आर्थिक सुधारों की गरज और कारपोरेट इंडिया के दबाव में कांग्रेस भाजपा में कोई गुप्त समझौता लेकिन असंभव नहीं! देश को बचाना है, तो ममता, मुलायम, मायावती, द्रमुक , अन्नाद्रमुक के साथ वामपंथियों को एक साथ खड़े होकर बाजारू राजनीति के खिलाफ प्रतिरोध करना होगा।
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
खुले बाजार की अर्थ व्यवस्था लागू होने के बाद पहली बार कारपोरेट एजंडा को लगभग इतनी ही अवधि से जनांदोलन की राजनीति कर रही ममता बनर्जीर ने जोर का झटका दिया है।रिटेल में एफडीआई और डीजल के मूल्य में की गई वृद्धि से गुस्से में आईं तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी ने केंद्र सरकार से नाता तोड़ लिया है। आज शाम हुई पार्टी नेताओं की बैठक के बाद ममता ने ऐलान किया कि उनके मंत्री शुक्रवार की शाम दिल्ली जाएंगे और प्रधानमंत्री को इस्तीफा देकर आएंगे।ममता ने कहा कि अब हम यूपीए पार्ट 2 का हिस्सा नहीं रहेंगे। बाहर से समर्थन के सवाल पर ममता ने कहा कि जब हम मंत्री ही नहीं रहेंगे तो फिर बाहर से समर्थन का क्या मतलब है।खुदरा कारोबार में विदेशी पूंजी, पेंशन बिल और भूमि अधिग्रहण संशोधन कानून का वे लगातार विरोध करती रही हैं। मनमोहन सिंह की सरकार अगर दीदी के दबाव के आगे झुक जाती है तो आर्थिक सुधारों का दूसरा चरण खटाई में पड़ जायेगा। कारपोरेट नीति निर्देशक इसकी इजाजत शायद ही दें। बाजार और वैश्विक दबाव के आगे अब मनमोहन का पीछ हटना मुश्किल है। दूसरी ओर, दीद ने अबतक जो किया हो, लेकिन इस बार पीछे हटना उनकी साख के लिए निहायत ही असंभव है। अब मौका है मुलायम और मायावती के लिए कि वे इस जनविरोधी कारपोरेट सरकार को को गिराकर समाजवाद और अंबेडकर की लाज बचा लें। अगर वे इस बार भी मनमोहन को खुल्ला केलने के लिए छोड़ देते हैं तो राजनीति की पूरी साख खत्म हो जाने का खतरा है। लेकिन सवाल है कि सरकार गिर भी जाये, तो क्या खुले बाजार की व्यवस्था खत्म होगी तीसरे मोर्चे का अभी आकार लेना बाकी है। मनमोहन के बदले हिंदुत्ववादी राजग कारपोरेट इंडिया और वैश्विक व्यवस्था के लिए स्वाभाविक विकल्प है, जो आर्थिक सुधारों के प्रति कांग्रेस से कहीं ज्यादा प्रतिबद्ध है। अगर नरसंहार की संस्कृति से इस देश को बचाना है, तो ममता, मुलायम, मायावती, द्रमुक , अन्नाद्रमुक के साथ वामपंथियों को एक साथ खड़े होकर बाजारू राजनीति के खिलाफ प्रतिरोध करना होगा। लेकिन ऐसा फिलहाल असंभव है। कांग्रेस की रणनीति साफ है, या तो ममता को पटा लिया जाये और जोड़तोड़ से सरकार को बचा लिया जाये। आर्थिक सुधारों की गरज और कारपोरेट इंडिया के दबाव में कांग्रेस भाजपा में कोई गुप्त समझौता लेकिन असंभव नहीं है।हालांकि तृणमूल कांग्रेस द्वारा समर्थन वापस लेने की घोषणा करने के कुछ समय बाद समाजवादी पार्टी (सपा) ने कहा कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) का तौर तरीका ठीक नहीं है और पार्टी आगे का निर्णय 20 सितम्बर के बाद लेगी। सपा के नेता रामगोपाल यादव ने कहा, "सरकार जिस तरह से काम कर रही है वह सही नहीं है। इसलिए ममता ने समर्थन वापस लिया।"वहीं, सरकार के लिए एक नया संकट खड़ा हो गया है। यूपीए की सहयोगी डीएमके ने 20 सितंबर को आयोजित हो रहे भारत बंद में हिस्सा लेने का फैसला किया है। डीएमके के 18 सांसद यूपीए को समर्थन दे रह हैं।
