Sunday, January 26, 2014

आहा हे हाय तिरंगा सब लहराना यार अब आर्थिक मामलों की लक्ष्मणरेखा को तोड़े बगैर आत्मरक्षा का कोई रास्ता नहीं है।

आहा हे हाय तिरंगा सब लहराना यार

अब आर्थिक मामलों की लक्ष्मणरेखा को तोड़े बगैर आत्मरक्षा का कोई रास्ता नहीं है।



पलाश विश्वास

This is one of the earliest articles on the AAV blog:http://anotherangryvoice.blogspot.com/2011/09/great-neoliberal-lie-austerity.html

Palash Biswas मैं अरुंधति स‌े पूरी तरह स‌हमत हूं।आज के विमर्श की तैयारी हो चुकी है लगभग। अब लिखने ही वाला हूं।आपकी राय मिलेगी तो चीजें और खुल पायेंगी।अरुंधती के इस कहे पर विस्तार स‌े चर्चा की जरुरत है,खासकर हिंदी में।अब रियाजुल भाई पर निर्ऎभर हैं हम कि इसका अनुवाद जारी कर दें वे तत्काल।



সম্পাদকীয়...

বিনা ধ্রুপদী ভাষা

য়পুর সাহিত্য উৎসবে অমর্ত্য সেন 'ক্লাসিকাল' অর্থাৎ ধ্রুপদী ভাষা, সাহিত্য ও সংস্কৃতি চর্চার গুরুত্ব চিহ্নিত করিয়াছেন। দুনিয়ার নানা জাতির মতোই ভারতবাসীও এখন ধ্রুপদী ভাষা ও সংস্কৃতি বিষয়ে উদাসীন। অনেকেরই ধারণা হইয়াছে যে, প্রগতির সহিত ধ্রুপদীয়ানার বিরোধ আছে। ভ্রান্ত ধারণা। ধ্রুপদী জ্ঞান প্রগতির অনুঘটক। মৌলিক শিক্ষা এবং জ্ঞানচর্চা কেবল প্রযুক্তির শিক্ষায় সীমিত থাকিতে পারে না, তাহা বহুমাত্রিক হওয়া জরুরি। দুনিয়া জুড়িয়াই মৌলিক শিক্ষা বিপন্ন। জ্ঞানচর্চায় তাহার ক্ষতিকর প্রভাব পড়িতেছে। শিক্ষাবিদরা তাহা লইয়া উদ্বেগ প্রকাশ করেন। বাঙালির সমস্যা তাহার অধিক। তাহার কারণ, শিক্ষার ন্যূনতম মান হইতেই সে বিচ্যুত হইয়াছে। এই পরিপ্রেক্ষিতে পশ্চিমবঙ্গে সংস্কৃত চর্চার গুরুত্ব সমধিক। পশ্চিমবঙ্গে বামপন্থী শাসকেরা কেবল ইংরাজির বিরুদ্ধে খড়্গহস্ত হন নাই, সংস্কৃতের প্রতিও বিরূপ ছিলেন। তাঁহাদের বাস্তববিমুখ অপরিণতি সংস্কৃতকে পুরোহিততন্ত্রের ভাষা ও ইংরাজিকে সাম্রাজ্যবাদীদের ভাষা হিসাবে চিহ্নিত করিয়াছিল। ফল: প্রাথমিক শিক্ষা হইতে ইংরাজির বিদায়ের পাশাপাশি বিদ্যালয় শিক্ষায় সংস্কৃত ভাষার গুরুত্ব হ্রাস। এই হ্রাস ও নাশের ফল ছাত্রছাত্রীদের দক্ষতার ক্ষয়।

প্রশ্ন উঠিতে পারে, ইংরাজি বিদায় যে ক্ষতিকর তাহা বোঝা গেল, কিন্তু সংস্কৃত না পড়িলে কী ক্ষতি? একদা এশিয়াটিক সোসাইটির বক্তৃতায় উইলিয়ম জোন্স সংস্কৃতকে লাতিন ও গ্রিকের চাহিতেও 'অনুকরণযোগ্য' বলিয়া রায় দিয়াছিলেন। ইহা কথার কথা ছিল না। সংস্কৃত ভাষার ব্যাকরণ পড়িলে বুঝিতে পারা যায়, এই ভাষা অত্যন্ত বিধিবদ্ধ। তাহার ভাষাবিধিগুলির পশ্চাতে গাণিতিক প্রজ্ঞা ও বিজ্ঞানমনস্কতা বর্তমান। এই ব্যাকরণের চর্চায় কেবল ভাষাবোধ নয়, যুক্তিশৃঙ্খলার বোধও তীক্ষ্নতর হয়। লক্ষণীয়, বঙ্গদেশের পুরাতন বিদ্যালয়গুলিতে সংস্কৃতের পণ্ডিতেরা অনেকেই গণিতেরও পণ্ডিত ছিলেন। আর সাহিত্য? সংস্কৃত ভাষায় রচিত সাহিত্য তাহার ব্যাপ্তি, গভীরতা এবং উৎকর্ষে প্রথম সারির। শিক্ষার সামগ্রিক বিকাশের যে যুক্তিতে ধ্রুপদী সংস্কৃতির চর্চা গুরুত্বপূর্ণ বলিয়া মনে করা হয়, সংস্কৃতের ক্ষেত্রে তাহা বিশেষ ভাবে প্রযোজ্য। ধ্রুপদী ভাষা ও সাহিত্যের পাঠ বন্ধ হওয়ায় তাই ভারতীয় মন এবং মনন ক্ষতিগ্রস্ত হইয়াছে। এই ধ্রুপদী ভাষা-সাহিত্য পড়িলে বিশ্বায়িত দুনিয়ায় যোগ্যতা প্রদর্শনের অসুবিধা হইত না, সুবিধাই হইত। তাহার চর্চা ছাড়িয়া ভারতবাসী, বিশেষ করিয়া বাঙালি, নিজেদেরই ক্ষতি করিয়াছে।

এই ক্ষতি 'অপূরণীয়' নয়। প্রতিকারের উপায় আছে। উপায় শিক্ষায় সংস্কৃত ভাষা ও সাহিত্যের সসম্মান পুনর্বাসন। সংস্কৃত শিখিতে হইবে। যত অল্প বয়সে শেখা শুরু করা যায়, তত ভাল। বিদ্যালয় স্তরে সংস্কৃত পাঠ আবশ্যিক করা উচিত। শৈশবে মন তাজা থাকে, অর্জনের সামর্থ্য বেশি থাকে। ইংরাজি, বাংলা, সংস্কৃত লইয়া পশ্চিমবঙ্গের সরকারি বিদ্যালয়গুলিতে ত্রিভাষা প্রকল্প গড়িয়া তোলা উচিত। ইংরাজির প্রত্যাবর্তন, অন্তত নীতিগত ভাবে, শুরু হইয়াছে। সংস্কৃত আজও সমান অবহেলিত। যে ভাষা-জননীকে বাঙালি একদা গৃহহীন করিয়াছিল, তাঁহাকে সসম্মানে ফিরাইয়া আনুক। 'জননী' কথাটি আলঙ্কারিক নয়, বাস্তবিক। বাংলা ভাষা সংস্কৃতের সন্তান। সংস্কৃতের জ্ঞান বাংলা ভাষার জ্ঞানকে সমৃদ্ধ করিবে। বাংলা ভাষা চর্চার স্বার্থেই সংস্কৃত পড়া দরকার। বস্তুত, ইংরাজি এবং সংস্কৃত, দুইটি ভাষা এবং সাহিত্যের চর্চাই বাংলার যথার্থ পুনরুজ্জীবনের পক্ষে অত্যাবশ্যক। অত্যাবশ্যক ধ্রুপদী সংস্কৃতি হইতে পুষ্টি সংগ্রহ করা। বাঙালির শিক্ষা যেখানে পৌঁছাইয়াছে, তাহাতে কথাগুলি অসম্ভব এবং অবিশ্বাস্য বোধ হইতে পারে। তাহা কথাগুলির দোষ নহে, বাঙালির শিক্ষার অধঃপাতের দোষ।

http://www.anandabazar.com/26edit1.html



अरुंधति एकदम ठीक कह रही हैं कि दुनियाभर में खासकर तीसरी दुनिया में लोकतंत्र जो है ,वह विश्वबैंक,अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष और विश्व व्यापार स‌ंगटन का अमेरिकी लोकतंत्र है।हम भी लगातार कहते लिखते रहे हैं कि यह देश जो मृत्युउपत्यका या अनंत वधस्थल या अंध कूप या निश्छिद्र गैस चैंबर में तब्दील है, विकसित देशों और खासकर अमेरिका के लिए बाजारु उपनिवेश के अलावा कुछ भी नहीं है।हो तो प्रतिवाद जरुर करें।


किसी स‌ज्जन ने कहा कि मुझे तो अंग्रेजी स‌ाहित्य पर ही लिखने का वैध अधिकार है, अर्थ शास्त्र पर नहीं ।क्योंकि उनके मतानुसार अर्थशास्त्रियों और नीति निर्धारकों के अलावा बाकी लोग अर्थशास्त्र नहीं स‌मझते।यह अलग बात है कि अगर हम साहित्य पर लिखने लगे तो जयपुरिया साहित्य घराने के गर्भपात का सिलसिला शुरु हो जायेगा।


सवाल यह है कि अर्थशास्त्र जिनका विषय है और साहित्य जिनका विषय नहीं है,वे साहित्य में फिर क्या कर रहे हैं और क्यों बैंक आफ स्वीडन के नोबेल विजयी राथचाइल्डस दामाद अर्थशास्त्री लाइव प्रसारित किसी कारपोरेट साहित्यजश्न में ध्रूपद भाषा बतौर संस्कृति की विशुद्धता के रंगभेदी विमर्श की स्थापना करते हुए ज्ञान विज्ञान और तकनीक तक सीखने के लिए संस्कृत की अनिवार्यता बता रहे हैं। भारतीय उपमहाद्वीप में मुक्त बाजार के छनछनाते विकास का मानवीय पक्ष पेश करने वाले सबसे बड़े अर्थशास्त्री निर्माणाधीन नमोमय भारत की पृष्ठभूमि में हिंदू राष्ट्र की भाषा क्यों बोल रहे हैं।


एकदम स‌ही लिखा है कि हमलोग अर्थशास्त्र के विशेषज्ञ नहीं हैं और हत्यारे इस कारपोरेट राज्यतंत्र को समझने की हमारी कोई औकात नहीं है और न हम बहरंगी इस आर्थिक तिलस्मी चामत्कारिक भारत निर्माण का अविराम विज्ञापन को समझ पा रहे हैं। हम तो मजबूरन अर्थशास्त्र और अर्थव्यवस्था में अपना पक्ष रख रहे हैं।जाहिर हैं कि इस देश के बहिस्कृत जन गण, वंचित तबके के बहुसंख्य बहुजन लोग,अस्पृश्य भूगोल हिमालय,पूर्वोत्तर,कश्मीर और समूचे आदिवासी इलाके के लोग अर्थशास्त्र नहीं समझते।


जल जंगल जमीन आजीविका नागरिकता नागरिक मानवाधिकार से वंचित लोग भी अर्थशास्त्र नहीं समझते तो सारा खेल पलट जाता!


काश कि हमारे लोग समझ पाते कि जनादेश का अर्थशास्त्र  क्या है!


काश कि हमारे लोग समझ पाते कि सत्ता समीकरण के गणित क्या है!


काश हमारे लोग समझ पाते की जातिव्यवस्था,नस्ली भेदभाव और रंगभेद के त्रिभुजीय अर्थशास्त्र क्या है!


काश कि हमें शत्रु और मित्र के अवस्थान का गणित समझ में आता!


काश कि हमें रोज बदलती परिभाषाओं का अर्थ समझ में आता!


काश कि हमें कारपोरेट वैश्विक व्यवस्था पर काबिज बहुराष्ट्रीयकंपनियों का बीज गणित समझ में आता!


काश कि हमारे लोग साठ के दशक में ही हरित क्रांति का गणित समझ चुके होते!


काश कि विकास दर और रेटिंग एजंसियों,सेनसेक्स की उछलकूद को समझने में हमारे लोगों की कुछ विशेषज्ञता रही होती!


काश कि हर बदलते बिगड़ते कानून और संविधान की निरंतर हो रही हत्या का अर्थसास्त्र हम समझ रहे होते!


काश विनियंत्रित बाजार और सामाजिक क्षेत्र की परियोजनाओं की त्रिकोणमिति हमारी समझ में आती!


काश कि कालाधन को अबाध विदेशी पूंजी का आकार लेते तंत्र को हम समज रहे होते!



काश नीति निर्माण कवायद में कारपोरेट लाबिइंग का अर्थशास्त्र हम समझ रहे होते!


काश सूचनाओं,खबरों और सर्वेक्षणों का अर्थशास्त्र हम समझ रहे होते!


काश हम उस गणित को भी समझ पाते कि कैसे दिल्ली में धरने पर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के अराजक वक्तव्य से कारपोरेट हितों पर कैसे कुठाराघात हो गये!


काश हम समझते कि देश के हालात रातोंरात बदलते नहीं हैं और न जनमत रातोंरात बदलता है कि दो दिन जो आसमान पर था,वह निरंतर मीडिया अभियान से कैस धूल चाट रहा होता है।


काश हम उस गणित को समझ पाते कि कल तक नमोमयभारत निर्माण के लिए आप का इस्तेमाल करने वाले लोग आप को जड़ से मिटाकर क्यों फिर नमोमयभारत के निर्माण के लिए एढ़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं।


अब आर्थिक मामलों की लक्ष्मणरेखा को तोड़े बगैर आत्मरक्षा का कोई रास्ता नहीं है।




देश के निनानब्वे फीसद बहिस्कृत मारे जा रहे आम लोगों की तरफ से लड़ते हुए बिना अर्थशास्त्र समझे हम इस आर्थिक खेल,सुधार अभियान और वैश्विक व्यवस्था के त्रिइब्लिसी तंत्र का खुलासा करने लगे हैं तो सत्ता वर्ग के अनेक मेधासंपन्न लोगों को जिन्होंने बड़ी सर्जिकल विशेषज्ञता से हम जैसे तमाम लोगों की अभिव्यक्ति कैद की हुई है,उनके गोपनीय अंगों में खुजली मचने लगी है।


इस देश तमाम नागरिक अगर इस आर्थिक महाविनाश के ताम झाम मुलम्मों को समझने की कोशिश करने लगे तो उनका क्या हाल होगा समझ लीजिये।


बंगाल के सव्यसाची चक्रवर्ती ने तो बांग्लादेशी शरणार्थी होने की वजह से हमें इस देश की राजनीति में ही हस्तक्षेप करने से मना कर दिया है।इसके जवाब में बंगाल के ही एक दूसरे ब्राह्मण मंदार मुखर्जी ने और निर्मम प्रतिक्रिया दी है कि पश्चिम बंगाल की विरासत ही जब सोनागाछी में तब्दील है,तो बांग्लादेशी शरणार्थियों को राजनीति में थोड़ा बहुत हस्तक्षेप करना चाहिए।


नैनीताल जीआईसी में मैं जब भरती हुआ तो मुझे उस किशोरवय में नैनीताल जैसे चकाचौंध में अपने पिता के धोती और चादर पहनकर शरणार्थियों की लड़ाई कहीं भी,कभी भी लड़ते हुए देखकर वैसे ही शर्म आती थी,जैसे बरेली में मेरे एक पांच साल के नर्सरी स्कूल में पढ़ने वाले बेटे को दादाजी के साथ स्कूल जाना मंजूर नहीं था क्योंकि दूसरे बच्चे दादाजी को सेकर उसकी मजाक उड़ाया करते थे।


वंचित वर्गों के तमाम कामयाब लोगों की पहचान का यह बड़ा संकट है,आरक्षण का लाभ उठाने के लिए वे बढ़ चढ़कर आदिवासी, दलित, पिछड़ा या पसमंदा या अल्पसंख्यक बन जाते हैं,लेकिन आरक्षण बजरिये दो चार सीढ़ियों की कामयाबी के बाद उन्हें अपनी पहचान हाथ पांव में लिपटी जंजीर की तरह भारी लगने लगती है।इससे निजात पाने के लिए अपने मां बाप,भाई बहन,नाते रिश्तेदार,परिवार और समाज से जितनी दूरी बनायी जो सकती है,बनाये रखते हैं। क्योंकि आगे वे इस परिचय को ढोकर अपना स्टेटस छोटा नहीं कर सकते।


मेरे बेटे को स्कूल से निकलते न निकलते अपने दादाजी की हैसियत बाकी परिवार की तरह मालूम हो गयी।जीआईसी में रहते हुए हम भी नैनीताली चकाचौंध से मुक्त होकर अपने पिता की राह पर चल निकले थे।


तेईस साल तक बंगाल में रहने के बाद मुझे महाश्वेता दी ने जो मुझे कुमांऊनी बंगाली लिखा है,उसपर भी ऐतराज होने लगा है।मुझे तजिंदगी अफसोस रहेगा दीदी ने हमपर लिखा तो हमें बंगाली क्यों लिखा। वे हमें विशुद्ध कुमांयूनी या विशुद्ध उत्तराखंडी लिखती तो मुझे अपनी पहचान और हैसियत पर गर्व होता।


इस देश के विभाजन के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार बंगाली वर्ण वर्चस्वी राष्ट्रीयता पर मुझे कोई गर्व नहीं है।


बल्कि बंगाली शरणार्थी होने पर मुझे गर्व है क्योंकि मैं अपना देश या दुनिया बंगाल तक सीमाबद्ध मानने की कूपमंडुकता से बचा हुआ हूं,जिसके शिकार बंगाल के तमाम विश्वप्रसिद्ध लोग रहे हैं।


बंगाली शरणार्थी होने का गर्व मुझे है।अबतक हम भारत विभाजन की त्रासदी की कथा कहते रहे हैं और अब भारत जोड़ो अभियान में लगकर हमें लग रहा है कि बंगाली शरणार्थी होने की हैसियत से हम बंगाल के बाहर जो भारत है,उसके साथ किसी भी पश्चिम बंगीय विशुद्ध बंगाली से ज्यादा एकात्म हैं।


बंगाली शरणार्थी होने का गर्व मुझे है।हमें देश के हर कोने के हर आदमी की धड़कनों की आवाज बाहैसियत इस शरणार्थी पुत्र ही तो महसूस हो पाती है।देश के हर कोने में मेरे परिवार का कोई न कोई सिरा इसीलिए तो जुड़ता है और देश का कोई हिस्सा कोई जनसमुदाय मेरे भारत के भूगोल से बहिस्कृत नहीं है।


बंगाली शरणार्थी होने का गर्व मुझे है।क्योंकि मैं अब बांग्ला के अलावा हिंदी और अंग्रेजी में भी मैं पूरे भारत देश को संबोधित कर सकता हूं।जानूं या न जानूं कोई भारतीय भाषा हमारे लिए अबूझ पहेली नहीं है और हर किसी की मातृभाषा हम शरणार्थियों की मातृभाषा है।वैध जो भारत के नागरिकत्व के एकाधिकारवादी दावेदार हैं, उनके मुकाबले हम लाख गुणा ज्यादा भारतीय है और यह स्वयंसिद्ध है।


हां ,मुझे बंगाली शरणार्थी के साथ विशुद्ध उत्तराखंडी मान लिये जाने पर ज्यादा गर्व होता।विशुद्ध कुमांय़ूनी या विशुद्ध गढ़वाली होने पर मुझे बार बार अपना सीना चीरकर प्रमाणित नहीं करना पड़ता कि दरअसल मैं जन्मजात उत्तराखंडी हूं।




बहुत बेहतर होता कि हम लोग मीडिया के रात दिन चौबीसों घंटे लाइव ब्रेन वाश स‌े बचते हुए कुछ अपना भी दिमाग खर्च कर पाते।


वैसे ही विचित्रतताओं के इस देश में हम लोग एक मामले में देशभर में एकात्म है कि हम लोग दिमाग स‌े स‌ोचते कम है,दिल स‌े ज्यादा स‌ोचते हैं।अब आंखों के रास्ते जो प्रायोजित दृश्य,आंकड़े और तथ्य प्रस्तुत हो रहे हैं,उसमें दिलोदिमाग लगाने की भी कोई जरुरत शायद नहीं है।

Palash Biswas

26 minutes ago ·

  • काश सूचनाओं,खबरों और सर्वेक्षणों का अर्थशास्त्र हम समझ रहे होते!
  • काश हम उस गणित को भी समझ पाते कि कैसे दिल्ली में धरने पर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के अराजक वक्तव्य से कारपोरेट हितों पर कैसे कुठाराघात हो गये!
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    • Sheeba Aslam Fehmi Aap samjhaiye. Hum sun rahe hain.

    • 20 minutes ago · Like

    • Palash Biswas Thanks Sheeba.Hum bhi samajhne ki koshish kar rahe hain aur apne deshvashion se yehi gujarisn hai ki we bhi is tilism ko todne ki jugat jald se jald kren.It is the last defence.

    • 2 minutes ago · Like

    • Palash Biswas We donot agree with AAP.we have been criticising up from the first day,but those who propmoted AAP,they just began to dismiss AAP to boost NAMO.We have to solve this puzzle before dismissing AAP.Dismissal of AAP at this point means right and right Modi Tsunami.For me,it is the changed equation on stake.

    • a few seconds ago · Like

Rbk Bauddh U r 100% correct Arundhati ji. This is the view of 90% people of this country .

