Monday, May 13, 2013

मार्क्‍स के बहाने: एक थी हेलन और एक था फ्रेडी

मार्क्‍स के बहाने: एक थी हेलन और एक था फ्रेडी


पिछले कुछ वर्षों के दौरान, खासकर 2008 में आई वैश्विक मंदी के बाद से कार्ल मार्क्‍स को खूब याद किया गया है। जिसकी जैसी चिंताएं, उसके वैसे आवाहन। एक बात हालांकि सारे आवाहनों में समान यह रही है कि मार्क्‍स को एक व्‍यक्ति के तौर पर याद नहीं किया गया। उसकी एक स्‍वाभाविक वजह यह है कि जब विचार, व्‍यक्ति से बड़ा हो जाता है तो व्‍यक्ति के बारे में बात करना गौड़ हो जाता है। बावजूद इसके, एक व्‍यक्ति के निजी जीवन प्रसंगों और सार्वजनिक जीवन में उसके प्रतिपादित दर्शन के बीच का विपर्यय हमेशा से आम पाठक की दिलचस्‍पी का विषय रहा है। हमेशा कुछ उत्‍साही जन हिटलर से लेकर सार्त्र और गांधी से लेकर नेहरू तक के निजी जीवन प्रसंगों में खुर्दबीन करते मिल जाएंगे। ऐसे लेखन का उद्देश्‍य तो बहुत साफ नहीं होता, अलबत्‍ता उक्‍त शख्सियत के प्रति एक प्रच्‍छन्‍न संदेह अवश्‍य होता है जो उसे सामान्‍य मनुष्‍य न मानते हुए एक आदर्श के खांचे में फिट करने और ऐसा न कर पाने के चलते उसके प्रति उपजी अवमानना से शायद पैदा होता हो। 
ऐसा ही एक लेख पत्रकार विश्‍वदीपक लेकर आए हैं कार्ल मार्क्‍स के बारे में। विश्‍वदीपक पिछले दिनों जर्मनी में नौकरी कर रहे थे, जहां से उन्‍होंने मार्क्‍स के बारे में कुछ सूचनाएं जुटाई हैं जो सामान्‍यत: हिंदी के पाठकों के लिए नई कही जा सकती हैं। इस लेख में कार्ल मार्क्‍स की एक ''अवैध'' संतान के बारे में जानकारी दी गई है और उसके माध्‍यम से मार्क्‍स के मुक्ति के दर्शन पर सवाल उठाया गया है।   प्रेम, विवाह, यौन संबंध या किसी भी निजी प्रसंग का किसी व्‍यक्ति की राजनीति से कितना लेना-देना है, यह सवाल उतना ही पुराना है जितना पुराना ''विचार'' है। एक मनुष्‍य के भीतर और बाहर सब कुछ ''होमोजीनियस'' होने की मांग कितनी मानवीय है, एक सवाल यह भी है और उतना ही पुराना है। इन अनसुलझे सवालों के बीच ऐसे लेखों और सूचनाओं के प्रकाशन के संदर्भ में बस एक खतरा यह बना रहता है कि इस संकटग्रस्‍त और मनुष्‍यरोधी समय में बाड़ के उस पार घात लगाए बैठे कुछ शिकारी निजी प्रसंगों का इस्‍तेमाल कहीं विचारधारा के खिलाफ विषवमन के लिए न करने लग जाएं। ऐसे लोकप्रियतावादी लेखन के संदर्भ में इन खतरों की वास्‍तविकता के प्रति हमें हमेशा सजग रहना होगा। (मॉडरेटर)    



इसका संबंध प्रेम से है। इसका संबंध इतिहास के पुनर्लेखन से है। इसका संबंध पत्नी से बेवफाईराज्य- परिवार और संपत्ति की अवधारणा (फ्रिडरिश एंगेल्स की किताब का नाम) से है। इसका संबंध इतिहास के प्रखरतम विचारक कार्ल मार्क्स से है। "दास कैपिटल" के लेखक कार्ल मार्क्स को लोग मुक्ति का मसीहा मानते हैं, खासतौर से उनके अनुयायी। पर इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि मसीहा भी आखिरकार इंसान ही होता है। देवत्व का आरोपण किसी विचारक को प्रश्नातीत बना सकता है, पर क्या भगवान की मानवीय कमज़ोरियों को इतिहास भुला सकता है? शायद नहीं। जितनी बड़ी भगवत्ता होगी उतना ही बड़ा प्रभाव भी होगा।

