Thursday, September 20, 2012

पलाशी में भारत की स्वतंत्रता के अवसान से बड़ा हादसा है यह।अब यह लोकतांत्रिक व्यवस्था, संविधान और तमाम राजनीति समीकरण नीली क्रांति में समाहित!

पलाशी में भारत की स्वतंत्रता के अवसान से बड़ा हादसा है यह।अब यह लोकतांत्रिक व्यवस्था, संविधान और तमाम राजनीति समीकरण नीली क्रांति में समाहित!  

भारत बंद और ममता की समर्थन वापसी से बेपरवाह बारत की कारपोरेट ​​सरकार ने  सरकार ने गुरुवार को बहु-ब्रांड खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति देने के फैसले को अमलीजामा पहना दिया।अब सरकार बचे या गिरे, राजनीतिक समीकरण का रंग चाहे जो हो, सत्ता वर्ग को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

अब भारत पर विदेशी कंपनियों का राज कायम हो गया है। भारत बंद और ममता की समर्थन वापसी से बेपरवाह बारत की कारपोरेट ​​सरकार ने  सरकार ने गुरुवार को बहु-ब्रांड खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति देने के फैसले को अमलीजामा पहना दिया।अब सरकार बचे या गिरे, राजनीतिक समीकरण का रंग चाहे जो हो, सत्ता वर्ग को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। निनानब्वे फीसद बहिष्कृत जनता की मुश्किलें थम नहीं रहीं और जनसंहार संस्कृति ही भार का वर्तमान और भविष्य है।राजनीतिक रस्म अदायगी के लिए वाम दक्षिण एकजुटता का वैसे ही कोई असर नहीं हुआ, जैसे परमाणु संधि के दौरान नहीं हुआ। दो दशकों तक कारपोरेट संस्कृति में निष्णात राजनीति से प्रतिरोध और बदलाव की उम्मीद करना बेमानी है। तीसरे मोर्चे के आकार लेने की कोई संबावना नहीं है। व्यापारी तबके को, करीब पांच करोड़ परिवारों की रोजी रोटी बचाने में नाकामी की वजह से संघ परिवार की भी ऐसी तैसी हो गयी, वामपंथियों की तरह। कारपोरेट लाबी अब अगले चुनाव में फिर डां. मनमोहन को जिता लाने में कोई कसर नहीं छोड़ने वाली। पालाबदल के खेल में स्तादल को ममता की विदाई के बाद दोस्तों की कमी नहीं होने वाली। सत्तावर्ग और कारपोरेट खेमे में फिलहाल वैसा ही जोश का माहौल है , जैसा यूपीए प्रथम से वामपंथियों की विदाई के वक्त हुआ था। ममता बनर्जी और वामपंथी वाम दक्षिण एका की तरह देश हित में एक साथ आकर स्थितियों का मुकाबला करते हुए तीसरे मोर्चे की राह बनाएं, यह असंभव है। वामपंथी तो खुश है कि कांग्रेस से गठजोड़ खत्म होने के बाद उन्हें फिर बंगाल में पांव जमाने की जमीन मिल रही है। ममता के विद्रोह पर उनकी कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं है। विदेशी पूंजी निवेश के खिलाफ समर्थन वापसी करके भारत बंद का विरोध करते हुए ममता ने भी अपनी सीमाबद्धता अभिव्यक्त कर ही दी। इस कारपोरेट समय में अब प्रकृति और मनुष्य के खिलाफ  जारी अश्वमेध यज्ञ की पुर्णाहुति यानी दूसरे चरण के तमाम आर्थिक सुधार लागू हो जाना बस व्कत गुजर जाने का मसला है। और कुछ नहीं। इसके बावजूद प्रतिरोध का जो दुस्साहस करेंगे, सैन्यकृत राष्ट्र उनसे बखूब निपट लेगा और राजनीति हाशिए पर खड़ी तमाशबीन बनी रहेगी। जनता सिर्फ राजनीति ही नहीं, सिविल सोसाइटी के विश्वासघात की भी शिकार है। एकमात्र कालाधन के खुले बाजार की व्यवस्था के प्रति प्रतिबद्ध जन ही आज के दिन खुश होंगे। बाकी लोगों के लिए यह मातम का काला दिन है। पलाशी में भारत की स्वतंत्रता के अवसान से बड़ा हादसा है यह। क्या किसी में यह अहसास भी जिंदा है?अब यह लोकतांत्रिक व्यवस्था, संविधान और तमाम राजनीति समीकरण नीली क्रांति में समाहित है। शुक्रवार को जब तृणमूल कांग्रेस केंद्र की यूपीए सरकार से समर्थन वापसी के लिए राष्ट्रपति से मिलेगी उसी दिन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने देश को संबोधित कर सकते हैं। सूत्र बता रहे हैं कि प्रधानमंत्री देश की जनता को हाल में लिए गए कड़े आर्थिक फैसलों पर अपनी स्थिति से अवगत कराना चाहते हैं।