55 minutes ago · Like


Alexandra Kumar आप का नेशनल पॉलिटिक्स में आना जरुरी है ...आपकी कहानी इसको सही बयां करती है ....जागो भारत जागो

3 hours ago · Like


Palash Biswas

8 hours ago ·

  • इससे पहले नामदेव धसाल पर मेरे आलेख का लिंक देने पर भद्रलोक फेसबुक मंडली से चेतावनी जारी होने पर मैं खुद उस ग्रुप से बाहर हो गया।नामदेव धसाल पर लिखने की यह प्रतिक्रिया है।
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Umesh TiwariPalash Biswas

about an hour ago ·

  • भाई, अपना और जॉली ग्रांट में तीमारदार का न॰ दे तो वहाँ एक sr डॉ हृदयेश वर्मा हैं, जो अभी हॉस्पिटल के रास्ते पर हैं , चाहे खुद बात कर ले न॰ 09368657344 है। मेरी बात हो गई है। मेरा न॰ 09412419909 है।
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    • Palash Biswas उमेश जी,परिवार में आभार का रिवाज होता नहीं है।इसलिए आभार नहीं लिख रहा हूं। मेरा नंबर है 9903717833 और देहरादून में हमारे स‌ाले स‌ाहब का नंबर है 9837271010

    • about an hour ago · Like

    • Palash Biswas कल रात के तीन बजे मरीज को लेकर वे लोग जाली ग्रांट पहुंचे और तुरंत दाखिला भी हो गया। हल्द्वानी में भी तिलक राज बेहड़ और हल्द्वानी के मित्रों के स‌हयोग स‌े नर्सिगं होम के बिल में कटौती हो गयी।उन लोगों ने अंबुलेंस की व्यवस्था भी कर दी।ट

    • 59 minutes ago · Like

    • Palash Biswas डाक्टरों ने तुरंत मरीज को देखा और परसो आपरेशन के जरिये दिमाग में जमा खून का थक्का निकालने की तिथि तय कर दी।मुझे स‌ंतोष है कि उत्तराखंड में इतने स‌ंगीन मरीज के आपरेशन का त्तकाल इंतजाम हो पा रहा है और तमाम मित्र स‌ाथी हर स‌ंभव स‌हयोग कर रहे हैं।यह देश के दूसरे हिस्से के लिए बड़ा स‌बक है।

    • 52 minutes ago · Like

    • Palash Biswas स‌ाले स‌ाहब स‌े बात हो गयी है और उन्हें डा.वर्मा और आपका नंबर देदिया गाय है।सविता का भतीजा बिजनौर अपने गांव गया है। वह परसो तड़के देहरादून पहुंचेगा। वही मुख्य तीमारदार है।लेकिन पिछले दो दिनों स‌े वह स‌ो नहीं स‌का है।अब दो दिन वह आराम करें ,इसलिए स‌ाले स‌ाहब का नंबर ही दे रहा हूं।

    • 50 minutes ago · Like

    • Palash Biswas इसे पहले महेश दाज्यू ने भी नंबर मांगा था।

    • 50 minutes ago · Like

    • Umesh Tiwari ऊपर वाला मददगार !

    • 40 minutes ago · Like

    • Umesh Tiwari मित्रो अभी जब सड़कों की लड़ाई को अराजक और देश द्रोह तक कहा जा रहा है, मैं बंगलुरु में हूँ और आपके लिए, किस तरह अपने देश में ग़रीबों का हक़ मारा जाता है और सिर्फ़ सड़कों पर उतर कर आम आदमी थोड़ी जीत हासिल कर पाता है, इसका एक उदाहरण पेश कर रहा हूँ ।

    • बंगलुरु का तेजी से विकास करता इलाका है कोरमंगला। बंगलुरु पालिका (BBMP) ने यहाँ पर मात्र 25 साल पहले EWS के 1600 फ्लैट लगभग 16 एकड़ ज़मीन पर बनवा कर दिये। निर्माण इतना ख़राब था कि 2003-4 में मकान टूटने लगे, एक हादसे में एक औरत और बच्चे की मौत हो गई। किसी पर कोई कार्यवाही नहीं हुई, लेकिन भू-माफिया की निगाह 3000 करोड़ की इस संपत्ति पर गड़ गयी। पहले सुनियोजित ढंग से, 1600 परिवारों को प्लॉट में खाली पड़ी ज़मीन पर टिन-शेड बना कर शिफ्ट कर दिया गया। तबकि JDS सरकार ने 2-3 साल में सबको पक्के घर बनवा देने का वादा किया। BBMP ने 2006 में सर्वे करके लाभार्थियों को आई कार्ड भी दे दिये, पर काम शुरू नहीं किया...2008 में पैसे की कमी की दुहाई देते हुए BBMP और शासन ने PPP मोड पर करवाने का इरादा कर लिया। टेंडर निकाला गया और मेवरिक बिल्डर जो, यहाँ के प्रसिद्ध गरुड़ा मॉल के मालिकान भी हैं, को इस सुविधाजनक शर्त के साथ दिया गया कि रोड-फेसिंग 7.5 एकड़ वो अपने लिए रखें और शेष प्लाट (8 एकड़) पर 9 मंज़िली लिफ्ट वाली इमारत बनाकर विस्थापितों को दी जाये। इसके साथ ही सीएम येदुरप्पा से सांठगांठ करके पूरी ज़मीन मेवरिक के नाम कर दी गयी और कोर्ट में सारे प्लॉट को खाली करवाने कि अर्जी लगा दी गयी। BBMP कोर्ट में गरीबों का साथ क्या देती, तो कोर्ट ने भी बेदख़ली का आदेश दे दिया। 18 जन॰ 2013 को BBMP ने पुलिस के साथ आकर बुल्डोजर चला दिया,पानी- बिजली कट गई, टैंक तोड़ दिये और 'अतिक्रमण-मुक्त' भूमि बिल्डर के हवाले कर दी। पीड़ित परिवारों की कुछ महिलाओं के साथ सामाजिक कार्यकर्ताओं एम वेंकट, आरिफ वकील, सुनील कुमार, विजय शर्मा को हिरासत में लिया गया। इन लोगों ने आम आदमी के बैनर में पीड़ितों की मदद जारी रखी और मिल्लत फ़ाउंडेशन और स्वाभिमान ट्रस्ट के सहयोग से 1000 परिवारों को 10-10 हज़ार की राशि बसर के लिए दी।

    • इस घटना को 18 जन॰ को 1 साल हुआ और इस बीच बिल्डर ने पर्दे लगा कर मॉल की बुनियाद खोदनी चालू कर दी। इस पर आम आदमी पार्टी कार्यकर्ताओं ने टाउन हाल पर चार दिनी धरना दिया, जिसमे चौथे दिन CM निवास कूच का मार्च शामिल था....अचानक सरकार जागी और प्लॉट पर काम रुकवाने के आदेश के साथ इस हफ्ते वार्ता पर बुलाने का आमंत्रण दिया है।

    • हमारे मित्र ज्ञापन देते रहे, अपोइंटमेंट मांगते रहे मगर किसी के कान पर जूं नहीं रेंगी पर केजरीवाल के दिल्ली धरने से प्रेरणा लेकर बंगलुरु के लोग सड़कों पर आए तो एक जीत दर्ज़ हुई। ये छोटी सी सफलता कल एक बड़ी विजय में बदल सकती है, वो कर्नाटक में ज़रूरी नहीं, उत्तराखंड में भी हो सकती है।

    • Regards,

    • Umesh Tiwari 'Vishwas'

    • 32 minutes ago · Like

    • Palash Biswas संवाद में शामिल

    • 7 minutes ago · Like

    • Palash Biswas हम देश भर के मित्रों स‌े यह कहते रहे हैं कि इस पर गौर जरुर करें कि धेस भर में दशकों स‌े हमारे पुराने और ईमानदार स‌ाथी आप में शामिल हो रहे हैं।छात्र युवाजनों,महिलाओं और स‌माज के दूसरे वर्गों की अस्मिता दायरे तोड़कर गोलबंदी हो रही है।राजनीति के मामले में हमारे मतभेद हो स‌कते हैं।हम आलोचना भी कर रहे हैं।दिल्ली धरना के बाद कारपोरेटइंडिया और मीडिया जिस तरह रातोंरात आप केखिलाफ हो गया है,उससे स‌ाबित होता है कि आप में ईमानदार प्रतिबद्ध लोगों के जमावड़े पर वे लोग कैसे घबराये हुए हैं।रातोरात महिला शक्ति बतौर ममता मायावती और जयललिता का विकल्प पेश हुआ जो नहीं चला तो चुनाव स‌र्वे&णों के जरिये भारत को फिर नमोमय बनाने की तैयरी है।राष्ट्रीयझंडे तले जो लोग,हर वर्ग के और हमारे परखे हुए स‌ाथी गोलबंद हो रहे हैं,कारपोरेटआर्थिक नरमेध के विरुद्ध और धर्मोन्मादी कारपोरेटराजनीति के खिलाफ हमें अंततः इन्ही लोगों के स‌ाथ जनपर्धर मोर्चा बनाना पड़ेगा।ऎसा मैंने लिखा भी है।यह वक्त का तकाजा भी है।संवाद और आलोचना का स‌्वागत है लेकिन कृपया स‌त्ता वर्ग के मिथ्या अभियान में शामिल न हों,आप स‌बसे देशहित में यही विनती है।

    • a few seconds ago · Like


Anita Bharti
फेसबुक के सभी साथियों को भारतीय संविधान दिवस की ढेरों मुबारकबाद।
Unlike ·  · Share · 6 hours ago ·


Himanshu Kumar

आपने एक ज़मीन के टुकड़े की एक सीमा बनाई

उस ज़मीन के टुकड़े को राष्ट्र कहा

इसमें रहने वाले सारे लोग अपने आप अब उस राष्ट्र के नागरिक हो गये


अब इन सब लोगों के क्या अधिकार होंगे ?

इनमे से कौन जन्म से ही सम्म्मानित माना जायेगा

और कौन जन्म से ही अपमानित माना जाएगा ?


कौन काट सकेगा किसके बच्चों को तलवारों को ?

और किसका संरक्षण करेगी अदालत लक्ष्मनपुर बाथे के हत्या कांड के बाद भी ?


किसका घर कौन बुलडोजर लगा कर तोड़ सकेगा मुंबई में ?

किसके फायदे के लिये सिपाही मार सकेंगे दूसरे नागरिकों को बस्तर में ?


किसको जन्म से ही माना जायेगा राष्ट्रभक्त ?

और कौन बिना किसी कसूर के ही देखा जायेगा हमेशा संदेह की नज़र से क्योंकि उसका विश्वास अलग होगा इश्वर के बारे में ?


किसकी धरती ज़्यादा होगी और किसी को नहीं होगा ज़मीन पर कहीं भी रहने का कोई ह्क़ ?

कौन मानेगा अपने जन्म को बे ज़रूरत इस धरती पर ?

और कौन इतराएगा देख कर अपनी मीलों तक फ़ैली हुई ज़मीन को ?


किसके जिस्म में पत्थर भरे जायेंगे ?

और कौन करोड़ों सभ्य लोग होंगे जो ईनाम देंगे पत्थर भरने वाले को ?

जिसके जिस्म में पत्थर भरे जायेंगे उसके लिये कौन सा कोना होगा सिसक सिसक कर मरने के लिये ?

और आपके जश्न मनाने के लिये बनाये गये शापिंग मॉल तक उसकी सिसकियों की आवाज़ ना पहुँच सके इसके क्या इंतजाम होंगे ?


फिर आप अपने इस अय्याश्खाने को राष्ट्र कहेंगे

और सिसकने वाले को कह देंगे राष्ट्रद्रोही

और हुक्म देंगे अपनी राष्ट्रीय फौजों को कि वो खामोश कर दे इन सिसकने वालों को

और आप करोड़ों लोगों को इस तरह की बेबसी में धकेल देंगे

और फिर अपनी अय्याशी की हिफाज़त के लिये

चारों तरफ खड़ा कर लेंगे सिपाहियों को

उसे आप कहेंगे राष्ट्रीय सुरक्षा ?


आप अपने महल के ऊपर फहरा लेंगे एक तीन रंग का कपड़ा

और आप कहेंगे सिपाहियों से कि ये कपडा ही राष्ट्र है

इस कपडे की हिफाज़त करना ही सिपाहियों का फ़र्ज़ है


आप कहेंगे कि आपका गोल महल ही लोकतन्त्र है

इस महल में कभी नहीं होगा कश्मीर की कुचली गई लड़कियों का कोई भी ज़िक्र

या कभी बात नहीं होगी शीतल साठे की जिसे सिर्फ इसलिये छिप कर रहना पड़ रहा है

क्योंकि उसने जन्म लिया एक अवैध बस्ती की एक झोंपड़ी की एक गरीब छोटी ज़ात की औरत के पेट से .

और उस लड़की ने चुनौती दी तुम्हारे बड़े होने को ?

इसलिये तुमने अपने सिपाही पीछे लगा दिये उस बहादुर लड़की शीतल साठे के पीछे ?


तुम बड़ी जाति के हो इसलिये सम्मनित हो

तुम अमीर हो

तुम ही कानून हो

तुम ही सरकार हो

तुम चाहते हो कि हम मान लें कि तुम ही राष्ट्र हो ?


नहीं अभी रुको

अभी हमें सोचने दो इन सब बातों पर

हम सवाल उठाएंगे

हर बात पर

हम सवाल उठाएंगे धर्म पर राष्ट्र पर जाति पर सरकार पर

तुम्हारे बड़े और अपने छोटे होने पर


इस दुनिया को अब पहले जैसी दुखी नहीं रहने देंगे हम

इस दुनिया को दुखी बनाने वाली हर चीज़ को हम खत्म करेंगे हम

तब मानेंगे

दन्तेवाड़ा वाणी: और आप कहेंगे सिपाहियों से कि ये कपडा ही राष्ट्र है

dantewadavani.blogspot.com

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Anita Bharti

6 hours ago ·

  • हर बार निशाने पर संविधान ही क्यों?
  • ( पिछले साल यह लेख लिखा था, अब फिर इसे आपके पढ़ने के लिए दुबारा शेयर कर रही हूँ)
  • भारत का संविधान अपने आरंभिक स्वरुप से लेकर पूर्ण होकर बनने, बनने से लेकर लागू होने, और लागू होने से लेकर आज तक लोकतंत्र विरोधी और कट्टरपंथी ताकतों के निशाने पर रहा है। संविधान को निशाने पर लेने के कई कारण है। पहला तो यह कि हमारा संविधान भारत के सभी लोगों को एक समान अधिकार और स्वतंत्रता प्रदान करता है फिर चाहे वे किसी भी जाति-धर्म-भाषा-रंग-रुप-लिंग से संबंध क्यों न रखते हो। संविधान विरोध का दूसरा कारण है कि वह समाज के सभी वंचित तबकों के हितों के पालन और उनकी रक्षा की बात करता है. तीसरा संविधान विरोध का कारण भारत के सार्वजनिक संसाधनों को निजी हाथों में जाने के विरुद्ध जनता के पक्ष में राष्ट्रीयकरण की बात करता है। संविधान को हटाने, संशोधन करने और उसको हटाने का जो कारण है वह है भारत के संविधान का डॉ.अम्बेडकर द्वारा लिखा जाना है। पांचवा कारण संविधान में दलित-आदिवासियों के आरक्षण का प्रावधान होना है। इन सब कारणों के चलते संविधान का बॉयकाट करने, बार-बार उसको संशोधन करने या या उसको पूर्ण रूप से बदल नवीन संविधान लागू करने की बातें करने वालों में आरक्षण विरोधी, अम्बेडकर विरोधी, दलित-वंचित-स्त्री विरोधी, मनुस्मृति समर्थक जातिवादी चेहरे शामिल है।
  • संविधान हटाने,बदलने, संशोधन करने या नकारने की बातें जब से संविधान बना तबसे होती रही है और दलित-वंचित तबका इसका कठोर जबाब हमेशा देता रहा है। संविधान विरोध का मुख्य कारण उसमें दलित-आदिवासियों के लिए सामाजिक आधार पर स्पष्ट रुप से आरक्षण का प्रावधान होना है। पिछले एक साल से भ्रष्ट्राचार के मुद्दे को लेकर बार-बार संविधान को टारगेट किया गया। परंतु इस बार हैरान करने वाली बात है कि अपने आपको ताल ठोंककर प्रगातिशील और वामपंथी होने का दावा ठोकने वाले ग्रुप 'दामिनी बलात्कार केस' की आड़ लेकर यह सब कर रहे है। संविधान दिवस का बॉयकाट करने का फैसला क्या इन तथाकथितों के मन में दलितों के प्रति सदियों से छिपी नफरत और द्वेष का नतीजा नही है? । कितनी अजीब बात है कि एक तरफ यह लोग 'दामिनी बलात्कार' केस में अपराधियों के विरुद्ध कड़े से कड़ा न्याय भी संविधान के माध्यम से चाहते है और दूसरी तरफ उसका बॉयकाट भी करते है।
  • यह किसी से छिपा नही है कि आजादी के बाद भारत के लिए निर्मित हो रहे संविधान में डा.अम्बेडकर जिस 'हिन्दू कोड बिल' के माध्यम से भारतीय स्त्री को पुरुषों के समान अधिक से अधिक अधिकार और समानता देने के लिए अड़े हुए थे, उस समय भी कट्टर पंथी हिन्दू कोड बिल और उनके खिलाफ संगठित रुप से लामबंद हो उनके विरोध में ज़हर उगल रहे थे। उस समय स्त्रियों को अधिकार ना मिलते देख और कट्टर पथिंयों के चौतरफा दबाब और तानाशाही पूर्ण विरोध देख वे बेहद निराश हो गए। अपने स्त्री के प्रति स्वतंत्रता और समानता के जैसे मूल्यों और सिद्धांतो पर अडिग रहते हुए इन धार्मिक कट्टरपंथी, जातिवादी और मनुवादियों का अकेले ही पूरी ताकत से मुकाबला करते रहे। इस बिल मे जयदाद में उत्तराधिकार, गोद लेना, भरण –पोषण, विवाह तथा इनके माध्यम से लैंगिक समानता की मांग की गयी थी जोकि कट्टरपंथियों को जरा भी रास नही आई। उस समय 'सरदार पटेल' और 'राजेन्द्र प्रसाद' विरोध में खुलकर सामने आ गए थे। इन नेताओं का मानना था कि 'हिन्दू कोड बिल' पास होने से हिन्दू समाज का मूल ढांचा ही ढह जाएगा। इस ढांचे को बचाने के लिए 'ऑल इंडिया वीमेंन्स कांफ्रेंस' तक ने हिन्दू कोड बिल का खुलकर विरोध किया था। अंत में इन प्रतिक्रियावादियों का कट्टर विरोध के चलते अंत में डा. अम्बेडकर ने 1951 मे संसद में अपने हिन्दू कोड बिल के मसौदे को रोके जाने के खिलाफ जाकर मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया। क्या आज हम कल्पना भी कर सकते है कि कोई स्त्रियों की हियायत में उतर कर अपना पद-प्रतिष्ठा सब दांव पर लगा दे? भारतीय समाज में आज तक जो भी स्त्रियों के पक्ष में लड़ाई लड़ी गई थी या लड़ी जा रही है क्या वह डॉ अम्बेडकर के इतने बडे योगदान और त्याग के बिना संभव थी ?
  • दुख और गुस्सा इस बात है कि हिन्दू कोड़ बिल से लेकर आज तक दलितों और स्त्रियों के हक. सम्मान और अस्मिता पर लगातार हमले होते रहे है। जिसकी मूल जड़ धर्म में छिपी हुई है। इसी धर्म को नकारने और स्त्री की आजादी का बिगुल बजाने 25 दिसम्बर को अम्बेडकर द्वारा "मनुस्मृति दहन" किया गया। डा. अम्बेडकर देश की तरक्की का मानदंड स्त्रियों की तरक्की से देखते थे। ऐसे में इन प्रगतिशीलों से यह पूछा जाना चाहिए कि क्या दामिनी के हक में खड़े होने के लिए उन्हें संविधान दिवस के अलावा और कोई दिन क्यों नही दिखता? भारत में बहुत से ऐसे त्यौहार व तथाकथित प्रतिष्ठित नायक रहे है जो स्त्री विरोधी रहे है। फिर क्यों नही इन त्यौहारों और इन नेताओं के जन्मदिन- मरण दिन को बायकॉट या विरोध करने के लिये इस्तेमाल नही किया जाता या जा सकता है?
  • पिछले कुछ समय से दलितों में अपने अधिकारों के प्रति बढ़ी जागरूकता और उसके लिए संघर्श करने की जिद्द के आगे चरमपंथियों कथाकथित बुद्धिजीविया प्रगातिशीलों की रातों की नींद उड़ी हुई है। वे अपने पूरे मनोयोग से साम दाम दण्ड भेद से इस जुनूनी जिद्द को दबाना चाहते है। इसका सबसे सरल और मारक तरीका है दलित प्रतीकों, उनके नायकों उनके दिनों पर प्रहार या फिर कब्जा जमाकर करके उनके मनोबल को तोड़ने की कोशिश करना।
  • रोज कहीं ना कहीं से अम्बेडकर की मूर्तियां तोड़ने की खबरे आती रहती है, दलित स्त्रियों की जगह-जगह अपमान बलात्कार की घटनाएं इसकी साक्षी है, और इन अत्याचारों पर घोर चुप्पी लगा जाना भी साक्षी है। 6 दिसम्बर को जब पूरे देश के दलित अपने 'नायक' का परिनिर्वाण मनाते है उस दिन सोची समझी साजिश के तहत बाबरी मस्जिद गिराना दलित-मुस्लिम एकता और अस्मिता पर एक साथ प्रहार था। 'आरक्षण', भ्रष्टाचार का मुद्दा हो अथवा 'बलात्कार' या फिर किसी 'घोटाले' का ये सारे मुद्दे और उसको नेतृत्व देने वाले सबसे पहले संविधान की धज्जियां उडाने से नहीं चूकते।
  • आज अगर संविधान गलत हाथों में है और उसका दुरुपयोग हो रहा है तो इसमें संविधान बदलने,हटाने या बॉयकाट करने से हल नही निकलने वाला। अगर संविधान दिवस पर सोनी सोरी के यौनांगों में पत्थर डालने वाले अंकित गर्ग को भारतीय सरकार पुरुस्कृत करती है तो यह सत्ता का चरित्र है, संविधान का चरित्र नहीं है।संविधान तो हमें सोनी सोरी के हक में कानूनी लड़ाई लड़ने का हक देता है। बाबा साहेब ने संविधान सौपते हुए कहा था- "संविधान चाहे जितना भी अच्छा क्यों ना हो, यदि उसे लागू करने वालों की नियत अच्छी ना हो तो अच्छा संविधान भी बुरा बन जाता है" तो जो लड़ाई संविधान का आपहरण करने वालो के खिलाफ होनी चाहिए ना कि उस संविधान के जो दलितों-वंचितों-शोषितो-स्त्रियों को समता-समानता-स्वतंत्रता देकर उनको उनके हकों दिलाने की हिमायत में खड़ा है।
  • अनिता भारती
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    • You, गंगा सहाय मीणा, Sudhir Ambedkar, Subhash Gautam and 23 others like this.

