Friday, October 23, 2015

https://youtu.be/yuTqyFkfOT0 मैदान छोड़ना नहीं, पीठ दिखाना नहीं, फासीवाद हारने लगा है! देश को जोड़ लें,दुनिया जोड़ लें,कोई अकेला भी नहीं है! दाभोलकार,पनसारे और कलबुर्गी के हत्यारे,बाबरी विध्वंस,भोपाल गैस त्रासदी.देश विदेश दंगों और आतंकी हमलों,सिखों के नरसंहार,गुजरात के दंगों,सलवा जुड़ुम और आफस्पा,टोटल प्राइवेटेजाइशेन,टोटल विनिवेश,टोटल एफडीआी के सौदागर तमाम हारने लगे हैं,हमारा यकीन भी कीजिये। जिनने इस महादेश को कुरुक्षेत्र के मैदान में तब्दील कर दिया जो धर्म कर्म के नाम असत्य और अधर्म,अहिंसा और भ्रातृत्व के बदले हिंसा और नरसंहार,विश्वबंधुत्व के बदले हिंदुत्व का ग्लोबल एजंडा और भारत तीर्थ की विविधता,वैचित्र्य के बदले गैरहिंदुओं के सफाये से देश को हिंदू बनाने के उपक्रम से कृषि,व्यवसाय और उद्योगधंधों की हत्या करके विदेशी पूंजी और विदेशी हितों के दल्ला बनकर महान भारत देश की हत्या का राजसूय यज्ञ का आयोजन कर रहे थे। बाबुलंद ऐलानिया जिहाद जो छेड़े हुए थे राष्ट्र के विवेक,सत्य, अहिंसा,न्याय,शांति समानता के बदले समरस मृत्यु उत्सव के नंगे कार्निवाल में हर मनुष्य को बंधुआ कंबंध बनाने के लिए हिंद


https://youtu.be/yuTqyFkfOT0



मैदान छोड़ना नहीं, पीठ दिखाना नहीं, फासीवाद हारने लगा है!

देश को जोड़ लें,दुनिया जोड़ लें,कोई अकेला भी नहीं है!

दाभोलकार,पनसारे और कलबुर्गी के हत्यारे,बाबरी विध्वंस,भोपाल गैस त्रासदी.देश विदेश दंगों और आतंकी हमलों,सिखों के नरसंहार,गुजरात के दंगों,सलवा जुड़ुम और आफस्पा,टोटल प्राइवेटेजाइशेन,टोटल विनिवेश,टोटल एफडीआी के सौदागर तमाम हारने लगे हैं,हमारा यकीन भी कीजिये।



जिनने इस महादेश को कुरुक्षेत्र के मैदान में तब्दील कर दिया जो धर्म कर्म के नाम असत्य और अधर्म,अहिंसा और भ्रातृत्व के बदले हिंसा और नरसंहार,विश्वबंधुत्व के बदले  हिंदुत्व का ग्लोबल एजंडा और भारत तीर्थ की विविधता,वैचित्र्य के बदले गैरहिंदुओं के सफाये से देश को हिंदू बनाने के उपक्रम से कृषि,व्यवसाय और उद्योगधंधों की हत्या करके विदेशी पूंजी और विदेशी हितों के दल्ला बनकर महान  भारत देश की हत्या का राजसूय यज्ञ का आयोजन कर रहे थे। बाबुलंद ऐलानिया जिहाद जो  छेड़े हुए थे राष्ट्र के विवेक,सत्य, अहिंसा,न्याय,शांति समानता के बदले समरस मृत्यु उत्सव के नंगे कार्निवाल में हर मनुष्य को बंधुआ कंबंध बनाने के लिए हिंदू राष्ट्र के नाम पर। अंध राष्ट्रवाद के उन्मादी मुक्तबाजारी आवाहन के साथ।गौर से देख लो भइये,उनके रथ के पहिये धंसने लगे हैं।


अरविंद केजरीवाल,आप हमारी सुन रहे हैं तो दिल्ली में तीनों महापालिकाओं के सफाई कर्मचारियों को न्याय दिलाने के लिए तुरंत पहल करें!आपके लिए ऐतिहासिक मौका है।देश की राजधानी में अछूतों और बहुजनों की सुनवाई नहीं है एकसौएक दिन के धरने और अब हड़ताल के बावजूद क्योंकि लोकतंत्र भी मूक वधिर है।

पलाश विश्वास

ताजा खबर है कि दिल्ली की तीनों नगर निगम के सफाई कर्मचारी आज से हड़ताल पर चले गए हैं। सफाई कर्मचारी सेलरी में बढ़ोतरी, समय पर सेलरी मिलना, एरियर, भत्ते, कैशलेस मेडिकल सुविधा जैसी 17 मांगो को लेकर हड़ताल पर गए हैं।


तीनों नगर-निगम के सफाई कर्मचारियों के हड़ताल पर जाने से दिल्ली में सफाई व्यवस्था बिगड़ सकती है और सड़कों पर कड़े के ढेर नजर आ सकते हैं। वहीं दूसरी तरफ सफाई कर्मचारियों का कहना है कि वह अपनी मांगों को लेकर 15 जुलाई से सिविक सेंटर के सामने धरने पर बैठे हैं लेकिन किसी ने उनकी सुध नहीं ली है। गौरतलब है कि जून 2015 में सफाई कर्मचारी हड़ताल पर गए थे उस दौरान दिल्ली की सड़कों पर गंदगी के ढेर लग गए थे।


ताजा खबर फिर दलित उत्पीड़न की है जो एक सिलसिला है अविराम।अनंत सिलसिला।इस मनुसमृति  नस्ली रंगभेदी राजकाज का रोजनामचा  है यह फासीवाद का आचरण है यह।


इसलिए रवींद्र के दलित विमर्श कर को चर्चा हो नहीं सकती क्योंकि रवींद्र अछूत है और रवींद्र साहित्य रवींद्र संगीत की लय बुद्धम् शरणमं गच्छामि के तहत भारत को भारत तीर्थ बनाती है जो न जाने कितनी मनुष्य धाराओं क समामहित करके सबसे बड़ा तीर्थस्तल है इंसानियत के इतिहास भूगोल का,राजकाज उस भारत तीर्थ के कातिलों के जिम्मे कर दिया हमने अपने जनादेश के जरिये।जनादेश का वह ब्रह्मास्त्र अब जनता वापस लेने लगी है।

मैदान छोड़ना नहीं, पीठ दिखाना नहीं, फासीवाद हारने लगा है!