जर्मनी के ऊंघते हुए शहर ट्रियर में पैदा हुए कार्ल मार्क्स के बारे में भारतीय वामपंथ का रवैया जितना पुराना है उतना ही अतार्किक और कृपण भी है। किसी पौराणिक आख्यान में वर्णित भगवान-भक्त संबंध से परे शायद मार्क्स को समझने की कोशिश नहीं की गई। अगर की गई होती तो मार्क्स के प्रति मुख्यधारा में अछूत-दुश्मनी का भाव या तो नहीं होता या कम होता। तार्किकता और वैज्ञानिक चेतना के विकास के तमाम दावों के बाद भी (सांस्थानिक) मार्क्सवादियों के बीच पसरी कट्टरता की वजह यही व्यक्तिवादी अंध आस्था है। मूल रूप से धार्मिक इस प्रवृत्ति ने कई ''मार्क्सवादी ब्राह्मणों-राजपूतों'' को जन्म दिया है जिसका इतिहास पर क्या असर हुआ है, इसका समुचित अध्ययन किया जाना बाकी है।

ज्यादातर लोग जानते हैं कि मार्क्स कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो के रचयिता थे। रूसचीनक्यूबा जैसे देशों की क्रांतियां मार्क्स के सिद्धांतों (भले ही न्यूनतम) की रोशनी में पूरी की गईं। दुनिया का सबसे लोकप्रिय नारा- ''मजदूरों एक हो जाओ तुम्हारे पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है''- ये भी मार्क्स का दिया हुआ है। पर क्या मार्क्स का होना इसी के इर्द-गिर्द था? मार्क्स का जन्मस्थान और उनके विकास को देखने के बाद तो यही लगा कि बिल्कुल नहीं। 

मार्क्स की क्रांतिकारी सोच स्वप्नदर्शितासंवेदना की राह तक जाने वाली भावुकता की बुनियाद पर खड़ी हुई थी। यह बात अलग है कि "भावुकता" को मार्क्सवादी सौंदर्यशास्त्र में बुरी तरह खारिज किया गया। धीरे-धीरे यह प्रक्रिया इतनी जड़ हो गई कि संवेदनशीलता को भी भावुकता का पर्याय समझा जाने लगा। पूंजीवाद के रहस्यों से पर्दा उठाकर क्रांति का सूत्रपात करने वाले मार्क्स का जीवन विपर्ययत्रासदी और संघर्षशीलता की अजब खिचड़ी था।

विपर्यय ये कि मार्क्स निजी जीवन में संताननैतिकताप्रेमपरिवारयौन संबंध आदि विषयों पर उसी तरह की सोच रखते थे या उसी बचाव-दुराव से ग्रस्त थे जो हिंदुस्तान के किसी भी मध्यवर्गीय क्रांतिकारी में देखी जा सकती है (यहां जर्मनी और भारत का क्रांतिकारी एक है) जबकि सोच के स्तर पर वे सर्वहारा क्रांति की रोशनी में हर तरह के स्तंभ (पूंजीवादी) को ढहाने के लिए प्रयासरत थे।

मार्क्‍स की नौकरानी डेमुथ 
फ्रेडी उर्फ हेनरी फ्रिडरिश डेमुथ को कितने लोग जानते हैंइस शख्स का नाम मार्क्सवादी बैठकखानों में भी कम ही लिया जाता है। जो जानते भी हैं वे इस पर मौन रखते हैं या फिर इसकी चर्चा कम करते हैं। इतिहास के अंधेरे में विलीन डेमुथ वो नाम है जिसे मार्क्स की अवैध संतान कहा जाता है। कार्ल मार्क्स की उनकी नौकरानी हेलन के साथ यौन संबंध थे और उसी से पैदा हुआ था डेमुथ, हालांकि मार्क्स ने इस बात को स्वीकार कभी नहीं किया। माना जाता है कि एंगेल्स को भी मार्क्स के इस प्रेम संबंध के बारे में पता था लेकिन मार्क्स की प्रतिष्ठा और कम्युनिस्ट आंदोलन के भविष्य को ध्यान में रखते हुए एंगेल्स इस मसले पर अंतिम दम तक चुप्पी बरकरार रखी। मौत से कुछ समय पहले उन्होंने मार्क्स की बेटी एलिनॉर के सामने इसका जि़क्र किया था (जर्मनी के समाजवादी नेता कार्ल काउट्स्की की पत्नी लुइस फ्रे बर्गर ने 2-4 सितंबर 1898में लिखे पत्र में इसका जिक्र किया है)।

