Tuesday, May 14, 2013

कट्टरपन्थी नहीं समझ सकते शांति और तर्क की भाषा

कट्टरपन्थी नहीं समझ सकते शांति और तर्क की भाषा

डॉ. असगर अली इंजीनियर

हाल में समाचारपत्रों में एक अत्यंत दुःखद और चिन्ताजनक खबर छपी, जिसके अनुसार पाकिस्तान में कट्टरपन्थियों ने उनमें से कई महिलाओं को जान से मार दिया जो बच्चों को पोलियो की दवा पिला रही थीं। कट्टरपन्थियों का मानना है कि पोलियो उन्मूलन अभियान, दरअसल, मुसलमानों की आबादी कम करने का अन्तर्राष्ट्रीय षडयन्त्र है। वे ऐसा सोचते हैं कि पोलियो की दवा पीने से लड़के नपुंसक हो जायेंगे। भारत में भी कुछ मुसलमान और इमाम ऐसा ही सोचते हैं और जु़मे की नमाज के बाद होने वाली तकरीरों में कई इमामों ने मुसलमानों से यह अपील की कि वे सामाजिक कार्यकर्ताओं को अपने बच्चों को पोलियो की दवा पिलाने की इजाजत न दें।

परन्तु भारत में यह मुद्दा केवल चंद इमामों की अपीलों तक सीमित रहा। किसी व्यक्ति को कोई शारीरिक नुकसान नहीं पहुँचाया गया – कत्ल तो दूर की बात है। पाकिस्तान के कट्टरपन्थी हिंसा की संस्कृति में विश्वास रखते हैं और उनके पास उनकी आज्ञा को न मानने वाले के लिये एक ही सजा है-मौत। मलाला को इसलिये मार डालने की कोशिश की गयी क्योंकि उसने तालिबान की बात नहीं सुनी और बच्चियों की शिक्षा की वकालत करती रही। जो लोग इस्लाम के नाम पर दूसरों को मारते हैं वे सच्चे मुसलमान तो हैं ही नहींबल्कि वे तो मुसलमान कहलाने के लायक भी नहीं हैं। धर्मपरायण मुसलमान होने के लिये व्यक्ति को न्याय करने वाला होना चाहिये। कुरान कहती है ''न्याय करो : यही धर्मपरायणता के सबसे नजदीक है। अल्लाह से डरते रहोनिःसंदेहजो कुछ तुम करते होअल्लाह उसकी खबर रखता है'' (5ः8)।

कोई भी ऐसा व्यक्ति जो दूसरों की जान लेता है स्वयं को न्याय करने वाला कैसे कह सकता है?न्याय करना वैसे भी बहुत कठिन काम है। हत्यारे को सजा देने के लिये कम से कम दो धर्मपरायण और ईमानदार गवाहों की आवश्यकता होती है। और बलात्कार को साबित करने के लिये कम से कम चार ऐसे गवाह चाहिये होते हैं। शरीयत कानून के अनुसार, किसी भी व्यक्ति की गवाही स्वीकार करने के पहले यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि वह व्यक्ति ईमानदार, पवित्र और धर्मपरायण है। हर किसी की गवाही को स्वीकार नहीं किया जा सकता। किसी को मारने की इजाजत तभी है जब उस व्यक्ति ने कत्ल किया हो और वह भी कत्ल-ए-अमत (जानबूझकर व सोच-समझकर)। अल्लाह तो यही चाहता है कि कातिल को मुआवजा लेकर या बिना मुआवजा लिये माफ कर दिया जाये।

डॉ. असगर अली इंजीनियर (लेखक मुंबई स्थित सेंटर फॉर स्टडी ऑफ सोसायटी एंड सेक्युलरिज्म के संयोजक हैं, जाने-माने इस्लामिक विद्वान हैं और कई दशकों से साम्प्रदायिकता व संकीर्णता के खिलाफ संघर्ष करते रहे हैं। बकौल असगर साहब- "I was told by my father who was a priest that it was the basic duty of a Muslim to establish peace on earth. … I soon came to the conclusion that it was not religion but misuse of religion and politicising of religion, which was the main cause of communal violence.")

