Thursday, 29 August 2013 10:38 |
जनसत्ता 29 अगस्त, 2013 : अंतरराष्ट्रीय मुद्रा बाजार में रुपए की बदहाली ने आर्थिक मोर्चे पर सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया है। यूपीए सरकार यह कहते नहीं थकती कि विश्वव्यापी मंदी के दौर में भी उसने भारतीय अर्थव्यवस्था को संभाले रखा। लेकिन अब, जबकि वैसा वैश्विक परिदृश्य नहीं है, क्यों देश की अर्थव्यवस्था संकट में पड़ती दिख रही है? वित्तमंत्री कहते रहे हैं कि रुपए की कीमत में आई गिरावट से घबराने की जरूरत नहीं है, जल्दी ही सब कुछ ठीक हो जाएगा। मगर ऐसे आश्वासन बार-बार अर्थहीन साबित हुए हैं। यों मुद्रा बाजार में थोड़ा-बहुत उतार-चढ़ाव आम बात है। लेकिन कुछ महीनों से डॉलर के मुकाबले रुपए की कीमत में आती गई गिरावट एक अपूर्व स्थिति है। इस साल के शुरू से अब तक रुपए का बीस फीसद तक अवमूल्यन हो चुका है। मंगलवार को एक डॉलर का मूल्य छियासठ रुपए से कुछ ऊपर पहुंच गया। फिर अगले ही रोज यह रिकार्ड टूट गया; एक डॉलर अड़सठ रुपए के पार चला गया, और फिर थोड़ा पीछे हटने के बावजूद उसकी कीमत सड़सठ रुपए से ज्यादा रही। यह सिलसिला कहां थमेगा? इस स्थिति ने अर्थव्यवस्था के अस्थिर होने का खतरा पैदा कर दिया है।
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Thursday, August 29, 2013
इस तरह की पूंजी अस्थिर होती है और कभी भी बाहर जा सकती है। फिर, अनाज से लेकर सोना-चांदी तक के दाम वायदा बाजार के सटोरिए तय करने लगे हैं जो डॉलर के मुकाबले रुपए की कीमत का अनुमान लगा कर अपना खेल खेलते हैं। चौतरफा मुश्किलों की चर्चा तो हो रही है, पर वायदा बाजार और पूंजी बाजार के सटोरियों पर लगाम लगाने की बात क्यों नहीं हो रही? रुपए के बेतहाशा अवमूल्यन ने आयात-खर्च में बढ़ोतरी और फलस्वरूप महंगाई और बढ़ने का रास्ता खोल दिया है। भाजपा ने अर्थव्यवस्था की मौजूदा हालत को लेकर यूपीए सरकार को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ी है, मगर वह क्यों नहीं बताती कि सरकार की कौन-सी नीतियां और फैसले गलत हैं और मौजूदा स्थिति से उबरने के लिए क्या किया जाना चाहिए। मौजूदा संकट को एक अवसर में भी बदला जा सकता है। पर इसके लिए नीतियों और प्राथमिकताओं में बदलाव करना होगा, जिसकी कोई इच्छाशक्ति हमारे राज्यतंत्र और नीति नियंताओं में फिलहाल नहीं दिखती।
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