मंगलवार शाम को कांग्रेस और यूपीए की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह से मुलाकात की। लेकिन इस बैठक का ब्योरा सामने नहीं आया। तृणमूल की तमाम धमकियों के बावजूद केंद्र सरकार अपने रुख पर अड़ी हुई है। कई लोग अंदाजा लगा रहे थे कि पहले की तरह इस बार भी ममता बनर्जी तेवर दिखाकर अपना रवैया बदल लेंगी। लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। हालांकि ममता इससे पहले भी कई बार ऐसे तेवर दिखा चुकी हैं और अंत में शांत भी हो गई थीं।
ममता बनर्जी ने सरकार सरकार पर यह आरोप लगाया है कि केंद्र कोयला घोटाले से लोगों का ध्यान खींचना चाहती है। ममता बनर्जी ने ऐलान किया है कि वे केंद्र की नीतियों से बेहद खफा हैं। उन्होंने कहा कि सरकार हमें न्यूनतम सम्मान भी नहीं देती है। हम लोगों से पूछकर कोई फैसला नहीं होता है।ममता बनर्जी के ताज़ा रुख से कांग्रेस बैकफुट पर आ गई लगती है। सूत्रों के हवाले से मीडिया में खबर है कि ममता बनर्जी की मांगों को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी प्रधानमंत्री से बात करेंगी।लेकिन सरकार के समीकरण पर नज़र दौड़ाने पर साफ हो जाता है कि केंद्र में कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार को फिलहाल कोई खतरा नहीं है। क्योंकि समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी सरकार को बाहर से समर्थन दे रही हैं। लेकिन तृणमूल कांग्रेस के 19 सांसदों के सरकार से समर्थन वापस लेने के बाद इस समय यूपीए के पास अब बहुमत के लिए जरूरी 272 सांसदों के समर्थन की जगह 254 सांसद ही हैं। लेकिन सरकार फिलहाल खतरे से बाहर दिख रही है। यूपीए सरकार को बीएसपी के 22 और एसपी के 21 सांसदों का समर्थन बाहर से मिला हुआ है। समाजवादी पार्टी ने ममता बनर्जी के ताज़ा फैसले का अपने ऊपर असर होने से इनकार किया है। कांग्रेस ने ममता की समर्थन वापसी पर सधी हुई प्रतिक्रिया देते हुए कहा, 'लोकतंत्र में सभी को अपनी बात रखने का हक है। इस मुद्दे पर अंतिम फैसले से पहले कुछ भी कहना मुश्किल है। ममता बनर्जी हमारी सम्मानित सहयोगी रही हैं। उन्होंने जो मुद्दे उठाए हैं, उस पर प्रधानमंत्री विचार कर सकते हैं।' इस बीच, बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी ने कहा है कि देश में जल्द ही मध्यावधि चुनाव होंगे। गडकरी का कहना है कि मध्यावधि चुनाव में बीजेपी बड़ी जीत दर्ज करेगी।
यूपीए की दूसरी सबसे बड़ी सहयोगी दल तृणमूल कांग्रेस ने डीजल,गैस और मल्टी ब्रैंड रीटेल के मुद्दे पर शुक्रवार को सरकार से समर्थन वापस लेने का ऐलान कर दिया। उन्होंने कहा कि तृणमूल कांग्रेस यूपीए सरकार को न तो अंदर से समर्थन देगी और न ही बाहर से। शुक्रवार को तृणमूल कांग्रेस के सभी केंद्रीय मंत्री प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह से मिलकर उन्हें अपना इस्तीफा सौंप देंगे।