सीईआरसी से बिजली दरें बढ़ाने की मंजूरी देने की अपील की है।



भारत में विश्व का पांचवां सबसे बड़ा कोयला भंडार है, लेकिन स्थानीय इकाइयां इसके इसके आयात पर निर्भर रहती हैं, क्योंकि यहां कोयला खनन परियोजनाएं लाल फीताशाही और भ्रष्टाचार में उलझी हुई हैं। हकीकत यह भी है कि वेस्ट बंगाल पावर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड के विभिन्न बिजली घरों पर कोयले का 1200 करोड़ बकाया है।ईसीएल प्रबंधन का कहना है कि यह कंपनी बीआईएफआर के अधीन है। फिर भी करोड़ों रुपये बकाये होने के बावजूद बिजली की स्थिति को देखते हुए कोयला आपूर्ति जारी रखी गयी है। इसी तरह की परिस्थिति के चलते पिछले वर्ष के दौरान ईसीएल के वेस्ट बंगाल पावर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन के बिजली घरों-संयंत्रों को कोयला देना बंद कर दिया था, पर राज्य शासन के प्रतिनिधि ने उच्चस्तरीय बैठक बुलाकर आश्वस्त किया था कि ईसीएल की बकाया रकम का भुगतान शीघ्र कर दिया जाएगा। इसके बावजूद अभी तक बकाए राशि का भुगतान नहीं किया गया है।


सरकार उन चालू परियोजनाओं से उत्पन्न बिजली की नयी दरें  तय करेगी, जहां कोल इंडिया की कोयला आपूर्ति कम पड़ने के कारण लागत बढ़ गई है। बिजली की नयी दरें  तय करने के लिए जल्द ही ढांचा तय किया जाएगा। परियोजना शुरू करते वक्त सरकार ने यह आश्वासन दिया था। बिजली मंत्रालय ने सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी रेगुलेटरी पावर कमीशन (सीईआरसी) को इस बारे में पत्र लिखा है। इस पत्र में सीईआरसी से सलाह मांगी गई है कि ईंधन की कमी झेल रहे पहले से चालू उन परियोजनाओं से किस तरह निपटा जाए, जिन्होंने वितरण कंपनियों से दीर्घावधि आपूर्ति समझौता कर रखा है।नतीजतन, थर्मल प्लांटों का बिजली उत्पादन 30 फीसदी तक घट गया है। इससे अब भीषण गरमी के मौसम में बिजली गुल होने का खतरा बढ़ सकता है। केंद्र सरकार भी मानती है कि यदि ये सभी कोल ब्लॉक तय समय के अनुसार कोयला उत्पादन करने लगते तो बिजली क्षेत्र का ईंधन संकट काफी हद तक दूर हो सकता था।वर्ष 2003 में इलेक्ट्रिसिटी एक्ट में संशोधन के बाद बिजली उत्पादन क्षेत्र में निजी कंपनियों के लिए दरवाजे खोल दिए गए, लेकिन बिजली के लिए सबसे जरूरी चीज कोयला के उत्पादन में उस अनुपात में व्यवस्था नहीं की गई। बिजली उत्पादन में कोयला आधारित प्लांट का सबसे अधिक 56 फीसदी का योगदान है। दूसरी तरफ कोयला उत्पादन के क्षेत्र में कोल इंडिया का एकाधिकार है। देश का लगभग 80\' कोयला कोल इंडिया उत्पादन करती है। इस क्षेत्र में निजी कंपनियों को मौका नहीं मिलने से कोयला आपूर्ति के लिए कोल इंडिया पर ही पूरी निर्भरता बनी हुई है। परंतु कोल इंडिया के उत्पादन में वित्त वर्ष 2012-13 से पहले के तीन साल में कोई बढ़ोतरी दर्ज नहीं की गई या नाममात्र की बढ़ोतरी रही। वित्त वर्ष 2012-13 में कोल इंडिया 4640 लाख टन के उत्पादन लक्ष्य के मुकाबले 4512 लाख टन ही उत्पादन कर पाई। कोल इंडिया इस बात को साफ कर चुकी है 12वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान बिजली मंत्रालय की तरफ से तैयार की गई 60,000 मेगावाट परियोजना वाले पावर प्लांट की सूची से बाहर रह गए पावर प्लांट को वह कोयला आपूर्ति करने की स्थिति में नहीं है। ऐसे में अगले तीन-चार साल तक नए पावर प्लांट के साथ कोल इंडिया कोई एफएसए नहीं करने जा रही है या उन पावर प्लांट को कोई लिंकेज नहीं मिलने वाला है। लिंकेज नहीं मिलने से उन परियोजनाओं को कोई बैंक लोन नहीं देगा और लोन के अभाव में उस परियोजना पर काम नहीं होगा। जिन परियोजनाओं ने कोल लिंकेज के बगैर अपना काम शुरू कर दिया है उन्हें बिजली उत्पादन शुरू करने के लिए सालों इंतजार करना पड़ सकता है। इससे उनकी लागत काफी बढ़ जाएगी और उनकी परियोजनाएं अव्यावहारिक हो जाएंगी।