उद्योग जगत आश्वस्त है कि भारत में हाल में हुए राजनीतिक बदलावों से बाजार पर ज्यादा असर नहीं होगा। तृणमूल कांग्रेस के समर्थन वापसी के बाद भी राजनीतिक अनिश्चितता का कोई डर नहीं है। फिलहाल बाजार में शॉर्ट पोजीशन नहीं बनानी चाहिए।इस समय सभी संकेत भारतीय बाजारों के लिए सकारात्मक हैं और बाजार के लिए कोई खतरा दिखाई नहीं दे रहा है। सरकार द्वारा आर्थिक सुधारों के फैसले लेने से कड़े कदम उठाने के संकेत बन गए हैं।विदेशी निवेशकों का पैसा लगातार बाजार में आ रहा है और उन्हें भारत सरकार गिरने का डर नहीं है। फिलहाल क्यू्ई3 और यूरोप से अच्छे संकेत आने के चलते दुनियाभर के बाजारों में तेजी आने की गुंजाइश बन गई है। भारतीय बाजार भी वैश्विक बाजारों के साथ और ऊपर चढ़ सकते हैं। वैश्विक मजबूत संकेत और कच्चे तेल में गिरावट आना देसी बाजारों के लिए सकारात्मक हैं।बाजार विशेषज्ञों के मुताबिक एविएशन और रिटेल में एफडीआई को मंजूरी देने के सरकार के फैसले अच्छे हैं और रिटेल सेक्टर को इसका काफी फायदा मिलेगा। हालांकि एविएशन में एफडीआई से आम आदमी को ज्यादा फायदा होगा और देसी एयरलाइंस कंपनियों को नुक्सान होगा। विदेशी एयरलाइंस कंपनियां देश में मौजूद एविएशन कंपनियों के साथ सौदे करने की बजाए अपनी एयरलाइंस खोलेंगी जिससे भारतीय कंपनियों के लिए चुनौती ही और बढ़ेगी। इस समय एविएशन कंपनियों के शेयर नहीं खरीदने चाहिए।एफआईआई के लिए भारतीय बाजार सबसे आकर्षक लग रहे हैं और सरकार ने रिफॉर्म के जरिए विदेशी निवेशकों को देशे में निवेश बढ़ाने के लिए उत्साह दिलाया है। विनिवेश प्रक्रिया के बादा सरकार के पास काफी पूंजी आएगी जिसे देश के विकास के लिए उपयोग किया जाएगा। इससे बाजारों को भी अच्छा फायदा मिलने की उम्मीद है।टीएमसी के सरकार से समर्थन वापसी के चलते आज बाजार में हल्की कमजोरी देखी जा रही थी। कारोबार की शुरुआत गिरावट के साथ हुई लेकिन अब बाजार संभलते नजर आ रहे हैं। बाजार के जानकारों का मानना है कि बाजार में मौजूदा सुस्ती खरीदारी करने का सही मौका है। साल के अंत तक निफ्टी 5850-6000 के स्तर तक जा सकता है। मौजूदा स्तरों से बाजार में 5-10 फीसदी की तेजी की उम्मीद है।रिटेल में एफडीआई को मंजूरी देने से इस सेक्टर में नए निवेश आएंगे जिसके बाद रिटेल सेक्टर की हालत सुधरेगी।एविएशन में एफडीआई बढ़ने से एयरलाइंस कंपनियों के लिए प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और इसका नुक्सान एविएशन कंपनियों को उठाना पडे़गा। इसके चलते एविएशन शेयरों पर आगे चलकर दबाव देखा जा सकता है। विदेशी बाजारों और राजनीतिक अस्थिरता के बीज आज भारतीय बाजार काफी दबाव में दिखाई दिए। बाजार में आज सुबह से ही गिरावट हावी रही और अंत में भी बाजार कमजोरी के साथ ही बंद हुआ। एशियाई बाजारों ने बनाया दबाव दोपहर में यूरोपीय बाजारों के साथ और बढ़ गया। कारोबार के आखिरी घंटों में बाजार पर कुछ ज्यादा ही दबाव नजर आया। आखिरकार बाजार 1 फीसदी की गिरावट पर बंद हुआ।बीएसई का 30 शेयरों वाला प्रमुख इंडेक्स सेंसेक्स 147 अंक यानि 0.8 फीसदी की गिरावट के साथ 18,349 पर बंद हुआ। वहीं एनएसई का 50 शेयरों वाला प्रमुख इंडेक्स निफ्टी 46 अंक यानि 8 फीसदी की कमजोरी के साथ 5,554.25 पर बंद हुआ। मेटल, कैपिटल गुड्स, पावर, ऑयल एंड गैस, बैंक और पीएसयू शेयरों में आई जोरदार बिकवाली ने भी बाजार को गोता लगाने को मजबूर किया। हालांकि आईटी और एफएमसीजी शेयरों में आई खरीदारी के बल पर बाजार में बड़े पैमाने पर बिकवाली हावी नहीं हो पाई। वैसे दिग्गज शेयरों के मुकाबले मिडकैप और स्मॉलकैप शेयरों में कम ही गिरावट देखने को मिली।