    • Faqir Jay वे संविधान के खिलाफ हैं क्यूंकि संविधान में आरक्षण का प्रावधान है ,दलित -सवर्ण -मुस्लिम -स्त्री सबको एक वोट का अधिकार है .समानता का प्रावधान है

    • 6 hours ago · Like · 2

    • Core Rtag "संविधान चाहे जितना भी अच्छा क्यों ना हो, यदि उसे लागू करने वालों की नियत अच्छी ना हो तो अच्छा संविधान भी बुरा बन जाता है"

    • 5 hours ago · Like · 1

Alok Putul

न चाहें तो भी बाबा नागार्जुन याद आ ही जाते हैं. ये रही पूरी कविता-


किसकी है जनवरी, किसका अगस्त है?

कौन यहां सुखी है, कौन यहां मस्त है?

सेठ है, शोषक है, नामी गला-काटू है

गालियां भी सुनता है, भारी थूक-चाटू है

चोर है, डाकू है, झूठा-मक्कार है

कातिल है, छलिया है, लुच्चा-लबार है

जैसे भी टिकट मिला, जहां भी टिकट मिला

शासन के घोड़े पर वह भी सवार है

उसी की जनवरी छब्बीस

उसी का पंद्रह अगस्त है

बाकी सब दुखी है, बाकी सब पस्त है

कौन है खिला-खिला, बुझा-बुझा कौन है

कौन है बुलंद आज, कौन आज मस्त है

खिला-खिला सेठ है, श्रमिक है बुझा-बुझा

मालिक बुलंद है, कुली-मजूर पस्त है

सेठ यहां सुखी है, सेठ यहां मस्त है

उसकी है जनवरी, उसी का अगस्त है

पटना है, दिल्ली है, वहीं सब जुगाड़ है

मेला है, ठेला है, भारी भीड़-भाड़ है

फ्रिज है, सोफा है, बिजली का झाड़ है

फैशन की ओट है, सबकुछ उघाड़ है

पब्लिक की पीठ पर बजट का पहाड़ है

गिन लो जी, गिन लो, गिन लो जी, गिन लो

मास्टर की छाती में कै ठो हाड़ है!

गिन लो जी, गिन लो, गिन लो जी, गिन लो

मजदूर की छाती में कै ठो हाड़ है!

गिन लो जी, गिन लो, गिन लो जी, गिन लो

घरनी की छाती में कै ठो हाड़ है!

गिन लो जी, गिन लो, गिन लो जी, गिन लो

बच्चे की छाती में कै ठो हाड़ है!

देख लो जी, देख लो, देख लो जी, देख लो

पब्लिक की पीठ पर बजट का पहाड़ है!

मेला है, ठेला है, भारी भीड़-भाड़ है

पटना है, दिल्ली है, वहीं सब जुगाड़ है

फ्रिज है, सोफा है, बिजली का झाड़ है

फैशन की ओट है, सबकुछ उघाड़ है

महल आबाद है, झोपड़ी उजाड़ है

गरीबों की बस्ती में उखाड़ है, पछाड़ है

धतू तेरी, धतू तेरी, कुच्छो नहीं! कुच्छो नहीं

ताड़ का तिल है, तिल का ताड़ है

ताड़ के पत्ते हैं, पत्तों के पंखे हैं

पंखों की ओट है, पंखों की आड़ है

कुच्छो नहीं, कुच्छो नहीं

ताड़ का तिल है, तिल का ताड़ है

पब्लिक की पीठ पर बजट का पहाड़ है!

किसकी है जनवरी, किसका अगस्त है!

कौन यहां सुखी है, कौन यहां मस्त है!

सेठ ही सुखी है, सेठ ही मस्त है

मंत्री ही सुखी है, मंत्री ही मस्त है

उसी की है जनवरी, उसी का अगस्त है।

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Satya Narayan

वैसे मजेदार बात ये है कि ये कविता वो लोग याद कर रहे हैं जिन्‍हे मार्क्‍स के सपनों को पूरा करने से कोई मतलब नहीं है व एनजीओ, बड़े बड़े मीडिया हाउसों में बैठे मार्क्‍सवाद के नाम की बौद्धिक जुगाली करते हुए अपनी जिन्‍दगी मजे से जी रहे हैं।


Samar Anarya


तमाम पार्टीबन्द, प्रकाशनवादी, वंशवादी, टीवीचैनलवादी, जहरवादी, मधुकिश्वरवादी मार्क्सवादियों को समर्पित। टिप्प्णी करते हुए ध्यान रखें कि ब्लाक शांति का सबसे सुगम रास्ता है यह बुद्धत्व मैंने पा लिया है.


कार्ल हाइनरिख मार्क्स


मैं देखता हूँ तुम्हे छला जाते हुए,

तुम्हारे ही अनुयायियों द्वारा

बस तुम्हारे शत्रु बचे हैं वैसे

जैसे वे हमेशा से थे. ------------ हान्स मैग्नस एंजेंसबर्गर (अनुवाद मेरा)


Karl Heinrich Marx


I see you betrayed

by your disciples

only your enemies

remained what they were. -------- Hans Magnus Enzensberger

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Dalit Mat

13 hours ago ·

  • गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं। लेकिन पूर्व संध्या पर इस हकीकत को भी जान लिजिए। यह लेख दलित दस्तक के जनवरी अंक में प्रकाशित हुआ है।
  • ---------------------------------------------------
  • किसने करवाई संविधान में टेंपरिंग!
  • जब आरटीआई को लेकर सरकार अपने स्तर से इतनी जागरुकता फैला रही है, आमजन को मिले इस अधिकार को लेकर अब खुद सरकार सवालों के घेरे में है. आरोप गंभीर इसलिए है क्योंकि आरटीआई एक्टिविस्ट आर एल केन संविधान से जुड़े मुद्दे पर सरकार से लगातार सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांग रहे हैं लेकिन संबंधित सरकारी विभागों की ओर से केन को अब तक सिर्फ निराशा ही मिली है. केन के आरोपों पर सरकार की चुप्पी इसलिए भी खटकने वाली है क्योंकि उनके आरोप गंभीर हैं. उनका आरोप है कि डॉ. भीमराव आंबेडकर ने जो संविधान राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को सौंपा, उससे छेड़छाड़ (टेंपरिंग) हुई है. उनका आरोप है कि टेंपरिंग करने का काम देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की देख-रेख में हुआ है!
  • संविधान पर शोध कर रहे और डॉ. बीआर आम्बेडकर विचार मंच के महासचिव आरएल केन कहते हैं कि सरकार ने उनके दर्जनों आरटीआई का जवाब नहीं दिया है. केन संविधान टेंपरिंग को लेकर एफआईआर का दम भी भरते हैं. वो कहते हैं कि सही को बाहर लाने का काम जारी रहेगा. तथ्यों को देखें तो यह सही भी है कि डॉ. आंबेडकर द्वारा राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को संविधान की हस्त लिखित प्रति सौंपने के बाद उसके मूल स्वरूप में कुछ बदलाव किए गए हैं और कुछ लोगों के नाम जोड़े गए हैं. लेकिन सवाल ये है कि ऐसी टेंपरिंग किसने करवायी? इसका खुलासा होना ही चाहिए. इस पूरे मामले में सरकार की मंशा पर इसलिए भी सवाल उठ रहे हैं क्योंकि सरकार केन द्वारा मांगे गए आरटीआई का जवाब देने से कतरा रही है. आरटीआई कार्यकर्ता केन के अनुसार संविधान के मूल स्वरूप में बड़े पैमाने पर छेड़छाड़ की गई है. 20 सितंबर 2013 को लोकसभा सेक्टेरिएट के जनसंपर्क विभाग से आरटीआई के तहत संविधान यानी एतिहासिक दस्तवाजे को धोखे से बदलने या किसी और का भी नाम जोड़े जाने को लेकर जो सूचना मांगी गई थी उसका जवाब सरकार के किसी भी विभाग के पास नहीं है. केवल फाइलें एक विभाग से दूसरे विभाग में घूम रहीं हैं. जहां तक छेड़छाड़ की बात है तो कई तथ्य इसकी ओर इशारा भी कर रहे हैं. मसलन, संविधान के मूल प्रति में कहीं पर भी मोहन दास करमचंद गांधी को 'राष्ट्रपिता' महात्मा गांधी नहीं लिखा गया है लेकिन जो संविधान मौजूदा समय में है, उसमें संविधान के पेज संख्या 160 पर मोहनदास करमचंद गांधी को न केवल 'राष्ट्रपिता' लिखा गया है बल्कि उनकी तस्वीर भी संविधान के पन्नों पर बनी हुई है. 'दलित दस्तक' का मकसद हरगिज किसी की भावना को ठेस पहुंचाने का नहीं है लेकिन संविधान के मूल दस्तावेज के साथ हुई छेड़छाड़ (टेंपरिंग) के कारण भी अंबेडकरवादियों के एक बड़े समूह की भावना आहत हुई है. इसको उजागर कर जनता के सामने लाना जरूरी भी है.
  • डॉ. भीमराव आंबेडकर ने संविधान की हस्तलिखित प्रति राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को जवाहरलाल नेहरू समेत कई नेताओं के सामने सौंपी थी उस समय की एक तस्वीर कई जगह चस्पा है लेकिन इस ऐतिहासिक क्षण की वह तस्वीर कहीं भी संविधान में नहीं है. सबसे बड़ा सवाल है कि जो तस्वीरें जरूरी थी और जायज तौर पर जिनका संविधान के साथ प्रकाशित होना जरूरी था, उन्हें शामिल क्यों नहीं किया गया. जबकि उससे कम महत्व की तस्वीर को संविधान में जगह मिल गई. असल में माना जाता है कि संविधान लिखने के बाद सामंतवादी तत्व बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर से सजग हो गए थे. वो उन्हें कोई और जिम्मेदारी देना तो दूर राष्ट्र के किसी मसले पर राय मसविरा लेना भी जरूरी नहीं समझते थे. इसका सबूत यह है कि डॉ. आंबेडकर के अर्थशास्त्री होने के ज्ञान का सरकार ने कभी उपयोग नहीं किया. जबकि इस विषय पर उनकी बेहतरीन पकड़ थी. अगर आज की सरकारें भी बाबासाहेब के अर्थशास्त्र के दिए गए फार्मूले को सही ढ़ंग से लागू कर दें तो उससे देश की कई समस्याओं को दूर किया जा सकता है. लेकिन तात्कालिन संसद में सबसे ज्यादा विद्वान होने के बावजूद भी बाबासाहेब को देश की तमाम मुख्य कामों से दूर रखा गया. संविधान लिखे जाने के बाद संविधान के प्रकाशन को लेकर उसके मूल स्वरूप के साथ क्या फ्राड हो रहा है और उसमें किन तस्वीरों और नामों को जोड़ा जा रहा है इसकी भनक भी बाबासाहेब को नहीं लग पायी थी.
  • संविधान के हस्त लिखित सुलेख की दो प्रतियां एक हिन्दी में और एक अंग्रेजी में बनाई गईं थीं. दोनों प्रतियां लोकसभा की लाइब्रेरी में हीलियम गैस चैंबर में रखीं गईं हैं. 1954 में डॉ. आंबेडकर के कानून मंत्री के पद से इस्तीफा देने के पहले और बाद में नेहरू ही ऐसे शख्स थे जिनकी निगरानी में ही संविधान के प्रकाशन और मुद्रण का काम किया गया. संविधान का प्रकाशन और मुद्रण तत्कालीन संसदीय सचिवालय ने किया था, जो वर्तमान में लोकसभा सचिवालय के नाम से जाना जाता था. केन का आरोप है कि संविधान को कैलीग्राफ किए जाने से लेकर उसे प्रकाशित किए जाने तक हर समय संविधान और प्रेस रजिस्ट्रेशन एक्ट 1867 का पालन नहीं किया गया. जबकि प्रेस रजिस्ट्रेशन एक्ट के सेक्शन तीन के अनुसार केवल प्रकाशक और मुद्रक का नाम आना चाहिए था. लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने भारतीय संविधान के प्रकाशन को मजाक बना दिया. नेता जी सुभाष चंद्र बोस को लेकर भी केन ने सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं. उनका कहना है कि इस विषय पर सरकार की नाकामी कम हैरान कर देने वाली नहीं है. बकौल केन, 'सरकार देश की आजादी के छह दशक बाद भी उन्हें 'देश द्रोही' ही बता रही है. जहां एक तरफ नेताजी की तस्वीर संविधान के पेज नंबर 160 पर छापा जाता हैं वहीं दूसरी तरफ ब्रटिश इंडिया सरकार के प्रोकल मिशन में नेता जी आज भी 'देश द्रोही' हैं. अगर नेता जी देश द्रोही हैं तो उनकी तस्वीर संविधान में कैसे छाप दी गई.' केन ने सरकार के सामने यह सवाल भी उठाया है लेकिन इसका जवाब भी भारत सरकार के पास नहीं है. इस सवाल को लेकर केन द्वारा जो आरटीआई दी गई उसका जवाब चार महीना बीत जाने के बाद भी नहीं मिला है. सवाल ये भी है कि क्या आजाद मुल्क में आज भी नेता सुभाष चंद्र बोस देश द्रोही हैं.
  • संविधान और बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर से जुड़े तमाम मुद्दों पर पैनी नजर रखने वाले केन कहते हैं कि 11वीं सीबीएसई बोर्ड की राजनीति शास्त्र की किताब में भी बातें तो संविधान की लिखीं गई हैं लेकिन संविधान निर्माता भीमराव अंबेडकर की एक ही तस्वीर को इस तरह छापा गया है कि जैसे उनकी कोई दूसरी तस्वीर उपलब्ध ही न हो. चैप्टर 9 के पेज नंबर 203 पर जो तस्वीर लगी है उसी तस्वीर को उल्टाकर चैप्टर 1 के पेज नंबर 21 पर लगाया गया है. एनसीईआरटी पुस्तक के प्रकाशक ने इतना भी ध्यान नहीं दिया कि डॉ. अंबेडकर दाएं हाथ से लिखते थे लेकिन ऐसा करने पर वो बांए हाथ से लिखते हुए दिखाई पड़ रहे हैं.
  • मौजूद तथ्यों के मुताबिक हस्त लिखित संविधान सौंपे जाने के बाद उसके कैलीग्राफी का काम प्रेम बिहारी नरायण रायजादा को दिया गया. प्रेम बिहारी रायजादा ने न केवल कैलीग्राफर के रूप में अपना नाम संविधान में अंकित किया बल्कि प्रेम बिहारी रायजादा की वंशावली का भी संविधान में उल्लेख किया गया. जो न केवल संविधान की मूल भावना के खिलाफ है बल्कि फ्राड भी है. जबकि इसके उलट संविधान में उसके निर्माता का ही कहीं नाम नहीं लिखा गया. सूत्रों की माने तो कैलीग्राफी के लिए उस समय प्रेम बिहारी रायजादा को पारिश्रमिक के तौर पर चार हजार रुपए दिए गए थे. प्रेम बिहारी रायजादा की मनमानी को इससे ही समझा जा सकता है कि प्रेम बिहारी रायजादा ने खुद को ही संविधान का लेखक संविधान में अंकित कर दिया और किसी भी नेता या प्रधानमंत्री ने विरोध नहीं किया. देश के कई नेता भारतीय संविधान की दुहाई देते नहीं थकते और संविधान को देश की आत्मा कहते हैं लेकिन दुर्भाग्य है कि संविधान के मूल स्वरूप के साथ छेड़छाड़ के खिलाफ वो कभी आवाज उठाते नहीं दिखते हैं. यह दिखाता है कि संविधान लागू होने के 65 साल बाद भी संविधान निर्माता के प्रति सामंती नेताओं की न तो सोच बदली है और न ही काम करने का तरीका.
  • - अखिलेश कृष्ण मोहन
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    • Sunil Sardar, Sandeep Kāla, Kailash Wankhede and 60 others like this.

    • Davinder Sachdeva Naman to babsahab dr bheem rav ambedkar

    • 13 hours ago · Like

    • सुनील कुमार प्रेमी नेहरु गाँधी की नीतियों ने देश को बर्बाद किया है !

    • 12 hours ago · Like

    • Heeman Adam OR NA HI DALIT NE APNI SOCH BADLI HAI...JAB JAHIR HAI KI HINDU DALITO KE KHOONI DUSHMAN HAIN OR HAMESH HI RAHENGE..TO HAM KAISE AAJ BHI DAYA KI BHEEK MANGNE KI GHATIYA SOCH RAKHTE...HAME APNI SOCH BADALNI HOGI...HAME DALIT KA ADHURA PADA KAAM PURA KARN...See More

    • 12 hours ago · Like

    • Ajai Malik सविधान की टेंपरिंग की जानकारी तो मुझे नहीं है मगर सुना है कि कई दफ्तरों के प्रेषण रजिस्टरों में भी कई तरह की टेंपरिंग आज भी धड़ल्ले से की और कराई जाती है। विशेष कर आरटीआई मामलों में पिछली तारीख में भेजे गए पत्रों के डिस्पैच नंबर में समय से न भेजे गए जव...See More

    • 9 hours ago · Like

    • Arvind Shukla agar ambedkar wadi ye mante hain ki samvidhan baba saheb ne likha to unko uski nakamiyun ka jimma lena hoga... jinna aur baba saheb 2 bhartiy rajneet k ese mohare hain junke bare me kuch samjhna jaruri hai... angrejon se communial award milne se pahle ...See More

    • 6 hours ago · Like

    • Arvind Shukla Nehru ki tarh baba saheb ko v pujne wali ka pidi rahi..satta ne esa abhamandal banya ki sawal ka dum kisi me nahi raha... Nehru aur jinna ka siyasat me mulyankn hua.. lekin baba saheb par kisi ne charch nahi ki...keval ektrfa lekhan hua...eske dure pahlu ko v samne lane ki jarurat hai

    • 6 hours ago · Like

    • Dalit Mat अरविंद जी, बाबासाहेब के बारे में किसी ने कुछ लिखा था। मैंने मुद्राराक्षस से इस बारे में एक सवाल पूछा था। उनका कहना था कि बाबासाहेब के बारे में वही लिखे जो विद्वता में उनके आस-पास हो। जाहिर है, डॉ. आंबेडकर के वक्त ने उनके जितना विद्वान कोई नहीं था। कोलंबिया विवि भी इस पर मुहर लगा चुका है।

    • बाकी जहां तक जाति की बात है तो इसका समाधान उन्हीं को करना होगा, जिन्होंने इसे बनाया है। हमने तो नहीं बनाया।

    • 6 hours ago · Like · 4

    • Arvind Shukla bikul sahi kaha...kisi k karyun ka mulyankan karne k liye uske jitna vidvan hone ki jarurat nahi hai... desh ka savardik pada likha aadmi sabse bhrst primeminister hota hai...to kya uski vivdta use clnchit dila degi...jaati kisne bani ... kyun banai ...kya karan the koi nahi janta...lekin kutrak sab samjhte hain...

    • 6 hours ago · Like

    • Heeman Adam ye shaitan log ambedkar ke naam se hi jalte hain unse hame koi apeksha nahi rakhni chahiye...

    • 6 hours ago · Like

    • Arvind Shukla ab to main v manne laga hun ki jaati jinda rakhan jaruri hai..sanghrs k dur me yahi golbandi ka aadhar banegi... vartman vyvsatha se ashantushton ko 1 manch par lane k liye jaati ka sahara jaruri hai...hum log nadai me virodh karte the..samjh k sath ye baat samjh me aayi

    • 6 hours ago · Like

    • Arvind Shukla heeman ji aapne sahi kaha....

    • 6 hours ago · Like

    • Arvind Shukla iss desh ki agar sabse kukarmi party congress rahi hai...uske sahyogi k roop me baba saheb ki bhomika v janchni hogi...aap apne hisab se mulyankan karen hum v apna najriya dene ki koshish karenge

    • 6 hours ago · Like

    • Shubhranshu Choudhary यह आदिवासी करमा गीत भी सुनिए http://cgnetswara.org/index.php?id=30202

    • आहा हे हाय तिरंगा सब लहराना यार...आदिवासी करमा गीत

    • cgnetswara.org

    • CGnet Swara is a platform to discuss issues related to Central Gondwana region in India. To record a message please call on +91 80 500 68000.

    • 5 hours ago · Like · 1

    • Pankaj Wasnik Baba sahab k naam se or kaam se Jayne wale Kal bhi the aaj bhi hai or Kal bhi rahenge.

    • Virodhi humesha unko nicha dikhane ki hashish karate rahe hai or aage bhi karte rahenge....See More

    • 4 hours ago · Like

    • Sunanda Sable Shuklaji doosaro ki nakamiya nikalne se pahle khud ki nakamiyo par to gaur pharmayiye.

    • 49 minutes ago · Like

    • Sunanda Sable As per manusmriti, aap logo ko adhyapak aur adhyayan ka jimma saupa hai, phir bhi is desh ki 75% janta illiterate kyu hai.

    • 47 minutes ago · Like

    • Sunanda Sable Shuklaji, pahe khud ki gireban me jhakiye.