ममता बनर्जी ने इस मुद्दे पर वरिष्ठ सहयोगियों के साथ मीटिंग की। कोलकाता में मीटिंग लगभग 2 घंटे तक चली। इसके बाद ममता बनर्जी ने अपने सभी मंत्रियों से एक-एक कर बातचीत की और उसके बाद यह फैसला लिया। बैठक के बाद ममता ने कहा, 'हम यूपीए सरकार से अपना समर्थन वापस ले रहे हैं। हमारे मंत्री दिल्ली जाएंगे और शुक्रवार को जुमे की नमाज के बाद 3 बजे प्रधानमंत्री से मिलकर अपना इस्तीफा सौंप देंगे।' ममता बनर्जी ने कांग्रेस को साफ संकेत दिया और कहा, 'केंद्र सरकार किसी एक पार्टी का शासन नहीं है।' उन्होंने कहा, 'सरकार अन्य दलों के समर्थन पर निर्भर करती है। लेकिन बंगाल में हमारा अपना बहुमत है और हम किसी अन्य पर निर्भर नहीं हैं।'बैठक से ठीक पहले ममता बनर्जी से जुड़े सूत्रों ने साफ किया था कि पार्टी अब किसी भी कीमत पर सरकार के साथ नहीं रहना चाहती। लोकसभा में टीएमसी के 19 सांसद हैं।
ममता ने सरकार को बाहर से समर्थन देने की संभावना से इनकार किया और कहा कि उनका फैसला 'आधे अधूरे मन' से नहीं है। उन्होंने कहा, ' कांग्रेस ने कभी उनका सम्मान नहीं किया। उनसे पूछे बगैर सारे जनविरोधी फैसले किए जाते रहे।'
गौरतलब है कि सरकार विनिवेश की प्रक्रिया में बदलाव करने वाली है। सूत्रों के मुताबिक किश्तों में सरकारी कंपनियों का हिस्सा बेचा जाएगा। एक बार में सरकारी कंपनियों का 2-3 फीसदी हिस्सा बेचा जाएगा।शेयर की कीमतों में ज्यादा गिरावट न आए इसलिए सरकार ये फॉर्मूला अपनाने वाली है। साथ ही, इस फॉर्मूले से सरकार शेयर बाजार में आए उछाल का फायदा उठा सकेगी। माना जा रहा है कि दिवाली के आसपास विनिवेश प्रक्रिया शुरू की जाएगी। सरकार को उम्मीद है कि विनिवेश के जरिए 30000 करोड़ रुपये जुटाने को लक्ष्य को हासिल किया जा सकेगा।कैबिनेट ने नाल्को, हिंदुस्तान कॉपर, ऑयल इंडिया, एमएमटीसी और आरआईटीईएस में हिस्सा बेचने को मंजूरी दी है। इसके अलावा मिनिमम शेयर होल्डिंग नियमों को पूरा करने के लिए 9 सरकार कंपनियों का हिस्सा बिकेगा। सरकार के पास एचएमटी, फर्टिलाइजर्स एंड केमिकल्स, नेशनल फर्टिलाइजर, स्कूटर्स इंडिया, नेवेली लिग्नाइट, राष्ट्रीय केमिकल्स, आईटीडीसी, एसटीसी, हिंदुस्तान फिल्म्स का 90 फीसदी से ज्यादा हिस्सा है।
ममता बनर्जी ने केंद्र सरकार से समर्थन वापस लेकर राजनीति की बिसात पर ऐसा पांसा फेंका है कि समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी जैसे दलों को सांसत में डाल दिया है। अब मुलायम सिंह और मायवती जैसे नेताओं पर दबाव बढ़ गया है कि या तो वे सरकार से समर्थन वापस लें या फिर रिटेल में एफडीआई या डीजल मूल्य वृद्धि के विरोध का ड्रामा छोड़ दें।
ममता से प्रेसवार्ता में पूछा गया कि आपके मंत्री सरकार से इस्तीफा देंगे लेकिन क्या आप सरकार को बाहर से समर्थन देंगी तो टीएमसी अध्यक्ष ने कहा कि अगर सरकार को बाहर से समर्थन देना है तो समर्थन वापस लेने का क्या मतलब? उन्होंने कहा कि 20 सितंबर को होने वाले भारत बंद में उनकी पार्टी टीएमसी शामिल होगी।ममता के इस बयान से सबसे ज्यादा दबाव मुलायम सिंह और मायावती पर आ गया है। अब या तो इन नेताओं को सरकार से समर्थन वापस लेना होगा या फिर इन्हें यूपीए सरकार की नीतियों का विरोध छोड़ना पड़ेगा। गौरतलब है कि ममता के समर्थन वापसी से अब मनमोहन सरकार मायावती और मुलायम सिंह यादव के समर्थन के बल पर ही जिंदा है।