तो लीजिये प्रसाद! वॉलमार्ट जैसी खुदरा श्रृंखला चलाने वाली विदेशी कंपनियों के लिये भारत में स्टोर खोलने का रास्ता साफ हो गया!यही नहीं,सरकार ने इसके साथ ही विमानन और प्रसारण क्षेत्र में भी विदेशी निवेश नियमों को और उदार बनाने संबंधी निर्णयों को भी अधिसूचित कर दिया।सरकार ने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश संबंधी अपने निर्णयों की अधिसूचना ऐसे दिन जारी की है जब विपक्ष ने देशव्यापी बंद आयोजित किया और सरकार को बाहर से समर्थन दे रही समाजवादी पार्टी और सरकार में शामिल द्रविड़ मुनेत्र कषगम इस बंद का समर्थन कर रही हैं।केन्द्र के सत्ताधारी गठबंधन में दूसरी सबसे बड़ी तृणमूल कांग्रेस ने तो बहुब्रांड खुदरा क्षेत्र में एफडीआई अनुमति के सरकार के फैसले के विरोध में सरकार से समर्थन वापस ले लिया और कल वह अपने मंत्रियों को सरकार से वापस बुला रही है।इस अधिसूचना के साथ वालमार्ट जैसी वैश्विक खुदरा कंपनियां 10 राज्यों तथा केंद्र शासित प्रदेशों में अपने खुदरा स्टोर खोलने के लिये 51 प्रतिशत तक निवेश कर सकेंगी। ये वे राज्य हैं जो बहुब्रांड खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश के फैसले को अमल में लाने पर राजी हैं।  इनमें दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, उत्तराखंड सहित दस राज्य और केन्द्र शासित प्रदेश शामिल हैं।औद्योगिक नीति एवं संवर्ध विभाग ने अधिसूचना में कहा कि बहु-ब्रांड खुदरा क्षेत्र में 51 प्रतिशत एफडीआई की मंजूरी है। इसमें कहा गया है कि निर्णय तत्काल प्रभाव से लागू हो गया है।

ब्रेकिंग न्यूजः पूनम पांडे ने केजरीवाल को अपनी तस्वीर और नाम इस्तेमाल करने की इजाजत दी।

देशव्यापी हड़ताल से गुरुवार को देश भर में आर्थिक गतिविधियां प्रभावित हुईं। भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) ने कहा कि देशव्यापी हड़ताल से भारतीय अर्थव्यवस्था को 12,500 करोड़ रुपये (2.25 अरब डॉलर) का नुकसान होने का अनुमान है।

