Saturday, December 4, 2010

Browse: Home / विविध, संस्मरण / गिरदा हमारे वजूद, हमारी पहचान में मौजूद हैं… गिरदा हमारे वजूद, हमारी पहचान में मौजूद हैं… By नैनीताल समाचार on November 30, 2010 संस्मरण : पलाश विश्वास

गिरदा हमारे वजूद, हमारी पहचान में मौजूद हैं…

संस्मरण : पलाश विश्वास

गिरदा अब स्मृति शेष हैं, कहना गलत होगा। गिरदा हमारे वजूद, पहचान में मौजूद हैं…..

girda-hamari-pahchanसत्तर के दशक के तूफानी दौर से लेकर अब तक हिमालयी शिखरों के स्वर में गूँजती रही है वह कुख्यात हुड़के की थाप और एक खालिस लोक कवि की जादुई आवाज। उस आवाज के थमने की आशंका तब तलक नहीं है, जब तक हिम ग्लेशियर पिघलकर हमारा वजूद मिटा ही न दें। सत्तर के दशक में व्यवस्था विरोधी, अराजक, दारूकुहा स्वप्नदर्शी गिरदा पहाड़ के भद्रजनों में बेहद विवादास्पद माने जाते थे।

मैं और मोहन, यानी कि कपिलेश भोज जब जीआइसी नैनीताल में दाखिज हुए तब कुमाऊँ विश्वविद्यालय में डी.डी.पन्त उपकुलपति बन गये थे। बटरोही हमारे घर तराई में रुद्रपुर महाविद्यालय में स्थानान्तरित हो चुके थे। हमें अपने कालेज में चाणक्य ताराचन्द्र त्रिपाठी ने पकड़ लिया था तो उधर डीएसबी में युवा तुर्क शेखर पाठक और चन्द्रेश शास्त्री अवतरित हो चुके थे। पवन राकेश एक लघु पत्रिका निकाल चुके थे। जहूर आलम, डीके और हरुआ दाढ़ी पन्त रंगकर्म में डूब चुके थे। दिनेश काण्डपाल के साथ मिलकर हरीश एक पत्रिका निकालने का विफल प्रयत्न कर चुके थे। अशोक, सेवॉय और राजहंस प्रेस के मालिक राजीव लोचन साह तब निहायत भद्रजन थे। नैनीताल में तब शरदोत्सव का समाँ था। सोंग एण्ड ड्रामा डिवीजन के कलाकार गिरीश तिवारी तब तक 'गिरदा' नहीं बने थे।

मेरी और मोहन की मुलाकातें उस प्रखर जनकवि से औपचारिकता से कब आत्मीयता में बदल गयी, कब उत्तराखण्ड संघर्ष वाहिनी बनी और कब नैनीताल समाचार का प्रकाशन हुआ, पहाड़ की योजना बनी, आज गिरदा के अवसान के बाद यह सिलसिला एक खुशनुमा ख्वाब ही मालूम पड़ता है। एक तरफ अल्मोड़ा में शमशेर सिंह बिष्ट,पी.सी. तिवारी, जगत सिंह रौतेला, बिपिन त्रिपाठी, षष्ठीदत्त भट्ट, बालम सिंह जनौटी, चन्द्रशेखर भट्ट की फौज के साथ तैनात, दूसरी और नैनीताल में शेखर- राजीव- गिर्दा की तिकड़ी और 'युगमंच' की समूची टीम डीएसबी के भीतर काशी सिंह ऐरी, राजा बहुगुणा, निर्मल जोशी, नारायण सिंह जन्तवाल, उमेश तिवारी 'विश्वास' वगैरह-वगैरह और उधर गढ़वाल में चण्डीप्रसाद भट्ट और सुन्दरलाल बहुगुणा की अगुवाई में कुँवर प्रसून, प्रभात शिखर, धूमसिंह नेगी जैसे लोग। 1973 में ही मैं उनियाल साहब के अखबार 'दैनिक पर्वतीय' में नियमित लिखने लगा था। 1976 में प्रदीप टम्टा अल्मोड़ा से अवतरित हुआ। आपातकाल लगते न लगते विनाशकारी पौधे की खबर से लगातार दो साल तक नैनीताल में सीजन ठप। परिन्दा भी कहीं पर नहीं मार रहा था। नन्दा देवी की पूजा हालांकि धूमधाम से होती रही। त्रेपनसिंह नेगी पृथक उत्तराखण्ड राज का नारा बुलन्द कर रहे थे तो कोई सुनने वाला नहीं था। पूरा पहाड़ मैदान की तरफ भाग रहा था। तराई तब भी एक खौफनाक जंगल था, जहाँ खबर लिखने छपने पर गोली मार दी जाती थी। अमर उजाला बरेली से निकलता था और हम लोग नई-दिल्ली, लखनऊ के अखबारों के डाक संस्करणों के मोहताज थे। तब मोहन त्रिवेदी हमारे लिये बड़े पत्रकार थे। विश्वमानव में लिखते हुए पवन राकेश भी बाकायदा पत्रकार बन चुके थे। पर नशा और मनीआर्डर इकॉनामी में निष्णात पहाड़ का प्राण पर्यटन में ही बसता था। पर्यटन से ही पहाड़ की इमेज थी। जवान रंगरूट बनने के लिये अभिशप्त थे। इजा, बैणी और अम्माओं के जिम्मे था समूचा पहाड़ घर-बार, खेत खलिहान और जंगल। कुमाऊँ और गढ़वाल में, तराई और पहाड़़ में शाश्वत विभाजन था।