ताजा खबर है कि  हरियाणा के फरीदाबाद जिले के एक गांव में अगड़ी जाति के दबंगों द्वारा एक दलित परिवार को जिंदा जलाने की घटना पर राजनीति के बीच आज गृह मंत्री का अहम बयान सामने आया है। गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने आज मीडिया से बात करते हुए कहा कि इस मामले को लेकर राजनीति की जा रही है जबकि इसपर वीके सिंह और केंद्रीय मंत्री किरण रिजिजू ने सफाई दे दी है। इधर, वीके सिंह के बयान के खिलाफ आम आदमी पार्टी ने आज पुलिस में शिकायत दर्ज करायी है। राजनाथ सिंह ने कहा कि मैं सत्ताधारी दल के नेता होने के कारण यह कहना चाहता हूं कि गंभीर मामलों में असंवेदशील बयान देने से हमें बचना चाहिए।


अरविंद केजरीवाल,आप हमारी सुन रहे हैं तो दिल्ली में तीनों महापालिकाओं के सफाई कर्मचारियों को न्याय दिलाने के लिए तुरंत पहल करें!आपके लिए ऐतिहासिक मौका है।देश की राजधानी में अछूतों और बहुजनों की सुनवाई नहीं है एकसौएक दिन के धरने और अब हड़ताल के बावजूद क्योंकि लोकतंत्र भी मूक वधिर है।


मैदान छोड़ना नहीं, पीठ दिखाना नहीं, फासीवाद हारने लगा है!


ऐसा पहलीबार नहीं कि यह देश या यह दुनिया फासीवाद के शिकंजे में है।हिटलर का किस्सा मशहूर है तो गौरतलब है कि इंदिराम्मा की बेमिसाल रहनुमाई और समाजवादी राजकाज का अंत भी फासीवादी विकल्प चुनने की ऐतिहासिक भूल की वजह से हुई।


इसी फासीवाद की वजह से देश लहूलुहान हुआ और आपरेशन ब्लू स्टार को भी अंजाम दिया फासीवाद ने जिसे तबभी मजहबी सियासत के झंडेवरदारों ने अपनी जमीन हिंदुत्व के पुनरूत्थान के लिए हर संभव मदद की और वह विभाजन से पहले बने हिंदुत्व के महागठबंधन की वापसी का नजारा है,जो आज दसों दिशाओं में कमल कमल लहालहा रहा है।


तब सिखों का संहार हुआ तो अब मुसलमान,दलित, पिछड़े और आदिवासी,हर गैरहिन्दू,हर गैरनस्ली अनार्य, द्रविड़, मंगोलियाड, आस्ट्रेलियाड निशाने पर हैं और उससे ज्यादा निशाने पर हैं इस कायनात की रहमतें,बरकतें,नियामते और हर दिल में गहराई तक पैठी मुहब्बत और अमनचैन की फिजां।


फासिज्म का यह जलजलाई जलवा कोई नया भी नहीं है और न यह बजरंगी तांडव कुछ नया नया है।


मैदान छोड़ना नहीं, पीठ दिखाना नहीं, फासीवाद हारने लगा है!



इस देश ने आपातकाल को महज दो साल में तोड़कर फिर लोकशाही की बहाली की और दुनिया की गोलबंदी ने हिटलर मुसोलिनी के अश्वमेधी फौजों को शिक्सत दी तो बिरंची बाबा का टायटैनिक अवतार की क्या हैसियत जो आजाद लबों के बोल,आजाद नागरिकों की चीखों की गूंज अनुगूंज को थाम लें!


अब तक जिनने भी फासीवादी तौरतरीके लोकतंत्र और संविधान के कत्ल के बाद खून से सने हाथों की सफाई बतौर तमाशे का रंगारंग मनोरंजक सेक्सी तिलिस्म बना दिया,वे सभी लोकप्रिय भी रहे हैं और जनादेश के धनी भी रहे हैं।


फिरभी कोई जनादेश अंतिम नहीं होता।हर हाल में फासीवाद की हार तय है।फिर वही किस्सा दोहराया जा रहा है।


मैदान छोड़ना नहीं, पीठ दिखाना नहीं, फासीवाद हारने लगा है!



वे हारने लगे हैं दोस्त,जिनने इस महादेश को कुरुक्षेत्र के मैदान में तब्दील कर दिया जो धर्म कर्म के नाम असत्य और अधर्म,अहिंसा और भ्रातृत्व के बदले हिंसा और नरसंहार,विश्वबंधुत्व के बदले  हिंदुत्व का ग्लोबल एजंडा और भारत तीर्थ की विविधता,वैचित्र्य के बदले गैरहिंदुओं के सफाये से देश को हिंदू बनाने के उपक्रम से कृषि,व्यवसाय और उद्योगधंधों की हत्या करके विदेशी पूंजी और विदेशी हितों के दल्ला बनकर महान  भारत देश की हत्या का राजसूय यज्ञ का आयोजन कर रहे थे।


दाभोलकार,पनसारे और कलबुर्गी के हत्यारे,बाबरी विध्वंस,भोपाल गैस त्रासदी.देश विदेश दंगों और आतंकी हमलों,सिखों के नरसंहार,गुजरात के दंगों,सलवा जुड़ुम और आफस्पा,टोटल प्राइवेटेजाइशेन,टोटल विनिवेश,टोटल एफडीआी के सौदागर तमाम हारने लगे हैं,हमारा यकीन भी कीजिये।


और बाबुलंद ऐलानिया जिहाद छेड़े हुए थे राष्ट्र के विवेक,सत्य, अहिंसा,न्याय,शांति समानता के बदले समरस मृत्यु उत्सव के नंगे कार्निवाल में हर मनुष्य को बंधुआ कंबंध बनाने के लिए हिंदू राष्ट्र के नाम पर अंध राष्ट्रवाद के उन्मादी मुक्तबाजारी आवाहन के साथ,गौर से देख लो भइये,उनके रथ के पहिये धंसने लगे हैं।



खबर है कि साहित्य अकादमी ने हारकर 150 देशों के लेखकों,कवियों,कलाकारों,संस्कृतिकर्मियों के गोलबंद हो जाने के बाद अकादमी अध्यक्ष विश्वनाथ तिवारी की रहनुमाई में पुरस्कार लौटाने वालों के खिलाफ अभूतपूर्व घृणा अभियान चलाने के बाद और दिल्ली में ही लेखकों कलाकारों रचनाकर्मियों के खिलाफ बजरंगी तांडव के मध्य झख मारकर सिर्फ कलबर्गी की ह्ताय की निंदा की है और लेखकों से पुरस्कार फिर ग्रहण कर लेने की अपील की है।

मैदान छोड़ना नहीं, पीठ दिखाना नहीं, फासीवाद हारने लगा है!

देश को जोड़ लें,दुनिया जोड़ लें,कोई अकेला भी नहीं है!

