Thursday, October 29, 2015

पद्मभूषण लौटाया शीर्ष वैज्ञानिक ने और इतिहास भी मुखर है! मोदी के खिलाफ अब 53 इतिहासकारों ने खोला मोर्चा, वैज्ञानिक भी हुए शामिल! https://youtu.be/_Um30X9pECM कारवां लगातार लंबा हो रहा है हमारा ,आप तय करें कि किस तरफ हैं आखिर आप! अब भारतीय जनता को तय करना है कि यह केसरिया आपातकाल कब तक जारी रहना है। राष्ट्र के विवेक ने इंदिरा को भी माफ नहीं किया,राष्ट्र के उस विवेक से थोड़ा डरा भी कीजिये! छात्र युवाशक्ति मुक्तबाजारी चकाचौंध से मोहमुक्त होकर आरक्षण विवाद और अस्मिता चक्रव्यूह के आर पार तेजी से गोलबंद हो रही है और देश ही नहीं, दुनियाभर की मेधा भारत को गधों का चारागाह बनने देने की रियायत देने से इंकार कर रहे हैं। पलाश विश्वास


पद्मभूषण लौटाया शीर्ष वैज्ञानिक ने और इतिहास भी मुखर है!

मोदी के खिलाफ अब 53 इतिहासकारों ने खोला मोर्चा, वैज्ञानिक भी हुए शामिल!

https://youtu.be/_Um30X9pECM



कारवां लगातार लंबा हो रहा है हमारा ,आप तय करें कि किस तरफ हैं आखिर आप!





अब भारतीय जनता को तय करना है कि यह केसरिया आपातकाल कब तक जारी रहना है।


राष्ट्र के विवेक ने इंदिरा को भी माफ नहीं किया,राष्ट्र के उस विवेक से थोड़ा डरा भी कीजिये!


छात्र युवाशक्ति मुक्तबाजारी चकाचौंध से मोहमुक्त होकर आरक्षण विवाद और अस्मिता चक्रव्यूह के आर पार तेजी से गोलबंद हो रही है और देश ही नहीं, दुनियाभर की मेधा भारत को गधों का चारागाह बनने देने की रियायत देने से इंकार कर रहे हैं।




पलाश विश्वास

वैज्ञानिक पीएम भार्गव लौटाएंगे पद्म पुरस्कार, बोले- लोकतंत्र के रास्ते से दूर जा रही है मोदी सरकार

फोटो सौजन्‍य: एएनआई ट्वीटर



पद्मभूषण लौटाया वैज्ञानिक और इतिहास भी मुखर है!


'असहिष्णुता के माहौल' के खिलाफ बढ़ते विरोध में आज इतिहासकार भी लेखकों, फिल्मकारों और वैज्ञानिकों के साथ शामिल हो गए। इस कड़ी में शीर्ष वैज्ञानिक पीएम भार्गव ने कहा कि वह अपना पद्म भूषण पुरस्कार लौटाएंगे। उन्होंने आरोप लगाया कि मोदी सरकार भारत को एक 'हिंदू धार्मिक निरंकुश तंत्र' में बदलने की कोशिश कर रही है।


बुद्धिजीवियों के विरोध प्रदर्शनों की लहर में वैज्ञानिकों के दूसरे समूह के शामिल होने के बीच रोमिला थापर, इरफान हबीब, केएन पन्निकर और मृदुला मुखर्जी सहित 53 इतिहासकारों ने देश में 'अत्यंत खराब माहौल' से उत्पन्न चिंताओं पर कोई 'आश्वासनकारी बयान' न देने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला बोला।

कारवां लगातार लंबा हो रहा है हमारा ,आप तय करें कि किस तरफ हैं आखिर आप!


अब भारतीय जनता को तय करना है कि यह केसरिया आपातकाल कब तक जारी रहना है।


पुरस्कार लौटाने का सिलसिला जारी है।


हालांकि बंगाल के फिल्म निर्देशकों दिवाकर बंदोपाध्याय और इंद्रनील लाहिड़ी के कवि मंदाक्रांता सेन के बाद परस्कार लौटाने पर अब भी बंगाल के सुशील समज के तमाम आइकन सरकारी कर्मचारियों की तरह अपने वेतन और भत्तों की फिक्र में बाकी देश दुनिया के साथ खड़ा होने से इंकार कर रहे हैं।