    • 46 minutes ago · Like

    • Sunanda Sable Aur vaise bhi Bheemrao Ambedkar ka mulyankan karne ki aapki aukat nahi hai. Aap Hegdewar ka mulyankan kare to behtar hoga.

    • 43 minutes ago · Like

Aam Aadmi Party with Romil Tripathi and 14 others

Vijay Baba sharing his experience of how he is feeling after inaugurating NDMC Hospital.


Arvind Kejriwal called him up & asked him to inaugurate NDMC Hospital. Yes, this is the achievement of "Aam Aadmi".


विजय बाबा NDMC हॉस्पिटल का उदघाटन किये| सुनिए, उनकी जुबान से उनकी भावनायें आम आदमी पार्टी और अरविन्द केजरीवाल के लिए|


जी हाँ, हमें ऐसा ही भारत चाहये जहां हर आम आदमी वी.आई.पी हो|


Video Courtesy: Aaj Tak.

Like ·  · Share · 7,8539032,334 · 5 hours ago ·

Sudha Raje

ये एक महासंग्राम है अश्शीललता और

सेक्स रेकैट चलाने वाले एक और पुलिस और

राजनीति का संरक्षण पा जाते हैं

दूसरी तरफ ।

गाँव गाँव शराब जुआ नशा पुलिस

राजनीति की शह पर बढ़ रहा है

और पुरानी परंपरायें तमाम

नास्तिकतावादियों ने तोङ दी है और

नये नियम कभी आत्मा से जुङे नहीं ।

बल का राज है

औरत पैसा और ओहदे को मौज

मस्ती की मंजिल कह दिया है

पंचायतें डायन कहकर गांव बाहर कर

देती है और गैंग रेप करके प्रेम करने

की सजा दी जाती है ।

मीडिया विज्ञापन सब

औरत की देह को नग्न दिखाकर सेक्स बेच

रहे हैं

लेकिन

दूर क्या हो रहा है दिल्ली से बाहर

इस पर न कोई चिंतित है ना रोकथाम के

सामाजिक समग्र अभियान


(पश्चिम बंगाल कांड

जहाँ

स्टेज पर गैंग रेप होता रहा ताकि गाँव भर देखता रहे और दहशत में रह सके)


कौन सा गणतंत्रदिवस है??


स्त्रियों को देवी कहने वाले राज्य में जहाँ दुर्गापूजा सबसे बङा पर्व है?

जहाँ

मुख्यमंत्रीमहिला है?

जहाँ सबसे पहले स्नातक हुयी स्त्रियाँ?


क्या संदेश दे रहे है ऐसे कांड??


जो खबर नहीं बने उनका क्या?

©®सुधा राजे

Like ·  · Share · 7 hours ago ·

  • Sudha Raje and 23 others like this.

  • View 7 more comments

  • Sudha Raje बिलकुल और दंडित किया जाये कठोरता से ऐसी औरतें जो पहले कहीं बेची खरीदी जाती थी और विवाह ना कर पाने वाले वहाँ चले जाते थे अब इंटरनेट पर सक्रिय हैं और उनके दलाल भी । जो रहा सहा रोकथाम था वह बारबाला और चीयरलीडर संस्कृति ने सङाँध भरकर रख दी

  • 6 hours ago · Like · 2

  • Sudha Raje ये भारतीय संस्कृति के तानेबाने को तोङकर औरत खाने बेचने रेप करने वालों का देश बना डालने की हमलावर मानसिक सङाँध पैदा करने की भयानक आँधी चल रही है ।

  • 6 hours ago · Like · 2

  • Sudha Raje हर तरफ से घर में हर पुरुष हर नवयुवा लङकी को समझाया जा रहा है बस पैसा कमाओ और सेक्स कपङे कार म्यूजिक सिनेमा क्रिकेट पब पार्टी पर लुटाओ बाकी सब बकवास है जिन्दगी मतलब अय्याशी

  • 6 hours ago · Like · 1

  • Pratap Singh Negi सार्थक और सुन्दर

  • 5 hours ago · Like

  • Palash Biswas Taking.

  • a few seconds ago · Like

Dalit Adivasi Dunia

दलित आदिवासी दुनिया के संस्थापक पियुस तिर्की का आज(२५-०१-२०१४ ) निधन हो गया। वे पश्चिम बंगाल के अलीपुर द्वार से लगातार पांच बार सांसद रहे थे। इस दुःख घड़ी में पूरा दलित आदिवासी दुनिया परिवार उनके साथ है।

Like ·  · Share · 662718 · 6 hours ago ·

Satya Narayan

राजधानी दिल्ली में तगड़े सुरक्षा-बन्दोबस्त के साथ गणतन्त्र दिवस परेड होने वाली है। वहाँ महामहिम गण और अतिविशिष्ट जन मौजूद होंगे। एक तो जनता में अब मेले-ठेले वाला पुराना उत्साह रहा भी नहीं, दूसरे तगड़े सुरक्षा बन्दोबस्त उसे राजपथ तक फटकने भी नहीं देते।


सवाल यह भी उठाया जा सकता है कि गणतन्त्र दिवस का मुख्य आकर्षण सैन्य शक्ति का प्रदर्शन ही क्यों हुआ करता है? क्या लोकतन्त्र की मजबूती सेना की ताकत से तय होती है? वैसे इस प्रतीकात्मकता से जाने-अनजाने एक सच्चाई ही प्रदर्शित होती है। हर बुर्जुआ जनवाद (लोकतन्त्र) वास्तव में बुर्जुआ वर्ग का अधिनायकत्व होता है, वह बहुमत पर शोषक अल्पमत का शासन होता है जो थोड़े कामचलाऊ और थोड़े दिखावटी जनवाद के बावजूद मुख्यत: बल पर आधारित होता है। सामरिक शक्ति उसकी आधारभूत ताकत होती है। गणतन्त्र दिवस के अवसर पर सामरिक शक्ति का प्रदर्शन एक ओर लोगों में अन्धराष्ट्रवादी भावोद्रेक पैदा करता है, दूसरी ओर यह भी संदेश देता है कि इतनी विराट सैन्य-शक्ति से लैस सत्ता के ख़िलाफ आवाज़ उठाने की जुर्रत कोई कत्तई न करे।


बहरहाल, इन ऊपरी, चलताऊ बातों से हटकर ऐसे मौके पर यह बुनियादी सवाल उठाये जाने की जरूरत है कि हम जिस सम्प्रभु, समाजवादी जनवादी (लोकतान्त्रिक) गणराज्य में जी रहे हैं, वह वास्तव में कितना सम्प्रभु है, कितना समाजवादी है और कितना जनवादी है? पिछले साठ वर्षों के दौरान आम भारतीय नागरिक को कितने जनवादी अधिकार हासिल हुए हैं? हमारा संविधान आम जनता को किस हद तक नागरिक और जनवादी अधिकार देता है और किस हद तक, किन रूपों में उनकी हिफाजत की गारण्टी देता है? संविधान में उल्लिखित मूलभूत अधिकार अमल में किस हद तक प्रभावी हैं? संविधान में उल्लिखित नीति-निर्देशक सिध्दान्तों से राज्य क्या वास्तव में निर्देशित होता है? ये सभी प्रश्न एक विस्तृत चर्चा की माँग करते हैं। इस निबन्ध में हम थोड़े में संविधान के चरित्र और भारत के जनवादी गणराज्य की असलियत को जानने के लिए कुछ प्रातिनिधिक तथ्यों के जरिये एक तस्वीर उपस्थित करने की कोशिश करेंगे।


किसी भी चीज के चरित्र को संक्षेप में, सही-सटीक तरीके से समझने के लिए, ऊपरी टीमटाम और लप्पे-टप्पे को भेदकर उसके अन्दर की सच्चाई को जानने का सबसे उचित-सटीक तरीका यह होता है कि हम उस चीज के जन्म, विकास और आचरण की ऐतिहासिक प्रक्रिया की पड़ताल करें। यही पहुँच और पध्दति अपनाकर हम सबसे पहले भारतीय संविधान के निर्माण की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से चर्चा की शुरुआत कर रहे हैं। इसके बाद हम संविधान सभा के गठन और संविधान-निर्माण की प्रक्रिया पर चर्चा करेंगे। इसके बाद इसके चरित्र-विश्लेषण और भारतीय गणराज्य के चाल-चेहरा-चरित्र को जानने-समझने की बारी आयेगी।

http://www.mazdoorbigul.net/archives/946

कैसा है यह लोकतन्त्र और यह संविधान किनकी सेवा करता है? (पहली किस्त) - मज़दूर बिगुल

mazdoorbigul.net

हम जिस सम्प्रभु, समाजवादी जनवादी (लोकतान्त्रिक) गणराज्य में जी रहे हैं, वह वास्तव में कितना सम्प्रभु है, कितना समाजवादी है और कितना जनवादी है? पिछले साठ वर्षों के दौरान आम भारतीय नागरिक को कितने जनवादी अधिकार हासिल हुए हैं? हमारा संविधान आम जनता को किस हद तक नागरिक और जनवादी अधिकार देता है और किस हद...

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Aam Aadmi Party

Mr. V Kalyanam, 91 year old freedom fighter and Mahatma Gandhi's personal Secretary joined ‪#‎AAP‬.

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Satya Narayan

शाहाबाद डेयरी के एफ ब्‍लॉक स्थित पांच मंदिर के आसपास, व बी ब्‍लॉक में चले इस अभियान में व्‍यक्तिगत संपर्क व जनसभाओं के जरिए साथियों ने मज़दूरों को चुनाव पूर्व अरविंद केजरीवाल द्वारा गरीबों-मजदूरों के लिए किए गए वायदों के बारे में बताया, जिनके बारे में उन्‍होंने चुनाव जीतने के बाद चुप्‍पी साध ली है। यूनियन के साथियों ने इन वायदों की याददिहानी के लिए और उन्‍हें पूरा करने का दबाव बनाने के लिए 6 फरवरी को लाखों की तादाद में दिल्‍ली सचिवालय को घेरने का आह्वान किया। अपने जीवन और काम की बदतर स्थितियों को बदलने के लिए आक्रोशित बस्‍तीवासियों ने इस अभियान का पुरजोर समर्थन करते हुए कहा कि वे 6 फरवरी को दिल्‍ली सचिवालय जरूर पहुंचेंगे। इसके बाद सैकड़ों मजदूरों ने अपने नाम व पते दर्ज करवाए।

http://www.workerscharter.in/archives/702

उत्तर-पश्चिमी दिल्‍ली के शाहाबाद डेयरी की बस्तियों में चला मांगपत्रक आन्‍दोलन अभियान - Workers'.

workerscharter.in

शाहाबाद डेयरी के एफ ब्‍लॉक स्थित पांच मंदिर के आसपास, व बी ब्‍लॉक में चले इस अभियान में व्‍यक्तिगत संपर्क व जनसभाओं के जरिए साथियों ने मज़दूरों को चुनाव पूर्व अरविंद केजरीवाल द्वारा गरीबों-मजदूरों के लिए किए गए वायदों के बारे में बताया, जिनके बारे में उन्‍होंने चुनाव जीतने के बाद चुप्‍पी साध ली है।...

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चन्द्रशेखर करगेती

बल भैजी,


ये कैसा गणतंत्र हुआ, कि सरकार द्वारा बनायी परियोजना से बर्बाद हुए अपने घर-बार, खेत खैलिहानो के मुवावजे के लिए परियोजना पीडीतों को देश के सर्वोच्च न्यायालय में सरकार के अन्याय के विरुद्ध गुहार लगानी पड़ती है, तब भी वर्षों तारीख पर तारीख में घिसटने के बाद न्यायालय से सरकार को केवल जवाब देने को कहा जाता है, जब पीडीतों ने गुहार लगाई थी, तब प्रभावित परिवारों की संख्या लगभग 400 थी, और जो आज लगभग 2100 पहुँच गयी है, इन्हें न्याय कौन और कब देगा ?


क्या सच में सरकार को यह हकीकत नहीं दिखाई देती ? क्या उन निर्वाचित प्रतिनिधियों को भी यह जमीनी हकीकत नहीं दिखाई देती जो स्थानीय लोगो के वोट से चुनकर सरकार जैसी एक ह्रदयविहीन व मृत संस्था का निर्माण देहरादून जैसी राजधानियों में करते हैं ?


सच में इस प्रकार की राजधानियों में बैठने वाली सरकार रूपी संस्थाएं क्या जनवादी संस्थाएं हैं ? इन्ही सरकारों का एक दुसरा पहलु यह भी है कि देहरादून सचिवालय के एसी कमरों में बैठने वाले खोपड़ीन्दाज प्रमुख सचिव व अपर मुख्य सचिव, मुख्य सचिव जैसे ओहदेदार परियोजना प्रभावित परिवारों के पुनर्वास के लिए कोई जगह नहीं ढूँढ पा रहें, लेकिन कोक, अम्बुजा, सुपरटेक, जीवीके,जेपी, रिलायंस जैसी तमाम खून चुसू कंपनियों के प्रोजेक्ट लगाने हेतु तुरत फुरत में जमीन भी ढूँढ लेते है और उनके साथ सरकार की और से समझोता करार (मेमोरंडम) भी हस्ताक्षर भी कर देते हैं ?


क्या ऐसा ही गणतंत्र माँगा था, हमारे बड़े बुजुर्गों ने जो 26-जनवरी-1950 को और क्या हम भी ऐसा ही गणतंत्र चाहने लगे है ? ये कैसा गणतंत्र है भाई,, जहाँ एक बेबस गण अपने अधिकारों के लिए लड़ता है, वो फिर भी उसे नहीं मिलते, वहीं दुसरी और एक विशेष गण केवल मुँह खोलता है और देश की सरकार के नुमाइंदे अपनी पोथी पन्ना ले उसके सामने खड़े हो जाते हैं, ये कैसा गणतंत्र है ?


रघुवीर सहाय ठीक ही लिख गये


राष्ट्रगीत में भला कौन वह

भारत-भाग्य-विधाता है

फटा सुथन्ना पहने जिसका

गुन हरचरना गाता है।


मखमल टमटम बल्लम तुरही

पगड़ी छत्र चंवर के साथ

तोप छुड़ाकर ढोल बजाकर

जय-जय कौन कराता है।


पूरब-पश्चिम से आते हैं

नंगे-बूचे नरकंकाल

सिंहासन पर बैठा,उनके

तमगे कौन लगाता है।


कौन-कौन है वह जन-गण-मन

अधिनायक वह महाबली

डरा हुआ मन बेमन जिसका

बाजा रोज बजाता है।


खोज सको तो खोजना उस भारत भाग्य विधाता को, जो कहीं सांसद, विधयाक, जिला पंचायत सदस्य, क्षेत्र पंचायात सदस्य, ग्राम प्रधान,पार्षद, के रूप में आपको मिल जाए तो !

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  • Umesh Tiwari, Sanjay Rawat, मनोरथ कोठारी and 45 others like this.

  • 3 shares

  • आशीष दत्त तिवाड़ी देश का दुर्भाग्य इसमें नहीं की सरकारें जनता को बेवकूफ बनाती हैं देश का दुर्भाग्य इसमें है की हम व्यवस्था को उखाड़ फेंकने के लिए एक जुट नहीं होते और इन्ही उल्लू के पट्ठों के हाथ पुनः हर बार साल दर साल सत्ता सौंपते रहते हैं न्यायालय क्या करे उसको भी तो इसी सत्ता से खाद पानी मिलता है ना आखिर

  • 8 hours ago · Edited · Like · 4

  • चन्द्रशेखर करगेती 26 जनवरी पर बाबा की कविता..