किसी भी व्यक्ति को बिना उचित कारण के जान से मारना एक बहुत बड़ा पाप है। कुरान कहती है''जिसने किसी व्यक्ति काकिसी के खून का बदला लेने या ज़मीन में फ़साद फैलाने के सिवायकिसी और कारण से कत्ल किया तो मानो उसने समस्त मनुष्यों की हत्या कर डाली और जिसने उसे जीवन प्रदान कियाउसने मानो समस्त मनुष्यों को जीवन प्रदान किया'' (5ः32)। यह कुरान की सबसे महत्वपूर्ण आयतों में से एक है। जीवन पवित्र है और किसी को यह अधिकार नहीं है कि वह किसी अन्य व्यक्ति का जीवन अकारण ले ले। किसी की जान लेने के लिये बहुत महत्वपूर्ण कारण होना चाहिये। अगर हम मनुष्य एक-दूसरे को अकारण और जब चाहे मारने लगेंगे तो इस धरती से मानव जाति का अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा।

सामान्यतः, हथियारों का इस्तेमाल स्वयं की रक्षा के लिये किया जाना चाहिये। किसी की जान लेने के लिये नहीं। क्या कोई यह बता सकता है कि शरीयत में कहाँ यह लिखा है कि पोलियो की दवा पिलाने की सजा मौत है? पोलियो की दवा तो उस समय थी ही नहीं जब शरीयत लिखी गयी थी। कट्टरपन्थी धार्मिक नेता वैसे तो शरीयत कानून में किसी भी प्रकार के परिवर्तन का कड़ा विरोध करते हैं – फिर चाहे वह कितना ही औचित्यपूर्ण क्यों न हो – परन्तु अपनी सुविधानुसार वे शरीयत कानून में कुछ भी जोड़ – घटा लेते हैं या शब्दों और वाक्यों के ऐसे अर्थ निकाल लेते हैं जो उनके हितों और लक्ष्यों के अनुरूप हों। पोलियो की दवा पिलाने वाली महिलाओं की हत्या इसी तरह के किसी बेहूदा तर्क के आधार पर की गयी। यह शरीयत कानून में मनमाना परिवर्तन है जिसे किसी भी हालत में औचित्यपूर्ण नहीं ठहराया जा सकता।

ये वही कट्टरपन्थी हैं जिन्हें नारकोटिक ड्रग्स का उत्पादन करने और उन्हें बेचने से कोई गुरेज नहीं है। वे इन ड्रग्स को बेचकर अकूत धन कमाते हैं और उससे खरीदे गये हथियारों का इस्तेमाल युवाओं की जान लेने के लिये करते हैं। इस्लाम में शराब सहित सभी नशीले पदार्थों पर कड़ा प्रतिबन्ध है परन्तु यह सर्वज्ञात है कि पाकिस्तान और अफगानिस्तान में तालिबान, बड़े पैमाने पर ड्रग्स का उत्पादन करते हैं, उन्हें तस्करी के जरिये दूसरे देशों में ऊँची कीमत पर बेचते हैं और उस धन से हथियार खरीदते हैं। मैंने अफगानिस्तान में कई ड्रग-विरोधी सम्मेलनों में भाग लिया है और मैं जानता हूँ कि हथियार और असलाह की अपनी लिप्सा पूरी करने के लिये तालिबान ने हजारों ज़िन्दगियाँ तबाह कर दी हैं। अफगानिस्तान में महिलाएं तक ड्रग्स लेने की आदी हैं। यह है तालिबान का इस्लाम। 