नई लहर के सिनेमा के मशहूर फिल्मकार श्याम बेनेगल जिन्हें हम उनकी फिल्मों की तरह वैज्ञानिक दृष्टि और सामाजिक यथार्थ के सौंद्रयबोध के धनी मानते रहे हैं,वे भी फिलहाल अलग सुर अलाप रहे हैं।मौन हैं मृणाल सेन और डा. अमर्त्य सेन से लेकर बिग बी अमिताभ बच्चन,पुणे फिल्म संस्थान का सबसे चमकदार चेहरा सांसद जया बच्चन,रजनीकांत,अदूर गोपालकृष्णन और गिरीश कर्नाड भी।पिर बी कारवां लंबा होता जा रहा है।


हम निराश हैं कि जाने माने फिल्म निर्माता, निर्देशक श्याम बेनेगल ने कहा है कि कलाकारों का अपने पुरस्कार लौटाना किसी भी समस्या का समाधान नहीं है। टीवी चैनल सीएनएन आईबीएन को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि पुरस्कार देश देता है, सरकार नहीं। उनका ये बयान ऐसे वक्त आया है जब लेखक और कलाकार देश में बढ़ रही असहिष्णुता के खिलाफ़ लगातार अपने सम्मानों को लौटा रहे हैं। बुधवार को ही दस फिल्मकारों ने पूणे फिल्म संस्थान के हड़ताल कर रहे छात्रों के विरोध में अपने पुरस्कार लौटाए। इनमें मशहूर फिल्म निर्देशक दिबाकर बैनर्जी और डॉक्यूमेंट्री फिल्म निर्माता आनंद पटवर्द्धन शामिल हैं।

ऐसा ही कोलकाता के सुशील समाज के धुरंधरों के बयान का लब्बोलुआब है।


इसीतरह हमारी प्रिय  बॉलीवुड अभिनेत्री विद्या बालन ने गुरुवार को कहा कि वह अपना राष्ट्रीय पुरस्कार नहीं लौटाएंगी क्योंकि यह सम्मान उन्हें राष्ट्र ने दिया है, सरकार ने नहीं। यह टिप्पणी ऐसे समय सामने आई है जब कुछ प्रसिद्ध फिल्मी हस्तियों ने एफटीआईआई छात्रों के साथ एकजुटता दिखाते हुए और देश में बढ़ती असहिष्णुता के खिलाफ अपने राष्ट्रीय पुरस्कारलौटाए हैं। विद्या ने एक कनक्लेव में कहा, ''यह सम्मान (पुरस्कार) राष्ट्र द्वारा दिया गया, सरकार द्वारा नहीं। इसलिए मैं इसे लौटाना नहीं चाहतीं।''


हमारी लड़ाई फिर भी जारी रहेगी लबों को आजाद करने के लिए।

साझे चूल्हों की सेहत के लिए और हम जानते हैं कि इतिहास के निर्मायक मोड़ पर जरुरी फैसले करने में,आम जनता के साथ एक पांत में खड़े होने में अनेकमहान विभूतियों से भी चूक हो जाती है।

इस नरसंहारी फासीवाद के  शरणागत जो हैं,उनसे कम गुनाहगार वे नहीं हैं जिनकी मेधा,जिनकी आत्मा सो रही है और विवेक का दंश भी उन्हें जगा नहीं पाता।इतिहास उनका किस्सा खोलेगा।


फिरभी कारवां लंबा होता जा रहा है।

गौरतलब है कि कल ही लेखक, कलाकारों और वैज्ञानिकों के बाद अब फिल्मकारों ने सरकार से नाराजगी जताते हुए राष्ट्रीय पुरस्कार लौटाने का ऐलान कर दिया है।


गौरतलब है कि  जाने माने फिल्मकारों दिबाकर बनर्जी, आनंद पटवर्धन और 11 अन्य लोगों ने बुधवार को एफटीआईआई के आंदोलनकारी छात्रों के साथ एकजुटता प्रकट करते हुए और देश में बढ़ती असहिष्णुता के विरोध में अपने राष्ट्रीय पुरस्कार लौटा दिए।


गौरतलब है कि कल दस ही फिल्मकारों के पुरस्कार लौटाने की खबर थी,जो दरअसल बारह हैं।बंगाल के दूसरे निर्देशक लहिड़ी के बारे में आज ही पता चला है।


वैज्ञानिक पीएम भार्गव लौटाएंगे पद्म पुरस्कार, बोले- लोकतंत्र के रास्ते से दूर जा रही है मोदी सरकार