  • किसकी है जनवरी, किसका अगस्त है?...See More

  • 4 hours ago · Like · 4


Palash BiswasUmesh Tiwari

13 hours ago ·

  • लेकिन तनिक विचार जरुर करें कि यह वैमनस्य से लबालब भेदभाव कोई मुद्दा है या नहीं।
  • उत्तराखंड में हम लोग अब भी साझा चूल्हा के हिस्सेदार हैं,मुझे मरते हुए इसीलिए भेदभाव के बंगाल के बजाय उत्तराखंड में जनमने का गर्व रहेगा।
  • पलाश विश्वास
  • सिखों की राजनीति लिखकर मित्रों को भेजते भेजते कल रात भोर में तब्दील हो गयी। रिजर्व बैंक की ओर से 2005 के करंसी नोटों को खारिज करने की कार्रवाई का खुलासा करने के मकसद से तैयारी कर रहा हूं जबसे यह घोषणा हुई तबसे। आज लिखने का इरादा था।
  • लेकिन मार्च से पहले अभी काफी वक्त है । इस पर हम लोग बाद में भी चर्चा कर सकते हैं।इसलिए फिलहाल यह संवाद विषय स्थगित है।
  • बसंतीपुर के नेताजी जयंती समारोह की चर्चा करते हुए हमने उत्तराखंड की पहली केशरिया सरकार की ओर से वहां 1952 से पुनर्वासित सभी बंगाली शरणार्थियों को विदेशी घुसपैठिया करार दिये जाने की चर्चा की थी।
  • इन्हीं बंगाली शरणार्थियों की नागरिकता के सवाल पर साम्यवादी साथियों की चुप्पी की वजह से पहलीबार हमें अंबेडकरी आंदोलन में खुलकर शामिल होना पड़ा है।
  • हम बार बार विभाजन कीत्रासदी पर हिंदी,बांग्ला और अंग्रेजी में लिखते रहे हैं,क्योंकि भारत में बसे विभाजनपीड़ितों की कथा व्यथा यह है।
  • इस विभाजन में केंद्रीय नेताओं के मुकाबले बंगाल के सत्तावर्ग की निर्णायक भूमिका का खुलासा भी हमने बार बार किया है।
  • इसी सिलसिले में शरणार्थियों के प्रति सत्तावर्ग के शत्रुतापूर्ण रवैये के सिलसिले में हमने बार बार मरीचझांपी जनसंहार की कथा सुनायी है।
  • जिसपर आज भी भद्रलोक बंगाल सिरे से खामोश हैं।
  • यही नहीं, विभाजनपीड़ित बंगाली दलित शरणार्थियों के देश निकाले अभियान की शुरुआत जिस नागरिकता संशोधन कानून से हुई ,उसे पास कराने में बंगाल के सारे राजनीतिक दलों की सहमति थी।
  • हमने उत्तराखंड, ओड़ीशा, महाराष्ट्र से लेकर देशभर में चितरा दिये गये बंगाली दलित शरणार्थियों के बंगाल से बाहर स्थानीय लोगों के बिना शर्त समर्थन के बारे में भी बार बार लिखा है।
  • असम में भी जहां विदेशी घुसपैठियों के खिलाप आंदोलन होते रहते हैं,वहां गुवाहाटी में दलित बंगाली शरणार्थियों को नागरिकता देने की मांग लेकर सभी समुदायों की लाखों की रैली होती है।
  • हमने इस सिलसिले में उत्तराखंड में होने वाले जनांदोलनों में तराई और पहाड़ के सभी समुदायों की हिस्सेदारी की रपटें 1973 से लगातार लिखी है।
  • 1973 से देश भर में मेरा लिखा प्रकाशित होता रहा तो अंग्रेजी में जब लिखना शुरु किया तो बांग्लादेश, पाकिस्तान,क्यूबा,म्यांमार और चीन देशों में वे लेख तब तक छपते रहे जबतक हम छपने के ही मकसद से प्रिंट फार्मेट में लिखते रहे।
  • लेकिन बंगाल में तेईस साल से रहने के बावजूद बांग्लादेश में खूब छपने के बावजूद मेरा बांग्ला लिखा भी बंगाल में नहीं छपा। अंग्रेजी और हिंदी में लिखा भी नहीं।
  • हम देशभर के लोगों से बिना किसी भेदभाव के कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी, पूर्वोत्तर लेकर कच्छ तक, मध्यभारत और हिमालय के अस्पृश्य डूब बेदखल जमीन के लोगों को बिना भेदभाव संबोधित करते रहे हैं और उनसे निरंतर संवाद करते रहे हैं।
  • बाकी देश में मुझे लिखने से किसी ने आज तक रोका नहीं है।
  • कल जो सिखों की राजनीति पर लिखा,जैसा कि सिख संहार को मैं हमेशा हरित क्रांति के अर्थशास्त्र और ग्लोबीकरण एकाधिकारवादी कारोपोरेट राज के तहत भोपाल गैस त्रासदी और बाबरी विध्वंस के साथ जोड़कर हमेशा लिखता रहा हूं और पंजाबियत के बंटवारे पर भारत विभाजन के बारे में लिखा है,अकाली राजनीति के भगवेकरण की तीखी आलोचना की है। लेकिन किसी सिख या अकाली ने मुझसे कभी नहीं कहा कि मत लिखो।
  • इसी लेख पर बंगाल से किन्हीं सव्यसाची चक्रवर्ती ने मंतव्य कर दिया कि किसी बांग्लादेशी शरणार्थी को भारत की राजनीति में हस्तक्षेप करने की जरुरत नहीं है।
  • इससे पहले नामदेव धसाल पर मेरे आलेख का लिंक देने पर भद्रलोक फेसबुक मंडली से चेतावनी जारी होने पर मैं खुद उस ग्रुप से बाहर हो गया।नामदेव धसाल पर लिखने की यह प्रतिक्रिया है।
  • हिंदी और मराठी के अलावा बाकी भारतीय भाषाओं में दलित,आदिवासी और पिछड़ा साहित्य को स्वीकृति मिली हुई है। लेकिन बांग्ला वर्ण वर्चस्वी समाज ने न दलित,न आदिवासी और न पिछड़ा कोई साहित्य किसी को मंजूर है।
  • परिवर्तन राज में हुआ यह है कि वाम शासन के जमाने से कोलकाता पुस्तक मेले के लघु पत्रिका मंडप में बांग्ला दलित साहित्य को जो मेज मिलती थी,इसबार उसकी भी इजाजत नहीं दी गयी।
  • बांग्ला दलित साहित्य के संस्थापक व अध्यक्ष मनोहर मौलि विश्वास ने अफसोस जताते हुए कि बांग्ला में कहीं भी दलित साहित्यकार ओमप्रकाश बाल्मीकि या कवि नामदेव धसाल के निधन पर कुछ भी नहीं छपा।जब पेसबुक लिंक पर हो लोगों को ऐतराज हो तो इसकी उम्मीद भी नहीं की जा सकती।
  • मनोहर दा ने कहा कि पुस्तकमेले के व्यवस्थापकों को दलित शब्द से ऐतराज है।
  • उन्होंने बताया कि हारकर उन्होंने अपनी अंग्रेजी पत्रिका दलित मिरर के लिए अलग टेबिल की इजाजत मांगी और उससे भी सिरे से दलित शब्द के लिए मना कर दिया गया।
  • प्रगतिशील क्रांतिकारी उदार आंदोलनकारी बंगाल की छवि लेकिन अब भी देश में सबसे चालू सिक्का है।उसीका खोट उजागर करने के लिए निहायत निजी बातों का भी खुलासा मुझे भुक्तभोगी बाहैसियत करना पड़ा।
  • प्रासंगिक मुद्दे से भटकाव के लिए हमारे पाठक हमें माफ करें।
  • लेकिन तनिक विचार करे कि यह वैमनस्य से लबालब भेदभाव कोई मुद्दा है या नहीं।
  • मेरे पिता 1947 के बाद इस पार चले आये, पूर्वी बंगाल से लेकर उत्तर प्रदेश की तराई में 1958 के ढिमरी ब्लाक तक भूमि आंदोलनों का नेतृत्व किया। 1969 में ही दिनेशपुर के लोगों को भूमिधारी हक मिल गया था। हम तराई में जनमे और पहाड़ में पले बढ़े। हमें किस आधार पर बांग्ला देशी शरणार्थी कहा जा रहा है।इसी सिलसिले में आपको बता दूं कि मेरे बेटे को 2012 में एक बहुत बड़े एनजीओ से सांप्रदायिकता पर फैलोशिप मंजूर हुई थी। दिल्ली में उस एनजीओ की महिला मुख्याधिकारी जो संजोगसे चक्रवर्ती ही थीं, ने उसे देखते ही बांग्लादेशी करार दिया और कहा कि सारे पूर्वी बंगाल मूल के लोग विदेशी हैं।तुम विदेशी हो और तुम्हें हम काम नहीं करने देंगे।आननफानन में उसकी फैलोशिप रद्द कर दी गयी।आदरणीय राम पुनियानी जो को यह कथा मालूम है।बस,हमने इसे अपवाद मानते हुए आपसे साझा नहीं किया था।पुनियानी जी ने तब अनहद में उसके काम करने का प्रस्ताव किया था। लेकिन वह एकबार दूध से जलने के बाद छाछ भी पीने को तैयार नहीं हुआ।
  • मैं उत्तराखंड,झारखंड और छत्तीसगढ़ के आंदोलनो से छात्रजीवन से जुड़ा था। किसीने इसपर कोई ऐतराज नहीं किया। गैरआदिवासी होते हुए मैं हमेशा आदिवासी आयोजनों में शामिल होता रहा हूं,देश के किसी आदिवासी ने मुझसे नहीं कहा कि तुम गैर आदिवासी और दिकू हो। पूर्वोत्तर और दक्षिणभारत में भी ऐसा कोई अनुभव नहीं है।
  • हमारे पुरातन मित्रों की तरह न मैं कामयाब पत्रकार हूं न कोई कालजयी साहित्यकार हूं।मुझे इसका अफसोस नहीं है बल्कि संतोष है कि अब भी पिता की ही विरासत जी रहा हूं। जनपक्षधर संस्कृतिकर्म के लिए तो अगर पुनर्जन्म के सिद्धांत को सही मान लें,लगातार सक्रियता के लिए सौ सौ जनम लेने पड़ते हैं। हम अपनी दी हुई स्थितियों में जो कर सकते थे,हमेशा करने की कोशिश करते रहे हैं।इस सिलसिले में जब प्रभाष जोशी जी जनसत्ता के प्रधानसंपादक थे,तभी हंस में मेरा आलेख छप गया था कि कैसे बंगाल के सवर्ण वर्चस्व के चलते हमें किनारे कर दिया गया।हमें जो लोग विदेशी बांगलादेशी बताकर लिखने से रोकने की कोशिश कर रहे हैं,उन्हीं के भाईबंधु मीडिया में सर्वेसर्वा हैं। बंगाल में तो जीवन के हर क्षेत्र में। हमने उनको कोई रियायत नहीं दी है।इतिहास,साहित्य और संस्कृति के मुद्दों पर उनके एकाधिकार को हमेशा चुनौती दी है। गौरतलब है कि उन मुद्दों पर इन लोगों ने कभी प्रतिवाद करनाभी जरुरी नहीं समझा। सिखों के मुद्दे पर सिखों की ओर से हस्तक्षेप का आरोप नहीं लग रहा है,आरोप लगाया जा रहा है तो बंगाल के वर्णवर्चस्वी सत्ता वर्ग से।
  • इससे आगे हमें खुलासा नहीं करना है। लेकिन उत्तराखंड और देश के दूसरे हिस्सों में गैर बंगाली आम जनता का रवैया हमारे प्रति कितना पारिवारिक है,सिर्फ उसके खुलासे से निजी संकट के इस रोजनमचा को भी साझा कर रहा हूं। उत्तराखंड में हम लोग अब भी साझा चूल्हा के हिस्सेदार हैं,मुझे मरते हुए इसीलिए भेदभाव के बंगाल के बजाय उत्तराखंड में जनमने का गर्व रहेगा।
  • आज तड़के दिनेशपुर से पंकज का फोन आया सविता को।तब मैं सो रहा था।सविता ने जगाकर कहा कि उसकी मंझली भाभी को दिमाग की नस फट जाने की वजह से हल्द्वानी कृष्मा नर्सिंग होम में भरती किया गया है परसो रात और वह कोमा में है।सविता ने मेरे जागने से पहले ही बसंतीपुर में पद्दोलोचन को फोन कर दिया और वह ढाई घंटे के बीतर हल्द्वानी पहुंच गया।दिनेशपुर में हसविता के मायकेवाले सारे लोग जमा हो गये।उसे बड़े भाई अस्वस्थ्य बिजनौर के धर्मनगरी गांव में हैं।भकी सारे लोग दिनेशपुर और दुर्गापुर में पम्मी और उमा के यहां डेरा डाले हुए हैं और बारी बारी से अस्पताल आ जा रहे हैं।
  • हल्द्वानी में न्यूरो सर्जरी का कोई इंतजाम नहीं है।नर्सिंग होम में इलाज संभव नहीं है और वहां रोजाना बीस हजार का बिल है।इसी बीच दिल्ली से दुसाध जी का फोन आया और उन्होंने लखनऊ में स्वास्थ्य निदेशक से बात की।फिर उनसे हमारी बात हुई। इसी बीच रुद्रपुर से तिलक राज बेहड़ जी भी कृष्मा नर्सिंग होम पहुंच गये। सविता के भतीजे रथींद्र,दामाद सुभाष और कृष्ण के साथ पद्दो ने तमाम लोगों से परामर्श करके मरीज को देहरादून ज्योली ग्रांट मेडिकल कालेज में स्थानांतरित करने का फैसला लिया।क्योंकि वे लोग दिल्ली में सर्जरी कराने का खर्च उढा नहीं सकते।देहरादून में उन्हें स्थानीय मदद की भी उम्मीद है।वे लोग कल भोर तड़के तक देहरादून पहुंच जाएंगे घोर कुहासे के मध्य,ऐसी उम्मीद है।
  • अभी अभी पद्दो ने हल्द्वानी से फोन करके बताया कि मरीज को नर्सिंग होम से डिस्चार्ज करवा देहरादून रवाना हो चुके हैं। आगे कठिन समय है। देहरादून में जिन मित्रों की ज्योली ग्रांट मेडिकल कालेज अस्पताल तक पहुंच हैं वे अगर न्यूरोलोजी विभाग में श्रीमती पद्दो विश्वास और उनके परिजनों की कोई मदद इलाज के सिलसिले में कर सकें,तो मौके पर हमारे न पहुंच पाने की कमी पूरी हो सकती है।मेरे भाई का नाम पद्दो है तो सविता की भाभी का नाम भी पद्दो है।बेहद खुशमिजाज पचास साल की इस महिला के लिए हम सारे लोग बेहद चिंतित है।
  • आजकल दिल की बीमारियों का इलाज और आपरेशन कहीं भी कभी भी संभव है,लेकिन मस्तिष्काघात से हमारे मित्र फुटेला जी तक अभी उबर नहीं सके हैं और हमारे अपने ही लोग दिल्ली तक पहुंचने लायक हालत में नहीं है।फिरभी उत्तराखंड में हमारे परिचितों का दायरा इतना बड़ा है कि हमारे लोग दिल्ली जाने का जोखिम उटाये बगैर उत्तराखंडी विकल्प ही चुनते हैं।बाकी देश में बाकी आम लोगों के साथ क्या बीतती होगी,अपनों पर जब बन आती है ,तभी इसका अहसास हो पाता है।
  • Mahesh Joshi commented on your post.
  • Mahesh wrote: "देहरादून के मित्रों से नैनीताल समाचार की अपील है कृपया पीड़ित परिवार की मदद करैं. पलास दाज्यू पद्योलोचन वा अन्य लोगों का सम्पर्क नंबर भी लिखें."
  • Kunj Bihari Singh Rawat
  • 6:28pm Jan 25
  • प्रभू से हृदय से प्रार्थना है रुग्ण साथी को शीघ्रातिशीघ्र स्वास्थ्य लाभ दें
  • Sabyasachi Chakravarty commented on your post in Narendra Modi Sena West Bengal.
  • *
  • Sabyasachi Chakravarty
  • 9:35am Jan 25
  • Bd refugee der indiar politics e nak golanor dorkar nei
  • Original Post
  • *
  • Palash Biswas
  • 3:04am Jan 25
  • http://antahasthal.blogspot.in/2014/01/sikh-politics-worldwide-should-be-aware.html
  • *
  • अंतःस्थल - कविताभूमि: Sikh Politics worldwide should be aware of USA and UK सिखों को अमेरिका और...
  • antahasthal.blogspot.com
  • जैसे भारत की सीमाओं की रक्षा के लिए अब भी अपना खून बहाने में सिख ही सबसे आगे हैं,उसी तरह कारपोरेट अश...
  • Indranil Chowdhuri Who is savyasachi chakravarty
  • 13 minutes ago · Edited · Like
  • Palash Biswas Probably some RSS activist based in Kokata.I know not him.But it is the psyche we partition victims from East Bengal face since 1947.Those who want to make Narendra Modi the next Primeminister,hate the refugees so much so.It is revival of parttion stroies yet again.
  • a few seconds ago · Like
  • 3 hours ago · Like · 1
  • Indranil Chowdhuri Ohhhh... I thot he was either the internationally famous designer or our locally famous bengsli actor. More over it were the cross overs who were running Bengal politics for 3 decades and more, as almost. repeat almost all in the Left Front to the man were from "Opaar Bangla". Me 2 Bangaal. Pist oartition kid, but never came across such blatant crude a statement.
  • 2 hours ago · Like
  • Abhik Majumdar Palash Biswas: You could point out to him the RSS ideals of Akhand Bharat Whenever someone rants about (Muslim) Bangladeshi refugees I keep raising this point, and also that the Sanghi conception of Hindutva is allegedly broad enough to encompass Islam and Christianity as well. If then they talk about how those guys separated from and thus betrayed India, I raise the ideal of Ghar Wapasi. That usually has them spluttering
  • about an hour ago · Like · 1
  • Mandar Mukherjee
  • 11:14pm Jan 25
  • Sabyasachi Chakravarty
  • 9:35am Jan 25
  • Bd refugee der indiar politics e nak golanor dorkar nei...
  • Vidya Bhushan Rawat
  • हिंदुत्व की जातिवादी मानसिकता का शिकार व्यक्ति चाहे वो 'आम आदमी' हो या ख़ास हमेशा दलित महिला विरोधी, पूर्वाग्रहों का शिकार, मेरिट नाम कि बीमारी से ग्रस्त, कामचोर, दम्भी, नसलवादी सोच वाला होगा। पार्टियां इसमें मायने नहीं रखती क्योंकि मध्यवर्ग भारत में इसी सोच पे आश्रित है और इनके साथ अराजनैतिक दिखने वाले अन्य लोगो यथा बाबा, पाखंडी, ढोंगी सभी का एक ही अजेंडा है के बदलाव के नाम पर देश में आ रहे बदलाव को रोकना। दुसरो से अलग दिखने वाले ये सभी लोगो जाति और सोच में सामंती चरित्र का शिकार हैं और उनकी दबी भावनाएं साफ तौर पर अब जाहिर होने लगी हैं? कुमार विश्वास तो ट्रेलर है और खुला खेल है बाकि सब अंदर से कुछ और और बाहर कुछ और नज़र आते हैं..
  • Like · · Share · 18 hours ago ·
  • https://www.facebook.com/IndependentNationFor300MillionIndiasUntouchable
  • Both Ambedkar and British recommended separate states for BC/SC/ST/FC/Muslim/Sikh/Christian/Parsi/Jain in 1932 itself.
  • You should live on H1B type visa in those separate states as perhttps://en.m.wikipedia.org/wiki/Communal_Award
  • अंतःस्थल - कविताभूमि: Sikh Politics worldwide should be aware of USA and UK सिखों को अमेरिका और...

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  • जैसे भारत की सीमाओं की रक्षा के लिए अब भी अपना खून बहाने में सिख ही सबसे आगे हैं,उसी तरह कारपोरेट अश्वमेध को रोकने में निर्णायक भूमिका भी हो सकती है सिखों की,दरअसल पश्चिम को सिखों से यही सबसे बड़ा खतरा है और सिखों के दमन में इसीलिए वह धर्मोन्मादी भारतीय सत्ता वर्ग का साथ निभाता रहा है।

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Himanshu Kumar

कल मुज़फ्फर नगर में अपने एक संबंधी के साथ बैठा था . पूछने लगे कि क्या कर रहे हो आजकल ? मैंने बताया कि मुज़फ्फर नगर दंगा पीड़ितों को मुफ्त कानूनी सहायता देने के लिए एक केन्द्र शुरू किया है .


कहने लगे कि कुछ भी कहो ये मुसलमान गद्दार ही रहेंगे . ये कभी इस देश के नहीं हो सकते .


अब मैं अचकचाया कि बात को शुरू कहाँ से करूँ . जो मेरे सामने थे वो रिश्ते में आदरणीय हैं इसलिए तुर्शी दिखाने की मुझे यहाँ छूट नहीं थी .


मैंने आहिस्ता से कहना शुरू किया कि यहाँ जो एक राहत शिविर है 'जौला 'गाँव में उसमे करीब हज़ार लोग रह रहे हैं . ये लांक बहावडी लिसाढ़ अदि गाँव के लोग हैं . इन्होने जौला में इसलिए आकर शरण ली है क्योंकि जौला पूर्णतः मुस्लिम गाँव है .


मेरे आदरणीय की पेशानी पर अभी भी तनाव था .


मैंने कहना जारी रखा .


मैंने कहा कि सन अट्ठारह सौ सत्तावन में जौला गांव की आबादी करीब पांच सौ लोगों की थी . और भारत के उस पहले स्वतंत्रता संग्राम में जौला के ढाई सौ मुसलामानों को अंग्रेजों ने मार डाला था .


मेरे आदरणीय के चेहरे का भाव अब बदलने लगा था . उनकी पत्नी भी कमर पर हाथ रख कर मेरी पराजय की प्रतीक्षा में सन्नद्ध खड़ी थीं . लेकिन अब उन्होंने भी अपनी कमर से हाथ नीचे कर लिए .


मुझे लगा कि मौका अच्छा है अब अगला कारतूस दाग दो . मैंने आगे कहा कि भारत के ख़ुफ़िया राज़ विदेशों को बेचने के जितने भी मामले पकडे गए हैं उनमे पकड़ गए नब्बे फीसदी आरोपी हिंदू हैं . मैंने राजनयिक महिला जासूस माधुरी गुप्ता और सब्बरवाल का नाम बताया .


अब मेरे आदरणीय के चेहरे का भाव एकदम बदल गया . बोले नहीं सभी मुसलमान खराब नहीं होते . लेकिन कुछ तो इनमे से बदमाश हैं ही . मैंने कहा कि जी यूं तो कुछ हिंदू भी बदमाश होते हैं .


अब मेरे आदरणीय पूरी तरह अपने हथियार डाल चुके थे . मैंने अच्छा मौका भांप कर कहा कि देखिये हम न तो इस देश की एक भी इंच ज़मीन को इधर से उधर कर सकते हैं न किसी एक भी नागरिक को भारत से बाहर भगा सकते हैं . हमें इन्ही मुसलमानों के साथ ही रहना है . अब फैसला ये ही करना है कि मिल कर रहना है या लड़ते लड़ते रहना है .


अब वे योद्धा की भूमिका छोड़ शिष्त्त्व मुद्रा में आ चुके थे . बोले हाँ सही कह रहे हो तुम्हारा काम बहुत ज़रूरी है . हमारी किसी मदद की ज़रूरत हो तो बताना .


आज सुबह मुज़फ्फर नगर की पुलिस लाइन में पहुंचा तो साईकिल पर एक टिपिकल मुल्ला जी दाढ़ी और गले में फिलीस्तीनी काले चेक वाला रुमाला लपेटे अपने सात एक साल के बच्चे को साईकिल पर आगे बिठा कर छब्बीस जनवरी की परेड में शामिल होने की लिए आ रहे थे .बच्चे के हाथ में छोटा सा प्लास्टिक का तिरंगा था जिसे वो जोर जोर से हवा में डुला रहा था .


भारतीय मुसलमानों के बारे में मेरे सभी दावों को इस दृश्य ने पुख्ता कर दिया था .


मैं भी मुस्कुराता हुआ छब्बीस जनवरी की उस भीड़ में मुल्ला जी और उनके बच्चे के साथ साथ शामिल हो गया .

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Reyazul Haque

Come for the meeting

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Vidya Bhushan Rawat

The nation must out law such khap panchayats. Indian constitution must is the only way to keep india united and civilised. Old barbaric ways of punishment need to be thoroughly rejected and declared unconstitutional.

Twitter / timesofindia: The injustice of justice - ...

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  • 7 people like this.

  • Raveen S. Nathan Another way to look at is constitutionally disfranchise the tribal people, de nationalize them using this mass rape incident as an excuse to finish the independence of the Santali people forever so that they can become the untouchables they never became ?

  • 4 hours ago · Like

जनज्वार डॉटकॉम

महिलाओं को डायन कहकर मलमूत्र पिलाना, पेड़ से बांधकर पीटा जाना, अर्द्धनग्न और कभी नग्न कर गांव के गलियों में घसीटा जाना आदि प्रताडि़त करने के कुछ तरीके हैं, जो झारखंड के ग्रामीण इलाकों में रोजमर्रा घटती रहती हैं...http://www.janjwar.com/society/1-society/4735-dayan-ke-name-par-prativarsh-mari-jatin-60-mahilayen-for-janjwar-by-rajeev

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Nilakshi Singh

ज्यादा दिन नहीं हुए जब देश में ब्राह्मण-बनिया गठजोड़ ने नारा लगाया था :

अन्ना नहीं आँधी है,

देश का दूसरा गाँधी है !!


यह दूसरा गाँधी अब कहाँ है ?

ओबीसी जब तक फुले-शाहू-आंबेडकर की विचारधारा पर नहीं चलेगा, ब्राह्मणवादी शक्तियाँ उसका उपयोग करके उसे किनारे लगाती रहेंगी. चाहे वह कल्याण सिंह हों या अन्ना हजारे हों.