ऐसे में नैनीताल में आन्दोलन की कल्पना भी मुश्किल थी। पर नैनीताल पर तो मानो स्वप्नदर्शी दीवानों की टोली का कब्जा हो गया, जो होलियाने मूड में सारी व्यवस्था की छलड़ी करने पर तुल गयी थी। नैनीताल समाचार जब निकला, तब सुन्दरलाल बहुगुणा के लेखों और शान्त गम्भीर नवीन जोशी की 'नराई' से आने वाले तूफान का अंदेशा न था। पहाड़ में नारायण दत्त तिवारी और केसी पन्त की अगुवाई वाले काँग्रेसियों की डुगडुगी बजती थी। राजनीति श्यामलाल वर्मा घराने की थी। जाने-पहचाने दो नेता और थे नैनीताल में- डूँगर सिंह बिष्ट और प्रताप भैय्या।

28 नवम्बर 1977 की सुबह भी आने वाले वक्त का कोई अन्देशा नहीं था। शैले हाल में वनों की निलामी होने वाली थी। जनता राज था। आपातकाल अवसान के बाद मोरारजी देसाई की गैरकाँग्रेसी सरकार और पहाड़ भी शिवाम्बु पी रहा था। तब भी गिरदा का सुरा प्रेम जबर्दस्त था। अनुसूचित जाति के श्रीचन्द वनमन्त्री थे। अनुसूचितों की राजनीति करने वाले सबको यकीन दिला पा रहे थे कि यह सब ब्राह्मणों की श्रीचन्द को फेल करने की साजिश थी। आन्दोलन या प्रतिरोध जैसे शब्द तो अनजान थे। महेन्द्र सिंह पाल छात्र संघ के अध्यक्ष थे तो डीएसबी में हड़तालें आम थीं। भगीरथ लाल ने काशी सिंह ऐरी को शान्तिपूर्ण माहौल और पठन-पाठन के वायदे पर परास्त करके डीएसबी के छात्रसंघ अध्यक्ष बने थे। राजा बहुगुणा युवा कांग्रेस से युवा जनता दल में आ चुके थे। ऐसे विपरीत माहौल में गिरदा, शेखर, राजीव और हमारे डीएसबी के मित्र जसवन्त सिंह नेगी की गिरफ्तारी हमें कुछ ज्यादा उत्तेजित नहीं कर पायी थी। तब तक हम लोग 'वसन्त के वज्र निनाद' से उद्वेलित हो चुके थे और गांधीवादी-सर्वोदयी रास्ते से हमें सख्त परहेज था। पर प्रदर्शन और गिरफ्तारी के चश्मदीद मैं और उमेश तिवारी विश्वास जब डीएसबी जाकर छात्रसंघ अध्यक्ष भगीरथ लाल से सड़क पर उतरने का आग्रह करने गये तो उन्होंने सिरे से उस आइडिया को खारिज कर दिया। हम उल्टे पाँव लौटे तो फ्लैट्स पर क्रिकेट मैच चल रहा था। डीएम खेल रहे थे। अशोक जलपान गृह के आगे शौचालय की छत पर खड़े अल्मोड़ा से पहुँचे शमशेर भाषण दे रहे थे। तब अल्मोड़ा कालेज में पढ़ रहे कपिलेश भोज भी उनके साथ खड़े थे। इसी दरम्यान सीआरएसटी कालेज में छुट्टी हो गयी। बच्चे रोज की तरह हुड़दंग मचाते हुए खुशी-खुशी नीचे उतर रहे थे कि पुलिस ने उनपर फायर ब्रिगेड से पानी की बौछार करवा दी। प्रतिक्रिया में छात्रों ने पथराव किया तो पुलिस और पीएसी ने आव देखा न ताव ताबड़तोड़ पथराव कर दिया। आधा घंटा भी नहीं हुआ, डीएसबी से भगीरथ और दूसरे छात्र नेताओं का जुलूस शैले हाल की तरफ बढ़ चला। पूरा नैनीताल आन्दोलित हो गया। तभी पुलिस ने आजादी के बाद पहली बार गोली चला दी। देखते-देखते न जाने कब नैनीताल क्लब को आग के हवाले कर दिया गया।