इंडियन एक्सप्रेस की ताजा रपट हैः

Sahitya Akademi condemns MM Kalburgi's murder, appeals to writers to take back awards

Sahitya Akademi condemns MM Kalburgi's murder, appeals to writers to take back awards

At least 35 writers including Nayantara Sahgal, Ashok Vajpeyi, Uday Prakash, Keki N Daruwallah, K Veerabhadrappa had returned their Akademi awards

  • Urdu poet Munawar Rana returns Akademi award

  • Akademi crisis has exposed leadership failure

  • लेखकों के प्रदर्शन के जवाब में जवाबी प्रदर्शन

  • नई दिल्ली : साहित्य अकादमी के खिलाफ लेखकों की शांतिपूर्ण मौन रैली के विरोध में लोगों के एक अन्य वर्ग ने जवाबी प्रदर्शन का आयोजन किया। उनका आरोप था कि लेखकों की पुरस्कार लौटाने की कार्रवाई 'उनके निहित स्वार्थों से प्रेरित' है और कहा कि साहित्य संगठन को 'दबाव' में नहीं आना चाहिए।

  • ज्वाइंट एक्शन ग्रुप ऑफ नेशनलिस्ट माइंडेड आर्टिस्ट्स एंड थिंकर्स, जनमत द्वारा प्रदर्शन का आयोजन किया गया। इसने अकादमी को एक ज्ञापन भी सौंपा और लेखकों की मंशा पर सवाल उठाए। इनका आरोप था कि इनमें से बहुत सारे लोगों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को जनादेश नहीं देने के लिए मतदाताओं से अपील की थी।

  • भाजपा की छात्र इकाई एबीवीपी के कार्यकर्ताओं ने भी प्रदर्शन में हिस्सा लिया। इसके साथ ही विभिन्न भाषाओं के लेखकों ने सफदर हाशमी मार्ग के श्री राम सेन्टर से साहित्य अकादमी भवन तक रैली निकाली। इनकी मांग थी कि लेखकों की अभिव्यक्ति की आजादी और विरोध प्रकट करने के अधिकार की रक्षा के लिए अकादमी द्वारा प्रस्ताव पारित किया जाए।

  • जनमत ने कहा, 'हम साहित्य अकादमी से अपील करते हैं कि वह अपना स्वायत्त स्वरूप बनाए रखे और उन कुछ लेखकों के दबाव में नहीं आए जो इससे पहले देश के लोगों से प्रधानमंत्री नरेन्द मोदी को जनादेश नहीं देने की अपील कर चुके हैं।'

  • ज्ञापन में कहा गया है, 'ये लोग किस चीज से असहमति जता रहे हैं? सचाई यह है कि उनके बीच में एक कवि है, जो साहित्य अकादमी के पद के लिए प्रयासरत थे और बुरी तरह विफल रहे। उनका सुझाव था कि अध्यक्ष पद के चुनाव कराने की बजाय इस पद पर नियुक्ति सीधे सरकार द्वारा होनी चाहिए।'

  • नचिमुतू ने कहा, 'हत्याओं की निन्दा करने के लिए सभी लेखक अपने सर्वसम्मत फैसले में साथ खड़े हैं।' 'बढ़ती असहिष्णुता' की निन्दा करने की लेखकों की मांग पर उन्होंने कहा, 'हां हमने उसका भी समाधान किया है।' उन्होंने कहा कि जल्द ही विस्तृत बयान जारी किया जाएगा।

  • अकादमी की बोर्ड बैठक 17 दिसंबर को होगी जहां पुरस्कार लौटाने से उत्पन्न स्थिति पर चर्चा होगी।

  • नयनतारा सहगल, अशोक वाजपेयी, उदय प्रकाश, केकी एन दारूवाला, के. वीरभद्रप्पा सहित कम से कम 35 लेखक अपने अकादमी पुरस्कार लौटा चुके हैं और पांच लेखकों ने साहित्यिक इकाई के अपने आधिकारिक पदों से इस्तीफा दे दिया था। इसके चलते अकादमी ने आज एक आपातकालीन बैठक की।

  • इससे पूर्व आज दिन में, अकादमी की बैठक से पहले लेखकों और उनके समर्थकों ने काली पट्टी बांधकर यहां एकजुटता मार्च आयोजित किया ।

  • एक दूसरे समूह ने प्रदर्शन के विरोध में यह कहते हुए जवाबी प्रदर्शन किया कि लेखकों का पुरस्कार लौटाना 'उनके निहित स्वार्थों से प्रेरित है' तथा साहित्य अकादमी को 'दबाव' के सामने झुकना नहीं चाहिए।

मैदान छोड़ना नहीं, पीठ दिखाना नहीं, फासीवाद हारने लगा है!

Kejriwal,do you hear me?

Please resolve the problems of Safai employees in Delhi as Indian Democracy has no ears for Untouchables, Bahujans!



নীলকন্ঠ পাখির খোঁজ নেই,তবু বিসর্জন!সুন্দরবনের সধবা বিধবা মেয়েদের প্রতি মুহুর্তে চলছে বিসর্জন নীলকন্ঠ পাখিদের ছাড়া!সেই সুন্দরবনকে ধ্বংস করে আমরা গড়ছি সভ্যতার উপনিবেশ!এই শাব হিউম্যান পৃথীবীতে গেদখল হারিয়ে যাওয়া মানুষদের কোনো ছিকানা নেই!ঝড় চলছে,ভুমিক্মপ হচ্ছে,সুনামী অব্যাহত!আমারা খবর রাখিনা!আত্মঘাতী বাঙালি ধ্বংস করছে সেই সুন্দরবন,সেই মহাঅরণ্য,যে জলপ্রলয় থেকে রক্ষা করছে আমাদের হাজারো বছর ধরে!মনুষত্য ও সভ্যতার জন্য এই ধ্ংস লীলা বন্ধ হোক!

Sundarbans - Wikipedia, the free encyclopedia

https://en.wikipedia.org/wiki/Sundarbans

The Sundarbans (Bengali: সুন্দরবন, Shundorbôn) is a natural region in the Bengal region comprising Eastern India and Bangladesh. It is the largest single block ..

https://youtu.be/Qo5lylo_bDY

Kejriwal reduced to MAHISHASUR calls for overhaul as Rape Tsunami continues



Rabindra Nath Tagore wrote about the lighthouse of this human civilization and complained that those who live in eternal darkness of untouchability,racist apartheid,they bear every burn,they bleed to ensure the light for us and we have no sympathy for those majority masses,the bahujan samaj.We never discussed this point.

কোথায় সেই ভারততীর্থ রবি ঠাকুরের?ধর্মোন্মাদী রাষ্ট্র ও সময়ে মহিষাসুরমর্দিনী  দশ প্রহরণ ধারিণী দুর্গে বধিছে অসুর!নীল কন্ঠ পাখী থাক না থাক,বিসর্জনের ডাক ঢাকের বোল,বোধন.দেবী দর্শন,প্যান্ডেল,থিম ঝাঁপিয়ে সেই স্বেচ্ছা মৃত্যু,আত্মধ্বংস,অমোঘ বিসর্জন।কালরাত্রির শেষ নেই।দুর্যোগের শষ নেই।


ঠাকুর থাকবে কতক্ষণ?


https://youtu.be/5RGJwv2F238

We,the activists of creativity from 150 nations stand Unitedto sustain Humanity and nature!

