Vidya Bhushan Rawat shared Himanshu Kumar's photo.
हेम मिश्रा को आदिवासी इलाके महाराष्ट्र के गढचिरोली से पुलिस ने गिरफ्तार किया है . हेम मिश्रा एक जांच दल के सदस्य थे . यह जांच दल सुरक्षा बलों द्वारा दावा किये गये एक तथाकथित 'मुठभेड़' की जाँच करने गये थे .
जब भी सुरक्षा बल कोई मुठभेड़ करते हैं तब उन्हें इसकी जांच करने वालों से बहुत चिढ़ लगती है . अक्सर सुरक्षा बल इस तरह के जांच दल पर हमला करते हैं . ताड़मेटला में पुलिस ने तीन गाँव जला दिये थे . जब जांच करने स्वामी अग्निवेश ने जाने की कोशिश करी तो उनकी जान लेने की कोशिश करी गई थी .
२००८ पत्रिका 'डाउन टू अर्थ' की रिपोर्टर के साथ अरलमपल्ली गाँव में जब हम लोग गये थे तो हमारी जान लेने की कोशिश करी गई थी .मैंने इस बारे में अपने ब्लॉग ''दंतेवाडा वाणी'' में 'अरलमपल्ली की जोगी ' नाम से लिखा है .
२००७ में नंदिनी सुंदर की टीम जब हरियाल चेरली गाँव में जांच करने गई तो लौटने पर उनकी टीम पर हमला किया गया था . थाने में इन लोगों का सामान छीन लिया गया था . इस टीम में प्रसिद्ध इतिहासकार रामचन्द्र गुहा भी थे थाने में उनकी हत्या की कोशिश करी गई . छह महीने बाद नंदिनी का कैमरा कलेक्टर ने वापिस किया .इस बारे में मैंने अपने ब्लॉग ''दंतेवाडा वाणी'' में '
जब रामचंद्र गुहा को नक्सली सिद्ध कर मारने की तैयारी हो गयी थी 'नाम से लिखा है .
२००९ में नंदिनी सुंदर की टीम जब कोपा कुंजाम , दिल्ली के प्रोफेसर उज्ज्वल और इरमा के प्रोफेसर डाक्टर दांडेकर , हैदराबाद के प्रोफेसर जेपी राव की टीम एक और मुठभेड़ की जांच करने गई तो जीप से उनके मोबाइल आदि चुरा लिये गये . चुराने का काम विशेष पुलिस अधिकारियों ने किया था . पुलिस अधीक्षक ने आधी रात तक रिपोर्ट नहीं लिखी . छह महीने बाद जेपी राव को एसपी का खत मिला कि रसीद लेकर आओ और अपना मोबाइल ले जाओ . जेपी राव ने रसीद तो सम्भाली नहीं थी इसलिये पुलिस ने प्रोफेसर राव का मोबाइल नहीं वापिस किया .
पिछले साल सारकेगुडा गाँव में सुरक्षा बलों ने सत्रह आदिवासियों की हत्या कर दी . मानवाधिकार संगठनों की टीम ने जांच करी . जांच टीम के सदस्य वापिस हैदराबाद पहुँचे. इनके साथ पीड़ित आदिवासी परिवार के बच्चे भी थे . पुलिस ने बच्चों को और टीम के एक सदस्य को गिरफ्तार कर लिया . जब सारे देश में शोर हुआ तो पुलिस ने बच्चों को छोड़ दिया लेकिन जांच दल के एक सदस्य को जेल में डाल दिया .
इस तरह से मानवाधिकार संगठनों के जांच दलों के सदस्यों को गिरफ्तार या हमला कर के अब सरकार देश में खौफ का महाल माहौल बनाने की कोशिश कर रही है. ताकि कोई पुलिस द्वारा जनता पर किये गये हमले की जांच करने की जुर्रत ना कर सके .
ये किस तरह का देश बना रहे हैं हम ? आजादी किस के लिये आई है ? जनता के लिये या सरकार के लिये ?
जब भी सुरक्षा बल कोई मुठभेड़ करते हैं तब उन्हें इसकी जांच करने वालों से बहुत चिढ़ लगती है . अक्सर सुरक्षा बल इस तरह के जांच दल पर हमला करते हैं . ताड़मेटला में पुलिस ने तीन गाँव जला दिये थे . जब जांच करने स्वामी अग्निवेश ने जाने की कोशिश करी तो उनकी जान लेने की कोशिश करी गई थी .
२००८ पत्रिका 'डाउन टू अर्थ' की रिपोर्टर के साथ अरलमपल्ली गाँव में जब हम लोग गये थे तो हमारी जान लेने की कोशिश करी गई थी .मैंने इस बारे में अपने ब्लॉग ''दंतेवाडा वाणी'' में 'अरलमपल्ली की जोगी ' नाम से लिखा है .
२००७ में नंदिनी सुंदर की टीम जब हरियाल चेरली गाँव में जांच करने गई तो लौटने पर उनकी टीम पर हमला किया गया था . थाने में इन लोगों का सामान छीन लिया गया था . इस टीम में प्रसिद्ध इतिहासकार रामचन्द्र गुहा भी थे थाने में उनकी हत्या की कोशिश करी गई . छह महीने बाद नंदिनी का कैमरा कलेक्टर ने वापिस किया .इस बारे में मैंने अपने ब्लॉग ''दंतेवाडा वाणी'' में '
जब रामचंद्र गुहा को नक्सली सिद्ध कर मारने की तैयारी हो गयी थी 'नाम से लिखा है .
२००९ में नंदिनी सुंदर की टीम जब कोपा कुंजाम , दिल्ली के प्रोफेसर उज्ज्वल और इरमा के प्रोफेसर डाक्टर दांडेकर , हैदराबाद के प्रोफेसर जेपी राव की टीम एक और मुठभेड़ की जांच करने गई तो जीप से उनके मोबाइल आदि चुरा लिये गये . चुराने का काम विशेष पुलिस अधिकारियों ने किया था . पुलिस अधीक्षक ने आधी रात तक रिपोर्ट नहीं लिखी . छह महीने बाद जेपी राव को एसपी का खत मिला कि रसीद लेकर आओ और अपना मोबाइल ले जाओ . जेपी राव ने रसीद तो सम्भाली नहीं थी इसलिये पुलिस ने प्रोफेसर राव का मोबाइल नहीं वापिस किया .
पिछले साल सारकेगुडा गाँव में सुरक्षा बलों ने सत्रह आदिवासियों की हत्या कर दी . मानवाधिकार संगठनों की टीम ने जांच करी . जांच टीम के सदस्य वापिस हैदराबाद पहुँचे. इनके साथ पीड़ित आदिवासी परिवार के बच्चे भी थे . पुलिस ने बच्चों को और टीम के एक सदस्य को गिरफ्तार कर लिया . जब सारे देश में शोर हुआ तो पुलिस ने बच्चों को छोड़ दिया लेकिन जांच दल के एक सदस्य को जेल में डाल दिया .
इस तरह से मानवाधिकार संगठनों के जांच दलों के सदस्यों को गिरफ्तार या हमला कर के अब सरकार देश में खौफ का महाल माहौल बनाने की कोशिश कर रही है. ताकि कोई पुलिस द्वारा जनता पर किये गये हमले की जांच करने की जुर्रत ना कर सके .
ये किस तरह का देश बना रहे हैं हम ? आजादी किस के लिये आई है ? जनता के लिये या सरकार के लिये ?
No comments:
Post a Comment