ममता बनर्जी ने अपनी ओर से बातचीत का रास्ता खुला रखने का संकेत देते हुए कहा कि अगर केंद्र मल्टी ब्रैंड रीटले सेक्टर में एफडीआई के फैसले को वापस लेती है, 6 सिलिंडरों के बजाय 12 सिलिंडरों पर सब्सिडी देती है और डीजल की कीमत में 5 रुपए की बढोतरी को 3 या 4 रुपए तक किया जाता है, तो वह समर्थन वापसी के अपने फैसले पर फिर से विचार कर सकती हैं।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने कांग्रेस पर हमला बोलते हुए कोयला ब्लाक आवंटन घोटाला, काले धन और फर्टिलाइजर्स की कीमतों में बढ़ोतरी जैसे मुद्दों का जिक्र किया। उन्होंने दावा किया कि एफडीआई का फैसला कोयला घोटाले को दबाने के लिए किया गया है। उन्होंने कांग्रेस पर 'ब्लैकमेलिंग' की राजनीति करने का आरोप लगाया और कहा कि जब भी उसे किसी सहयोगी दल से परेशानी में होती है तो वह दूसरे दल के पास जाती है।
ममता ने कहा, 'जब उसे मायावती से परेशानी होती है तो वह मुलायम के पास जाती है। जब उसे मुलायम से परेशानी होती है तो वह नीतीश कुमार के पास जाती है और यह ऐसे ही चलते रहता है।' रीटेल सेक्टर में एफडीआई के फैसले पर ममता ने कहा, 'असंगठित रीटेल सेक्टर में पांच करोड़ लोग हैं। वे कहां जाएंगे? इससे तो गरीब आदमी मर जाएगा। यह आपदा के समान होगा। ' हालांकि उन्होंने यह भी साफ किया वह 20 सितंबर को एनडीए द्वारा आहूत बंद में उनकी पार्टी शामिल नहीं होगी।
गौरतलब है कि डीजल, गैस और मल्टी ब्रैंड रीटेल में एडफीआई के मुद्दे पर यूपीए सरकार से नाराज ममता बनर्जी ने सरकार को 72 घंटे का समय दिया था।
संप्रग सरकार से तृणमूल कांग्रेस की ओर से समर्थन वापस लिए जाने के एलान के बाद कांग्रेस ने कहा कि वह अब भी ममता बनर्जी को महत्वपूर्ण सहयोगी मानती है और उनकी चिंताओं के बारे में चर्चा करेगी। कांग्रेस महासचिव जनार्दन द्विवेदी ने संवाददाताओं से कहा कि हमने तृणमूल कांग्रेस को हमेशा से महत्वपूर्ण सहयोगी माना है। ममता बनर्जी ने जो कुछ भी कहा है, उसके बावजूद अंतिम फैसला आने तक हम उन्हें एक महत्वपूर्ण सहयोगी मानते हैं। उनका बयान उस वक्त आया है जब ममता ने सरकार से समर्थन वापस लेने का एलान किया और कहा कि उनके मंत्री शुक्रवार को केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे देंगे।द्विवेदी ने कहा कि ममता बनर्जी की ओर से उठाए गए मुद्दों पर हम निश्चित तौर पर सरकार के साथ बातचीत करेंगे। इसके बाद हम देखेंगे कि अंतिम फैसला क्या होता है। कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी प्रधामंत्री मनमोहन सिंह के साथ ममता की ओर से उठाए गए मुद्दों के बारे में जल्द चर्चा कर सकती हैं।
संप्रग को बाहर से समर्थन दे रही समाजवादी पार्टी (सपा) ने तृणमूल कांग्रेस की ओर से समर्थन वापस लिए जाने के फैसले को गंभीर मुद्दा करार देते हुए कहा है कि इस स्थिति के लिए कांग्रेस नीत सरकार का रवैया जिम्मेदार है।