বাংলার সুশীল সমাজ 1857 সালে মহাবিদ্রোহে সুশীল বালক ছিল!

তাঁরা চুয়াড় বিদ্রোহ,সন্যাসী বিদ্রোহ,নীল বিদ্রোহ,সাঁওতাল মুন্ডা ভীল বিদ্রোহের সমর্থনে দাঁড়াননি!তাঁরা চিরকালই শাসক শ্রেণীর অন্তর্ভুক্ত!

আজও তাঁরা নিরুত্তাপ!প্রতিবাদ করবেন কিন্তু সম্মান পুরস্কার ফেরত নৈব নৈব চ!শুধু এই শারদে মন্দাক্রান্তা বাংলার মুখ!ভালোবাসার মুখ!

সারা বিশ্বের শিল্প সাহিত্য সংস্কৃতির দায়বদ্ধতার মুখ!ভালোবাসা!


This ultimate passion to sustain humanity is the basic resource, original inspiration of poetry and poetic justice is all about the eternal call of equality, truth, pluralism, diversity and humanity!

https://youtu.be/FiEACpJo54w

মন্ত্রহীণ,ব্রাত্য,জাতিহারা রবীন্দ্র,রবীন্দ্র সঙ্গীত!









https://youtu.be/I-ST7ysPnxc


अछूत रवींद्रनाथ का दलित विमर्श


Out caste Tagore Poetry is all about Universal Brotherhood which makes India the greatest ever Ocean which merges so many streams of Humanity!

आप हमारा गला भले काट दो,सर कलम कर दो लब आजाद रहेंगे! क्योंकि हिटलर के राजकाज में भी जर्मनी के संस्कृतिकर्मी भी प्रतिरोध के मोर्चे पर लामबंद सर कटवाने को तैयार थे।जो भी सर कटवाने को हमारे कारवां में शामिल होने को तैयार हैं,अपने मोर्चे पर उनका स्वागत है।स्वागत है।


Samrat Ashok tried his best to create a world of universal fraternity,the Mulk of Insaniayat and so that he sent his son and daughter to communicate the humanity worldwide the Message of truth,peace,nonviolence an Panchseel which is all about the Mission of Lord Buddha.


Coincidentally,every major poem written by Tagore ends into the ultimate cry;BUDDHAM SHRANAM GACHHAMI!


সেই কালরাত্রি ব্যাপিছে আকাশ বাতাস,এই রকেট ক্যাপসুল নিবেদিত সত্যি,বড় দুর্গার শারদোত্সব,সেই অমোঘ দর্যোগের অবসর নেই,যে কালরাত্রিতে কালরাত্রিতে সর্বজয়ার মাতৃত্বে বজ্রাঘাত করে দুর্গা ভাই অপুকে একলা ছেড়ে চলে গেল চিরকালের মত।সব মায়েদের বোনেদের মত দুর্গা বাপের বাড়ি ফেরে নাই।ফিরিবে না কোনো কাল।অপূু চিরকালই একা।সেই দিদি নেই,সেই কাশফুল নেই,সেই বোড়াল নেই,সেই কু ঝিকঝিক ট্রেন নেই,আকাশে সেই ইন্দ্রধনু নেই,নেই গ্রাম,চাষ আবাদ,শিল্প বাণিজ্য।আমরা নাগরিক,গ্রাম হারিয়ে গেছে।নীলকন্ঠ পাখি নিঃখোজ।ব্যবাসা বামিজ্য সবই পুজো,সত্যি, বড় দুর্গার পুজো।সত্যজিতের দেবীর মত মায়েরা বোনেরা দেবী হয়েও বিসর্জনে নিবেদিত যেমন রামরাজত্যে মর্যাদা পুরুষোত্তম শ্রী রামচন্দ্র সরযু নদীতে স্বেচ্ছা বিসর্জনে নিবেদিত ও বনবাসঅন্তে সীতার পাতালগমন।

পথের পাঁচালি বা আরণ্যক আর লেখা হবে না।ফিরবে না রবীন্দ্রনাথ,নজরুল,সুকান্ত,নেতাজি,সত্যজিত,বিভুতিভূষণ,শরত ও দুর্গা।চারিদিকে শ্মশান।সীমেন্টের এই জঙ্গলে ,শিল্পায়ণে ভূমি অধিগ্রহণে,নলেজ ইকোনোমী,চোচাল প্রাইভেটাইজেশনে,হাউসিং হেল্থ হাবের উন্নয়ণে মহানগরের গ্রাসে গ্রাম বাংলা।


মনুষ্যতা,পরিবার,সমাজ,সভ্যতা,ধর্ম কর্ম,ব্যবসা বাণিজ্য, শিল্প, পবিত্রতা,নৈতিকতা,মা ছিলে,বাপ মেয়ে,ভাই বোনের কর্ত সম্পর্ক সবকিছুর উপরে রকেটক্যাপসুল নিবেদিত শারদোত্সব।

বাংলায় এখন মহিষাসুর বধ চলছে!তবু ভালো,এখনো গৌরিকায়ণের কুরুক্ষেত্র থেকে এখনো বাংলা বহুদুরে!আল্লাহো আকবর ও পাল্টা হর হর মহাদেবের প্রলয়ন্কর আবাহন দেবীর বোধন সত্যি বড় দুর্গার মত বিপর্যয় ডেকে আনতে পারে যে কোনো সময়,যেহেতু দাবানলের মত মনুস্মৃতি শাসনের জিহ্বা সারা দেশ গ্রাস করেছে! সেই দাবানল প্রতিহত করার কোনো দায়বদ্ধতা নন্দীগ্রাম সিঙ্গুর খ্যাত পৃথীবী বিখ্যাত বাংলার সুশীল সমাজের নেই!সারা পৃথীবীর এক শো পন্চাশটি দেশের লেখক কবি শিল্পীদের মধ্যে বাংলার শুধু একজন,সে আমাদের মন্দাক্রান্তা!

Gopal Rathi's photo.

কমরেড,এই আমাদের দেশ,সোনা দিয়ে বাঁধিয়ে রাখুন পুরস্কার সম্মান, মিছিলে হাঁটলেই হিটলার পরাজিত হবে!

Times of India reports:

The special sanitation drive started by municipal corporations as part of the Centre's Swachh Bharat Abhiyan is going to get severely affected as 27 safai karamchari unions have decided to go on strike until their demands are met.


