Tuesday, May 31, 2016

मोदी सरकार का सबसे बड़ा घोटाला ======================= उत्तराखंड जिसके लिए उसका ऋणी है! Laxman Singh Bisht Batrohi

मोदी सरकार का सबसे बड़ा घोटाला 
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उत्तराखंड जिसके लिए उसका ऋणी है!

Laxman Singh Bisht Batrohi 

अपने दो साल पूरे होने पर प्रधानमंत्री मोदी ताल ठोककर कहते हैं कि पिछली कांग्रेस सरकार घोटालों की सरकार थी जब कि भाजपा सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि है पिछले दो वर्षों के शासन काल में एक भी घोटाले का न होना.
एकाएक सुनने पर यह बात बेहद आकर्षक लगती है, इसकी सत्यता को हमारे देश के आर्थिक और राजनीतिक विशेषज्ञ जांचेंगे मगर एक उत्तराखंडी के नाते मैं कह सकता हूँ कि अपने दो वर्षों के कार्यकाल में मोदी सरकार ने एक ऐसा घोटाला किया है, जिसकी तुलना के लिए भारतीय इतिहास में शायद ही कोई और उदहारण मिले. विगत 18 मार्च को हुए कांग्रेस के 9 विधायकों का अपहरण करके उन्हें वर्तमान सरकार को तोड़ने के लिए इस्तेमाल करना उनकी अद्भुत रणनीति का प्रदर्शन है जिसने एक साथ अनेक नज़ीरें स्थापित कीं. 
भारतीय इतिहास में शायद पहली बार एक मामूली राजनेता को देश की सर्वोच्च न्याय संस्था के द्वारा फेवर मिला और भारत के आम लोगों के बीच यह विश्वास जगा कि इस स्वार्थी और छीना-झपटी के दौर में कोई जगह ऐसी भी है, जहाँ वे कठिन समय में शरण ले सकते हैं.

यह तो तस्वीर का एक पहलू है. दूसरा और उल्लेखनीय पहलू यह है कि इस घोटाले ने भले ही भाजपा की झोली में वृद्धि न की हो, सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार के बहाने उत्तराखंड के समाज पर बहुत बड़ा उपकार किया है. सीधे-सरल, इकतरफा सोच के माने जाने वाले उत्तराखंड के लोगों के दिमाग में सच में इतनी निष्ठुर कल्पना कभी आ ही नहीं सकती थी. मुझे याद है, परंपरागत उत्तराखंडी समाज में दुश्मनी प्रदर्शित करने के भी कुछ नियम होते थे. इन नियमों को 'दुश्मनी की नैतिकता' भी कहा जा सकता है. 
हमारे पुराने समाजों में अगर किसी को पीटना या नुकसान पहुँचाना होता था, तो एक अघोषित नियम होता था कि उसे इतना मारना कि वह काम करने लायक न रहे लेकिन उसके प्राण मत लेना. जो प्राण दे नहीं सकता उसे प्राण लेने का कोई अधिकार नहीं है. चूंकि लोग एक बंद दुनिया में रहने के आदी थे, पढ़े-लिखे भी नहीं थे, इसलिए प्रकृति की गोद में पलने वाले लोगों के क्रोध का प्रदर्शन भी विचित्र प्रकार का हुआ करता था जो कालांतर में उन्ही के लिए हानिकारक भी हुआ करता था. ऐसे लोगों के लिए 'लाट-किकड़' संबोधन का प्रयोग किया जाता था, जो सरल, कुछ हद तक बेवक़ूफ़ मगर खुद को तीसमारखां समझने वाले लोग होते थे.
अठारह मार्च को बागी बने इन नौ 'लाटों-किकडों' ने अंततः अपनी जातीय अस्मिता का परिचय दे ही दिया. इतिहास किस तरह लौट-लौट कर सबक सिखाता है, यह भी मोदी सरकार के इस राजनीतिक घोटाले ने सिद्ध कर दिखाया. 
इस प्रकरण से भले ही वर्तमान सरकार को निश्चय ही लाभ मिलेगा, जिसकी प्रशंसा की जानी चाहिए, मगर उत्तराखंडी समाज की परंपरागत छवि को इससे जबरदस्त नुकसान पहुँचा है जिसकी भरपाई हो पाना शायद ही संभव हो पाए.



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