आर्थिक सुधारों को लेकर बड़े फैसले लेने से हफ्तों पहले ही प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी को खुदरा क्षेत्र में एफडीआई को मंजूरी देने के अपने इरादे के बारे में स्पष्ट कर दिया था और शुक्रवार को कैबिनेट की बैठक से पहले उन्हें फोन किया, लेकिन ममता की ओर से कोई जवाब नहीं आया।
सूत्रों का कहना है कि प्रधानमंत्री कल भी ममता से बात करना चाहते थे और इस बारे में प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से उन्हें फोन किया गया, लेकिन अब तक कोई जवाब नहीं आया है। पिछले दरवाजे से भी कांग्रेस के कुछ नेताओं ने ममता के लिए संदेश भिजवाया कि प्रधानमंत्री उनसे बात करना चाहते हैं, लेकिन इसे भी कोई तवज्जो नहीं मिली।
एफडीआई के मुद्दे पर अंधेरे में रखे जाने के ममता के दावे को खारिज करते हुए सूत्रों ने कहा कि प्रधानमंत्री ने 22 अगस्त को संप्रग समन्वय समिति की बैठक में अपने इरादे को बयां कर दिया था। इस बैठक में ममता भी मौजूद थीं।
सूत्रों के अनुसार संप्रग समन्वय समिति की बैठक की शुरुआत में ही मनमोहन ने खुदरा एवं विमानन क्षेत्र में एफडीआई सहित 17 मुद्दों की एक सूची यह कहते हुए सामने रखी कि डीजल की कीमत में इजाफे के साथ ही इन मुददों पर फैसला करना है क्योंकि देश की अर्थव्यवस्था बुरे दौर से गुजर रही है। ममता ने कहा कि वह बैठक में इन मुद्दों के बारे में बात नहीं करना च़ाहतीं और प्रधानमंत्री के साथ इन पर निजी तौर से बात करेंगी।सूत्रों ने कहा कि वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने समझाया कि निवेशकों का विश्वास बहाल करने के लिए राजकोषीय घाटे को कम करने और सुधारों लागू करने की जरूरत है, परंतु ममता ने यही कहा कि वह प्रधानमंत्री के साथ अलग से बात करेंगी। सूत्रों के अनुसार शुक्रवार को मंत्रिमंडल की बैठक से पहले एफडीआई के मुद्दे पर ममता को अवगत कराने का प्रयास किया क्योंकि इस बैठक में तृणमूल के प्रतिनिधि एवं रेल मंत्री मुकुल रॉय उपस्थित नहीं होने वाले थे। ममता ने प्रधानमंत्री का फोन नहीं उठाया।खुदरा में विदेशी निवेश, डीजल की कीमतों में इजाफा, रसोई गैस सिलेंडरों की राशनिंग के साथ-साथ कोयला खदानों के आबंटन को लेकर चौतरफा घिरी कांग्रेस सरकार और साख बचाने के लिए कई मोर्चों पर काम कर रही है।
सपा महासचिव रामगोपाल यादव ने संवाददाताओं से कहा कि कांग्रेस नीत सरकार ऐसा व्यवहार कर रही है कि मानो उसे पूर्ण बहुमत मिला हुआ है। वह सहयोगियों से बातचीत किए बिना फैसले कर रही है। उन्होंने कहा कि ममता बनर्जी को समर्थन वापस लेने के लिए विवश किया गया और वह सरकार की कार्यशैली को पसंद नहीं करतीं।तृणमूल कांग्रेस के इस कदम पर सपा के एख के बारे में पूछे जाने पर यादव ने कहा कि संप्रग के साथ उनकी पार्टी का रिश्ता किसी दूसरे सहयोगी से बिल्कुल स्वतंत्र है। उन्होंने कहा कि हमारा स्वतंत्र निर्णय होगा। खुदरा में एफडीआई और डीजल की कीमत में बढ़ोतरी के खिलाफ 20 सितंबर को होने वाले बंद के बाद हम कोई फैसला करेंगे। यह पूछे जाने पर कि तृणमूल के समर्थन लेने से यह सरकार गिर जाएगी तो उन्होंने कहा कि यह एक गंभीर मुददा है। उधर, सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव आज रात दिल्ली पहुंच गए।