हैदराबाद से खबर है : पद्म भूषण से सम्मानित वैज्ञानिक पीएम भार्गव ने अपना पुरस्कार लौटाने की घोषणा की। जाने-माने वैज्ञानिक पुष्प मित्र भार्गव ने गुरुवार को कहा कि वह अपना पद्म भूषण पुरस्कार लौटा रहे और उन्होंने आरोप लगाया कि राजग सरकार भारत को 'हिंदू धार्मिक निरंकुशतंत्र' में बदलने का प्रयास कर रही है।। इस तरह वह भी अन्य वैज्ञानिकों की तरह 'बढ़ती असहिष्णुता' के विरोध में शामिल हो गए हैं।


हम बार बार चेता रहे हैं कि कोई जनादेश निर्णायक और अंतिम नहीं होता।कोई चुनावी या जाति धर्म ध्रूवीकरण का समीकरण भी अंततः अंतिम नहीं होता।


हिटलर ने भी जनादेश जीता था,बाकी इतिहास है।


इतिहास और भूगोल और विज्ञान,साहित्य और कला,माध्यमों और विधाओं में इंद्रधनुषी मनुष्यता की अभिव्यक्ति होती है और आप उसका सम्मान करें,ऐसी तहजीब साझे चूल्हें की होती है।भारत तीर्थ की होती है।


नस्ली रंगभेद,फासिज्म और मनुस्मृति शासन के त्रिशुल में फंसी है आपकी आत्मा तो आप धर्म की बात भी न किया करें तो मनुष्यता और प्रकृति के हित में बेहतर।


साठ के दशक के मोहभंग के बाद जागा सत्तर का दशक फिर इतिहास के सिंहद्वार पर वापसी के लिए दस्तक दे रहा है।


छात्र युवाशक्ति मुक्तबाजारी चकाचौंध से मोहमुक्त होकर आरक्षण विवाद और अस्मिता चक्रव्यूह के आर पार तेजी से गोलबंद हो रही है और देश ही नहीं, दुनियाभर की मेधा भारत को गधों का चारागाह बनने देने की रियायत देने से इंकार कर रहे हैं।


कारवां लगातार लंबा हो रहा है हमारा ,आप तय करें कि किस तरफ हैं आखिर आप।


भाजपा के नेता,इंडियन एक्सप्रेस के मशहूर पूर्व संपादक और दुनियाभर में पहले विनिवेशमंत्री अरुण शौरी ने मौजूदा पीएमओ को निकम्मा निठल्ला और सुस्त बताते हुए डा.मनमोहन सिंह के पीएमओ को ज्यादा एक्टिव बता दिया।


गौरतलब है कि जन वैश्विक वित्तीय संस्थानों और बहुराष्ट्रीय कारपोरेट हितों के मद्देनजर माननीय शौरी महाशय का यह फतवा है,उनने अपने सृजित सुधारों के ईश्वर डा.मनमोहन सिंह की सरकार को नीतिगत विकलांगकता के महाभियोग से खारिज करते हुए अपना वरदहस्त हटा लिया तो इंडिया इंक ने अपने नय़े ईश्वर के बतौर वैदिकी इंद्रदेव का आवाहन कर दिया और मौजूदा वैदिकी हिंसा उसीकी तार्किक परिणति है।


अब डाउ कैमिकल्स के कारपोरेट वकील जिनने भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों को न्याय से वंचित करने की आर्थक समझ के तहत देश की अर्थ व्यवस्था की बागडोर संभाल ली है,उनका फतवा है कि जो साहित्यकार,कलाकार,लेखक,फिल्मकार,वैज्ञानिक वगैरह वगैरह हैं,वे भाजपा के चरम विरोधी हैं।


माफ करें वकील साहेब,आप सर्वोच्च अदालत तक की अवमानना से परहेज नहीं करते और इसमें आपकी दक्षता हैरतअंगेज हैं,लेकिन राष्ट्र के विवेक का ऐसा अपमन भी न करे कि संघ परिवार इतिहास के कचरे में शामिल हो जाये।फासीवाद का अंत तो हो जायेगा।