उसी क्षण नैनीताल और पहाड़ का जैसे कायाकल्प हो गया। राजनीति से परहेज करने वाले, चिपको से कतराने वाले छात्र युवा आन्दोलन में कूद पड़े। भगीरथ, काशी, राजा सब एकजुट हो गये। नैनीताल और अल्मोड़ा, कुमाऊँ और गढ़वाल की धारायें पहाड़ और मैदान सब एकाकार हो गये। शाम को जब तक आन्दोलनकारी जेल से छूटकर आते, पूरे पहाड़ में आन्दोलन की ज्योति जल चुकी थी। उससे पहले हम में से ज्यादातर लोग चिपको और उत्तराखण्डी पहचान से कोई ज्यादा सरोकार नहीं रखते थे। गिरदा तब तक निहायत एक लोककवि, रंगकर्मी और माक्र्सवादी चिन्तक थे। पर 28 नवम्बर की उस सुबह से गिरदा उत्तराखण्ड के प्राण बनकर उभरे और उनके हुड़के की थाप उत्तराखण्ड की अन्तरात्मा की आवाज! प्राण व अन्तरात्मा के बिना हिमालय जी कैसे सकता है ? सत्तर से लेकर अब तक उत्तराखण्ड की हर सड़क, धारी, नदी और शिखर में गिरदा की जो जादुई आवाज गूँजती थी वह अब और ज्यादा प्रलयंकारी होगी। हमें ऐसी उम्मीद ही नहीं, विश्वास भी है।

बतौर नैनीताल समाचार टीम हम गिरदा की प्रखर कल्पना, सौन्दर्यबोध, दृष्टि और उनके अभिनव प्रयोगों के साक्षी हैं। उस पर सिलसिलेवार चर्चा आगे होती रहेगी। नुक्कड़ नाटक हो या पत्रकारिता….गिरदा की निर्णायक भूमिका रही है। बाद में 'उत्तरा' और महिला आन्दोलन ने हमें और धारधार बनाया, जिससे आज उत्तराखण्ड अलग राज्य बनना सम्भव हुआ। आज जो लोग राजकाज चला रहे हैं, उनकी क्या भूमिका थी ?

Share

संबंधित लेख....

  • खिराज़ – ए – अकीदत
    मैं सुबह एक अर्द्धस्वप्न से उठा कि मैं गिरदा से कह रहा हूं -आप को श्रद्धांजलि देने के लिए क्या शब्द ...
  • गिरदा, तुम्हारे समय को सलाम
    इतवार, 22 अगस्त। बारह बजे के आसपास मोबाइल फोन कुनमुनाया। देखा, लखनऊ से नवीन का संक्षिप्त एस एम एस था...
  • झोले वाले बड़े पापा
    1968 फरवरी की बात है। मैं हल्द्वानी में 10वीं कक्षा में पढ़ता था। पता चला कि गीत और नाटक प्रभाग में क...
  • मरीज हो तो ऐसा ! : डा. जी. पी. साह
    अतीत में झाँकता हूँ तो एक भोला-भाला, मोटा, लाल गाल वाला स्मार्ट सा बच्चा याद आने लगता है, जिससे मेरे...
  • पप्पू को सलाम : गिर्दा
    गद्य में गिरदा – नैनीताल समाचार 1 सितम्बर 1992 सन् 1978 की बीसवीं-21वीं नवम्बर। रामजे इण्टर कॉलेज...

Other Articles From This Edition

अतिवृष्टि से खाने के भी लाले पड़े सीमान्त में
अल्मोड़ा़ त्रासदी: बचाई जा सकती थीं कुछ जानेंअल्मोड़ा़ त्रासदी: बचाई जा सकती थीं कुछ जानें
मेरे बच्चे सोये चार : गिर्दामेरे बच्चे सोये चार : गिर्दा
चिट्ठ्ठी–पत्री : गिर्दा अंक अब तक का सर्वश्रेष्ठचिट्ठ्ठी–पत्री : गिर्दा अंक अब तक का सर्वश्रेष्ठ
टी.एच.डी.सी. की लापरवाही से कई गाँव जलमग्नटी.एच.डी.सी. की लापरवाही से कई गाँव जलमग्न

जन आन्दोलन

People's Movements on Various Issues (विभिन्न मुद्दों पर जनान्दोलन)

सिर्फ एक स्थान विशेष नहीं है गैरसैण

11 बार कार्यकाल बढ़ाने के बाद आखिरकार दीक्षित आयोग ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप ही दी। इस रिपोर्ट में क्या होगा इसके लिये माथापच्ची करने की जरूरत नहीं, क्योंकि यह आयोग बनाया ही इसलिये गया था कि गैरसैण राजधानी न बन सके। मान लो बिल्ली के भाग्य से छींका फूट जाये और आयोग ने [...]