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से लेकर वामपंथी पार्टियों द्वारा आहूत और व्यापार संघों द्वारा समर्थित एक दिवसीय हड़ताल से सामान्य जनजीवन प्रभावित हुआ और सड़क परिवहन, रेलवे, फैक्टरी, खनन, छोटे और बड़े दुकान, स्कूल और अस्पतालों का काम काज अवरुद्ध हुआ।

इसी बीच सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र की बिजली उत्पादन कंपनी एनटीपीसी में 9.50 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचने की प्रक्रिया शुरू कर दी है ताकि चालू वित्त वर्ष के लिए तय 30,000 करोड़ रुपये का विनिवेश लक्ष्य हासिल हो सके।आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि विनिवेश विभाग ने एनटीपीसी में हिस्सेदारी बेचने का प्रस्ताव किया है। सरकार जल्द ही करीब 78.33 करोड़ शेयरों की बिक्री को मंजूरी देगी जो एनटीपीसी में उसकी 9.50 प्रतिशत हिस्सेदारी के बराबर है।प्रस्तावित विनिवेश के साथ, सरकार द्वारा करीब 13,100 करोड़ रुपये जुटाए जाने की संभावना है। सरकार ने शेयर बाजारों में बिक्री की पेशकश (ओएफएस) के जरिए एनटीपीसी में 9.50 प्रतिशत चुकता इक्विटी पूंजी बेचने का प्रस्ताव किया है।इस समय, एनटीपीसी में सरकार की 84.50 प्रतिशत हिस्सेदारी है। विनिवेश के बाद सरकार की हिस्सेदारी घटकर 75 प्रतिशत रह जाएगी।उल्लेखनीय है कि एनटीपीसी का आरंभिक सार्वजनिक निर्गम 2004 में आया था। इसके बाद, 2009 में सरकार ने अनुवर्ती सार्वजनिक निर्गम (एफपीओ) के जरिए कंपनी में अपनी हिस्सेदारी और घटाई थी।

यूरिया की नई निवेश नीति के लागू होने का रास्ता साफ हो गया है। सीएनबीसी आवाज को मिली एक्सक्लूसिव जानकारी के मुताबिक सभी मंत्रालय ने यूरिया की नई निवेश नीति को लागू करने पर अपनी सहमति दे दी है। अब हफ्ते भर के अंदर यूरिया की नई निवेश नीति को कैबिनेट में भेजा जाएगा।माना जा रहा है कि यूरिया की नई निवेश नीति से 40,000 करोड़ रुपये के निवेश का लक्ष्य संभव है। नई नीति के चलते यूरिया के आयात में काफी कमी देखने को मिलेगी। साथ ही सरकार का फर्टिलाइजर सब्सिडी का बोझ हल्का हो सकता है।यूरिया की नई निवेश नीति के लागू होने से चंबल फर्टिलाइजर्स, आरसीएफ और जुआरी इंडस्ट्रीज जैसी फर्टिलाइजर्स कंपनियां नए प्लांट लगा सकेंगी। यूरिया की नई निवेश नीति के तहत फर्टिलाइजर्स कंपनियों को 12 फीसदी रिटर्न की गारंटी का वादा किया गया है।

सरकार ने महाराष्ट्र और बिहार सहित चार राज्यों में 11,597 करोड़ रुपये की 9 सड़क परियोजनाओं को मंजूरी दे दी है। बुनियादी ढांचे में सार्वजनिक निजी भागीदारी की वित्तीय समर्थन योजना (व्यवहार्य बनाने को वित्तीय मदद) के तहत अधिकार संपन्न समिति ने कुल 1,226.11 किलोमीटर की सड़क परियोजनाओं को मंजूरी दी। वित्त मंत्रालय के बयान में कहा गया है कि ये परियोजनाएं निविदा तथा निर्माण के अग्रिम चरण में हैं। वर्ष 2012-13 के दौरान सरकार द्वारा इन परियोजनाओं के लिए 500 करोड़ रुपये दिए जा सकते हैं। व्यवहार्यता के लिए वित्तीय मदद इस योजना के अंतर्गत 2,295.06 करोड़ रुपये तक हो सकती है। जिन अन्य राज्यों में सड़क परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है उनमें आंध्र प्रदेश और उत्तर प्रदेश शामिल हैं। (