बीजेपी नेता रविशंकर प्रसाद ने कहा है कि टीएमसी के यूपीए-2 से समर्थन वापस लेने के बाद केंद्र सरकार की उल्टी गिनती शुरु हो गई है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी अपने सहयोगियों को टेक फॉर ग्रांटेड लेती है। रविशंकर प्रसाद ने कहा कि सरकार विपक्ष की बात तो छोड़ दें, बल्कि अपने साथियों तक से बात नहीं करती है।उन्होंने कहा कि मंगलवार को ममता बनर्जी ने भी कहा कि कोल गेट से ध्यान बटाने के लिए कांग्रेस पार्टी ने ध्यान भटकाने के लिए रिटेल में एफडीआई लाई गई है। उन्होंने कहा कि सरकार जिस तरह हड़बड़ी में बड़े बड़े फैसले ले रही है। उसपर देश के पांच करोड़ लोगों का भविष्य टिका है।रवि शंकर प्रसाद ने संसद के विशेष सत्र बुलाने पर कहा कि बीजेपी देखेगी कि इस मामले में संसद का विशेष सत्र बुलाने की जरुरत है या नहीं। इस पर चर्चा की जरुरत है। इसके बाद फैसला लिया जाएगा।
इस बीच राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के संयोजक शरद यादव की अगुवाई में व्यापारियों, हाकरों और छोटे दुकानदारों के एक प्रतिनिधिमंडल ने मंगलवार को राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी से मिलकर उन्हें अपनी मांगों से संबंधित एक ज्ञापन सौंपा। प्रतिनिधिमंडल में राष्ट्रीय हाकर्स महासंघ, फल एवं सब्जी महासंघ और अखिल भारतीय व्यापारी महासंघ (कैट) के प्रतिनिधि शामिल थे। राष्ट्रपति को सौंपे ज्ञापन में प्रतिनिधिमंडल ने बहुराष्ट्रीय कंपनियों के चंगुल से हाकर्स, व्यापारियों और खुदरा कारोबार से जुड़े क्षेत्रों को बचाने की गुहार लगाई है। यादव ने बताया कि राष्ट्रपति ने प्रतिनिधिमंडल की बात को शांतिपूर्वक सुना। उन्होंने बताया कि राष्ट्रपति को भारतीय खुदरा कारोबार की वास्तविकताओं से अवगत कराया गया।
आर्थिक सुधारों के लिए केंद्र सरकार द्वारा कड़े कदम उठाए जाने के बीच अगस्त में खुदरा महंगाई में इजाफा हो गया है। जुलाई की 9.86 फीसदी खुदरा महंगाई दर की तुलना में अगस्त में यह आंकड़ा 10.03 फीसदी है। इस दौरान सबसे ज्यादा इजाफा खाद्य पदार्थो की कीमतों में दिखा है। दिलचस्प है कि अगस्त की खाद्य महंगाई दर में भी खासा इजाफा देखने को मिला है। जुलाई में यह आंकड़ा 11.53 फीसदी के स्तर पर था, जो कि अगस्त में बढ़कर 12.03 फीसदी पहुंच गया है। वहीं, उपभोक्ता मूल्य दर में संशोधन के बाद जुलाई के लिए यह दर 9.86 फीसदी है।केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय के आंकड़े के मुताबिक ग्रामीण इलाकों में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित महंगाई दर जुलाई में बढ़कर 9.76 फीसदी रही, जो जून में 9.65 फीसदी थी। शहरी इलाकों में यह दर जुलाई में घटकर 10.1 फीसदी रही, जो जून में 10.44 फीसदी थी।दिलचस्प है कि हाल में ही सरकार द्वारा 5 रुपये प्रति लीटर डीजल के दाम बढ़ाए जाने से भी देश भर में महंगाई बढ़ रही है। खाद्य पदार्थो से लेकर अन्य जरूरी सामान सभी में भारी इजाफा हुआ है। वहीं, रसोई गैस की लिमिट तय हो जाने से आम आदमी के किचन से लेकर जेब तक सबकी स्थिति खराब हो चुकी है।
No comments:
Post a Comment