आधार कार्ड जरूरी नहीं, अब संसद में सरकारी बयान के बाद क्या उन अफसरों, महकमों और कारपोरेट एजंटों के खिलाफ संसद और संविधान की अवमानना का मुकदमा चलेगा जिन्होंने आधार कार्ड न होने पर नागरिक सेवाएं निलंबित कर दी हैं?
पलाश विश्वास
शायद भारत के नागरिकों का ध्यान इस समाचार के अंतर्विरोध की ओर नहीं नहीं गया है। चीवी चैनलों में सर्वज्ञों की कोई बहस भी नहीं हुई है और न कोई एंकर ने इस मुद्दे पर देश को संबोधित किया है। अगर आधार नागरिक सेवाओं के लिए जरुरी नहीं है, तो आाधार को अनिवार्य क्यों बताया जा रहा है,सवाल यह है।
संसद में सरकार का बयान राष्ट्र को संबोधित है और वह नीति संबंधी अंतिम और निर्णायक घोषणा भी है।
अब संसद में सरकारी बयान के बाद क्या उन अफसरों, महकमों और कारपोरेट एजंटों के खिलाफ संसद और संविधान की अवमानना का मुकदमा चलेगा जिन्होंने आधार कार्ड न होने पर नागरिक सेवाएं निलंबित कर दी है?
गैरकानूनी आधारकार्ड न होने से जिन लोगों ने वेतन का भुगतान रोक दिया है, बैंक खाता खोलने से इंकार किया है, जमा लेने से िइंकार कियाहै, बच्चों का दाखिला रोक दिया है,रसोई गैस देने से िइंकार कर दिय हैा ,ऐसे लोगो के खिलाफ क्या कार्रवाई हो रही है?
अगर कार्रवाई नहीं हुई है और नागरिक सेवाएं आधार कार्ड के बिना निलंबित हो रही है, तो संसद में गलत बयानी के लिए मत्री के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव लायेंगे क्या हमारे जनप्रतिनिधि?
इससे बड़ा सवाल है कि राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर बनाते हुए बायोमेट्रिक पहचान दर्ज करने की प्रक्रिया खत्म होने से पहले जो कारपोरेट कायदे से नागरिकों की उंगलियों छाप और उनकी आंखोंकी पुतलियों को लूटा जा रहा है.उसका गलत इस्तेमाल हुआ तो किसकी जिम्मेदारी होगी?
सवाल यह है कि रुपये की गिरावट और शेयर बाजार की उछलकूद को राष्ट्रीय संकट बना देने वाले राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर बनाने के साथ साथ आधार कार्ड कारपोरेट योजना पर जो अकूत धन पानी की तरह बहा रहा है, इस भयंकर वित्तीय घोटाले पर संसद, मीडिया और कैग खामोश क्यों हैं?
क्या अति सक्रियता के लिए बहुचर्चित भारत का सुप्रीम कोर्ट संसद में सरकार के इस नीति गत घोषणा का संज्ञान लेते हुए तत्काल नागरिक सेवाओं के स्थगन के असंवैधानिक गैरकानूनी कार्रवाइयां रोकने के लिए आदेश देगा?
क्या नागरिकों की निजता, गोपनीयता और उनकी आस्था भंग करके उनकी संप्रभुता और उनके मानवाधिकारों के इस निर्मम हनन के किलाफ कहीं कोई मोमबत्ती जुलूस निकलेगा?
गौरतलब है कि सरकार का कहना है कि बैंक अकाउंट खुलवाने, स्कूल में ऐडमिशन और पासपोर्ट जैसी सेवाओं के लिए आधार कार्ड जरूरी नहीं है।सरकार ने साफ तौर पर कहा है कि सरकारी सब्सिडी का फायदा लेने के लिए आधार कार्ड को अनिवार्य नहीं बनाया गया है, फिर चाहे मामला एलपीजी का हो या कुछ और। संसदीय कार्य राज्यमंत्री राजीव शुक्ला ने शुक्रवार को राज्यसभा में कहा कि वह पहले ही संसद में साफ कर चुके हैं कि सब्सिडी वाली किसी भी सरकारी योजना के लिए आधार कार्ड को अनिवार्य नहीं बनाया गया है। उन्होंने कहा कि अगर कोई केंद्रीय उद्यम ऐसा कर रहा है तो उसमें सुधार किया जाएगा। लेकिन उन्होंने फिर यह भी कहा कि उन्होंने कहा कि घरेलू गैस पर मिलने वाली सब्सिडी का फायदा उठाने के लिए संबंधित इलाके में डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर योजना के लागू होने के तीन महीने के भीतर आधार नंबर के साथ बैंक अकाउंट नंबर देना जरूरी होगा।इस योजना को अभी देश के 20 जिलों में लागू किया गया है। शुक्ला ने बताया कि बाजार रेट पर एलपीजी सिलिंडर लेने के लिए आधार कार्ड की जरूरत नहीं है। उन्होंने बताया कि इस साल 26 जुलाई तक 39.36 करोड़ लोगों के आधार कार्ड बनाए जा चुके हैं। दिल्ली में ऐसे लोगों की संख्या 1.44 करोड़ है।
मंत्री के इस बयान के विरोधाभास पर जरुर गौर करें।एक ओर वह कह रहे हैं कि आधार कार्ड जरुरी नहीं है।फिर यह कह रहे हैं कि डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर योजना के लागू होने के तीन महीने के भीतर आधार नंबर के साथ बैंक अकाउंट नंबर देना जरूरी होगा।
इसका क्या मतलब है?
यानी आधार कार्ड जरुरी नहीं है और अनिवार्य भी है आधार कार्ड।
क्या संसद को विभ्रम में डालने के लिए इसमंत्री के विरुद्ध विशे,ाधिकार हनन का मामला नहीं बनता?
शून्यकाल में यह मामला उठाते हुए सीपीएम के एमपी अच्युतन ने कहा कि सरकार ने सब्सिडी वाले अपने हर कार्यक्रम को आधार कार्ड से जोड़ दिया है। इससे लोगों को काफी परेशानी हो रही है। उन्होंने कहा कि मैंने अपनी पत्नी के साथ 3 घंटे लाइन में खड़े होने के बाद आधार कार्ड के लिए रजिस्ट्रेशन कराया था, लेकिन कई महीने बीतने के बाद भी हमें आधार कार्ड नहीं मिला है।
उन्होंने सवाल किया कि ऐसे में हम गैस पर मिलने वाली सब्सिडी का फायदा कैसे उठा सकते हैं? उन्होंने पूछा कि सरकार का आदेश न होने के बावजूद तेल कंपनियों को गैस पर मिलने वाली सब्सिडी को आधार कार्ड से जोड़ने का अधिकार किसने दिया?
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