इसीतरह, कुछ फिल्मकारों के राष्ट्रीय पुरस्कार लौटाने पर अभिनेता अनुपम खेर बिफर गए हैं। उन्होंने पुरस्कार लौटाने वालों की मंशा पर, साथी  फिल्मकारों की मंशा पर सवाल उठाया है। अनुपम खेर ने ट्विटर पर लिखा, कुछ और लोग जो नहीं चाहते थे कि नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनें, अब वो भी #AwardWapsi गैंग का हिस्सा बन गए हैं। जय होष अनुपम खेर ने दूसरे ट्वीट में लिखा, ये लोग किसी एजेंडे के तहत ऐसा कर रहे हैं। जब कांग्रेस पार्टी सत्ता में आई थी तो इन्हीं में से कुछ लोग मुझे भी फिल्म सेंसर बोर्ड से बाहर करने वालों में शामिल थे।


अनुपम जी के कहने का आशय और उनकी पृष्ठभूमि जाहिर है कि बहुत पारदर्शी है और कोई जवाब जरुरी भी नहीं है।

भारतीय इतिहास में श्रीमती इंदिरा गांधी से ज्यादा सक्षम, साहसी,लोकप्रिय प्रधानमंत्री कोई हुआ नही है,उनके पिता प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु भी उनसे पीछे हैं।


जिन्हें संघ परिवार के तत्कालीन सर्वेसर्वा देवरस जी दुर्गा बताये करते थे।उनका अवसान आपातकाल और सिख संहार की वजह से हुआ।


तब  आपातकाल दो साल तक चला और अब भारतीय जनता को तय करना है कि यह केसरिया आपातकाल कब तक जारी रहना है।


हम बार बार चेता रहे हैं कि कोई जनादेश निर्णायक और अंतिम नहीं होता।कोई चुनावी या जाति धर्म ध्रूवीकरण का समीकरण भी अंततः अंतिम नहीं होता।हिटलर ने भी जनादेश जीता था,बाकी इतिहास है।


इंदिरा गांधी ने न सिर्फ सिंडिकेट नेताओं केतमाम समकरण और पालतू वोटबैंक को धता बताकर मासूम गुड़िया की छवि तोड़ी थी,उनने नीलम संजीव रेड्डी को आत्मा की आवाज से हराया था जैसे अटल बिहारी वाजपेयी की राजनीतिक कुशलता के जरिए उनने महाबलि अमेरिका के सातवें नौसैनिक बेड़ा को बीच समुंदर रोककर बांग्लादेश आजाद कराया था।


अर्थशास्त्री डा.अशोक मित्र को मुख्य आर्थिक सलाहकार बनाकर राष्ट्रीयसंसाधनों का राष्ट्रीयकरण किया थे और महान फिल्मकार ऋत्विक घटक को पुणे फिल्म इंस्टीच्युट का सर्वेसर्वा बना दिया था।वे नेहरु की बेटी इंदिरा प्रियदर्शिनी ही थीं।


फिर वे 1971 में भारी बहुमत से जीतीं।


1977 में हार का सामना करने के बावजूद वे फिर 1980 में भारी बहुमत के साथ सत्ता में लौटी।


राष्ट्र के विवेक ने इंदिरा को भी माफ नहीं किया,राष्ट्र के उस विवेक से थोड़ा डरा भी कीजिये।


इतिहास और भूगोल और विज्ञान,साहित्य और कला,माध्यमों और विधाओं में इंद्रधनुषी मनुष्यता की अभिव्यक्ति होती है और आप उसका सम्मान करें,ऐसी तहजीब साझे चूल्हे की होती है।भारत तीर्थ की होती है।


नस्ली रंगभेद,फासिज्म और मनुस्मृति शासन के त्रिशुल में फंसी है आपकी आत्मा तो आप धर्म की बात भी न किया करें तो मनुष्यता और प्रकृति के हित में बेहतर।


हालात के मुताबिक समीकरण बदलते हैं।वरना बंगाल में वामपंथ के 35 साल के राजकाज का अवसान नहीं होता और न ही चार चार बार मुख्यमंत्री बनीं बहन मायावती अब हाशिये पर जुगाली कर रही होतीं।जेल के सींखचों में जानेवाली जयललिता फिर सुनामी बहुमत से न जीतती और न खलनायक से फिर महानायक बन जाने की दहलीज पर होते लोक के वैज्ञानिक लालू यादव मसखरा आपकी नजर में जो हैं लोक में बतियाने वाले।