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TaraChandra Tripathi

7 hours ago ·

  • बोली ही किसी समुदाय की पहचान है
  • कभी-कभी जब में पेट की भाषाओं के दबाव तले दम तोड़ती भाषाओं के बारे में चिन्तन करता हूँ तो मुझे निश्वास लग जाता है. मुझे लगता है कि जिस प्रकार हम सब अपनी बोलियों की उपेक्षा कर रहे हैं, हमारी बोलियाँ भी अगले बीस-पचीस साल में विश्व की अब तक दम तोड़ चुकी उन सैकड़ों भाषाओं और दुदबोलियों में शामिल हो जाएंगी जिनका आज कोई नाम लेवा भी शेष नहीं है. संसार में जो समाज अपनी मातृ भाषाओं या दुदबोलियों के प्रति जागरूक नहीं हैं, उनकी बोलियों को मक्खन लगी रोटी की भाषाएँ निगलती जा रही हैं. आधी दुनियाँ की सैकड़ों बोलियों को स्पेनी निगल चुकी है, अफ्रीकी भाषाएँ स्वहिली भाषा के प्रकोप से मर रही है, रूसी पूर्वी यूरोप की भाषाओं को निगलने के लिए तैयार बैठी है और अंग्रेजी की महामारी आत्मगौरव से सम्पन्न फ्रेंच, जर्मन, जापानी, चीनी जैसी कुछ भाषाओं को छोड़ कर दुनियाँ की सारी बोलियों को उजाड़ देने पर तुली हुई है.
  • लोग कहते हैं इस इसमें क्या बुरा है? यदि सारी दुनिया की एक ही भाषा हो तो विभिन्न देशों, जातियों और समाजों के बीच संवाद में कितनी सुविधा होगी. लेकिन वे भाषा को केवल आपसी बात-चीत का माध्यम भर मानने की भूल करते है. वे भूल जाते हैं कि किसी भी बोली को बनने में हजारों वर्ष लगते हैं. सोचिये हमारे पुरखों ने प्रकृति के विविध रूपों और प्रभावों को स्पष्ट पहचान देने के लिए कितना कुछ किया है.होगा. अपने आस-पास की वनस्पतियों को उनके रंग, रूप, प्रकार, और प्रभाव और उपयोग को परखते हुए अपनी बोली के शब्द समूह से उपयुक्त शब्द चुन कर उनके नाम रखे, कहीं उनके रूप को आधार बनाया तो कहीं उनके प्रभाव को और उनके इतने प्रकारों को नाम देते चले गये कि उन वनवासी आदिम पूर्वजों की सूक्ष्म दृष्टि पर आश्चर्य होता है. यही उन्होंने अपने आस-पास के जीवों को पहचान देने में किया. कहीं उनकी आवाज को आधार बनाया तो कहीं उनके रूप को और कहीं उनके व्यवहार को आधार बनाया.
  • उन्होंने परिवार बनाया, समाज का गठन किया. अपने समाज से जुड़ाव विकसित किया. हर एक नाते को नाम दिया, इजा, बौज्यू, ठुल बा, ठुलि इजा, कैंजा, काक, काखि, बुबु, दिदि, बैणि, भिंज्यू, मामा, भतिज, भतिजि, नाति, नातिणि, मम-पुसी भै- बैणि और भी न मालूम कितने सम्बन्धों को उस ने पहचान दी.
  • उन्होंने परंपरओं को जन्म दिया, विश्वासों को जगाया, भ्रान्तियाँ भी पालीं, उनका उपचार भी ढूँढा. विभिन्न वनस्पतियों और खनिजों के रोग-निवारक तत्वों को पहचाना, उनसे चिकित्सा विज्ञान का सूत्रपात किया. उसने मनोरोगों के उपचार के लिए शाबर मंत्रो की रचना की. देवयोनियों की कल्पना की, उनके प्रभाव के बहाने समाज का नियमन किया.
  • उन्होंने गीत गाये, अपने पूर्वजों के गौरव को ही नहीं उनकी बुराइयों को भी अपने गीतों, गाथाओं, कथाओं, में संजोया, बालगीत बनाये,पहेलियाँ सृजित कीं, खेलों की रचना की, अल्पनाएँ विकसित कीं उनमें अपने विश्वासों और पूर्वजों की यादों को संजोया. यह सब कुछ एक दिन में नहीं हुआ. इसमें पल- पल कर हजारों वर्ष लग गये. और उ्नके प्रयासों से हमें एक पहचान मिली. यह पहचान भी उन्होंने एक शब्द 'ई' (यथा कुमाऊनी, गढ़्वाली, बुन्देली, मराठी, गुजराती, मलयाली पंजाबी,) की पोटली में बाँध कर अगली पीढियों को सौंपते जाने के लिए हमें दी.
  • हमारा साहित्य, हमारा ज्ञान-विज्ञान, हमारे उपकरण, हमारे संसाधन एक दिन में नहीं पनपे हैं उनको वर्तमान रूप में आने में हजारों वर्ष लगे हैं. इसीलिए डार्विन के जीवों की उत्पत्ति और हमारे अवतार वाद में समानता की झलक मिलती है. बिग बैंग और ओ3म में एक सा अनुनाद सुनाई देता है. ब्रह्मांड की काल-गणना और ब्रह्मा- विष्णु- महेश की क्रमिक जीवनावधि गणना में समानता दिखती है.
  • यह जो मनुष्य की गर्दन पर बैठा हुआ है, जिसे हम दिमाग या मस्तिष्क कहते हैं, एक दिन में नहीं बना है. अनन्त काल में बनता चला गया है. इसमें भी जिसने जड़ की कंजड़ मे जाने की चेष्टा की वह अपने युग से सैकड़ों साल पहले केवल बाँस की नालियों के सहारे वह सिद्ध कर गया, जिसका लोहा आज रेडियो दूरवीन भी मान रही हैं. और यह सब हमारी भाषाओं और बोलियॊं में संचित है
  • मित्र, बोली या भाषा केवल संवाद का माध्यम नही होती वह एक विशाल विश्वकोश होती है. वह किसी क्षेत्र की निवासियों की पहचान होती है. यदि बोली का अवसान हुआ तो समझ लीजिये दुनिया के छ; अरब लोगों में हमारी पहचान क्या होगी.
  • हमारे बच्चे अंग्रेजी में भी महारत हासिल करें, अपने प्रदेश और देश की राजभाषा में भी प्रवीण हों. समृद्धि उनके कदम चूमे पर माँ तो माँ है माँ के दूध से मिली बोली. दुदबोली. उसकी उपेक्षा न करें. यह कोई कठिन काम भी नहीं है. जरा सा अपनी बोली के प्रति हीनताबोध से बचें. घर में और अपने सगे संबन्धियों से अपनी बोली में बोलना आरंभ कर दें. बस. हमारी बोली, हमारे पूर्वजों की युगों के अन्तराल में बड़े परिश्रम से संचित विरासत युगों तक न केवल बनी रहेगी अपितु विकास के साथ समृद्ध भी होती जायेगी.
  • जरा सोचिये तो!
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Satya Narayan

4 hours ago ·

  • भारतीय राजनीति में धर्मनिरपेक्षता धार्मिक संस्थाओं-अनुष्ठानों का राज्य से पूर्ण पृथक्करण और धार्मिक विश्वासों को निजी जीवन के दायरे तक सीमित कर देने वाली क्लासिकी बुर्जुआ जनवादी अवधारणा न होकर "सर्व-धर्म समभाव" के अर्थों में प्रचलित हुई। इसका परिणाम यह हुआ कि सार्वजनिक जीवन में धार्मिक कुरीतियों और अन्धविश्वासों तथा सामन्ती और पितृसत्तात्मक मूल्यों के खि़लाफ़ संघर्ष करने की बजाय धर्म की स्वतन्त्रता के नाम पर उन्हें बरक़रार रहने दिया गया। यही नहीं पिछले छह दशकों में धर्म और जाति पर आधारित वोट बैंक की राजनीति भी ख़ूब फ़ली-फ़ूली। विभिन्न राजनीतिक पार्टियाँ लोगों की धार्मिक और जातीय पहचान बरक़रार रखने का खुले आम आह्वान करती हैं। नतीजतन समताविरोधी, नारीविरोधी विचारों का परित्याग करने और समता पर आधारित आधुनिक मूल्यों की स्थापना करने की बजाय दकियानूसी विचार नये सिरे से और पहले से कहीं ज़्यादा गहराई से लोगों के दिलो-दिमाग़ में पैठ बना रहे हैं।
  • धर्म निरपेक्षता की प्रबोधनकालीन अवधारणा सार्वजनिक जीवन में वैज्ञानिक और तर्कसंगत विचारों को बढ़ावा देने की पक्षधर थी। परन्तु धर्मनिरपेक्षता की भारतीय अवधारणा यानी "सर्वधर्म समभाव" इसका ठीक उल्टा कर रही है। विज्ञान ने अपनी सतत् विकासयात्रा के दौरान ब्रह्माण्ड, प्रकृति और मानव समाज के बारे में नित नये क्षितिज उद्घाटित किये हैं जिनकी समझ स्थापित करके तमाम सामाजिक समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। परन्तु भारत में हो ये रहा है कि विज्ञान का दैनिक जीवन के हर क्षेत्र में इस्तेमाल होते हुए भी विचारों के धरातल पर अवैज्ञानिक और अतार्किक विचारों का घटाटोप छाया हुआ है। इसकी एक मिसाल इसी से मिल जाती है कि भारत में सैकड़ों टी वी चैनल हैं जिनमें से धर्म पर आधारित चैनलों की संख्या दर्ज़नों में है, परन्तु विज्ञान पर आधारित एक भी नहीं है। इन धार्मिक चैनलों पर प्रवचन सुनाने वाले किसिम-किसिम के बाबा और कुछ नहीं करते बल्कि पुरातनपन्थी, दकियानूसी और घोर अवैज्ञानिक जीवन दृष्टिकोण का प्रचार-प्रसार करते हैं और धर्म की स्वतन्त्रता के नाम पर अपना धन्धा चलाते हैं जिससे लोगों में सामाजिक बदलाव की वैज्ञानिक चेतना कुन्द होती है।
  • 1990 के दशक से हिन्दुत्ववादी फ़ासीवादी राजनीति के उभार के बाद से अल्पसंख्यकों में असुरक्षा की भावना पहले से कहीं ज़्यादा बढ़ गयी। भय और आतंक के साम्प्रदायिक माहौल में संविधान में उल्लिखित धर्म की स्वतन्त्रता का अधिकार ज़ाहिरा तौर पर एक बेहद सीमित मायने रखता है। अल्पसंख्यकों और निम्न जातियों के हितों के प्रतिनिधित्व करने का दावा करने वाले संगठन और राजनीतिक पार्टियाँ भी अल्पसंख्यकों और निम्न जातियों के लोगों में प्रबोधनकारी और वैज्ञानिक विचारों की पैठ बनाने की बजाय उनमें पुरातनपन्थी और अतार्किक विचारों का ही प्रचार-प्रसार करते हैं। वे एक वैकल्पिक समतामूलक सामाजिक ढाँचे के निर्माण के लिए संघर्ष करने के लिए प्रेरित करने की बजाय उनमें असुरक्षा की भावना भरकर उन्हें मज़हबी और जातीय पहचान से चिपके रहने की सलाह देते हैं। आरक्षण की राजनीति इसी का एक उदाहरण है जो निम्न जातियों और अल्पसंख्यकों को मौजूदा व्यवस्था को आमूलचूल ढंग से बदलकर नयी समतामूलक धर्मनिरपेक्ष व्यवस्था के निर्माण की बजाय इसी व्यवस्था में उच्च जातीय हिन्दू शासक वर्ग से ख़ैरात के कुछ टुकड़े माँगकर संतुष्ट हो जाने की सलाह देती है।
  • चूँकि भारत में उत्पादन के साधनों का मालिकाना हक़ जिनके पास है वे अधिकांशतः उच्च जाति के हिन्दू समुदाय से आते हैं, इसलिए अल्पसंख्यकों और निचली जातियों के लोगों के लिए स्वतन्त्रता बेमानी ही है। यही बात अल्पसंख्यकों के संस्कृति और शिक्षा सम्बन्धी प्रावधानों के विषय में लागू होती है। संविधान में मौजूद इन प्रावधानों का लाभ अल्पसंख्यकों के एक बेहद छोटे से हिस्से तक ही पहुँच पाता है जो पहले से ही सुविधासम्पन्न होते हैं और जो इन विशेषाधिकारों की मलाई काटकर मौजूदा व्यवस्था के सबसे बड़े पैरोकार बन जाते हैं। अल्पसंख्यकों की अधिकांश आबादी मेहनतकश वर्ग से आती है और आर्थिक दृष्टि से पिछड़ने की वजह से शिक्षा और संस्कृति के मामले में भी पिछड़ेपन का शिकार होती है। अल्पसंख्यकों की इस बहुसंख्यक मेहनतकश आबादी के शैक्षिक और सांस्कृतिक पिछड़ेपन के बारे में भारतीय संविधान मौन है।
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    • 11 people like this.

    • Shishir Gupta विचारणीय लेख है सत्य नारायण जी. यह सर्व-धर्म-समभाव वाली विचारधारा ही धूर्तता से परिपूर्ण है. मूल समस्या है कि लोग जान के भी अनदेखा कर देते हैं.

    • 3 hours ago · Like

    • Satya Narayan Shishir Gupta संविधान ऐसे ही अर्न्‍तविरोधों से भरा हुआ है। एक बार ये लेखमाला देखियेगा।

    • http://www.mazdoorbigul.net/.../bourg.../indian-constitution

    • भारतीय संविधान Archives - मज़दूर बिगुल

    • www.mazdoorbigul.net

    • समाजवादी क्रान्ति की वजह से सोवियत संघ की महिलाओं की स्थिति में जबर्दस्त सुधार आ...See More

    • 3 hours ago · Like

    • Shishir Gupta सत्य नारायण जी अगर आप इस लिंक का संपूर्ण लेख यहाँ पर कमेन्ट के रूप में पेस्ट कर दें तो सुविधा होगी. यह लिंक बहुत देर से खुल नहीं रहा.

    • 3 hours ago · Like

    • Satya Narayan मेरे यहां पर तो खुल रहा है। असल में ये सिर्फ एक लेख नहीं है बल्कि 25 लेखों की एक लेखमाला है जिसमें संविधान के जन्‍म से लेकर उसके सभी तत्‍वों की चर्चा की गयी है। पूरा लेख तो यहां पेस्‍ट नहीं हो सकता।

    • 3 hours ago · Like · 1

    • Shishir Gupta ठीक है मैं फिर बाद में कोशिश करूँगा.

    • 3 hours ago · Like · 1

Satya Narayan

आज गिरिजेश तिवारी ने कम से कम ये तो स्‍पष्‍ट कर ही दिया कि क्‍यों वो अशोक पाण्‍डे वाले Non-party Intellectual front से अपने अन्‍दर गुदगुदी महसुस कर रहे थे। इन जैसे बिन धुरी के बुद्धिजीवियों को किसी पार्टी अनुशासन में बंधकर काम करना तो पट्टे में बंधे कुत्‍ते जैसा ही लग सकता है। असली क्रान्ति तो इनके जैसे गैर पार्टी बुद्धिजीवी ही करेंगे (शेर जो हैं)


Girijesh Tiwari आपकी एक और जिज्ञासा है मेरे आइकन के बारे में, तो वह भी अब बता ही देता हूँ. मेरी ज़िन्दगी में अनेक व्यापारियों ने पट्टा पहिनाने की कोशिश और साज़िश की. और मैं छटक कर भाग लिया. अब कोई और किसी का भी पट्टा पहिनाना सम्भव नहीं है. मेरा 'शेर' मेरी इसी मनोदशा का प्रतीक है कि मैं कुत्ता नहीं हूँ. अपने हिस्से का निर्णय स्वयं करता हूँ और हर कीमत पर.

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  • You, Girijesh Tiwari, Kalpesh Dobariya and 9 others like this.

  • View 9 more comments

  • Satya Narayan हम तो आपको कब से ये बोल रहे हैं। आपने ही शुरू किया, आप ही बार बार नयी पोस्‍ट डालकर काम बढा देते हैं, फिर हमसे कहते हैं कि आपका समय खा लिया। असल में बात समय की यहां पर है ही नहीं। आप जब भी किसी बात का जवाब नहीं दे पाते तो नयी पोस्‍ट शुरू करते हैं, फिर नयी, फिर नयी। अब आप किसी भी बात का सही जवाब नहीं दे पा रहे हैं तो समय की कमी की बात कर रहे हैं।

  • about an hour ago · Like

  • Girijesh Tiwari अब यह अति हो रही है. हो रही है न ! मत कीजिए. अति हर चीज़ की बुरी होती है. और बुरे का नतीज़ा अच्छा तो नहीं हो सकता है. प्लीज़....

  • about an hour ago · Like

  • Satya Narayan आपका बहुत बहुत धन्‍यवाद। आशा है कि आप अब समझ गये होंगे कि अति कौन कर रहा था।

  • about an hour ago · Like

  • महाभारत जारी है पार्टी अनुशासन और इससे जुड़े अन्य बिन्दुओ पर गंभीर बहस करने वाले साथियो, क्या आपके पास अपनी पार्टी का प्रोग्राम और संविधान है? अगर है तो किधर मिलेगा ? क्या आप लिंक दे सकते है जिससे डाउनलोड किया जा सके ?

  • 38 minutes ago · Like

Satya Narayan

इस समय पूरे देश बल्कि कहना चाहिए कि पूरी दुनिया के मज़दूर आन्दोलन के भीतर गैरपार्टी क्रान्तिवाद की सोच नये सिरे से सिर उठा रही है। जगह-जगह कुछ राजनीतिक नौदौलतिये पैदा हुए हैं जो यह दावा कर रहे हैं कि मज़दूर वर्ग को पार्टी की ज़रूरत नहीं है; या पार्टी ऐसी होनी चाहिए जो मज़दूर वर्ग के पीछे-पीछे चले; या पार्टी ऐसी होनी चाहिए जो मज़दूर वर्ग को नेतृत्व न दे, बस उसे सलाह-मशविरा दे। ऐसी रुझानों का लेनिन ने अपने समय में पुरज़ोर विरोध करते हुए बताया था कि इतिहास में कभी कोई भी वर्ग बिना अपने हिरावल के न तो विरोधी वर्ग का तख्तापलट करके क्रान्ति कर पाया है, और न ही कोई वर्ग बिना अपने हिरावल के शासन सम्भाल पाया है। ऐसा दावा करने वाले लोग अराजकतावादी संघाधिपत्यवाद, अराजकतावाद और विसर्जनवाद के शिकार हैं। आज पार्टी की ज़रूरत हमेशा से ज़्यादा है और ऐसे समय में पार्टी की लेनिनवादी अवधारणा की हिफ़ाज़त करना हर प्रतिबद्ध कम्युनिस्ट का कर्तव्य है। ऐसे दौर में हमें लेनिन के निम्न दो उद्धरण बेहद प्रासंगिक लगे।

http://www.mazdoorbigul.net/archives/3691

कम्युनिस्ट पार्टी की ज़रूरत के बारे में लेनिन के कुछ विचार... - मज़दूर बिगुल

mazdoorbigul.net

पूँजीवाद के युग में, जबकि मज़दूर जनता निरन्तर शोषण की चक्की में पिसती रहती है और अपनी मानवीय क्षमताओं का विकास वह नहीं कर पाती है, मज़दूर वर्ग की राजनीतिक पार्टियों की सबसे ख़ास विशेषता यही होती है कि अपने वर्ग के केवल एक अल्पमत को ही वह अपने साथ ला पाती है। कोई भी राजनीतिक पार्टी अपने वर्ग के केवल एक...

Like ·  · Share · about an hour ago ·

  • 6 people like this.

  • Suresh Swapnil कोई भी क्रांति एक समर्पित पार्टी और प्रतिबद्ध योद्धाओं के बिना संभव नहीं हो सकती !

  • about an hour ago · Like

  • महाभारत जारी है क्या आपके पास अपनी पार्टी का प्रोग्राम और संविधान है? अगर है तो किधर मिलेगा ? क्या आप लिंक दे सकते है जिससे डाउनलोड किया जा सके ?

  • 46 minutes ago · Like

Sanhati shared Kolkata People's Film Festival's photo.

https://www.facebook.com/photo.php?fbid=225969600921124&set=a.225968990921185.1073741829.215561585295259&type=1&theater

1st day, 1st show

Like ·  · Share · 2 minutes ago ·

anhati

A new section will host the updates on the Jan Jagran Yatra of MSWU

http://sanhati.com/articles/8851/

Delhi- Maruti Suzuki Workers Union padayatra, Jan 15 at Sanhati

sanhati.com

जनजागरण यात्रा का तिसरा दिन 'जुल्मी कब तक जुल्म करेगा शोषण़ के हथियारों से, हम भी उसको ध्वस्त करेंगे एकताबद्ध कतारों से।'

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Afroz Alam Sahil

There is no guarantee for recovery of this 15 % loan by America as this is as good as a borrowing on a non refundable basis. For money, investment and Rules there is no Global equal playing field. In India Corporate driven by well wishes and `intelligent` CEOs continue to advise middle level investors to hide money in Tax Heavens Gold and in Temples... http://beyondheadlines.in/2014/01/decoding-presidents-republic-day-speech/

Like ·  · Share · about a minute ago near New Delhi ·

Afroz Alam Sahil

Rethinking Republic – Miles to Go for Reformation


Yes we are a Republic but No we are not free as people in India are filled with frustration, rage, violence and despair nowadays. Despite being an independent Republic for over six decades, its citizens who are guaranteed dignity, equalities and fundamental rights are still waiting for that and a few generations have already passed...http://beyondheadlines.in/2014/01/rethinking-republic-miles-to-go-for-reformation/

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Nilay Upadhyay added 18 new photos to the album पटना में नही रही गंगा।

मित्रों,

अत्यंत दुख के साथ सूचित कर रहा हूं कि हो सकता है कि पटना में नहीं रहे गंगा।

आज मै संजय और श्री कान्त के साथ बांस घाट से उतर कर भीतर गए। वहां जाने के बाद गंगा मिली पर यह सूचना भी मिली कि यह गंगा की मूल धारा नही है। मूल धारा बीच की रेती के टीले संबलपुर बंगाली टोला के उस पार होकर बहती है। हम गंगा के साथ चलते रहे। इतनी पतली और सिकुडी धारा पटना में क्भी नही दिखी थी। लगभग द्स किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद हम दूसरे छोर पर वापस आए और अदालत घाट पर एक नाला पार कर बाहर आ गए यह कसक मन मे लिए कि पटना में नही रही गंगा।

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Goutam Halder GI

Snowden speaks out on spy accusation


http://www.examiner.com/article/snowden-speaks-out-on-spy-accusation?cid=sm-facebook-012314-6.30am-edwardsnowdensaysheisnotaspy

Snowden speaks out on spy accusation

examiner.com

Edward J. Snowden, the N.S.A. contractor who took hundreds of government documents last May vehemently denied today that he is a spy, in a rare interview from M

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Satya Narayan

भारतीय नागरिकों को प्रदत्त मूलभूत अधिकार न सिर्फ़ नाकाफ़ी हैं बल्कि जो चन्द राजनीतिक अधिकार संविधान द्वारा दिये भी गये हैं उनको भी तमाम शर्तों और पाबन्दियों भरे प्रावधानों से परिसीमित किया गया है। उनको पढ़कर ऐसा प्रतीत होता है मानो संविधान निर्माताओं ने अपनी सारी विद्वता और क़ानूनी ज्ञान जनता के मूलभूत अधिकारों की हिफ़ाज़त करने के बजाय एक मज़बूत राज्यसत्ता की स्थापना करने में में झोंक दिया हो। इन शर्तों और पाबन्दियों की बदौलत आलम यह है कि भारतीय राज्य को जनता के मूलभूत अधिकारों का हनन करने के लिए संविधान का उल्लंघन करने की ज़रूरत ही नहीं है। इसके अतिरिक्त संविधान में एक विशेष हिस्सा (भाग 18) आपातकाल सम्बन्धी प्रावधानों का है जो राज्य को आपातकाल घोषित करने का अधिकार देता है। आपातकाल की घोषणा होने के बाद नागरिकों के औपचारिक अधिकार भी निरस्त हो जाते हैं और राज्य सत्ता को लोकतंत्र का लबादा ओढ़ने की भी ज़रूरत नहीं रहती। ग़ौरतलब है कि आज़ादी के बाद से अब तक कुल चार बार आपातकाल घोषित किया जा चुका है (तीन बार बाध्‍य कारणों से और एक बार आन्तरिक कारण से)। 1975 में इन्दिरा गाँधी सरकार द्वारा घोषित आन्तरिक आपातकाल नागरिकों के मूलभूत अधिकारों के धड़ल्ले से हनन के लिए कुख्यात है जब 19 महीनों तक संविधानसम्मत तरीके से वस्तुतः तानाशाही क़ायम थी जिसका ज़िक्र आने पर इस संविधान के प्रबल से प्रबल समर्थक भी शर्म से बगलें झाँकने लगते हैं।

http://www.mazdoorbigul.net/archives/1038

कैसा है यह लोकतन्त्र और यह संविधान किनकी सेवा करता है? (तेरहवीं किस्‍त) - मज़दूर बिगुल

mazdoorbigul.net

भारतीय नागरिकों को प्रदत्त मूलभूत अधिकार न सिर्फ़ नाकाफ़ी हैं बल्कि जो चन्द राजनीतिक अधिकार संविधान द्वारा दिये भी गये हैं उनको भी तमाम शर्तों और पाबन्दियों भरे प्रावधानों से परिसीमित किया गया है। उनको पढ़कर ऐसा प्रतीत होता है मानो संविधान निर्माताओं ने अपनी सारी विद्वता और क़ानूनी ज्ञान जनता के मूल...