कोयला मंत्रालय ने 218 ब्लॉक में से 178 कोल ब्लॉक आवंटित किये थे। लेकिन ज्यादातर ने समय पर उत्पादन शुरू तक नहीं किया। घोटाला उजागर होने पर अब कई का आवंटन भी रद्द हो चुका है।साल 1973 में भारत सरकार ने कोयले के खनन को अपने हाथों में ले लिया था। सरकारी कंपनी कोल इंडिया लिमिटेड दुनिया की सबसे बड़ी कोयला उत्पादक कंपनी है और भारत में कोयला बेचने की एकमात्र एजेंसी भी। लेकिन साल 1976 में लोहे और इस्पात के निजी उत्पादकों को अपने आंतरिक इस्तेमाल के लिए कोयले की खदान दी जाने लगीं। ऐसी खदानों को 'कैप्टिव खदान' कहते हैं और इनका इस्तेमाल केवल और केवल उन्हीं कारखानों के लिए किया जा सकता है जिनके लिए इन्हें आवंटित किया गया हो। साल 2006 से 2009 के बीच निजी कंपनियों को 75 और सरकारी कंपनियों को 70 कोल ब्लॉक आवंटित किए गए। ये आवंटन कोयला मंत्रालय ने किए। इस दौरान कोयला मंत्रालय प्रधानमंत्री के पास था और प्रधानमंत्री थे मनमोहन सिंह।


पि छले साल निजी बिजली उत्पादक कंपनियों ने पावर प्लांट के फ्यूल संकट को दूर करने के लिए प्रधानमंत्री से गुहार लगाई थी। प्रधानमंत्री ने उनकी गुजारिश को गंभीरता से लिया और इस मामले के निपटारे के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय के प्रमुख सचिव पुलक चटर्जी की अध्यक्षता में एक सचिव स्तरीय कमेटी बनाई गई। कमेटी को बिजली क्षेत्र से जुड़े संकट को दूर करने के लिए रोड मैप तैयार करने की जिम्मेदारी मिली। कमेटी ने तत्काल कार्रवाई करते हुए कोल इंडिया को अप्रैल 2009 से दिसंबर, 2011 तक स्थापित होने वाले पावर प्लांट के साथ ईंधन आपूर्ति समझौता करने का निर्देश दिया। इन परियोजनाओं के साथ कोल इंडिया को एफएसए 31 मार्च 2012 तक ही करना था। लेकिन कमेटी की बात को गंभीरता से नहीं लेने पर इस मामले में पिछले 3 अप्रैल 2012 को राष्ट्रपति की तरफ से निर्देश भी जारी किया गया। पिछले साल कोल इंडिया को 2015 तक स्थापित होने वाले पावर प्लांट के लिए भी कोयले की आपूर्ति सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया था। लेकिन स्थिति यह है कि एक साल गुजरने के बाद भी एफएसए का मामला अब तक नहीं सुलट पाया है। कोल इंडिया इसके लिए बिजली कंपनियों को जिम्मेदार ठहराती है तो बिजली कंपनियां कोल इंडिया को।  


हरियाणा ने अदाणी पावर लिमिटेड को दरें बढ़ाने की अनुमति देने के केंद्रीय बिजली नियामक आयोग (सीईआरसी) के फैसले को एक न्यायालय में चुनौती दी है। इसे पहले से नुकसान और ईंधन की कमी का सामना कर रहे बिजली क्षेत्र की हालत और बिगड़ सकती है। राज्य के बिजली मंत्री अजय यादव ने बताया कि केंद्रीय बिजली नियामक आयोग के उस फैसले को चुनौती दी है जिसमें इसने अदाणी पावर को राज्य से सब्सिडी प्राप्त करने वाली बिजली वितरण कंपनियों को बिजली अधिक दरों पर बेचने की अनुमति दी थी।सीईआरसी ने टाटा पावर को भी इसी तरह की अनुमति दी है। हालांकि अभी यह तत्काल स्पष्टï नहीं है कि राज्य इस फैसले को भी चुनौती देगा या नहीं। सीईआरसी एक अन्य फैसले पर विचार कर रहा है, जिससे रिलायंस पावर को लाभ मिल सकता है।


केंद्रीय बिजली मंत्रालय के रिकार्ड गवाह हैं कि पिछले साल बिजली क्षेत्र के लिए 5.94 करोड़ टन कोयले का इंतजाम नहीं हो पाया।कोयला मंत्रालय ने बिजली क्षेत्र को 40.32 करोड़ टन कोयला उपलब्ध कराना था। लेकिन 2.77 करोड़ टन कोयला आयात करने पर भी मात्र 34.38 करोड़ टन कोयला ही मुहैया हो पाया। स्थिति अब और भी खराब हो चली है।केंद्र सरकार के उपक्रम एनटीपीसी के एक अफसर ने माना कि प्लांटों के लिए कोयले की भारी कमी चल रही है और इससे बिजली उत्पादन घटा है।