केंद्र सरकार के 80 लाख कर्मचारियों और पेंशनभोगियों के महंगाई भत्ते में 7 प्रतिशत की बढ़ोतरी करने पर विचार के लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक अगले हफ्ते तक के लिए टाल दी गई है।

एक आधिकारिक घोषणा में कहा गया, 'मंत्रिमंडल, सीसीईए और सीसीआई की बैठकें टाल दी गई हैं। ये बैठकें शुक्रवार को होनी थीं।' मंत्रिमंडल की बैठक आमतौर पर गुरुवार को होती हैं, लेकिन डीजल, गैस और मल्टी ब्रैंड रीटेल में एफडीआई पर सरकार के फैसले के बाद बदले राजनीतिक घटनाक्रमों के मद्देनजर ये बैठकें टाल दी गई हैं।केंद्र सरकार के कर्मचारियों और पेंशनभोगियों के महंगाई भत्ते (डीए) में 7 फीसदी बढ़ोतरी करना बैठक के अजेंडे में था। अब इस पर अगले हफ्ते विचार किए जाने की संभावना है।एक सूत्र ने बताया कि केंद्रीय मंत्रिमंडल अगर महंगाई भत्ते में इस बढ़ोतरी को मंजूरी देता है तो यह एक जुलाई, 2012 से लागू होगी और कर्मचारियों को पिछला बकाया दिया जाएगा। महंगाई भत्ता बढ़ने की स्थिति में सरकार पर जुलाई, 2012 से फरवरी, 2013 के बीच 8 महीने की अवधि के लिए करीब 5,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ आएगा। वहीं पूरे साल में इससे सरकार पर 7,400 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ आएगा। इस निर्णय से केंद्र सरकार के करीब 50 लाख कर्मचारी और 30 लाख पेंशनभोगी लाभान्वित होंगे। सरकार ने इस साल मार्च में महंगाई भत्ते को 58 से बढ़ाकर 65 प्रतिशत कर दिया था। यह बढ़ोतरी 1 जनवरी, 2012 से प्रभावी हुई थी।

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने केंद्र सरकार से अलग होने का फैसला करने के बाद अब सरकार पर गंभीर आरोप लगाने शुरु कर दिए हैं। गुरुवार को ममता बनर्जी ने केंद्र सरकार पर फोन टेपिंग करने का आरोप लगाते हुए कहा कि जो केंद्र में सत्ता में होता है वो इस देश में कुछ भी कर सकता है।


विपक्ष द्वारा बुलाए गए बंद की आलोचना करते हुए ममता बनर्जी ने कहा कि बंद ने पश्चिम बंगाल का बहुत नुकसान किया है इसलिए उन्होंने अपने राज्य पश्चिम बंगाल में नई शुरुआत की है, इसके तहत कोई बंद नहीं होगा। ममता ने कहा, 'विरोध के दौरान हम ज्यादा काम करेंगे, सरकारी कर्मचारियों के दफ्तर पहुंचकर काम करने पर मैं उन्हें बधाई देती हूं। आज दफ्तरों में करीब 90 फीसदी अधिकारी उपस्थित रहे और यह रोजाना के औसत से ज्यादा है।'

इसी के मध्य ममता बनर्जी ने केंद्र से अलग होने के अपने फैसले को भी बिलकुल स्पष्ट कर दिया है। ममता बनर्जी ने कहा, 'कल के लिए हमने राष्ट्रपति जी से समय मांगा है, अगर माननीय राष्ट्रपति जी हमें समय दे देंगे तो हमारी पार्टी के मंत्री कल ही इस्तीफा दे देंगे। राष्ट्रपति का समय मिला तो हम चिट्ठी भी कल ही दे देंगे।'

केंद्र सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए ममता ने कहा, 'अगर आप केंद्र की सरकार में तो आप किसी का भी फोन टेप कर सकते हैं। मेरे साथ भी ऐसा हो चुका है, जब मैं नंदीग्राम जाती थी तब मेरे भी फोन टेप किए जाते थे। नंदीग्राम में जैमर लगे होने की वजह से मेरा असली फोन काम ही नहीं करता था तो उसी नंबर पर कोलकाता में कॉल कैसे रिसीव होती थी। बाकी आप समझ लीजिए मेरा ज्यादा मुंह मत खुलवाइये।' समर्थन वापसी का फैसला कर ममता ने एक तीर से कई निशाने साधने की कोशिश की है। अगर सरकार उनके दबाव में आ कर कीमतों में कुछ कटौती का फैसला करती है, तब भी ममता की छवि निखरेगी और अगर नहीं तो यूपीए से नाता तोड़ कर ममता जता सकती हैं कि वे आम लोगों के हित में कोई भी कुर्बानी देने को तैयार हैं।