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  • Jai Prakash Tripathi ...' कौन आजाद हुआ ......बलिदान से पहले 22 मार्च 1931 को लिखा गया देशवासियों को अंतिम पत्र के मुख्य अंश : " स्वाभाविक है ..जीने की इक्षा मुझमे भी होनी चाहिए , मै इसे छुपाना नहीं चाहता ..लेकिन मै एक शर्त पर जिदा रह सकता हूँ ..मै कैद और पाबंद बन कर जीना न...See More

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Rajiv Lochan Sah was tagged in Deepak Benjwal's photo.

कुछ बहादुर बच्चे केदार घाटी के भी थे....... दीपक बेंज्वाल, दस्तक अगस्त्यमुनि खबर : 25 जनवरी को प्रधानमंत्री ने दिया देश के 25 बहादुर बच्चो को बहादुरी पुरुस्कार 16-17 जून की केदारनाथ आपदा के बाद केदार घाटी के बहुत से गाँवों के बच्चों ने बहादुरी दिखायी है, फिर चाहे वो झूलते तारों पर नदि पर करना हो या, टूटे पुलों पर हाथ पकड़ पकड़ कर पार पाना हो, या फिर गिरते पतथर ओर टूटते पहाड़ों के बीच जान जोखिम मै रखकर स्कूल जाना हो हर कोई आपदा से बहादुरी से लड़ा...खैर ये पहाड़ के इन आपदा प्रभावित इलाकों कि नियति है..सो वो हमेशा युही बहादुरी से लड़ते रहंगे..... इन बहादुर बच्चे के बीच जलप्रलय कि रात गौरीकुंड मै खुमेरा निवासी महेंद्र सिंह पुत्र श्री रणवीर सिंह का नाम भी है जिसने जल प्रलय कि रात भारी बारिश मै अपने सात साथियों को पीठ मै ढोकर जोकिम भरे रास्तों के बीच पाँच किलो मीटर कि खड़ी चड़ई चढ़ कर दुर्गम भौगोलिक स्थित्यो मै गौरी खरक तक पहुँचाया, बार बार दोस्तों को बचाने कि इस मुहिम मै ख़ुद दम घुटने के कारण वह कल का ग्रास बन बैठा था...अब इसकी बहादुरी कि हकीकत से शायद ही रुद्रप्रयाग का जिला प्र्शासन वाकिफ हो क्योकि इतनी बड़ी आपदा मै उन्हें कहा फुर्सत थी जनता के दुःख दर्द कि....सो वीरता पुरुस्कार के लिए जिले से किसी का नाम भी ग्या हो मुमकिन नही लगता राशटपति महोदय इन्हे भी वीरता पुरुस्कार मिलें.... खाड़िया निवासी बूधी सिंह कि बहादुरी कि गाथा भी कम नही है, उफनती मन्दाकिनी मै रस्सी दल कर 123 लोगो को पीठ पर बाँध कर नदि पर कारवाई लेकिन अचानक से भु स्ख्लन होने से नदि मै बह गय, जिंदगी ओर मौत के इन चंद फ़सलों मै मदद का यह भाव बहुत कम लोगो मै होता है ओर जिनमें होता है वो फरिस्ते ही होते है क्या वीरता पुरुस्कार के असली हक़दार नही थे पहाड़ के गाँव..? 16-17 जून कि जाल प्रलय के बाद जहां रुद्रप्रयाग का जिला प्र्शशन सोया रहा, मंत्री हवाएँ दोरे करते रहे वही राहत ओर बचाव क्रय मै जी जान से जुटे केदार घाटी के गोरी, तोषी, त्रियुगि नारायण, सोनप्रयाग, कोनगाड़-सीतापुर, गाँवों के लोगो ने हजारों तीर्थ यात्रियों कि जान बचे, उन्हें निशुल्क खाना दिया जब तक कि उनका ख़ुद का राशन खत्म नही हुआ, सब कुछ खोने का दर्द, दुर्गम भोगोलिक स्थितियाँ, भारी बारिश भी इनके मदद के जज़्बे को नही रोक पये,...........वास्तव मै मानसिक ओर आर्थिक रूप से टूट जाने के बाद भी इन गाव वालों ने जो मदद कि वो हमेशा जिंदा बच गय लोगो के दिलो मै रहेगी........वीरता पुरुस्कार के असली हक़दार है पहाड़ कि इन गाँव के लिए कश हमारा जिला प्र्शासन, राज्य सरकार भी सम्मान देने क्ा भाव रखती .!!

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  • Mohan Chandra C हमारे बच्चों की बहादुरी का

  • किस्सा पुरस्कार के लिये पहुंचाने

  • वाला भी पुरस्कार का हकदार होगा.

  • 3 hours ago · Like · 2

  • Krishna Semwal दिपक जी जिस तरह की संवेदनहीनता आपदा के समय बहुगुणा सरकार ने तब दिखाई आज भी सरकार उसी राह पर चल रही हैं पसालत गाँव के सरोज सेमवाल ने कई लोगों की जान बचाई लेकिन खुद शहीद हो गया इस बात के गवाह ईलके के लोग तो है ही अखबार की सुरखिया बनाने के बाद भी अब लगता है सरोज ओर उस जसे कई यहाँ के जाबांज भुला दिये गए धन्य है बहुगुणा सरकार

  • 2 hours ago · Like · 2

  • Uma Bhatt unhen shat shat naman

  • about an hour ago · Like · 1

  • Sanjay Chauhan इनकी बहादुरी के सामने शायद वो पुरुस्कार भी कुछ नहीं ऐसे जाबाज पहाड़ पुत्र को शत शत नमन

  • about an hour ago · Like · 1

Uttam Sengupta

If Kejriwal was unaware of protocol, what were his bureaucrats doing ? It seems nobody has the courage to tell him anything. And schoolchildren being told of paid media, bribe taking policemen and his resolve to break the law if necessary is typical. Don't heroes in Hindi films do the same thing and deliver the same dialogue ? It is the effect on schoolchildren that one worries about.

Back to road if needed: Kejriwal

telegraphindia.com

<​B>New Delhi, Jan. 25:<​/B> Like President, like chief minister — but the likeness was confined to the unflinching tones of their Republic Day messages.

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S.r. Darapuri

A Historical Cartoon on Republic Day

This Cartoon, which was published in the year 1950, on 24th January, that is two days before the first Indian Republic day, in The Hindustan Times, drawn by the famous Cartoonist Enver Ahmed . Cartoon showing Mother India giving birth to a baby called The Republic of India and Dr. Ambedkar holding that baby in his hands and giving a gentle touch, while the other characters in the background (from Left to Right ) Constituent Assembly ,congress Party as Nurse, t he people, Jawaharlal Nehru , Babu Rajendra Prasad and Vallabhai Patel all of them are looking at the newly born baby with great anxiety.

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Navbharat Times Online

आप सभी को 65वें गणतंत्र दिवस पर ढेर सारी शुभकामनाएं। इस मौके पर करें देश के नाम अपने ज़ज्बे का इज़हार। नीचे के लिंक पर क्लिक करें और भेजें संदेश...


http://navbharattimes.indiatimes.com/sandesh/29149682.cms

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Amalendu Upadhyaya

In the last 3 decades, most mainstream political parties of the country have become 'agents' of neo-liberalism, but its direct 'product' is AAP. Neo-liberalism and communalism had begun to join hands in the 80's, disregarding the Indian Constitution.

Will the Muslims become a vote bank for AAP?

hastakshep.com

Prem Singh The Aam Aadmi Party (AAP) did not succeed in the Muslim majority constituencies in the recently held Delhi Assembly elections even though the AAP leadership tried hard, even monetarily, in this direction to help the candidates. In order to secure the Muslim votes, the AAP supremo visited…

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Jayantibhai Manani shared Dinesh Dadsena's photo.

आज 26 जनवरी का दिन हमारे लिए देश के सब से बडे राष्ट्रिय धर्म गंथ 'संविधान' के 65वा प्रागट्य दिन है. इस पावन दिन पर सभी फेसबुक मित्रो को बधाई..... जय भारत.

खुदको राष्ट्रवादी कहेलवाते रहे, संघ के कट्टर जातिवादी ब्राह्मण नेताओ देश के स्वातंत्र्य आन्दोलन के खिलाफ थे और 1947 तक ब्रिटिश शासन के समर्थक बने रहे थे. देश के संविधान के तो वे हंमेशा विरोधी रहे है और आज भी है.. संघ के ब्राह्मण सर संघचालको ने भगतसिंह की फांसी का विरोध नहीं किया था...

Exclusive Picture of Republic Day Parade, 1950

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Aaj Tak

देश आज 65वां गणतंत्र दिवस मना रहा है. तस्वीरों में देखिए कैसे मनाया देश ने इस पर्व को...

http://aajtak.intoday.in/gallery/india-celebrating-65th-republic-day-1-6302.html

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Aam Aadmi Party

65 years back the Constitution of India came into force on 26th January 1950 with a democratic government system, completing the country's transition toward becoming an independent republic.


26 January was selected for this purpose because it was this day in 1930 when the Declaration of Indian Independence (Purna Swaraj) was proclaimed.


But unfortunately, even after 65 years, "SWARAJ" has no identity in India. ...See More

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Ashutosh Kumar

कारपोरेट लूट और विकास के झूठ से मुक्त भारत के संकल्प के साथ गणतन्त्र दिवस मनाइए। बलात्कार ,जाति-अत्याचार और भ्रष्टाचार और पुलिसिया मार से मुक्त भारत के संकल्प के साथ।मुबारकबाद।

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Peethambaran Purushothaman shared India Today'sphoto.

India celebrates 65th Republic Day amidst tight security Read more at:http://indiatoday.intoday.in/story/india-celebrates-65th-republic-day-amidst-tight-security/1/339864.html

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Shamshad Elahee Shams

इस तंत्र में गण किधर है ? धक्का दो इसे, अब बदलो इस निजाम को बहुत हो चुका फरेब ..

http://aalishz.blogspot.ca/search/label/Republic%20day%20without%20People-2014

जनोन्‍माद: Republic day without People-2014

aalishz.blogspot.com

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  • Shamshad Elahee Shams, Jayantibhai Manani, Girijesh Tiwari and 13 otherslike this.

  • Jayantibhai Manani -

  • आज 26 जनवरी का दिन हमारे लिए देश के सब से बडे राष्ट्रिय धर्म गंथ 'संविधान' के 65वा प्रागट्य दिन है. इस पावन दिन पर सभी फेसबुक मित्रो को बधाई..... जय भारत.

  • खुदको राष्ट्रवादी कहेलवाते रहे, संघ के कट्टर जातिवादी ब्राह्मण नेताओ देश के स्वातंत्र्य आन्दोलन...See More

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Aam Aadmi Party

Global Hangout with Yogendra Yadav on January 26th at 10:00 PM IST


This republican day, please join Prof. Yogendra Yadav where he will discuss Aam Aadmi Party's role as an alternative to existing political parties in 2014 Loksabha elections, AAP's vision and goals for 2014.

Join

Role of AAP as an alternative in 2014 Loksabha elections

Today at 10:00pm

10,404 people are going

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ndia Today

A 60-year-old rickshaw puller, resident of a slum in the Connaught Place area, inaugurated a renovated hospital in central Delhi in the presence of Delhi Chief Minister Arvind Kejriwal.

http://indiatoday.intoday.in/story/arvind-kejriwal-invites-rickshaw-puller-to-inaugurate-maternity-hospital-in-delhi/1/339807.html

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Navbharat Times Online

आज देश 65वें गणतंत्र दिवस का जश्न मना रहा है। सभी की नजरें दिल्ली में राजपथ पर हैं। जानिए क्या हो रहा है राजपथ से लेकर बाकी देश में, LIVE:


http://navbharattimes.indiatimes.com/Republic-Day-ceremony-LIVE/liveblog/29387228.cms


‪#‎RepublicDay‬

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BBC Hindi

INDIA CELEBRATES 65th REPUBLIC DAY: भारत के 65वें गणतंत्र दिवस के मौके पर देश के अलग-अलग हिस्सों में कैसे बिखरे गणतंत्र के रंग. देखिए तस्वीरों में.

http://bbc.in/1jRqrRp

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Aam Aadmi Party shared Aam Aadmi Party - Punjab's photo.

Around 3000 Political goons have attacked Aam Aadmi Party Amritsar volunteers when they were celebrating republic day.


It's still not sure which party/group these goons belonged to but several‪#‎AAP‬ volunteers have been injured including some female volunteers.


Police just remained a silent spectator.

Around 3000 Political goons have attacked Aam Aadmi Party Amritsar volunteers when they were celebrating republic day. Police just remained a silent viewer.

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Ravi Kashyap shared Krishna Mondal Biswas's photo.

HAPPY REPUBLIC DAY. JAI BHIM, NAMO BUDDHAY.

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Media khabar added a new photo.

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Aam Aadmi Party

AAP to hold broom yatra across Gujarat:


Making their foray into Gujarat, the Aam Aadmi Party launched what it called a 'jhadu' or broom yatra across the state on India's 65th Republic Day.


In Ahmedabad today, the yatra was led by TV journalist-turned-politician Ashutosh who said the intention behind the campaign was to highlight the "anti-people and pro-corporate stand" of the Narendra Modi government.


The yatra to be taken out in all the 33 district headquarters in the state will culminate at Gandhinagar on January 30 with a rally near Mahatma Mandir, a monument in memory of Mahatma Gandhi.

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BBC Hindi

BBC FACEBOOK INDIA BOL: एक गणतांत्रिक देश के रुप में भारत ने आज 65वें साल में क़दम रखा है लेकिन क्या देश के हर नागरिक को संविधान से उसका हक़ मिल पाया है? क्या है वो एक बदलाव जो भारतीय गणतंत्र में देखना चाहते हैं आप. बीबीसी फेसबुक इंडिया बोल पर दर्ज कीजिए अपनी राय.

‪#‎RepublicDay‬

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Adivasis have always been the victims of so called 'development'

ADIVASI MAHA RALLY

Tuesday 4th February 2014, Ramlila Maidan, New Delhi.

Aloka

As the country prepares for electing the 14th Lok Sabha in the upcoming parliamentary elections of 2014, it appears to be the most opportune moment to voice the concerns of tribals or Adivasis of the country. Never in the past, this most marginalized population of the country, have come forward collectively to put across its agenda. As per the findings of the Institute of Human Development Study on the Scheduled Tribes in India couple of years ago, the tribals scored 36% lower in Human Development Index than "All India population". In southern Odisha, they experienced 92% poverty incidence and constituted "a world within a world" and lived an existence similar to the poorer population of Sub-Saharan Africa. The provisions of Constitution of India with respect to tribals have inherent in them welfarist design. However, such policies were never implemented whole-heartedly. Some of the policies are anti-people and anti-tribal. Some of the judicial interventions went in favour of tribals but these were either ignored by the executive and enforcing agencies or challenged and nullified in due course of time. Presently tribals in the country continue to face human rights violation in relation to their livelihoods, identity, dignity and survival. Hence to voice all these concerns for the first time in the history of Modern India, all the tribals collectively irrespective of their political, social or religious affiliation, would sit together on a common platform to bring forth the issues affecting them and reflect on the possible solutions. It shall also be an opportunity for the political parties of the country to have a feel of what the indigenous people of the country hope for their development. Not to burden the simple thinking with all sorts of issues, an effort would be made to prioritize them and put together in a forceful way. Therefore only three major areas shall be focused –

1.   GRANT OF INDIGENOUS STATUS TO SCHEDULED TRIBES OF COUNTRY BY GOVERNMENT OF INDIA

Today, Indigenous People constitute a population of 370 million all over the World. 70 % of them reside in Asia and India has the largest population (8.4% of the total population of the country). Indigenous Peoples are a distinct people, who subscribe to a substantially different development paradigm- "Development with Identity". They are rights holders, who are increasingly asserting their rights, which historically have been impeded. Indigenous Peoples are among the most impoverished and marginalized-politically, economically, educationally and socially. There are threats to their lands and resources under the pressure of globalization. There are increasing evidences of identity related conflicts often rooted in socio-economic discontent. Focus on Indigenous Peoples can be traced back to the 1950s/1960s. The process of decolonization led to renewed emphasis on people's right to self-determination creating a larger political space in which new groups could begin to assert claims leading to marginalization of indigenous groups in the "new" political mainstream. Anti-racism and women's movement in the West, through their defence of diversity paved way for an incipient indigenous movement. In 1977, the First NGO Conference took place on the Discrimination against Indigenous Populations. In 1978, a Special Rapporteur on Discrimination against Indigenous Peoples under United Nations High Commissioner on Human Rights came out with a report. In 1982, there was engagement of the UN system through setting up of the "Working Group on Indigenous Populations" (WGIP). The year 1993 was declared as the first International Year of Indigenous Peoples. Again in 1993, the UN World Conference on Human Rights in Vienna recommended the declaration of a Decade for Indigenous Peoples (1995-2004). The goal of the First International Decade of the World's Indigenous Peoples was "To strengthen international cooperation for the solution of the problem faced by Indigenous Peoples in the areas of human rights, culture, environment, development, education and health". The theme of the decade was" Indigenous People: Partnership in Action".

According to the findings of the World Bank Study on ' Poverty among Indigenous Peoples in Latin American countries' during the First Decade of World's Indigenous Peoples(1995-2004) , the proportion of Indigenous Peoples living in poverty did not change much during the decade. Since the goals of the first Indigenous Peoples Decade could not be realized fully, the UN declared the decade of 2005-2014 as the 'Second Decade of World's Indigenous Peoples' with its main theme 'Partnership for action and dignity'. Adivasis continue to struggle for existence in this glorious country, India. Identity, which is the most important for many of the Adivasi communities, has always been contesting pre and post-colonial period and so is the perception of people at large. Constitutionally unrecognized as its " first citizens" or Indigenous Peoples , as the name "Adivasi" suggests,  has left the communities much confused , marginalized and deprived them from many achievable milestones. The acceptance of the United Nations Declaration on the Rights of Indigenous Peoples (UNDRIP) in the year 2007 by UN General Assembly and signing of this declaration by India stating that all Indians are Indigenous in the country has further made a mockery of the existence of Adivasis , who have been living in the country since ages. Adivasis, as being categorically put under Schedule Tribes is not uniform and applicable to all States and Union Territories, categorical discrimination in terms of constitutional rights has further deprived many of the Adivasi communities in some parts of the country. Hence currently a strong need is felt that Scheduled Tribes be recognized as the Indigenous People of India.

