आपको तीस्ता-जावेद की गिरफ्तारी क्यों चाहिए – बॉम्बे हाई कोर्ट
मुंबई, शुक्रवार।
बॉम्बे हाईकोर्टजहां एक ओर तीस्ता सेतलवाड़ और जावेद आनंद की बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा अंतरिम ज़मानत जारी रखने को समाचार पत्र सिर्फ एक बड़ी राहत के तौर पर देख रहे हैं, वहीं दरअसल ये सिर्फ राहत नहीं है, अंततः सीबीआई के काम करने के तरीके और तीस्ता के मामले में उसकी मंशा पर माननीय न्यायालय द्वारा भी प्रश्नचिह्न लगा देने का मामला है।
शुक्रवार सुबह 11.30 बजे मुंबई सत्र न्यायालय में विशेष सीबीआई अदालत में माननीय न्यायाधीश अनीस खान ने तीस्ता सेतलवाड़ और जावेद आनंद की अंतरिम ज़मानत को रद्द कर दिया। इस के बाद तीस्ता ने माननीय अदालत की अनुमति मांगते हुए, न्यायालय से कहा, "फैसले से मैं स्तब्ध और दुखी हूं क्योंकि यह एक छोटा-मोटा आरोप है। मुझे और मेरे साथियों को लगता है कि ये (सरकार की ओर से) कुछ ताकतवर लोगों की हमें धमकाने और संभवत: रास्ते से हटाने की कोशिश है।" अदालत ने तीस्ता एवम् उनके वकील को भोजनावकाश के पश्चात पुनः अदालत के पटल पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रदत्त न्यायिक संरक्षण के तथ्य रखने को कहा, जिस बीच अंततः न्याय की आस में तीस्ता-जावेद को माननीय उच्च न्यायालय का रुख करना पड़ा।
सत्र न्यायालय के बाहर तीस्ता सेतलवाड़शाम 4 बजे के लगभग खचाखच भरे बॉम्बे हाईकोर्ट की अदालत में माननीय जस्टिस मृदुला भाटकर ने सीबीआई से वही सवाल पूछे, जो इस पूरे मामले में लगातार उठ रहे थे। माननीय न्यायाधीश ने सीबीआई के वकील संदीप शिंदे से पूछा कि आखिर इस मामले में गिरफ्तारी से संरक्षण क्यों न जारी रखा जाए, जिसके जवाब में सीबीआई के वकील ने कहा कि तीस्ता और जावेद का अपराध गंभीर प्रकृति का है। इस पर माननीय न्यायाधीश ने सीबीआई के वकील से धाराओं की जानकारी मांगी और पूछताछ के लिए गिरफ्तारी को नकारते हुए, कहा, "अभी मैं मामले के गुण-दोष में नहीं जाना चाहती। क्या आरोपी लोगों के फरार होने की आशंका है ? नहीं…इनका पासपोर्ट जब अदालत के पास जमा है, तो दो हफ्ते के लिए अंतरिम संरक्षण दिया जा सकता है।"
इस पर सीबीआई के वकील ने जांच की ज़रूरतों का हवाला देते हुए गिरफ्तारी अथवा रोज़ सीबीआई के सामने पेश होने का तर्क दिया, जिसको भी माननीय न्यायाधीश ने खारिज करते हुए कहा, "'वे (तीस्ता और जावेद) आपके (सीबीआई के) समक्ष 17 जुलाई से ही पेश हो रहे हैं। आपने निश्चित तौर पर कुछ तो जांच की होगी। हर रोज पेश होने की जरूरत नहीं है। सप्ताह में 2 बार की पूछताछ पर्याप्त है।"
इस बारे में तीन दिन पहले, मानवाधिकार कार्यकर्ता तीस्ता सेतलवाड़ से बात करने पर उन्होंने कहा, "ये सारा मामला सिर्फ और सिर्फ राजनैतिक प्रतिशोध का मामला है। गुजरात दंगों के मामले में हमारी लड़ाई से 117 लोगों को सज़ा हुई है, जो कि अपनी तरह का अकेला मामला है। हमारे सारे कागज़ात जांचे जा चुके हैं और उनमें किसी प्रकार की कोई वित्तीय हेराफेरी नहीं मिली है। 27 जुलाई से शुरु होने वाले मामले समेत, गुजरात दंगों की हमारी क़ानूनी लड़ाई के जवाब में हम पर यह केस लादे जा रहे हैं।"
अदालत ने इसके बाद इस मामले की अगली सुनवाई के लिए 10 अगस्त की तिथि निर्धारित की है। अदालत ने सीबीआई की गिरफ्तारी की मांग को ठुकराते हुए, जो सवाल किए वे बेहद अहम हैं। सीबीआई की मंशा साफ है, और अब माननीय न्यायालय द्वारा भी सीबीआई से पूछा गया है कि आखिर किस कारण से वह तीस्ता और जावेद को गिरफ्तार करना चाहती है। तीस्ता सेतलवाड़, ज़किया जाफ़री द्वारा दाखिल गुजरात दंगों के नए मामले में सह याचिकाकर्ता भी हैं, जिसकी सुनवाई 27 जुलाई, 2015 को शुरु हो रही है।
(हिल्ले ले डॉट ओ आर जी)