ममता के आरोपों पर जवाब देते हुए केंद्रीय मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने कहा कि हमने किसी का भी फोन टैप नहीं लिया है। वहीं संदीप दीक्षित ने ममता के आरोपों पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि ममता अपने राज्य की राजनीति कर रही हैं। उनकी कुछ स्थानीय प्राथमिकताएं होंगी जिनके कारण वो इस्तीफा देने की बात कर रही हैं।

गौरतलब है कि सिविल सोसाइटी के पटाखे बी खूब छूट रहे हैं।अन्ना हजारे ने अरविंद केजरीवाल और टीम की जल्द बनने वाली राजनीतिक पार्टी से खुद को पूरी तरह अलग कर लिया है। बुधवार को दिल्ली में कई घंटे चली बैठक के बाद पत्रकारों से बातचीत में अन्ना हजारे ने यह तक कह दिया कि वो नहीं चाहते कि अरविंद केजरीवाल की पार्टी उनके नाम और फोटो का इस्तेमाल करे।अन्ना के इस बयान के बाद से ही सोशल नेटवर्किंक वेबसाइटों पर प्रतिक्रियाओं का दौर जारी है। अरविंद केजरीवाल और अन्ना हजारे ट्विटर ट्रेंड्स में बने हुए हैं।

ममता बनर्जी के दबाव में आर्थिक सुधारों से पीछे हटने से इन्कार कर चुकी सरकार ने अपने नए दोस्त तलाशने शुरू कर दिए हैं। वित्त मंत्री पी चिदंबरम से लेकर संसदीय कार्य राज्य मंत्री राजीव शुक्ला तक ने सरकार पर कोई खतरा न होने की हुंकार भरते हुए दावा किया कि उनके पास बहुमत के लिए नए दोस्त हैं।

दूसरी ओर,शुक्रवार को तृणमूल कांग्रेस के संप्रग सरकार से समर्थन वापस लेने की औपचारिकता पूरी होने से पहले ही कांग्रेस ने भी स्पष्ट संकेत दे दिए हैं कि रेल मंत्रालय उसके पास ही रहेगा। द्रमुक जैसे पुराने सहयोगी या फिर किसी अन्य दल के संप्रग में शामिल होने की सूरत में रेल मंत्रालय पर नजर जाने से पहले ही कांग्रेस ने सियासी रूप से बेहद अहम इस मंत्रालय को सहयोगियों को न देने का इशारा कर दिया है।ममता की समर्थन वापसी के चलते शुक्रवार को होने वाली मंत्रिमंडल की बैठक स्थगित कर दी गई है। अब मंत्रिमंडल की अगली बैठक मंगलवार को होगी। तृणमूल के 19 सांसदों के जाने से तकनीकी रूप से अल्पमत में आई संप्रग सरकार का आंकड़ा पूरा करने के लिए कुछ नए सहयोगी तलाशने के संकेत सरकार और कांग्रेस ने भी दे दिए हैं। वित्त मंत्री चिदंबरम ने सरकार की स्थिरता की गारंटी देते हुए कहा, 'आज भी हमारे पास पर्याप्त सहयोगी हैं, कल भी पर्याप्त सहयोगी थे। लिहाजा हमें सरकार की स्थिरता पर कोई संदेह नहीं है और यदि हमें नए सहयोगियों को अपनाना पड़े तो हमें ऐसा क्यों नहीं करना चाहिए?'सूचना प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी ने भी वित्त मंत्री की बात का समर्थन किया और कहा कि सरकार के पास पर्याप्त संख्या बल है। संसदीय कार्य राज्य मंत्री राजीव शुक्ला ने भी पर्याप्त बहुमत होने का दावा करते हुए विपक्ष की तरफ से विशेष संसद सत्र बुलाने की मांग को खारिज कर दिया।सरकार मान रही है कि भाजपा अगले सत्र में यदि अविश्वास प्रस्ताव लाती है तो वामदल, टीआरएस और बीजद वाकआउट करेंगे क्योंकि इनमें से कोई जल्दी चुनाव नहीं चाहता। सपा-बसपा भी यदि साथ नहीं देते तो मतदान का बहिष्कार करेंगे।