इतिहासकारों ने अपने बयान में दादरी घटना और मुंबई में एक किताब के विमोचन कार्यक्रम को लेकर सुधींद्र कुलकर्णी पर स्याही फेंके जाने की घटना का जिक्र करते हुए कहा कि वैचारिक मतभेदों पर शारीरिक हिंसा का सहारा लिया जा रहा है। तर्कों का जवाब तर्क से नहीं दिया जा रहा, बल्कि गोलियों से दिया जा रहा है। इसमें कहा गया कि जब एक के बाद एक लेखक विरोध में अपने पुरस्कार लौटा रहे हैं, ऐसे में उन स्थितियों के बारे में कोई टिप्पणी नहीं की जा रही जिनके चलते विरोध की नौबत आई, इसके स्थान पर मंत्री इसे कागजी क्रांति कहते हैं और लेखकों को लिखना बंद करने की सलाह देते हैं। यह तो यह कहने के समान हो गया कि अगर बुद्धिजीवियों ने विरोध किया तो उन्हें चुप करा दिया जाएगा।


बयान में कहा गया कि शासन जो देखना चाहता है, वह कालक्रम, जांच के स्रोतों और विधियों की परवाह किए बिना एक तरह का नियम कानून वाला इतिहास, भूतकाल की गढ़ी गई छवि, इसके कुछ पहलुओं को गौरवान्वित करना और अन्य की निन्दा करने जैसा है। इतिहासकारों ने मुद्दे पर प्रधानमंत्री की चुप्पी पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि और जब यह उम्मीद की जाती है कि स्थितियों में सुधार के बारे में सरकार प्रमुख कोई बयान देंगे, वह केवल आम तौर पर गरीबी के बारे में बोलते हैं, और इस कारण राष्ट्र प्रमुख को एक बार नहीं, बल्कि दो बार आश्वासनकारी बयान देना पड़ता है।


बयान में ऐसा माहौल सुनिश्चित करने का आग्रह किया गया जो 'स्वतंत्र एवं निडर अभिव्यक्ति, समाज के सभी तबकों के लिए सुरक्षा और बहुलतावाद के मूल्यों एवं परंपराओं की रक्षा के लिए हितकर हो जो भारत का विगत में हमेशा एक गुण रहा है।' इसमें कहा गया कि उन्हें कुचलना आसान है, लेकिन यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि एक बार नष्ट हो जाने पर इसका पुनर्निर्माण करने में लंबा वक्त लगेगा और यह वर्तमान प्रभारियों की क्षमता से बाहर होगा। 'बढ़ती असहिष्णुता' और इसके खिलाफ साहित्य अकादमी की 'चुप्पी' के विरोध में नयनतारा सहगल, अशोक वाजपेयी, उदय प्रकाश और के. वीरभद्रप्पा जैसे अग्रणी नामों सहित कम से कम 36 लेखक अपने साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटा चुके हैं और पांच लेखक साहित्यिक इकाई से अपने आधिकारिक पदों से इस्तीफा दे चुके हैं।


अकादमी को विरोध प्रदर्शनों का सामना करना पड़ा था और आपातकालीन बैठक बुलाकर कन्नड़ लेखक एमएम कलबुर्गी तथा अन्य की हत्या के खिलाफ इसे कड़ा बयान जारी करना पड़ा था । इसने पुरस्कार वापस लौटाने वालों से पुरस्कार वापस लेने को कहा था। कल, एफटीआईआई के छात्रों ने एकतरफा ढंग से अपनी 139 दिन पुरानी हड़ताल वापस ले ली थी, लेकिन अपना विरोध जारी रखने का संकल्प लिया था। छात्रों के प्रति एकजुटता व्यक्त करते हुए और देश में 'बढ़ती असहिष्णुता' के खिलाफ 10 जाने माने फिल्मकारों ने अपने राष्ट्रीय पुरस्कार लौटा दिए।


पद्म भूषण से सम्मानित वैज्ञानिक पीएम भार्गव ने आज अपना पुरस्कार लौटाने की घोषणा की। पद्म पुरस्कार से सम्मानित अशोक सेन और पी बलराम ने पूर्व में राष्ट्रपति से आग्रह किया था कि वह ''समुचित कार्रवाई'' करें।