सवाल घरेलू नौकरानी के साथ यौन संबंध की वजह से मार्क्स को नैतिकता के कठघरे में खड़े करने का नहीं है। सवाल कर्तृत्व के बारे में जिम्मेदारी का है (भारतीय वामपंथ के गैर-जिम्मेदाराना रवैये और नकारोक्ति के मूल बीज यहां देखे जा सकते हैं)। गांधी इसी बिंदु पर मार्क्स से अलग और संभवतबड़े हो जाते हैं। गांधी ने जो भी किया उसकी जिम्मेदारी ली। प्रयोग करते रहे और परिणामों की विवेचना कर खुद को दुरुस्त करते रहे। नीत्शे के अलावा गांधी दुनिया के दूसरे विचारक हैं जो खुद को काटते रहे। गांधी एक शख्सियत से ज्यादा जीते जी एक सतत प्रक्रिया बन गए थे।

हेलन डेमुथ को लेकर अगर मार्क्स के चरित्र का मूल्यांकन किया जाए तो वे भारतीय परंपरा के धीरोदात्त नायक नजर आते हैं- अध्ययनशीलतार्किकधैर्यवान लेकिन अदृढ़। हेलन के साथ संबंधों को लेकर उनका रवैया खासतौर से अस्पष्ट और ढुलमुल था। मार्क्स की पत्नी जेनी हमेशा उनके साथ रहीं। मार्क्स उन्हे बेइंतहा प्यार भी करते थे। लड़कपन से ही दोनों का प्यार था फिर भी मार्क्स और हेलन के बीच प्रेम संबंध बने। क्योंसाहचर्यसंवेदनशीलता और यौनाकर्षण इसकी वजहें हो सकती हैं। पता नहीं नारीवादियों का ध्यान हेलन की ओर गया है या नहीं। कार्ल मार्क्स जैसी शख्सियत को बचाने के लिए चुपचाप उपेक्षा और तिरस्कार सहने वाली हेलन का मूल्यांकन नारीवादी विमर्श के लिए एक अच्छा विषय हो सकता है।

हेलन मार्क्स की घरेलू नौकरानी थी लेकिन उसका काम मालकिन जैसा था। वह मार्क्स के बेटे-बेटियों और नाती-पोतों (मार्क्स की बेटियों जेनी और लॉरा के बच्चों) को संभालती थी और घर का हिसाब किताब भी रखती थी। वह मार्क्स के ससुराल से आई थी- बहुत खूबसूरत तो नहीं लेकिन आकर्षक जरूर थी। जो विवरण मिलता है उसके मुताबिक वह पढ़ी-लिखी और विनोदी स्वभाव की थी। लोग उसे निमी कहकर भी बुलाते थे। शायद मार्क्स को उसका मज़ाकिया लहजा ही सबसे ज्यादा पसंद आता था। हमेशा किताब और पढ़ाई-लिखाई में डूबे रहने वाले मार्क्स के लिए हेलन उदासीन दिनचर्या में एक बदलाव की तरह थी।

मार्क्स के सास-ससुर ने हेलन को जेनी की देखभाल के लिए उसके साथ भेजा था। जब वह छोटी थी तब जेनी के घर में नौकरानी बनकर आई और जीवन भर उसके साथ रही। 1840 में जब मार्क्स ब्रसेल्स में थे तब वह भी मार्क्स परिवार की देखभाल के लिए ब्रसेल्स आ गई थी। इसके बाद आखिरी सांस तक साये की तरह मार्क्स के साथ ही रही। मार्क्स की मौत हो गई तो वो रहने के लिए एंगेल्स के घर आ गई जहां वो आखिरी वक्त तक रही। सत्‍तर साल की उम्र में जब वह मर रही थी तब मार्क्स से पैदा हुआ उसका बेटा फ्रेडी करीब 40 का हो रहा था। यानी हेलन 30 की रही होगी जब मार्क्स और उसके बीच प्रेम संबंध बने थे।

