रुपये को किसान और आदिवासी ही संभाल सकते हैं , जो पर्यारण और कृषि के रक्षक हैं .
अर्थ व्यवस्था के धड़ाम होने के लिए पिछले कई दशकों से सकारों की चली आ रही आर्थिक नीतियाँ और बहुत हद तक देश का उपभोक्ता समाज भी दोषी है . बहु राष्ट्रीय कम्पनियों , ख़ास कर अमेरिकी शोषक कम्पनियों के सामने कांग्रेस और भाजपा दोनों की सरकारों ने पलक - पांवड़े बिछाए . कोका कोला जैसी बहुराष्ट्रीय कम्पनियां अपने उत्पाद सरपट यहाँ बेच कर देश का धन बाहर ले जा रही हैं , जबकि निर्यात गिर रहा है . यहाँ से मुख्य निर्यात कृषि और हर्बल उपादों का था . कृषि और पर्यावरण पर आक्रामक विकास का दबाव बढ़ने से उनकी हालत पतली है . रुपये को किसान और आदिवासी ही संभाल सकते हैं , जो पर्यारण और कृषि के रक्षक हैं . साथ ही हमें भी पेट्रोल & गैस की खपत कम करनी पड़ेगी .
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