मीडिया की खबरों के मुताबिक हैदराबाद में कोशिकीय एवं आणविक जीवविज्ञान केंद्र (सेंटर फार सेल्युलर एंड मोलिक्यूलर बायोलाजी) की स्थापना करने वाले भार्गव ने कहा 1986 में मिले अपने पुरस्कार को वह लौटाएंगे क्योंकि उन्हें महसूस हो रहा है कि देश में 'डर का माहौल' है और यह तर्कवाद, तार्किकता और वैज्ञानिक सोच के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि मैंने पुरस्कार को लौटाने का निर्णय लिया है। इसका कारण यह है कि वर्तमान सरकार लोकतंत्र के रास्ते से दूर जा रही है और देश को पाकिस्तान की तरह हिंदू धार्मिक निरंकुशतंत्र में बदलने की ओर अग्रसर है। यह स्वीकार्य नहीं है, मैं इसे अस्वीकार्य मानता हूं। उन्होंने आरोप लगाया कि कई पदों पर उन लोगों की नियुक्ति की गई जिनका राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से कोई ना कोई संबंध था।

भार्गव ने मोदी सरकार पर वादे पूरे नहीं करने का भी आरोप लगाया और कहा कि एक वैज्ञानिक के तौर पर मैं सिर्फ पुरस्कार ही लौटा सकता हूं। पुष्प मित्र भार्गव ने कहा कि भाजपा संघ का राजनीतिक मुखौटा है, स्वामी संघ ही है। वहां सीएसआईआर के निदेशकों की एक बैठक थी और उसमें संघ के लोग शामिल हुए। सीएसआईआर के इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ। मैं अपना पुरस्कार अगले हफ्ते लौटाउंगा। भार्गव का निर्णय ऐसे समय में आया है जब वह उन वैज्ञानिकों के दूसरे समूह में शामिल हो गए जिन्होंने देश में विज्ञान और तार्किकता को नष्ट किए जाने के बारे में ऑनलाइन चिंता जताई थी।

भार्गव समेत अन्य पद्म भूषण पुरस्कार प्राप्त अकादमिक और वैज्ञानिक अशोक सेन एवं पी. बलराम ने कहा कि असहिष्णुता और तर्क के निरादर का माहौल उसी तरह का है जिसकी वजह से दादरी में मोहम्मद अखलाक सैफी को भीड़ ने मार डाला, प्रोफेसर कलबुर्गी, डॉक्टर नरेंद्र दाभोलकर और श्री गोविंद पनसारे की हत्या हुई। मंगलवार को वैज्ञानिकों के एक समूह ने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से असहिष्णुता की घटनाओं पर चिंता जताते हुए उस पर उचित कार्रवाई करने की याचना की थी। वैज्ञानिक भी लेखकों और फिल्मकारों के उस विरोध में शामिल हो गए हैं जिसे भाजपा नीत राजग सरकार ने 'गढ़ा गया विरोध' कहा था।

इन पर प्रहार करते हुए केंद्रीय मंत्री अरूण जेटली ने आज कहा कि पुरस्कार लौटाने वालों में अधिकतर 'कट्टर भाजपा विरोधी तत्व' हैं। पटना में जेटली ने कहा कि आप उनके ट्वीट और विभिन्न सामाजिक एवं राजनीतिक मुद्दों के रूख को देखें । आप उनके भीतर काफी हद तक कट्टर भाजपा विरोधी तत्व पाएंगे। उन्होंने कहा कि मैं पहले ही इसे गढ़ा हुआ विरोध बता चुका हूं। मैं अपनी बात पर कायम हूं। मेरा मानना है कि जिस तरह से यह सब खुलासे हो रहे हैं, यह इस बात की ओर इशारा करते हैं कि इस तरह के विरोध का निर्माण तेज गति से चल रहा है।

भार्गव ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि उनका कदम राजनीति से प्रेरित नहीं है। उन्होंने कहा कि असहमति, असहमति होती है और एक ऐसा विशेष बिंदु होता है जिससे आप असहमत होते हैं। उन्होंने कहा कि मैं संप्रग सरकार का भी कटु आलोचक रहा हूं। मैंने अपनी किताब 'ए क्रिटिक एगेंस्ट द नेशन' में संप्रग सरकार की आलोचना की है लेकिन संप्रग सरकार हमें नहीं बताती थी कि हमें क्या खाना है, कैसे कपड़े पहनना चाहिए और ना ही हमें नैतिकता का पाठ पढ़ाती थी। उन्होंने कहा कि वर्तमान सरकार हमें यह सब बता रही है जिसे मैं अस्वीकार्य पाता हूं, इन सभी निर्णयों में हमें तर्कहीनता नजर आती है। भार्गव ने कहा कि देश में भयानक डर का माहौल है और मैं इससे निराश हूं। यह मेरा और मेरे परिवार का निजी निर्णय है और कोई इसमें शामिल नहीं है।

