Sunday, December 8, 2013

मौकापरस्त कैरियरिस्ट कारपोरेट मैनेजर शुतुरमुर्ग पीढ़ियों ने ही युवा वर्ग और छात्रों को दिग्भ्रमित किया हुआ है और फिरभी वे अंधेरे में रोशनी पैदा करने की कोशिश में लगे हैं हमेशा की तरह।स‌बक लेकर हम कोई पहल करें तो बात बने वरना मजे लेने के लिए यह मुक्त बाजर का कालाधन प्रवाह और निरंकुश कारपोरेट राज तो है ही।

मोहन क्षोत्रिय जी स‌े स‌हमत हूं कि कल्पनातीत ! यह तो ‪#‎चौंकाने‬ से भी बड़ा और भारी है ! ‪#‎चौंकाना‬ छोटा लगने लगा है !

मनमोहन-राहुल गांधी को पूरी तरह खारिज कर दिया, जनता ने त्रस्त होकर. महंगाई-भ्रष्टाचार, और घपलों-घोटालों का भरपूर बदला !

मोहन क्षोत्रिय जी स‌े स‌हमत हूं कि दिल्ली में विकल्प दिखा दोनों पार्टियों का, तो जनता ने उसका साथ देने का मन दिखाया, पर त्रिकोणीय संघर्षों की अपनी व्यथा होती है.

इन चुनाव परिणामों का इसके अलावा क्या संदेश हो सकता है?

मेरे हिसाब स‌े भारतीय जनता का आर्थिक स‌ुधार नरसंहार अभियान के खिलाफ तीव्र रोष तो है,लेकिन उस रोष को परिवर्तन का हथियार बनाने में हमारी ओर स‌े कोई पहल ही नहीं हुई है।

इस खारिज स‌े और आगे ना वोटों की गिनती स‌े स‌ोशल मीडिया की भूमिका रेखांकितकी जा स‌केगी।
आपके हाथों में स‌त्ता वर्ग को शिकस्त देने के लिए परमाणु बम है,आपको अहसास नहीं है।

इस चुनाव परिमामों स‌े स‌ाफ स‌ाबित हुआ कि देश के छात्र युवा वर्ग देश के भविष्य को बदलने के लिए कहीं ज्यादा स‌क्रिय हैं। हमने ही विश्वविद्यालय परिसरों को स‌ंबोधित करना छोड़ दिया है।

मौकापरस्त कैरियरिस्ट कारपोरेट मैनेजर शुतुरमुर्ग पीढ़ियों ने ही युवा वर्ग और छात्रों को दिग्भ्रमित किया हुआ है और फिरभी वे अंधेरे में रोशनी पैदा करने की कोशिश में लगे हैं हमेशा की तरह।स‌बक लेकर हम कोई पहल करें तो बात बने वरना मजे लेने के लिए यह मुक्त बाजर का कालाधन प्रवाह और निरंकुश कारपोरेट राज तो है ही।

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