कार्ल मार्क्‍स की वंशावली 
यह पता नहीं चल सका है कि हेलन ने फ्रेडी को उसके बाप के बारे में बताया था या नहीं लेकिन कहा जाता है कि फ्रेडी अपने पिता के बारे में किसी से बात करना पसंद नहीं करता था। उसके जन्म प्रमाण पत्र में भी पिता का नाम नहीं लिखा गया था। फ्रेडी की मुसीबतों का सिलसिला जन्म के बाद से ही शुरू हो गया था। पैदा होने के बाद से ही उसे मां से अलग कर दिया गया था क्योंकि मार्क्स नहीं चाहते थे कि कुंवारी नौकरानी के बेटे की परवरिश उनके घर में हो। दूसरा मामला आर्थिक कठिनाई का था। मार्क्स खुद अपने खर्चे-पानी के लिए एंगेल्स पर निर्भर थे, ऐसे में एक और बच्चे का लालन-पालन उनके वश में कतई नहीं था।

यहां पर सवाल उठना स्वाभाविक है कि हेलन ने आखिर क्यों अपनी ममता की कीमत पर मार्क्स परिवार को तवज्जो दीक्यों उसने मां के बजाय नौकरानी बनकर जीना उचित समझा? कहते हैं मार्क्स परिवार हेलन जैसी वफादार नौकरानी को नहीं खोना चाहता था और हेलन मार्क्स परिवार के घर से मिल रही आजीविका को। आज जबकि न मार्क्स हैं, न हेलन और न फ्रेडी, यह समझना आसान लगता है कि मार्क्स के घर में हेलन के बने रहने की वजह सिर्फ वफादारी नहीं बल्कि उसका समर्पण भी था (मार्क्स के प्रति?)।

फ्रेडी को जन्म के बाद पालन-पोषण के लिए दूसरों के दे दिया गया था लेकिन मार्क्स के घर उसका आना-जाना बना रहता था। कहते हैं मार्क्स के घर में जब भी फ्रेडी आता था उसे पिछले दरवाजे से ही घर के भीतर जाने की इजाज़त थी। वह सामने वाले दरवाज़े से नहीं जा सकता था। मार्क्स की बेटियों से फ्रेडी का दोस्ताना था। सबसे छोटी बेटी एलिनॉर तो खासतौर से उसे लेकर चिंतित रहती थी। इस बारे में वह अपनी बहनों से जब-तब पत्र व्यवहार भी किया करती थी। एक बार उसने 1892 में लॉरा (मार्क्स की दूसरी बेटी) को लिखा था"हो सकता है मैं बहुत भावुक होऊं लेकिन मैं यह कहने से खुद को नहीं रोक सकती कि फ्रेडी के साथ बहुत अन्याय हुआ है।"

यही अन्याय वो शब्द है जिसके आधार पर कहा जाता है कि एलिनॉर को इस बात की जानकारी थी कि फ्रेडी के पिता कार्ल मार्क्स ही थे। यह दावा इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि एलिनॉर ही एंगेल्स की मौत के वक्त मौजूद थी। मौत से पहले एंगेल्स ने कागज़ के एक टुकड़े पर लिखकर बताया था कि मार्क्स ही फ्रेडी के पिता थे, हालांकि इस बारे में पुख्ता सबूत आज तक नहीं मिले हैं। कुछ लोग ऐसा भी मानते हैं कि इससे संबंधित सभी सबूत एंगेल्स ने नष्ट कर दिए थे। इस दावे में दम लगता है क्योंकि ऐतिहासिक महत्व की छोटी-छोटी बात को सहेजकर रखने वाले एंगेल्स ने इतनी बड़ी बात की उपेक्षा कैसे कर दीयह समझ नहीं आता। कहा तो ये भी जाता है कि एंगेल्स ने मरने से पहले यह रहस्योद्घाटन इसलिए किया ताकि फ्रेडी के मामले में उनका दामन साफ रहे। कम से कम उन्हें फ्रेडी का पिता न समझा जाय। 