Garbage dumps are expected to start overflowing as Dussehra has just ended and immersion of idols is going to begin from Friday. With Diwali round the corner, the fate of the city now lies in the hands of sanitation workers.


This is the first time when workers across the capital are going on strike. During the last two times, only safai karamcharis of East Corporation stopped work after they didn't receive their salary for several months. In June, east Delhi witnessed a severe sanitation crisis which resulted in dumping up of 15,000 tonnes of garbage on main roads.


The workers want regularisation of contractual workers, timely payment of salary and release of arrears and issuance of medical cards. They claim that their day-to-day life is getting affected and a majority of them are battling a severe financial crisis. There are around 57,000 sanitation workers across the city and most have decided to join the strike.


"Many karamcharis have been working from the past 15 years, but they are yet to be made permanent employees. Arrears of Rs 5-6 lakh for each worker has resulted in a financial crunch for them. The corporations blame Delhi government for not releasing funds on time. Even the state has not paid heed to our demands. We will resume work only when our demands are fulfilled," said Sanjay Gehlot, president of Swatantra Majdoor Vikas Sanyukt Morcha.



However, Subhash Arya, mayor of South Corporation claimed they cannot regularise contractual workers. "Delhi government should make a new provision for regularisation of contractual workers as the corporation does not hold that power. We haven't cleared the arrears as South Corporation is yet to receive Rs 979 crore from the government," he said.


The three mayors will be meeting chief minister Arvind Kejriwal on Friday evening to discuss the issue. "We are helpless right now due to shortage of funds. We expect to come up with a solution after our meeting with the CM," said Ravinder Gupta, mayor of North Corporation. The three municipal commissioners are also going to hold a meeting with the karamchari unions on Friday to discuss the issue.


Harsh Malhotra, mayor of East Corporation claimed that post trifurcation they haven't been able to generate sufficient revenue. To clear the arrears alone they require Rs 200 crore.

http://timesofindia.indiatimes.com/city/delhi/Sanitation-staff-on-strike-all-over-city/articleshow/49497903.cms

It is an official report by Geological Susvey of India.Just read:

Endangered Sundarbans - Geological Survey of India

www.portal.gsi.gov.in/.../GSI_STAT_SUNDERBAN_ENDANGERED_S...

Nearly half of the 102 Sundarban islands in India spreading over 9.5 sq km area ... on the Sundarbans, could lead to the destruction of 75% of the Sundarbans ...


Sea level rise & Global warming: A serious concern of modern mankind and its environs specially in coast-bound countries is the rising sea level accentuated by global worming. India is amongst 27 countries that are most vulnerable to sea level rise caused by global warming. One meter rise of sea level is expected to inundate about 1000 sq km area of the Sundarban deltas. Nearly half of the 102 Sundarban islands in India spreading over 9.5 sq km area are uninhabited due to an abnormal rise in the sea level and massive erosion in the last four decades. About a fifth of the southern part of this delta complex, the heart of the Tiger Reserve, is already submerged. At the current rate of erosion a loss of 15% of farmlands and >250 sq km of the National Park in the next two decades is expected. Agricultural yield too has been falling because of rising salinity of the water and soil. The Sagar Island is being submerged by the rising sea. The Bedford and Lohachara islands are vanishing and have already displaced thousand of climatic refugees who reclaimed mangrove forest following ruthless deforestation. Growing list of rare and highly endangered floral and faunal species of Sundarbans is attributable to these effects. A 2007 report by UNESCO, "Case Studies on Climate Change and World Heritage" has stated that an anthropogenic 45-cm rise in sea level (likely by the end of the 21st Century, according to the Intergovernmental Panel on Climate Change), combined with other forms of anthropogenic stress on the Sundarbans, could lead to the destruction of 75% of the Sundarbans mangroves.






Evidence of ecospace shortage for endobenthic bivalves & gastropods riding over the mangrove trees, Bakkhali creeks







Exposed mangrove roots as sign of beach erosion and retreating mangrove line, Bakkhali






sundarban

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Eroding older dunes along the Bakkhali beach

Exposed older mudflat in the intertidal beach as evidence of coastal erosion at Frazergunj



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Biogenic mud volcanoes produced by mud-loving Uca as sign of unstable beach, Bakkhali

Exposed palaeo-woodground in the Bakkhali beach as hard evidence of rising sea







  • Growing human population and cross-border migration

  • Growing livestock population

  • Conflicts over ecospace gain - Growing shortage of wildlife ecospace in Sundarbans is due to spread in anthropological activities. During the last 15 years 111 persons (male 83, female 28) became victims of animal attacks, viz, tiger (82%), crocodile (10.8%) and shark (7.2%) of which 73.9% died. About 94.5% cases the conflict took place in and around the Sundarban Reserve Forest during livelihood activities.

  • Encroachment of land and water

  • Grazing deep in to wildlife habitats- As the mangrove forest of Sundarbans Tiger Reserve is bounded all through its periphery by streams and creeks, there is no problem of cattle grazing within the reserve.

  • Poaching of fauna and flora




Extinct Species: Hog deer (Axis porcinus), water buffalo (Bubalus bubalis) , swamp deer (Cervus duvauceli) , Javan rhinoceros (Rhinoceros sondaicus) , single horned rhinoceros (Rhinoceros unicornis) and the mugger crocodile (Crocodylus palustris) have become extinct in the Sundarbans at the beginning of the last century




Endangered Species: Two amphibians, 14 reptiles, 25 aves and five mammals are presently endangered. The endangered species that lives within the Sundarbans are Royal Bengal Tiger, estuarine crocodile, river terrapin (Batagur baska), olive ridley turtle, Gangetic dolphin, ground turtle, hawks bill turtle and King crab (Horse shoe).Two amphibians, 14 reptiles, 25 aves and five mammals are presently endangered. The endangered species that lives within the Sundarbans are Royal Bengal Tiger, estuarine crocodile, river terrapin (Batagur baska), olive ridley turtle, Gangetic dolphin, ground turtle, hawks bill turtle and King crab (Horse shoe).




Sundarban Eco-development in progress:

  1. Excavation of rain water irrigation channel to increase agricultural production.

  2. Provision of pisciculture ponds in the buffer area managed by village co-operative for prawns and sweet water fish.

  3. Provision of Solar lights in the villages

  4. Provision of smokeless chullahs and alternative fuel to save wood consumption.

  5. Raising mangrove plantations on the periphery to meet local fuel wood demand.

  6. Provision of medical care facilities to the villagers and wildlife.




Cyclone Aila hits Sunderbans: Formed on 23 May 2009; Highest winds 120km/hr; Lowest pressure 968hPa(mbar); fatalities- 330 total, >8202 missing; damage >$40.7 million; areas affected- India & Bangladesh including Sundarbans; this region housing 265 of the endangered Bengal Tiger was inundated with 2.4 m of water and dozens of tiger were feared dead along with deer and crocodiles. Large mangrove trees in hundreds were uprooted.