Share
अल्मोड़ा़ त्रासदी: बचाई जा सकती थीं कुछ जानेंअल्मोड़ा़ त्रासदी: बचाई जा सकती थीं कुछ जानें
चिट्ठ्ठी–पत्री : गिर्दा अंक अब तक का सर्वश्रेष्ठचिट्ठ्ठी–पत्री : गिर्दा अंक अब तक का सर्वश्रेष्ठ
सम्पादकीय : धैर्य, सहनशीलता और सूझ-बूझ दिखायेंसम्पादकीय : धैर्य, सहनशीलता और सूझ-बूझ दिखायें
बारिश से घायल अल्मोड़ा की कहानीबारिश से घायल अल्मोड़ा की कहानी

पुराने अंक

part: [ 1 ] [ 2 ] [ 3 ] [ 4 ] [ 5 ] [ 6 ] [ 7 ]

For Nainital Samachar Members

हरेला अंक 2010

नन्दाखाट चोटी फतह कर लौटे पर्वतारोहियों की चिन्ता वाजिब हैनन्दाखाट चोटी फतह कर लौटे पर्वतारोहियों की चिन्ता वाजिब है
मुम्बई का हिल स्टेशन 'माथेरान' और नैनीतालमुम्बई का हिल स्टेशन 'माथेरान' और नैनीताल
स्वतंत्रता आन्दोलन से जुड़ा रहा भीमताल का हरेला मेलास्वतंत्रता आन्दोलन से जुड़ा रहा भीमताल का हरेला मेला
जयदीप लघु उद्योग
अपनी माटी से ताउम्र जुड़े रहे उमेशदा
याद रहेंगे पत्तीदास
अपना राज है….सब चलेगा !अपना राज है….सब चलेगा !
श्रीनगर के लिये अभिशाप बन कर आई है जल विद्युत परियोजनाश्रीनगर के लिये अभिशाप बन कर आई है जल विद्युत परियोजना
उत्तराखंड पुलिस दबा रही है 'ऑनर किलिंग' का मामलाउत्तराखंड पुलिस दबा रही है 'ऑनर किलिंग' का मामला
दुआ करें कि नियम-कानूनों की अवहेलना के बावजूद बच जाये नैनीतालदुआ करें कि नियम-कानूनों की अवहेलना के बावजूद बच जाये नैनीताल

होली अंक 2010

कटाल्डी खनन प्रकरण: खनन माफियाओं के साथ न्यायपालिका से भी संघर्षकटाल्डी खनन प्रकरण: खनन माफियाओं के साथ न्यायपालिका से भी संघर्षभष्टाचार की भेंट चढी़ विष्णगाड़ जल विद्युत परियोजनाभष्टाचार की भेंट चढी़ विष्णगाड़ जल विद्युत परियोजनानैनीताल को बचाने के लिये जबर्दस्त संकल्प की जरूरत हैनैनीताल को बचाने के लिये जबर्दस्त संकल्प की जरूरत हैउत्तराखंड में माओवाद या माओवाद का भूत ? !!उत्तराखंड में माओवाद या माओवाद का भूत ? !!अपने मजे का मजा ठैरा दाज्यूअपने मजे का मजा ठैरा दाज्यूनदियों को सुरंगों में डालकर उत्तराखण्ड को सूखा प्रदेश बनाने की तैयारीनदियों को सुरंगों में डालकर उत्तराखण्ड को सूखा प्रदेश बनाने की तैयारीनियम विरुद्ध करवाए गए सरमोली-जैंती वन पंचायत चुनावनियम विरुद्ध करवाए गए सरमोली-जैंती वन पंचायत चुनावदुःखद है ऐसे प्रकृतिप्रेमियों का जानादुःखद है ऐसे प्रकृतिप्रेमियों का जानानिर्मल पांडे: कहाँ से आया कहाँ गया वोनिर्मल पांडे: कहाँ से आया कहाँ गया वोशराब माफिया व प्रशासन के खिलाफ उग्र आन्दोलन की तैयारीशराब माफिया व प्रशासन के खिलाफ उग्र आन्दोलन की तैयारी
--
Palash Biswas
Pl Read:
http://nandigramunited-banga.blogspot.com/

No comments:

Post a Comment