ममता बनर्जी के समर्थन वापसी के बाद केंद्र सरकार की मुश्किल बढ़ने के साथ अब सारी निगाहें सपा और बसपा के रुख पर टिक गई हैं। केंद्र को समर्थन के मामले में सपा उलझन में है क्योंकि वह केंद्र सरकार के साथ रिश्ते खराब नहीं करना चाहती, लेकिन वह उसका खुलकर समर्थन करने की स्थिति में भी नहीं है।केंद्र सरकार को बाहर से समर्थन दे रही सपा के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने सरकार को डीजल की बढ़ी कीमतों को तुरंत वापस लेने की चेतावनी देते हुए कहा है कि महंगाई बर्दाश्त नहीं की जाएगी। यादव ने कहा कि महंगाई और भ्रष्टाचार को लेकर देश की जनता परेशान है। यादव ने कहा कि सरकार एक के बाद एक ऐसी नीतियां ला रही हैं जिससे देशवासी प्रभावित हो रहे हैं। इन नीतियों में डीजल मूल्य वृद्धि का सबसे ज्यादा प्रभाव किसानों पर पड़ा है।वहीं बसपा ने बड़ी होशियारी से केंद्र के समर्थन के मसले पर पार्टी का फैसला बीस दिन आगे खिसका लिया है। तब तक सपा समेत दूसरी पार्टियों के पत्ते खुल चुके होंगे और यूपीए सरकार का भी सीन साफ हो चुका होगा। अभी सपा वेट एंड वाच कर रही है। पार्टी ने फिलहाल केंद्र के खिलाफ सीधे हमला बोलने के बजाय भ्रष्टाचार और महंगाई के मुद्दे पर संघर्ष करने का रुख अख्तियार किया है। वह इस सरकार को गिराने का पाप अपने सिर नहीं लेना चाहती।दरअसल, सपा की नजर लोकसभा चुनाव के बाद के बनने वाले समीकरण पर है। सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह मानते हैं कि लोकसभा चुनाव के बाद केंद्र्रीय राजनीति में उनकी निर्णायक भूमिका होगी। वह कई बार यह कह चुके हैं कि दिल्ली में उनके बगैर अगली सरकार नहीं बन पाएगी। वह केंद्र में सपा की सरकार बनने की संभावना भी जता चुके हैं। ऐसी स्थिति में फिलहाल सपा नहीं चाहती है कि केंद्र के साथ उसके रिश्ते खराब हों।

उधर, बसपा सुप्रीमो मायावती ने तय किया है कि पार्टी 9 या 10 अक्तूबर को समर्थन के मुद्दे पर अपने पत्ते खोलेगी। जाहिर है कि इतने वक्त में बसपा देख लेगी कि तृणमूल कांग्रेस के मंत्रियों के इस्तीफे स्वीकार होते हैं या नहीं और सपा का रुख क्या है, अगर सपा समर्थन वापस लेती है तो बसपा यथास्थिति बनाए रखेगी।मायावती यूपीए सरकार से तभी समर्थन वापस लेंगी जब यूपीए सरकार सपा को तवज्जो दे। मायावती के लिए मुश्किल वक्त तब आएगा जब तृणमूल कांग्रेस, डीएमके व सपा तीनों समर्थन वापस लें। बसपा का उत्तर प्रदेश में मुकाबला सपा से है और उसके सारे दांवपेंच इसी समीकरण पर आधारित होंगे।