तालिबान से हम यह भी जानना चाहेंगे कि यह उन्हें किसने बताया कि पोलियो की दवा से पुरूष नपुंसक हो जाते हैं। क्या वे किसी वैज्ञानिक अनुसन्धान के आधार पर इस नतीजे पर पहुंचें हैं? या वे केवल अफवाहों के आधार पर किसी भी विषय पर अपना मत बना लेते हैं? किसी भी बात पर उसकी सत्यता का पता लगाये बिना विश्वास कर लेने की कुरआन सख्त शब्दों में निंदा करती है। कुरान की आयत 48:9, 48:12, 49:12 और 53:23 में इस प्रवृत्ति की आलोचना की गयी है। कुरान कहती है कि कई मामलों में ऐसा करना गुनाह करने जैसा है और कई बार हम अपनी व्यक्तिगत इच्छाओं की पूर्ति के लिये ऐसी बातों को सच बताने लगते हैं जो सही नहीं हैं। कुरान इस तरह की प्रवृत्ति को घोर अनुचित करार देती है। अगर तालिबान केवल सुनी-सुनाई बातों के आधार पर पोलियो की दवा पिलाने वाली महिलाओं का कत्ल कर रहे हैं तो यह कुरान की दृष्टि में गुनाह है। और यदि वे अनुसन्धान या किसी और तरीके से इस नतीजे पर पहुँचे हैं कि पोलियो की दवा नपुंसकता को जन्म देती है तो उन्हें इसका प्रमाण प्रस्तुत करना चाहिये। क्या वे यह चाहते हैं कि छोटे-छोटे बच्चे पोलियो के कारण अपना पूरा जीवन अपाहिज के तौर पर बिताने पर मजबूर हों? जीवन अल्लाह की एक सुन्दर भेंट है। क्या वे चाहते हैं कि हजारों-लाखों बच्चे ईश्वर की इस भेंट का आनन्द न ले पायें और वह भी केवल तालिबान की गलतफहमी या कमअक्ली के कारण?

पल्स पोलियो अभियान को संयुक्त राष्ट्र संघ ने शुरू किया है और इसका लक्ष्य है धरती के माथे से पोलियो के कलंक को मिटाना। इस अभियान का उद्धेश्य हमारी पृथ्वी के निवासियों को अधिक स्वस्थ और प्रसन्न बनाना है। यह दवा केवल मुसलमानों को नहीं पिलायी जा रही है। पूरी दुनिया में सभी धर्मों के बच्चे इस दवा का सेवन कर रहे हैं। पूरी मानवता इस अभियान से लाभान्वित हो रही है, विशेषकर अफ्रीका और एशिया के वे इलाके जहाँ गरीबी, बदहाली और भूख ने अपने पाँव पसार रखे हैं। ऐसा लग रहा है कि पल्स पोलियो अभियान का विरोध, दरअसल, तालिबान का एक षडयन्त्र है जिसका लक्ष्य मुसलमानों की आने वाली पीढ़ियों को अपाहिज बनाना है ताकि वे तालिबान की दया और दान पर निर्भर रहें।

कुरान और हदीस में इल्म पर बहुत जोर दिया गया है। इसके चलते होना तो यह था कि मुसलमान, विज्ञान और वैज्ञानिक दृष्टिकोण के मामले में पूरी दुनिया में सबसे आगे होते। परन्तु यह दुःखद है कि मुस्लिम कट्टरपन्थी इतने अज्ञानी और अन्धविश्वासी हैं और वे बन्दूक के बल पर मुसलमानों को अज्ञानता के अंधेरे में कैद रखना चाहते हैं। मुसलमानों का यह कर्तव्य है कि वे अज्ञानता का नाश करें और ज्ञान के युग का आगाज़ करें। तालिबान आधुनिक शिक्षा के विरोधी हैं। वे महिलाओं को शिक्षित और स्वतन्त्र देखना नहीं चाहते। यहाँ तक कि वे आधुनिक दवाओं तक के विरोधी हैं। वे केवल बन्दूकों की खेती कर रहे हैं। क्या यह इस्लाम है? हमें युवा मुसलमानों को प्रेरित करना होगा कि वे तालिबान के अभिशाप के खिलाफ खुलकर खड़े हों। यह अभिशाप उतना ही खतरनाक है जितना कि पोलियो।

(लेखक मुंबई स्थित सेंटर फॉर स्टडी ऑफ सोसायटी एण्ड सेक्युलरिज्म के संयोजक हैं, जाने-माने इस्लामिक विद्वान हैं और कई दशकों से साम्प्रदायिकता व संकीर्णता के खिलाफ संघर्ष करते रहे हैं। मूल अंग्रेजी से अमरीश हरदेनिया द्वारा अनुदित)

http://hastakshep.com/intervention-hastakshep/views/2013/02/19/%E0%A4%95%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A4%B0%E0%A4%AA%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A5%E0%A5%80-%E0%A4%A8%E0%A4%B9%E0%A5%80%E0%A4%82-%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A4%9D-%E0%A4%B8%E0%A4%95%E0%A4%A4%E0%A5%87#.UZJo8aKnwnU

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