उन्होंने कहा कि भारत एक समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य है और वर्तमान सरकार धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद और लोकतंत्र से दूर जा रही है। 

भार्गव ने केंद्र सरकार पर वादा खिलाफी का भी आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार को अपने वादे पूरे करने चाहिए। वह अपने वादे पूरे नहीं कर रहे हैं। विकास और शांति को लोकतांत्रिक तरीके से आगे बढ़ाना चाहिए। इस समय पर ऐसा लग रहा है कि संघ सरकार चला रहा है ना कि मोदी। कई बार कई अन्य तरीकों से विरोध करने की बात कहते हुए भार्गव ने कहा कि असहमति के लिए अब स्थान घट रहा है। और 'देश का माहौल उस जगह पहुंच गया है जहां पर कुछ बड़ा करने की जरूरत है।' वर्ष 1994 में वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद के पूर्व फेलो ने देश की तीनों विज्ञान अकादमियों से इस्तीफा दे दिया था। इनमें भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी, राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी और भारतीय विज्ञान अकादमी शामिल थी।




Welcome Zuck!Red Salute to Vidya Bhandari,President of Nepal.Thanks Indian cinema!Humanity wins!
মা ব্যাতিরেক কে বা বুলতে পারে কার বাপ কেডা, দিবাকরকে কইতে হবে না বাপের নাম,সে যে বাপের ব্যাটা,প্রমাণ করিতে হইবে না।
Palash Biswas
Our children would unite us,I hope red blue merger sooner or later as the students seem to be united in their fight for right to education,right to higher studies and right to research by the marketing agents of Knowledge economy.I have discussed economy,production system,religion and the aesthetics of creative activism and social realism,social networking and alternative media.Pl circulate.share.


FaceBook is alternative media that we owe to Mark Zukerberg!It could be a forum of interactions,visual presentation of truth,dialogue on creativity to strengthen and humanity,nature and civilization as information explosion is captured by caste class hegemony.Please use FACEBOOK to sustain equality, justice, pluralism, diversity and universal brotherhood!The Bharat Teerth.


Red salute to comrade Vidya Bhandari,the elected President of secular and democratic Nepal.I hope Nepalese Adivasi and Madheshi majority masses would join the mainstream to save sovereignty which is threatened by Super Powers.I am afraid of intensive intrusion,insurgency and intervention in Nepal.I appeal to Bhattrai and Prachand to stand together.


Thanks Indian Cinema which has always consolidated fraternity,love,unity,integrity,equality and justice.


I am proud of Diwakar Bandopadhyay,our friend Anand Patwardhan and the rest of ten directors who have led the great Indian Film Industry to echo the voices of humanity and Nature against the governance of fascism!
Diwakar who got national award on his debut film KHOSLA KA GHOSLA stood high on the podium as the poet, Mandkranta became the face of a lovebird from Bengal!

https://www.youtube.com/watch?v=YIjjxiSSEvY

I reccomend to see again the Khosla ka Ghosla!

Khosla Ka Ghosla - Wikipedia, the free encyclopedia



Jai Bhim comrade discussion
https://www.youtube.com/watch?v=1w8KL2_kaqU


I recommend to see RAM Ke NAAM again!

Ram ke Naam - Wikipedia, the free encyclopedia

Ram Ke Naam\In the Name of God (1991,75 mn, Hindi version)
https://www.youtube.com/watch?
v=U3nqoIBgFJU

Jai Bhim comrade 


I recommend to see JAI BHEEM Comrade yet again!

Jai Bhim Comrade - Wikipedia, the free encyclopedia

जय भीम कामरेड - भाग 1 (Hindi)
https://www.youtube.com/watch?v=umIcbXVZaUg


KOLOROB as we stand Divided,Let us unite to save Humanity and Nature!
केसरिया सत्ता अब छात्रों को भी नहीं बख्शेगी!