इसी बीच बिजली उत्पादक सरकारी कंपनी एनटीपीसी की 13वीं योजना के आखिर तक 37,000 मेगावाट जोडऩे की योजना और इसकी आपूर्ति 1 अक्टूबर 2010 से 5 जनवरी 2011 के बीच 37 लाभार्थियों के साथ हुए बिजली खरीद समझौते के तहत इसकी आपूर्ति को बल मिला है क्योंकि केंद्रीय बिजली नियामक आयोग ने इस बाबत बिजली उत्पादक संघ की याचिका खारिज कर दी है। अपने फैसले में सीईआरसी ने कहा है कि एनटीपीसी के व्यवहार को अपनी स्थिति का गलत फायदा उठाने वाला या गैर-प्रतिस्पर्धी नहीं कहा जा सकता। सीईआरसी ने यह भी कहा है कि याचिकाकर्ता का यह आरोप कि एनटीपीसी की तरफ से वसूली जाने वाली दरों के मामले में नियामकीय नियंत्रण नहीं है या इसे नजरअंदाज किया जा रहा है, स्वीकार नहीं किया जा सकता। सीईआरसी ने पाया कि, एनटीपीसी की तरफ से पीपीए पर हुए हस्ताक्षार ढांचे के दायरे में हैं और टैरिफ नीति के तहत दिया गया समय भी। ऐसे में बिजली अधिनियम 2003 के सेक्शन 60 के तहत कोई निर्देश देने की दरकार नहीं है।


बिजली उत्पादक संघ ने तर्क दिया कि एनटीपीसी की तरफ से पीपीए पर हस्ताक्षर वाला कदम स्पष्ट तौर पर प्रतिस्पर्धी बोली को दरकिनार करने वाला संकेत है। इसके अलावा याचिकाकर्ता ने कहा कि बिजली आपूर्ति के लिए लागत (प्लस) टैरिफ का एनटीपीसी का प्रस्ताव उपभोक्ता के हितों के लिहाज से हानिकारक होगा।


बारहवीं पंचवर्षीय योजना (2012-17) के दौरान स्थापित होने वाले 23,400 मेगावाट की बिजली परियोजनाओं का भविष्य कोयले के अभाव में अधर में लटक सकता है।कोयला लिंकेज की मंजूरी देने वाली स्टैंडिंग लिंकेज कमेटी ने इन परियोजनाओं को कोयले की उपलब्धता के आधार पर कोयला देने का भरोसा दिया है। लेकिन इन परियोजनाओं को फिलहाल कोयला लिंकेज देने के मामले पर कोई विचार नहीं किया गया।23,400 मेगावाट की ये परियोजनाएं 12वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान कोयला आपूर्ति के लिए तैयार की गई सूची में शामिल नहीं है। 12वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान 60,000 मेगावाट की परियोजनाओं को कोयला आपूर्ति करने के लिए केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए) और बिजली मंत्रालय ने सूची तैयार की थी।स्टैंडिंग लिंकेज कमेटी के मुताबिक 12,635 मेगावाट की ऐसी परियोजनाएं है जिन्हें लेटर आफ एश्योरेंस (एलओए) भी जारी किया जा चुका है और ये सभी परियोजनाएं ईंधन आपूर्ति समझौता (एफएसए) के लिए जरूरी सभी शर्तों को भी पूरा कर रही हैं।10,765 मेगावाट की परियोजनाओं को कोयले की उपलब्धता के लिए शार्ट टर्म लिंकेज (धीरे-धीरे कम होने वाला) दिया गया है। बिजली मंत्रालय के मुताबिक दोनों ही श्रेणी की परियोजनाएं 31 मार्च, 2015 तक स्थापित हो जाएंगी और ये सभी परियोजनाएं कोयला आपूर्ति के लिए योग्य पात्र है।


स्टैंडिंग लिंकेज कमेटी ने कहा है कि इनमें से जिन परियोजनाओं के पास एलओए है और वे पावर परचेज एग्रीमेंट (पीपीए) भी कर चुकी है, उन्हें उपलब्धता के आधार पर कोयला आपूर्ति पर विचार किया जा सकता है। लिंकेज कमेटी ने एलओए हासिल कर कोयला आपूर्ति की योग्यता रखने वाली सभी परियोजनाओं की सूची सीईए व कोल इंडिया को तैयार करने की भी सिफारिश की है।कोयला मंत्रालय के मुताबिक 60,000 मेगावाट की सूची से बाहर इन परियोजनाओं की एलओए की अवधि को एक साल के लिए विस्तार देने का भी फैसला किया गया है ताकि मौका मिलने व कोयले की उपलब्धता होने पर कोयला लिंकेज के मामले में उन पर विचार किया जा सके।


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