Origin and course of cyclone Aila across the Sundarbans






http://www.portal.gsi.gov.in/portal/page?_pageid=127,723790&_dad=portal&_schema=PORTAL&linkId=1216

The Biggest Mangrove Forest in the World Is About to Be ...

motherboard.vice.com/.../coal-power-is-driving-the-destruction-of-the-bi...

Nov 1, 2013 - The Biggest Mangrove Forest in the World Is About to Be Destroyed by ... The Sundarbans is a particularly impoverished region, too, and it's ...

Sundarbans mangroves - Encyclopedia of Earth

www.eoearth.org/view/article/156339/

May 8, 2014 - The Sundarbans mangroves ecoregion is the world's largest ... rains and frequent devastating cyclones that cause widespread destruction.

The causes of deterioration of Sundarban mangrove forest ...

www.researchgate.net/.../46574886_The_causes_of_deterioration_of_Su...

The Sundarban forest, located in the southwest of Bangladesh, is one of the largestcontinuous blocks of mangrove forests in the world. This mangrove forest ...

SILENT CRY OF THE SUNDARBANS | The Daily Star

www.thedailystar.net/silent-cry-of-the-sundarbans-56871

Dec 26, 2014 - Amir Hussain, chief forest official of the Sundarbans in Bangladesh, ... The oil spill has destroyed the food cycle of the Sundarbans killing many ...

Sundarbans - Wikipedia, the free encyclopedia

https://en.wikipedia.org/wiki/Sundarbans

The Sundarbans National Park is a National Park, Tiger Reserve, and a Biosphere ..... could lead to the destruction of 75 percent of the Sundarbans mangroves.

Satellite Photo: Destruction of the Mangrove Forest of the ...

www.climatechangenews.com/.../satellite-photo-destruction-of-the-mang...

Feb 15, 2012 - Sundarbans, Bangladesh – India. This satellite image shows the Bay of Bengal where the rivers Ganges, Brahmapoutre and Meghna meet the ...

Sundarbans on brink of destruction (11-06-2015) - YouTube

▶ 1:21

www.youtube.com/watch?v=CBcxhwWj2CY

Jun 11, 2015 - Uploaded by The Independent, Bangladesh (Online)

Sundarbans on brink of destruction (11-06-2015). The Independent, Bangladesh (Online ...

How Royal Bengal tigers are saving millions from destruction

www.christiantoday.com/article/india.how...destruction.../52538.htm

Apr 23, 2015 - The region, the Sundarbans, is home to some four million people but the sea, its level rising because of climate change, is steadily reclaiming ...

Bangladesh government defends the destruction of ...

https://plus.google.com/.../posts/5B6P1bjhQ5G

Amalendu Upadhyaya

Dec 17, 2014 - Bangladesh government defends the destruction of Mangrove forest Sundarbans and echoes India`s Corporate governance which is all set to kill the green top ...

Humanity is under unprecedented threat! Gujarati model of ...

https://plus.google.com/.../posts/DyQPrymFiB8

May 13, 2015 - Humanity is under unprecedented threat! Gujarati model ofdestructive growth of ethnic cleansing might not spare India Incs or the Himalayas or the Sundarbans or ...

See the edit in Bangladesh mainstream daily!