जाग मेरे मन मछंदर jaag mere man machhandar



রকেট ক্যাপসুল নিবেদিত মহিষাসুর বধ উত্সবে মাতৃতন্ত্রের দেবি সর্বত্র পুজ্যন্তে মন্ত্রোচ্চার মধ্যে সত্যি বড় দুর্গার আলোছায়ার শারদ তিলোত্তমা মন্দাক্রান্তা সেনকে ভারততীর্থের ভালোবাসারুপেণ দর্শন করিযাছি।


এইবার দেখলাম খোসলা কা ঘোসলা,প্রথম সিনেমায় রাষ্ট্রীয় পুরস্কার হাসিল করা বাপের ব্যাটা দিবাকর বন্দোপাধ্যায়ের বুকের পাটা,যার তেজে ফ্যাসিজ্মের তেজ ধার গণসংহারী ছাপান্ন ইন্চির বুকে গৌরিক সুনামির বিপর্যয়।


উটপাখি প্রজাতির বুদ্ধিজীবী অনেক দেখিয়াছি। জানি তেনাদেরও যাহাদের জারিজুরি চিটফান্ডে গচ্ছিত জনগণের টাকায়,লোক ঠকানো ক্ষমতার রাজনৈতিক সংরক্ষণ ও সহায়তায়,তাহাদের বিপ্লবের আগুনও দেখিলাম।


সারা জীবন বিপ্লব কপচিয়ে ফ্যাসিজ্মের পদতলে নতজানু সুশীল সমাজের উলঙ্গ অবতার শাসকের রক্তচক্ষুর ভয়ে কুঁকড়াতেও দেখিলাম।


মা ব্যাতিরেক কে বা বুলতে পারে কার বাপ কেডা, দিবাকরকে কইতে হবে না বাপের নাম,সে যে বাপের ব্যাটা,প্রমাণ করিতে হইবে না।


সাহিত্যিকদের পর এবার ধর্মীয় ও সামাজিক অসহিষ্ণুতার প্রতিবাদে সরব হলেন ভারতের চলচ্চিত্রকাররা। বুধবার সন্ধ্যায় দেশটির প্রখ্যাত চলচ্চিত্রকার দিবাকর বন্দ্যোপাধ্যায়সহ ১০ জন তাদের জাতীয় চলচ্চিত্র পুরস্কার ফিরিয়ে দিয়েছেন।
বিশিষ্ট কন্নড় সাহিত্যিক এমএম কালবর্গীকে হত্যা এবং এফটিআইআইসহ ভারত জুড়ে ঘটে চলা সাম্প্রতিক নানা ঘটনার পরিপ্রেক্ষিতে রাষ্ট্রীয় সম্মান ফিরিয়ে দেওয়ার সিদ্ধান্ত নিয়েছেন বলে জানিয়েছেন তারা। খোসলা কা ঘোসলা, লাভ সেক্স অর ধোঁকাসহ সম্প্রতি ব্যোমকেশ বক্সীর সুবাদে দিবাকর বন্দোপাধ্যায় বলিউডে বেশ পরিচিত নাম। তাই তার এই পুরস্কার ফিরিয়ে দেওয়ার বিষয়টি তুমুল আলোচনা তৈরি করেছে ভারতের সর্বমহলে।
পুরস্কার ফিরিয়ে দেওয়া চলচ্চিত্রকারদের তালিকায় আরও আছেন পরেশ কামদার, লিপিকা সিং, নিশিথা জাইন, আনন্দ পট্টবর্ধন, কীর্তি নাকওয়া, হর্ষ কুলকার্নি, হরি নাইর।
বিষয়টি নিয়ে দিবাকর বন্দোপাধ্যায় বলেন, 'অসহিষ্ণুতার প্রতিবাদে নিজেদের এই অর্জন ফিরিয়ে দেওয়া ছাড়া আমাদের কাছে আর ভালো উপায় ছিল না।'
ধর্মীয় অসহিষ্ণুতা ও মোদি সরকারের বিরুদ্ধে মত প্রকাশে বাধা দেওয়ার প্রতিবাদে এর আগে ভারতের বেশ কয়েক জন সাহিত্যিক তাদের জাতীয় পুরস্কার ফিরিয়ে দিয়েছেন। পরে সাহিত্য অ্যাকাডেমির পক্ষে দেশটির বিভিন্ন প্রান্তে ঘটে চলা অসহিষ্ণুতার নানা ঘটনার প্রতিবাদ জানানো হয়। কালবর্গী হত্যা থেকে দাদরি, এমনকি মঙ্গলবার দিল্লির কেরল ভবনে গরুর মাংস নিয়ে পুলিশি তৎপরতার প্রতিবাদে এখন সরব হয়ে উঠেছে গোটা ভারত। সূত্র: টাইমস অব ইন্ডিয়া
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