अब जबकि फिर से इस बारे में लिखा जाने लगा है, फ्रेडी के प्रति मार्क्स की उपेक्षा को इतिहास कैसे याद रखेगा एक सवाल यह भी बनता है। क्या मजदूर वर्ग की मुक्ति की बात करने वाले मार्क्स के मन में फ्रेडी की मुक्ति की बात कभी आई थी? (फ्रेडी भी मजदूर ही था) क्या समानता और साम्यवादी राज्य की परिकल्पना पेश करने वाले मार्क्स ने भी फ्रेडी के जीवन को बेहतर बनाने के लिए कोई योजना बनाई थी? मार्क्स, फ्रेडी के प्रति क्या सोचते थे यह स्पष्ट नहीं है। हांएंगेल्स ज़रूर फ्रेडी से खूब कुढ़ते रहते थे। हो सकता है इस वजह से कि मार्क्स के कहने पर उन्हें फ्रेडी का खर्चा भी उठाना पड़ रहा था।

मार्क्स का रवैया सिर्फ फ्रेडी के प्रति ही अन्यायकारी नहीं था। वे अपनी बेटियों के प्रति भी उदार नहीं थे- एक हद तक मर्दवादी सोच से ग्रस्त। बेटियों के जन्म की सूचना मार्क्स ने एंगेल्स को जिन शब्दों में दी है उससे साबित होता है कि मार्क्स का मन लड़के और लड़कियों में विभेद करता था। तीसरी संतान के जन्म के समय मार्क्स ने एंगेल्स को लिखा, "अफसोस,मेरी पत्नी ने एक बार फिर बच्चे के बजाय बच्ची को जन्म दिया है। और इस पर भी अफसोस की बात ये है कि वो बहुत कमज़ोर है।"

सबसे छोटी बेटी एलिनॉर 'टुसी' मार्क्‍स 
मार्क्स की सबसे छोटी बेटी एलिनॉर का प्रेम संबंध भी मार्क्स की अकड़ की भेंट चढ़ गया था। मार्क्स को अपनी बेटी का प्रेम संबंध मंजूर नहीं था। वह एक फ्रांसीसी इतिहासकार ओलिवियर लिसागारे (पेरिस कम्यून का इतिहासकार) से शादी करना चाहती थी। दस साल तक ओलिवियर का उसके साथ प्रेम संबंध भी चला लेकिन मार्क्स इसके खिलाफ थे। आखिरकारएलिनॉर मार्क्स की इच्छा के आगे झुक गई और उसने अपने संबंध खत्म कर लिए। इसके बाद वह ब्रिटेन के मजदूर आंदोलन में काम करने वाले एडवर्ग एवेलिंग के संपर्क में आई। बीमारीप्रेम विच्छेद और हताशा से आजिज़ आकर 1898 में उसने आत्महत्या कर ली। क्या एलिनॉर जिंदा रहती अगर वह अपने मन से शादी कर पाती

इतिहास सवाल पूछने का मौका देता है, मनमाफिक व्याख्या की भी इजाज़त देता है, लेकिन फिर से उसी बिंदु पर पहुंचने की इजाज़त नहीं देता जहां से यात्रा शुरु हुई थी। हेलन ने अपनी जीवन यात्रा जेनी (मार्क्स की पत्नी) के घर से शुरू की थी और समाप्ति एंगेल्स (मार्क्स के दोस्त) के घर पर हुई। दोनों के बीच उसे मार्क्स मिले थे, और मिली थी मार्क्स की प्रेम निशानी। मरने के बाद हेलन ने अपनी कुल संपत्ति (महज 95 पाउंड) फ्रेडी के लिए रख छोड़ी थी। मार्क्स से दो साल छोटी हेलन जब मर रही थी तब उसके पास कुछ नहीं था सिवाय एक तमन्ना के, और वो ये कि मरने के बाद उसे मार्क्स के बगल में दफनाया जाए। मार्क्स के प्रिय मित्र एंगेल्स ने उसकी इस आखिरी ख्वाहिश को पूरा किया।

बकौल गालिब: 

ये मरना ये कफन ये कब्र तो रस्म-ए-शरीयत है ग़ालिब 
मर तो हम तब गए थे, जब हसरत-ए-इश्क दिल में जगी थी...

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