উগ্র হিন্দুত্ববাদের উত্থান ভারতকে বিশ্বের মাঝে কালিমালিপ্ত করছে

মোহাম্মদ আবদুল গফুর : যদি কাউকে প্রশ্ন করা হয় পৃথিবীতে হিন্দু-অধ্যুষিত বৃহত্তম দেশ কোনটি সকলেই আঙ্গুলি উঁচিয়ে দেবে ভারতের দিকে। কিন্তু অত্যন্ত আশ্চর্যের বিষয় এই বৃহত্তম হিন্দু-অধ্যুষিত দেশটির স্বরাষ্ট্র মন্ত্রণালয়ের পক্ষ থেকে সম্প্রতি জানানো হয়েছে হিন্দু শব্দের অর্থ ও সংজ্ঞা তাদের জানা নেই। তথ্য অধিকার আইনের আওতায় সম্প্রতি ভারতের মধ্য প্রদেশের নীমাচ জেলার বাসিন্দা চন্দ্রশেখর গৌড় ভারতীয় সংবিধান ও আইন অনুসারে হিন্দু শব্দটির অর্থ ও সংজ্ঞা জানতে চাওয়ায় তার জবাবে ভারতের কেন্দ্রীয় স্বরাষ্ট্র মন্ত্রণালয়ের পক্ষ থেকে প্রশ্নকর্তাকে নিরাশ করে দিয়ে জানানো হয়েছে যে, এ ব্যাপারে তাদের কাছে কোন তথ্যই নেই।হিন্দু শব্দের ব্যুৎপত্তিগত অর্থ বা সংজ্ঞা সম্পর্কে ভারতীয় স্বরাষ্ট্র মন্ত্রণালয়ের কাছে কোন তথ্য না থাকলেও এই শব্দের বাস্তব প্রয়োগ যারা করেন অথবা সে প্রয়োগের যারা শিকার হন, এ শব্দের অর্থ বুঝতে তাদের কোন অসুবিধা যে হয় না, ভারতের ইতিহাসই তার প্রমাণ। একটি উগ্রহিন্দুত্ববাদী দল সম্প্রতি ক্ষমতায় অধিষ্ঠিত থাকার সুবাদে ভারতের সাম্প্রদায়িক অসহিষ্ণুতা এবং তার পাশাপাশি সাম্প্রদায়িক সংঘাত যে ক্রমেই বেড়ে চলেছে, তার খবর পত্রিকা খুললেই দেখতে পাওয়া যায়।ভারতে যেমন হিন্দুরা সংখ্যাগুরু জনগোষ্ঠী, তেমনি মুসলমানও বাস করেন অনেক। শুধু এটুকু বললেই যথেষ্ট হবে যে, ভারতে বসবাসকারী মুসলমান জনসংখ্যা পৃথিবীর অনেক মুসলিম সেদেশে অধ্যুষিত দেশের জনসংখ্যার চেয়েও বেশি। সে নিরিখে একটি আধুনিক গণতান্ত্রিক রাষ্ট্র হিসেবে ভারতের বৃহত্তম সংখ্যালঘু জনগোষ্ঠী মুসলমানদের ধর্মীয় অনুষ্ঠানাদি পালনের ব্যাপারে স্বাধীনতা থাকার কথা। কিন্তু সম্প্রতি পবিত্র ঈদুল আজহা পালন নিয়ে মুসলমানদের যে দুর্ভোগের শিকার হতে হয়েছে, তাতে ভারতে রাষ্ট্রীয় নেতৃত্বে অধিষ্ঠিত ব্যক্তিদের লজ্জায় মাথা হেট হয়ে যাওয়ার কথা। সবাই জানেন, পবিত্র ঈদুল আজহা উপলক্ষে গরু, মহিষ, ছাগল বা দুম্বা কোরবানি দেয়ার বিধান রয়েছে। তবে যেহেতু একটা মহিষ বা গরু সাতজন এক সাথে কোরবানি দেয়া সম্ভব। তাই মুসলমানদের পক্ষে সাধারণত সাত জন মিলে একটি মহিষ বা গরু কোরবানি দেয়াই সহজ হয়। এবার উগ্র হিন্দুত্ববাদী রাজনৈতিক দল ক্ষমতায় অধিষ্ঠিত থাকার সুবাদে গরু কোরবানির গুজব ছড়িয়ে কোথাও কোথাও মুসলমান মহিষ কোরবানিদাতাকে হামলা চালিয়ে হত্যা করা হয় ভারতে। আরো দুঃখের বিষয় কোরবানির মধ্যেই ভারতে উগ্র হিন্দুত্ববাদীদের সাম্প্রদায়িক জিঘাংসা সীমাবদ্ধ থাকেনি।ভারতে সাম্প্রদায়িক অসহিষ্ণুতা কীভাবে বেড়ে চলেছে, তার একটি চিত্র পাঠকদের সামনে তুলে ধরা হল গত ১৩ অক্টোবরের দৈনিক কালের কণ্ঠ পত্রিকায় প্রকাশিত একটি প্রতিবেদন থেকে- ওই প্রতিবেদনে বলা হয় ভারতে বেশ কিছুদিন ধরে চলমান সাম্প্রদায়িক অসহিষ্ণুতার চেহারা আরো কদর্য হয়ে উঠেছে। গরু কাটার মিথ্যা অভিযোগে পিটিয়ে হত্যা ও ভাঙচুর এবং মুম্বাইতে পাকিস্তানী গায়ক গুলাম আলীর কনসার্ট বাতিলের মতো বিষয়গুলো শেষে এবার শিবসেনারা কালি মাখিয়ে দিয়েছে ক্ষমতাসীন বিজেপির এক সাবেক উপদেষ্টার মুখে। তাঁর দোষ ছিল পাকিস্তানের সাবেক পররাষ্ট্রমন্ত্রী খুরশিদ মাহমুদ কাসুরির একটি বই প্রকাশ অনুষ্ঠানের আয়োজন করেছিলেন তিনি।ভারতে বর্তমান ক্ষমতাসীন দল থাকার সুবাদে সাম্প্রদায়িক অসহিষ্ণুতার এই উত্থানকে সে দেশের সবাই যে মেনে নিয়েছেন তা নয়। বিশেষত, সাহিত্য-সংস্কৃতি জগতের কীর্তিমান ব্যক্তিদের অনেকের মধ্যে এর তীব্র প্রতিক্রিয়া দেখা দিয়েছে। এই উগ্র সাম্প্রদায়িক অসহিষ্ণুতার বিরুদ্ধে প্রতিবাদ জানাতে গিয়ে অনেকেই ভারত সরকারের কাছ থেকে পাওয়া তাদের পুরস্কার ফেরৎ দিয়েছেন। এই অবাঞ্ছিত পরিস্থিতির প্রেক্ষাপটে ভারত সরকারের সাহিত্য একাডেমি পুরস্কার ফিরিয়ে দেয়া লেখক-সাহিত্যিকদের তালিকা ক্রমেই বেড়ে চলেছে। এই প্রতিবাদী লেখকদের সঙ্গে সংহতি প্রকাশ করেছেন পুলিৎজার পুরস্কার বিজয়ী লেখক সালমান রুশদী। ভারতীয় বংশোদ্ভূত ব্রিটিশ লেখক সালমান রুশদী এক টুইট বার্তায় বলেছেন সাহিত্য একাডেমির ভূমিকার বিরুদ্ধে প্রতিবাদকারী নয়নতারা শাহলালসহ অন্যদের প্রতি আমি সমর্থন জানাচ্ছি। ভারতে বাক স্বাধীনতার জন্য এখন এ এক ভীতিকর সময়। এখানে উল্লেখযোগ্য যে, ৮৮ বছর বয়সী শাহলাল জওহরলাল নেহরুর ভাইঝি। তিনিই সর্বপ্রথম ভারত সরকারের সম্মানজনক এ পুরস্কার প্রত্যাখ্যান করেন। সম্প্রতি এ পুরস্কার প্রত্যাখ্যান করেন কাশ্মীরি লেখক গোলাম নবী খায়াল, উর্দু ভাষার ঔপন্যাসিক রাহমান আব্বাস এবং কানাডা লেখক অনুবাদক শ্রীনাথ ডিএম। খায়াল ও শ্রীনাথের সাথে আরো যোগ দিয়েছেন হিন্দি লেখক মঙ্গলেস দাবাল ও রাজেস জোশি ভারতের সাম্প্রদায়িক পরিস্থিতি নিয়ে ক্রমবর্ধমান বিক্ষোভের প্রতিও সমর্থন জানান তারা।