मुलायम ने कहा कि सरकार महंगाई रोकने के लिए कडे़ कदम उठाए। उन्होंने वाम दलों और तेलुगू देशम पार्टी के नेताओं के साथ डीजल के दाम में इजाफा, एलपीजी सिलेंडरों पर ‌सब्सिडी में कटौती और खुदरा बाजार में एफडीआई की अनुमति के फैसले के विरोध में यहां धरना दिया और अपने समर्थकों के साथ गिरफ्तारी दी।यह पूछे जाने पर कि कई दलों के एक साथ आने को क्या तीसरे मोर्चे का संकेत माना जाए। यादव ने कहा कि अभी मोर्चा नहीं बना है। यह पूछे जाने पर कि जिस सरकार का वह समर्थन कर रहे हैं उसके विरूद्ध सड़क पर उतरने की क्या जरूरत पड़ गई, यादव ने कहा कि वह सरकार को समर्थन सांप्रदायिक ताकतों को सत्ता से बाहर रखने के लिए कर रहे हैं।वहीं पार्टी के महासचिव राम गोपाल यादव ने बताया कि सरकार को समर्थन देने या नहीं देने के बारे में पार्टी के संसदीय बोर्ड की बैठक में फैसला लिया जाएगा। उन्होंने स्पष्ट किया कि संसद का विशेष सत्र बुलाने की बात कर रही भाजपा यदि सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाती है तो पार्टी उसका विरोध करेगी।

अधिकार यात्रा सम्मेलन के दौरान पश्चिम चंपारण जिले के बेतिया में संप्रग को समर्थन को लेकर मीडिया के कयास पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गुरुवार को कहा कि संप्रग सरकार को समर्थन देना तो मेरी सोच के भी बाहर है। मुख्यमंत्री ने मंत्रिमंडल की बैठक के बाद संवाददाताओं से कहा कि संप्रग सरकार को समर्थन तो मेरी सोच के भी बाहर है। अधिकार सम्मेलन के दौरान सभा में कही गयी मेरी बात को आज की राजनीति से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए।






देश के सबसे बड़े व्यापारी संघों में से एक कनफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (सीएआईटी) के राष्ट्रीय महासचिव प्रवीण खंडेलवाल ने कहा कि देश भर के लगभग पांच करोड़ कारोबारी प्रतिष्ठानों ने अपने काम बाज बंद रखे।

खंडेलवाल ने कहा, ''देश भर के 25 हजार से अधिक व्यापार संघ हड़ताल में शामिल हुए।''

वर्तमान राजनीतिक अस्थिरता और बंद का असर शेयर बाजार पर भी दिखाई पड़ा। बम्बई स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) का 30 शेयरों पर आधारित संवेदी सूचकांक सेंसेक्स 146.76 अंकों या 0.79 फीसदी गिरावट के साथ 18,349.25 पर बंद हुआ।

सीआईआई ने कहा, ''बंद से देश के कई हिस्से में व्यवसाय और व्यापार का नुकसान हुआ।''

सीआईआई ने कहा, ''नुकसान का निश्चित आंकड़ा पता नहीं लगाया जा सकता है, लेकिन यह अनुमान है कि उत्पादन और व्यापार के प्रभावित होने से देश को 12,500 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है।''

सीआईआई ने यह नहीं बताया कि वह इस अनुमान पर कैसे पहुंचा।

अन्य उद्योग चैम्बर एसोसिएटेड चैम्बर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (एसोचैम) ने 10 हजार करोड़ नुकसान का अनुमान जताया।
केंद्रिय वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम ने कहा कि हड़ताल से अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई है, लेकिन उन्होंने दोहराया कि सरकार सुधार का फैसला वापस लेने पर विचार नहीं कर रही है।

चिदम्बरम ने कहा, ''लोकतंत्र में आपको सरकारी नीति का विरोध करने का अधिकार है। लेकिन यह दुखद है कि जिस प्रकार का विरोध आप कर रहे हैं, उससे देश को भारी नुकसान होगा।''

उन्होंने कहा कि सरकार को नीतियों पर सहयोग करने वाले नए दोस्त मिल गए हैं।

औद्योगिक संगठनों ने कहा कि सरकार को राजनीकि दबाव में सुधार के फैसले से पीछे नहीं हटना चाहिए।

सीआईआई ने कहा, ''अच्छी आर्थिक सोच से अच्छी राजनीति नहीं हो सकती है। इसलिए आम आदमी को सुधार के सरकार के फैसले के सकारात्मक पहलुओं के बारे में बताया जाना जरूरी है।''

सीआईआई के अध्यक्ष आदि गोदरेज ने उम्मीद जताई की विभिन्न पार्टियां देश में चिर प्रतीक्षित आर्थिक सुधार लाने के लिए काम करेंगी।

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