मुंबई, शुक्रवार।
बॉम्बे हाईकोर्टजहां एक ओर तीस्ता सेतलवाड़ और जावेद आनंद की बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा अंतरिम ज़मानत जारी रखने को समाचार पत्र सिर्फ एक बड़ी राहत के तौर पर देख रहे हैं, वहीं दरअसल ये सिर्फ राहत नहीं है, अंततः सीबीआई के काम करने के तरीके और तीस्ता के मामले में उसकी मंशा पर माननीय न्यायालय द्वारा भी प्रश्नचिह्न लगा देने का मामला है।
शुक्रवार सुबह 11.30 बजे मुंबई सत्र न्यायालय में विशेष सीबीआई अदालत में माननीय न्यायाधीश अनीस खान ने तीस्ता सेतलवाड़ और जावेद आनंद की अंतरिम ज़मानत को रद्द कर दिया। इस के बाद तीस्ता ने माननीय अदालत की अनुमति मांगते हुए, न्यायालय से कहा, "फैसले से मैं स्तब्ध और दुखी हूं क्योंकि यह एक छोटा-मोटा आरोप है। मुझे और मेरे साथियों को लगता है कि ये (सरकार की ओर से) कुछ ताकतवर लोगों की हमें धमकाने और संभवत: रास्ते से हटाने की कोशिश है।" अदालत ने तीस्ता एवम् उनके वकील को भोजनावकाश के पश्चात पुनः अदालत के पटल पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रदत्त न्यायिक संरक्षण के तथ्य रखने को कहा, जिस बीच अंततः न्याय की आस में तीस्ता-जावेद को माननीय उच्च न्यायालय का रुख करना पड़ा।
सत्र न्यायालय के बाहर तीस्ता सेतलवाड़शाम 4 बजे के लगभग खचाखच भरे बॉम्बे हाईकोर्ट की अदालत में माननीय जस्टिस मृदुला भाटकर ने सीबीआई से वही सवाल पूछे, जो इस पूरे मामले में लगातार उठ रहे थे। माननीय न्यायाधीश ने सीबीआई के वकील संदीप शिंदे से पूछा कि आखिर इस मामले में गिरफ्तारी से संरक्षण क्यों न जारी रखा जाए, जिसके जवाब में सीबीआई के वकील ने कहा कि तीस्ता और जावेद का अपराध गंभीर प्रकृति का है। इस पर माननीय न्यायाधीश ने सीबीआई के वकील से धाराओं की जानकारी मांगी और पूछताछ के लिए गिरफ्तारी को नकारते हुए, कहा, "अभी मैं मामले के गुण-दोष में नहीं जाना चाहती। क्या आरोपी लोगों के फरार होने की आशंका है ? नहीं…इनका पासपोर्ट जब अदालत के पास जमा है, तो दो हफ्ते के लिए अंतरिम संरक्षण दिया जा सकता है।"
इस पर सीबीआई के वकील ने जांच की ज़रूरतों का हवाला देते हुए गिरफ्तारी अथवा रोज़ सीबीआई के सामने पेश होने का तर्क दिया, जिसको भी माननीय न्यायाधीश ने खारिज करते हुए कहा, "'वे (तीस्ता और जावेद) आपके (सीबीआई के) समक्ष 17 जुलाई से ही पेश हो रहे हैं। आपने निश्चित तौर पर कुछ तो जांच की होगी। हर रोज पेश होने की जरूरत नहीं है। सप्ताह में 2 बार की पूछताछ पर्याप्त है।"
इस बारे में तीन दिन पहले, मानवाधिकार कार्यकर्ता तीस्ता सेतलवाड़ से बात करने पर उन्होंने कहा, "ये सारा मामला सिर्फ और सिर्फ राजनैतिक प्रतिशोध का मामला है। गुजरात दंगों के मामले में हमारी लड़ाई से 117 लोगों को सज़ा हुई है, जो कि अपनी तरह का अकेला मामला है। हमारे सारे कागज़ात जांचे जा चुके हैं और उनमें किसी प्रकार की कोई वित्तीय हेराफेरी नहीं मिली है। 27 जुलाई से शुरु होने वाले मामले समेत, गुजरात दंगों की हमारी क़ानूनी लड़ाई के जवाब में हम पर यह केस लादे जा रहे हैं।"
अदालत ने इसके बाद इस मामले की अगली सुनवाई के लिए 10 अगस्त की तिथि निर्धारित की है। अदालत ने सीबीआई की गिरफ्तारी की मांग को ठुकराते हुए, जो सवाल किए वे बेहद अहम हैं। सीबीआई की मंशा साफ है, और अब माननीय न्यायालय द्वारा भी सीबीआई से पूछा गया है कि आखिर किस कारण से वह तीस्ता और जावेद को गिरफ्तार करना चाहती है। तीस्ता सेतलवाड़, ज़किया जाफ़री द्वारा दाखिल गुजरात दंगों के नए मामले में सह याचिकाकर्ता भी हैं, जिसकी सुनवाई 27 जुलाई, 2015 को शुरु हो रही है।
(हिल्ले ले डॉट ओ आर जी)
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