ভারতে ক্রমবর্ধমান সাম্প্রদায়িক অসষ্ণিুতার বিরুদ্ধে সাহিত্য-সংস্কৃতি অঞ্চলের প্রতিক্রিয়া এখানেই শেষ নয়। পাঞ্জাবী লেখক ওয়ারিয়াস এবং কানাড়ী অনুবাদক রাঙ্গারাখা রাও বলেছেন, তারা ইতিমধ্যেই পুরস্কার ফেরৎ দেয়ার নীতিগত সিদ্ধান্ত নিয়েছে। এই নিয়ে মোট ১৬ জন লেখক সাহিত্যিক এরকম সিদ্ধান্ত গ্রহণ করেছেন। একজন কাশ্মীরি লেখক বলেছেন, দেশের সংখ্যালঘু সম্প্রদায় নিরাপত্তাহীনতায় ভুগছে। তারা হুমকির মুখে রয়েছে। তাদের ভবিষ্যৎ অন্ধকার। সাম্প্রদায়িক বিষবাষ্প সারা দেশে ছড়িয়ে পড়েছে। মানুষের মধ্যে বিভক্তি বাড়ছে। তিনি পুরস্কারের অর্থ ও পদক শীঘ্রই ফিরিয়ে দেবেন।এদিকে উর্দু কবি রাহমান আব্বাস বলেছেন, দাদরির ঘটনার (গরুর মাংস খাওয়ার গুজব রটিয়ে এক ব্যক্তিকে হত্যা) পর উর্দু লেখকদের মধ্যে এক ধরনের অসন্তোষ বিরাজ করছে। এঘটনায় প্রবল সমালোচনার মুখে থাকা সাহিত্য একাডেমি আগামী ২৩ অক্টোবর নির্বাহী বোর্ডের সভা আহ্বান করেছে।সাহিত্য একাডেমির সভাপতি বিশ্বনাথ প্রসাদ তিওয়ারী বলেছেন, ভারতীয় সংবিধান অনুসারে ধর্মনিরপেক্ষতার যে নীতি রয়েছে তার প্রতি একাডেমি পুনর্বার দৃঢ় আস্থা ব্যক্ত করবে। তবে উগ্র হিন্দুত্ববাদী সরকার ক্ষমতাসীন থাকার সুবাদে যেভাবে সাম্প্রদায়িক অসহিষ্ণুতা দ্রুত সর্বত্র ছড়িয়ে পড়ছে, সে পরিস্থিতি সামাল দিতে ভারতের বর্তমান সরকার কতটা আগ্রহ ও সাহস প্রদর্শন করতে পারবে তা বুঝা যাবে আগামী দিনগুলোতে। ভারতের বর্তমান কেন্দ্রীয় সরকারের অন্যতম সমর্থক উগ্র শিবসেনা দলটি এরই মধ্যে এমন এক ঘটনা ঘটিয়েছে, যা ভারতের সংবিধানে উল্লেখিত ধর্মনিরপেক্ষতার নীতিকে প্রায় অসম্ভব করে তুলেছে। মুম্বাই শহরে পাকিস্তানের সাবেক পররাষ্ট্রমন্ত্রী খুরশীদ মাহমুদ কাসুরির বই প্রকাশ অনুষ্ঠানের আয়োজন করেছিলেন সুধীন্দ্র কুলকার্নি। এই কুলকার্নি একদা বিজেপির অন্যতম উপদেষ্টা ছিলেন। সেই অতীতের ভরসায়ই সম্ভবত তিনি পাকিস্তানের মন্ত্রীর বই প্রকাশ অনুষ্ঠানের আয়োজন করতে সাহস করেছিলেন। কিন্তু বাস্তবে দেখা গেল, তার ধারণা অমূলক প্রমাণিত হয়। খুরশিদ আহমদ কাসুরির বই প্রকাশ অনুষ্ঠানের আয়োজন করার অপরাধে শিবসেনার কর্মী সমর্থকরা সুধীন্দ্র কুলকার্নির মুখে কালি ছিটিয়ে দেয়।গত মঙ্গলবার ঢাকার একটি বাংলা দৈনিক পত্রিকায় কাসুরীর পাশে বসা কুলকার্নির এই কালি মাখা ছবি দেখায় সৌভাগ্য অনেকের হয়ে থাকবে। প্রশ্ন হচ্ছে- সুধীন্দ্র কুলকার্নির মুখে কালি ছিটিয়ে শিবসেনার কর্মী সমর্থকরা আসলে কাকে কালিমালিপ্ত করেছে? এই ন্যক্কারজনক ঘটনার দ্বারা শিবসেনা কি তাদের উগ্র সাম্প্রদায়িক চরিত্রকেই সকলের সামনে নতুন করে উন্মোচন করে তোলেনি? এই ঘটনার দ্বারা শিবসেনা কী সুধীন্দ্র কুলকুর্নিকে নয়, খোদ ভারতকেই কালিমালিপ্ত করে দেয়নি? অথচ এই ভারতের প্রধানমন্ত্রী শিবসেনার অন্যতম পৃষ্ঠপোষক খোদ নরেন্দ্র মোদি ভারত বৃহত্তম গণতান্ত্রিক দেশ, এই দাবিতে এই সেদিনও ভারতকে জাতিসংঘের নিরাপত্তা পরিষদের স্থায়ী সদস্য করার স্বপক্ষে কতই না ওকালতি করেছেন?একদিকে গণতান্ত্রিক রাজনীতির গৌরব অন্যদিকে সাম্প্রদায়িক অসহিষ্ণুতার কলঙ্ক এ দুইয়ের মধ্যে কোনটিকে ভারতের নেতৃবৃন্দ বেছে নেবেন, তা তাদেরই ঠিক করতে হবে। গণতান্ত্রিক মূল্যবোধের সাথে কখনও সাম্প্রদায়িক বিদ্বেষের সহাবস্থান হতে পারে না। দেশে সাম্প্রদায়িক সম্প্রীতি কিভাবে বজায় রাখতে হয়, তা প্রতিবেশী বাংলাদেশ থেকেও ভারতের শেখার রয়েছে বলে আমরা বিশ্বাস করি। একটি দেশ শুধু আকার-আয়তনে ও জনসংখ্যার আধিক্যের বিচারেই বড় হয়ে উঠতে পারে না। বড় দেশ বলে পরিচিত হতে হলে মন-মানসিকতার ক্ষেত্রে ও বড় হতে হবে। এজন্য মানবিকতা ও বিশ্বজনীনতার চর্চা বাড়াতে হবে, আকারের বিশাল জনগোষ্ঠীর দেশ এবং রাজনৈতিক ক্ষেত্রে নিয়মিত নির্বাচনের নীতি অব্যাহত থাকা সত্ত্বেও সাম্প্রদায়িক বিদ্বেষ ও জাত-পাতের বৈষম্যের কারণে ভারতের এখনও প্রকৃত সভ্য দেশ হিসেবে পরিগণিত হওয়ার অনেক বাকি, এ নির্মম সত্যটা ভারতীয় নেতৃবৃন্দের গভীরভাবে উপলব্ধি করতে হবে। - See more at: http://www.dailyinqilab.com/details/34962/%E0%A6%89%E0%A6%97%E0%A7%8D%E0%A6%B0-%E0%A6%B9%E0%A6%BF%E0%A6%A8%E0%A7%8D%E0%A6%A6%E0%A7%81%E0%A6%A4%E0%A7%8D%E0%A6%AC%E0%A6%AC%E0%A6%BE%E0%A6%A6%E0%A7%87%E0%A6%B0-%E0%A6%89%E0%A6%A4%E0%A7%8D%E0%A6%A5%E0%A6%BE%E0%A6%A8-%E0%A6%AD%E0%A6%BE%E0%A6%B0%E0%A6%A4%E0%A6%95%E0%A7%87-%E0%A6%AC%E0%A6%BF%E0%A6%B6%E0%A7%8D%E0%A6%AC%E0%A7%87%E0%A6%B0-%E0%A6%AE%E0%A6%BE%E0%A6%9D%E0%A7%87-%E0%A6%95%E0%A6%BE%E0%A6%B2%E0%A6%BF%E0%A6%AE%E0%A6%BE%E0%A6%B2%E0%A6%BF%E0%A6%AA%E0%A7%8D%E0%A6%A4-%E0%A6%95%E0%A6%B0%E0%A6%9B%E0%A7%87#sthash.Lo9pXJeU.dpuf


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