2.      ADIVASI MODEL FOR DEVELOPMENT & NEED FOR TRIBAL AUTONOMY

Adivasis have always been the victims of so called 'development' in the country; they remain continuously deprived of the basic necessities and their life sustaining resources i.e., land, water and forest. A lot of land has been already taken for mining minerals, building big industries, dams and power projects and to give more is no more possible on their part. It has become clear now the autonomy remains in the name of physical demarcation of an Adivasi state like Jharkhand; otherwise the development agenda of for the state is constantly being set by the 'outsiders', elite tribals and ruling establishment which has unwavering faith in the dominant and usual development paradigm which has been wreaking havoc with poor indigenous population everywhere in the country. 'Development through Industry' is a common agenda which is being propagated by the corporate through the media, which is also accepted by many middle class who have become a part of the 'rat race' completely undermining the existence of a much larger community depending on agriculture throughout the country. The present situation of the Adivasis in India is deteriorating day by day. Poverty in all forms is prevalent in the villages; malnourished children are a common sight; corruption and exploitation are a continuous phenomenon; anomalies in the social security schemes of the government which by now has become inevitable. Migration to urban centres in the form of domestic workers is a common occurrence. The gap between policies and its proper implementation is much evident in all departments of social welfare. Bureaucratic oppression has led to major setback among the Adivasis and other marginalized communities; being treated as less than humans in their own state has tremendously resulted in loss of self-pride among them, denial in the form of opportunities for basic services especially education and health has deteriorated their condition from bad to worse. In addition , the state's role in facilitating land grabbing for the companies in Jharkhand , Chhattisgarh, Odisha and many parts of North-East India is an effort initiated to alienate Adivasis from their roots thereby threatening their very existence; they are being systematically designed to be deprived from their life sustaining resources (jal, jungal, jammen). Government of India has completely failed to stick to its core obligation to protect, respect and fulfil the basic human rights of Adivasis. Most of its populace depends on agriculture, yet nothing commendable has been initiated in terms of strengthening agriculture development in the regions of Adivasi habitat. For the government, land is merely a material source for profit making and so far has signed huge number of MoU's with big and small companies for establishment of industries in the states of Jharkhand, Chhattisgarh, Odisha and North East. The land which is much sacred having social and cultural significance to the Adivasis has been by all means targeted to be given away for profit making. The branding of 'Adivasi Corridor' as the 'Red Corridor' has been an easy strategy of the state to eliminate innocent Adivasis in the name of extremist. The laws protecting the Adivasi land like the Chotanagpur Tenancy Act, 1908, Santhal Parghana Tenancy Act, 1949, Fifth and Sixth Schedule of Constitution of India and The Provisions of Panchayat (Extension to Schedule Areas) Act, 1996, and other Supreme Court Judgements (Samata Judgement 1997) and UNDRIP, all of these and many more legal instruments are being systematically ignored and violated for the so called development interest of the country. The Fifth Schedule Areas in the nine states of the country with special provisions under Article 244(1) of the Constitution of India enjoys special status in restoration of land and natural resources of the Adivasi communities. The honourable Governors of States of the Fifth Schedule Areas have an additional responsibility to look after the provisions of the Scheduled Areas which are implemented to the full and also remain accountable to the discrepancies happening in the state despite of such statutory provisions. The landmark PESA Act ,1996 (The Provisions of Panchayat Extension to Schedule Areas Act) passed by the Indian Parliament gives full autonomy to tribal villages in Schedule areas but till date none of the nine states have implemented it. It is perplexing to understand as to why the tribal groups are asserting their self-identity in recent times. Perhaps some assumptions can be made in this regard. The gradual shift from being a part of the mainstream society to assertion of one's own identity comes from the fact that majority lived in penury with no assistance from the government. They believed that this negligence on the part of the government was because they were distinct from the mainstream people and they were excluded from the developmental processes. Hence today we see the demands of Boroland, Tipraland, Manya Seema in Andhra Pradesh and Autonomous states of Karbi Anglong andDima Hasao of Assam. It has taken over 50 years of wide-scale human suffering for old prejudices to end and the stage to be set for meaningful negotiations between the Government of India and the Naga underground. On the one hand the government's perceptions about the Naga struggle have undergone a sea-change and it has shown a large degree of flexibility in trying to work out a political settlement; on the other hand those who have been fighting for an independent Nagalim have also become aware of the inherent complexities involved in their struggle and the impossibility of a military solution. The two principal issues that need to be resolved through negotiations are (a) the question of Naga sovereignty/self-determination and (b) the question of a unified Nagalim/Greater Nagalim. The NSCN (I-M) has given no indication of any rethinking on the question of a Greater Nagalim. On the other issue, however, though the official position of the NSCN (I-M) still is that it is committed to a sovereign, independent Nagalim, it is clear that greater autonomy and not sovereignty would be the issue that would have to be hammered out in the coming talks. But the delay of nearly a decade for the outcome of Naga-Government Peace talks is wearing away the patience of tribal people. Today we need to in fact challenge the present/ prevailing form of 'development' and talk of 'people cantered development' and greater tribal autonomy. Need lies in designing 'Adivasi model of development', ensuring good human conditions for all and yet remain sustainable for our future generations. The struggle of the Adivasis in today is therefore a struggle to restore and hold on to their identities and to demand the fulfilment of their constitutional rights. There is a need for social reconstruction and political mobilization of the Adivasis.

3.   RECOGNITION OF TRIBALS OUTSIDE SCHEDULE AREAS & FILLING UP OF RESERVED POSTS FOR SCHEDULE TRIBES IN GOVERNMENT JOBS

The Constitution of India has categorized the tribal areas of the country as Fifth Schedule areas and Sixth Schedule areas. The SIXTH SCHEDULE areas are predominantly tribal and are fully autonomous as they have states of their own (Meghalaya, Mizoram, Tripura and tribal district of Assam) whereas FIFTH SCHEDULE areas are contiguous tribal areas with sizable(more than 30% ) tribal population within states(Jharkhand , Chhattisgarh, Odisha, Madhya Pradesh, Andhra Pradesh, Gujarat , Rajasthan, Maharashtra and Himachal Pradesh). These are called Scheduled Areas. The idea behind such arrangement was to devise intensive development plans for these areas and bring them up to the level of rest of the country. However, it is worthy to note that many tribe majority / contiguous areas have been left out in this process of delineation. Thus Anurachal Pradesh, Nagaland , Manipur , West Bengal (Bankura, Purulia , Midnapore, Doars and Terai regions), Karnataka(Kodagu and others), Kerela (Wyanad) , Tamil Nadu(Nilgiri ) and Jammu Kashmir have many tribal majority areas but they are not considered scheduled areas. Furthermore, there is a restriction that goes with scheduling: a tribe not scheduled in a specific area is not recognized as such at all. Thus more that 10 million of Adivasi people who migrated from central tribal belt to tea plantations of Assam are not recognized as Scheduled Tribes. Likewise lakhs of tribals migrated to Andaman & Nicobar Islands years ago are not being given the benefit of Schedule Tribes. So are the lakhs of tribals who have migrated to big cities like Delhi, Mumbai, Chennai, Kolkata and Bengaluru are not recognized as Schedule Tribes. Such unrecognized Adivasis are compelled to find their place within the so called mainstream society, where the place available is nowhere other than the very bottom of dominant society. There is a provision made in Constitution of India for reservation in government jobs and elections to state legislatures and parliament with a view to help the tribals in catching up with rest of the population. As far as matter of filling up government posts by the Schedule Tribes through reservation is concerned, the Government's own record is dismal. The will to empower them is already poor; filling their posts with 'others' under pretext of 'no suitable candidate' is common occurrence; discrimination in transfers, postings and promotions is rampant. The need of the hour is at least give the Scheduled Tribes their due by filling up the vacancies in a war footing both in Central and State Government jobs.

About The Author

Aloka Peter (Ranchi) is a tribal right activist and freelance journalist.

आम आदमी पार्टी

पार्टनर तुम्हारी पॉलिटिक्स क्या है?

-प्रमोद रंजन

इमां मुझे रोके हैं, जो है खींचे मुझे कुफ्र

काबा मेरे पीछे है, कलीसा मेरे आगे!

- मिर्जा गालिब

'पार्टनर तुम्हारी पॉलिटिक्स क्या है?' हिंदी के महान कवि मुक्तिबोध 1960 के दशक में अपने मित्रों से यह सवाल उनकी विचारधारा के संबंध में पूछते थे। आज हम यही सवाल आम आदमी पार्टी (आप) से पूछना चाहते हैं।

लगभग एक साल पहले बनी इस पार्टी को गत दिसंबर में हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव में अप्रत्याशित सफलता मिली। इसकी झोली में कुल 30 फीसदी वोट गए तथा इसने दिल्ली की कुल 70विधानसभा सीटों में से 28 पर जीत हासिल की। वर्ष 2008 के दिल्‍ली विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को14.5 फीसदी वोट मिले थे और उसके दो उम्मीदवार जीते थे। बसपा को इस बार बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद थी लेकिन उसे महज 5 फीसदी वोट मिले और अपनी 2 सीटों से भी हाथ धोना पड़ा। इसके विपरीत, 'आप' ने दिल्ली में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 12 में से 9 सीटों पर जीत हासिल की। दिल्ली में दलित और अन्य पिछडा वर्ग ने आम आदमी पार्टी का बड़े पैमाने पर साथ दिया। 'आप' इसे न सिर्फ स्वीकार कर रही है बल्कि घोषित रूप से इससे उत्साहित है और इसी बूते लोकसभा चुनावों में उतरने की तैयारी कर रही है।

दिल्ली में सरकार बनाने में आम आदमी पार्टी ने सामाजिक समीकरणों का भी ख्याल रखा है। 28 दिसंबर, 2013 को मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के साथ छःह मंत्रियों ने शपथ ली, जिनमें से दो राखी बिरलानगिरीश सोनी दलित समुदाय के हैं। सोमनाथ भारती बिहार के ओबीसी हैं। अल्पसंख्यक समुदाय के सत्येंद्र जैनको भी इनके साथ मंत्री बनाया गया। पार्टी का कोई भी मुसलमान उम्मीदवार नहीं जीता इसलिए वह मंत्रिमंडल में किसी मुसलमान को जगह नहीं दे सकती थी।

इस प्रकार 'आप' की सरकार ने भारतीय राजनीति में जाति,संप्रदाय के आधार पर मंत्रिमंडल गठित करने की रूढ़ि का पालन किया तथा अपने दलित-बहुजन कार्यकर्ताओं के माध्यम से इन तबकों के बीच इसका प्रचार भी किया।

लेकिन वास्तविकता क्या है? 'आप' के दलित-ओबीसी मंत्री 'जाति'को किसी विमर्श के काबिल नहीं मानते। वे फुले-आम्बेडकर-लोहियावाद से न सिर्फ अपरिचित हैं बल्कि इस तरह के विमर्श को देश और कथित 'आम' आदमी की बेहतरी में बाधा मानते हैं।


26 वर्षीय मंत्री राखी बिरला खुद को दलित नेता मानने से इंकार करती हैं। वे जाति से संबंधित हर सवाल पर असहज हो जाती हैं तथा उससे बचने की हरसंभव कोशिश करती हैं। जाति विमर्श पर उनकी समझ का एक नमूना मंत्री बनने के बाद एनडीटीवी द्वारा लिए गए उनके एक इंटरव्यू में दिखा। इसमें जाति के सवाल पर राखी ने कहा कि 'मुझे गर्व है कि मैं वाल्मीकि समाज की बेटी हूं, जिस समाज के लोग सुबह  छःह बजे उठकर अपना घर नहीं साफ करते लेकिन दूसरों के घरों की सफाई करते हैं...आप लोग इस जाति-धर्म की राजनीति से ऊपर उठिए!'

'आप' के दूसरे दलित मंत्री गिरीश सोनी की राजनीतिक पृष्ठभूमि'भारत की जनवादी नौजवान सभा' (डीवाईएफआइ) नामक कम्युनिस्ट संगठन की रही है। यह संगठन 'उच्च जातियों के आर्थिक रूप से कमजोर तबकों के लिए' आरक्षण की मांग करता रहा है। खुद गिरीश का राजनीतिक सफर भी 'बिजली-पानी'आंदोलन तक सीमित रहा है। उनके सरोकारों में 'दलित' कहीं से भी शामिल नहीं हैं।

नई सरकार के ओबीसी मंत्री सोमनाथ भारती वैश्‍य समुदाय की'बरनवाल' जाति से आते हैं। यह जाति उनके गृह राज्य बिहार में'ओबीसी' सूची में है, जबकि दिल्ली समेत अधिकांश राज्यों में'सामान्य सूची' में है। भारती का सामाजिक न्याय की किसी भी वैचारिक धारा से दूर-दूर तक का वास्ता नहीं रहा है। वे पेशे से वकील हैं लेकिन भारत के संविधान और न्यायपालिका पर वे भरोसा नहीं जतलाते। वे समस्याओं के समाधान के लिए'डायरेक्ट एक्‍शन' के हिमायती हैं। मंत्री बनने के बाद गत 16जनवरी की आधी रात को उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं के साथ दिल्ली में  अफ़्रीकी महिलाओं-पुरुषों को कथित रूप से  ड्रग्स का उपयोग करने और वेश्‍यावृत्ति के आरोप में कई घंटों तक बंधक बनाए रखा तथा इनमें एक को सार्वजनिक रूप से मूत्र का नमूना देने के लिए विवश किया। दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट ने उन्हें वकील के रूप में एक मुकदमे के दौरान सबूतों से छेडछाड का भी आरोपी पाया है। वास्तव में,  अन्य आप विधायकों-मंत्रियों की ही तरह वे भारतीय मध्यमवर्ग की विचारहीन और लंपट तत्वों की रॉबिन हुड नुमा छवि की चाहत को संतुष्‍ट करते हैं ।

'आप' के संविधान में  प्रावधान है कि पार्टी संगठन के जिला,राज्य और राष्ट्रीय स्तर तक की सर्भी इकाइयों में 'वंचित सामाजिक समूहों,  जैसे कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति,पिछड़े वर्गों और अल्पसंख्यक' के कम से कम 5 सदस्य अनिवार्य रूप से होंगे। यदि 'इन समूहों में से किसी का प्रतिनिधित्व कम हो तो उन्हें उचित प्रतिनिधित्व देने के लिए संबंधित कार्यकारिणी अधिकतम 5 सदस्यें तक सहयोजित (को-ऑप्ट) करेगी। यदि सहयोजित सदस्य पहले से ही पार्टी के सक्रिय सदस्य नहीं हैं, तो उन्हें पार्टी का सक्रिय सदस्य  समझा जाएगा। सहयोजन के बादए, उनके अधिकार कार्यकारिणी के निर्वाचित सदस्यों के समान होंगे।'

दलित-बहुजन कोण से देखें तो आम आदमी पार्टी की 'लिखत-पढत' में सकारात्मक पक्ष और भी हैं। दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान जारी 'संकल्प पत्र' में 'सामाजिक न्याय' नाम से एक लंबा खंड रखा गया है। इस खंड में सामाजिक न्याय की सैद्धांतिक अवधारणाओं पर खरे उतरने वाले अनेक लोकलुभावन वादे हैं। इनमें एक प्रमुख वादा यह है कि पार्टी की सरकार बनने पर 'दिल्ली सरकार के तहत आने वाली नौकरियों व षिक्षण संस्थाओं में अनुसूचित जाति, जनजाति एवं अन्य पिछड़ी जातियों के आरक्षण को कायदे से लागू किया जाएगा।'


हम सब यह जानते हैं कि 'आम आदमी पार्टी' का जन्म अप्रैल, 2011 में शुरू हुए अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के दौरान एक एनजीओ के गर्भ से हुआ। उस आंदोलन का रूख स्पष्ट रूप से आरक्षण विरोधी था तथा उसके नेता और समर्थक इस मत के थे कि 'आरक्षण सबसे बड़ा भ्रष्टाचार है'। उस दौरान आंदोलन के मुख्य नेता अन्ना हजारे, शांतिभूषण, रामजेठमलानी,संतोश हेगड़े, किरण बेदी और अरविंद केजरीवाल थे। इनमें से दोए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश संतोष हेगड़े और अरविंद केजरीवाल सीधे तौर पर आरक्षण विरोधी विद्यार्थियों के संगठन'यूथ फॉर इक्वलिटी' के समर्थक थे। न्यायाधीश हेगडे तो अपने कार्यकाल के दौरान आरक्षण विरोधी फैसले देने और उस पर अनावश्‍यक टिप्पणियां करने के लिए कुख्यात रहे हैं।


'आप' की जन्‍मकथा

ऐसे पुख्ता संकेत हैं कि गोविंदाचार्य और योगगुरु रामदेव द्वारा प्रस्तावित 'काला धन वापस लाओ आंदोलन' और केंद्र सरकार के तत्कालीन मंत्रियों के बडे घोटालों से ध्यान हटाने के लिए कांग्रेस ने एक रणनीति के तहत उस आंदोलन को प्रायोजित किया था तथा उसे 'मीडिया हाइप' देने की कोशिश की थी। इसमें वह सफल भी हुई (देखें, 'अन्ना से अरविंद तक' संपादक: संदीप मील,अनन्य प्रकाशन, दिल्ली, २०१३ में संकलित 'मीडिया और अन्ना का आंदोलन' शीर्षक से मेरा लेख)। बाद में, आंदोलन के गर्भ से निकली पार्टी कांग्रेस के लिए ही भस्मासुर साबित हुई । यह अनायास नहीं है कि अन्ना ने इस नयी पार्टी से खुद को अलग कर लिया।

बहरहाल, भारत के संविधान, संसद और उससे उपजे सामाजिक न्याय के हिमायती लोकतंत्र को चुनौती देने वाला शहरी मध्यमवर्गीय अन्ना आंदोलन अब पृष्ठभूमि में जा चुका है और'आम आदमी पार्टी' के रूप में एक नया राजनीतिक दल हमारे सामने है, जिसने भारतीय राजनीति में धमाके के साथ प्रवेश किया है और इसी संविधान और संसद के भीतर अपनी जगह तलाशने की कोशिश कर रहा है। इसे भारतीय लोकतंत्र की सर्वस्वीकार्यता की दृष्टि से एक शुभ संकेत माना जा सकता है। लेकिन इस पार्टी के मूल सामाजिक आधार और मंशा को देखते हुए इसके कार्यकलापों पर पैनी नजर रखने की जरूरत है। क्या इन्होंने सचमुच भारतीय लोकतंत्र और इसकी सामाजिक न्याय की अवधारणा को स्वीकार कर लिया है ? या कहीं बाहर से वार कर हार चुका दुष्मन सिर्फ वेश बदलकर तो भीतर नहीं आ गया है?

ऊपर हमने 'आप' द्वारा उनके विभिन्न दस्तावेजों में किए सामाजिक न्याय के संबंध में किए गए दावों, नीतियों को देखा।'आप' के वे दावे और नीतियां सिर्फ नयनाभिराम और कर्णप्रिय हैं। पार्टी ने अपने इन दावों को हाशिए पर रखा है तथा अपने राजनीतिक एजेंडे में सिर्फ नौकरीपेशा मध्यम वर्ग की नागरिक सुविधाओं और देशी व्यापारियों के हितों को जगह दी है। कम से कम अभी तक तो यही लगता है। दिल्ली में सरकार बनाने की कशमकश के दौरान आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस और भाजपा से18 सवाल पूछे थे और कहा था अगर इन सवालों पर दोनों पार्टियां उसे समर्थन का भरोसा दें तभी वे सरकार बनाएंगे। ये सवाल 'वीआईपी कल्चर बंद करने, जन लोकपाल विधेयक पारित करने, बिजली कंपनियों का ऑडिट करवाने, अनाधिकृत कॉलोनियों को नियमित करने, औद्योगिक क्षेत्र को मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध करवाने, खुदरा बाजार में विदेशी निवेश का विरोध करने, शिक्षा व्यवस्था ठीक करने' आदि के संबंध में थे। इन सवालों में'सामाजिक न्याय' का सवाल कहीं नहीं था। अगर'आप' सामाजिक न्याय, आरक्षण नियमों का पालन करने व सभी बैकलॉग नियुक्तियों को भरने सम्बन्धी अपने वायदों को पूरा करने के प्रति संकल्पबद्ध होती तो जाहिर है वह कांग्रेस और भाजपा से यह सवाल भी पूछती कि 'दिल्ली में सरकारी नौकरियों में आरक्षित तबकों का इतना बैकलॉग है कि अगर सिर्फ बैकलॉग पद भी भरे जाएं तो कई सालों तक 'सामान्य' तबकों के लिए कोई  पद विज्ञापित  नहीं होगा। क्या आपलोग इस मुद्दे पर हमारा साथ देंगें?'

मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने विधानसभा में अपने पहले भाषण के दौरान भावपूर्ण वक्तव्य दिया तथा अपनी पार्टी के  सभी राजनीतिक एजेंडे एक बार फिर गिनवाए, लेकिन 'सामाजिक न्याय' का एजेंडा उनके इस वक्तव्य में  कहीं नहीं था।


आरक्षण के मुद्दे पर कहाँ खड़ी है 'आप'

आरक्षण  के मुद्दे पर 'आम आदमी पार्टी' एक साथ दो विपरीत  मुखौटों के साथ दिखती है। अन्ना आंदोलन के दौरान अरविंद केजरीवाल इस आशय की बात कहते नजर आते थे कि आरक्षण मिलना चाहिए लेकिन संपन्न दलितों को नहीं। इसके अलावा जिसको एक बार आरक्षण का लाभ मिल जाए, उसे दुबारा न मिले (वे आर्थिक आधार पर आरक्षण के पक्षधर रहे हैं)। आम आदमी पार्टी बनाने के बाद आरक्षण जैसे संवेदनषील मुद्दे पर उन्होंने चुप्पी साधे रखी है। इस प्रकार जहां कथित ऊंची जाति के लोगों को यह संदेश देने की कोशिश की कि उनकी पार्टी आरक्षण की व्यवस्था को चुपचाप जड़-मूल से खत्म कर देगी, वहीं आरक्षित तबकों को यह बताया कि उनकी भी मुख्य समस्या भ्रष्टाचार,पानी, बिजली और अन्य नागरिक सुविधाएं है, जिन्हें दूर करने के लिए वे कटिबद्ध हैं।

लेकिन जब उत्तर प्रदेश में प्रोन्नति में आरक्षण के मामले ने तूल पकड़ा तो पार्टी के लिए कोई स्टैंड लेना अनिवार्य हो गया तो पार्टी ने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए 15 दिसंबर, 2012 को अपनेराजपूत नेता मनीष सिसोदिया को आगे किया। आरक्षण पर अब तक 'आप' की वेबसाईट पर जारी इस एकमात्र आधिकारिक बयान में सिसोदिया ने प्रमोशन में आरक्षण का पुरजोर विरोध किया। उन्होंने कहा कि 'सरकारी नौकरी में प्रमोशन में रिजर्वेशन का शगूफा समाज को बांटने की कोशिश है...किसी सीनियर को नज़रंदाज़ कर जूनियर को रिजर्वेशन के आधार पर प्रमोट किया  जानो  तार्किक नहीं है। इससे माहौल खराब होगा।'

इसके विपरीत, सामजिक न्याय के पक्षधर माने जाने वाले 'आप'नेता योगेंद्र यादव ने गत 6 जनवरी, 2014 को 'इकोनॉमिक टाइम्स' से कहा है कि 'हाल तक हमारी (आप) इस मामले में कोई स्पष्ट राय नहीं थी। परन्तु अब हमारी राय स्पष्ट है। हम वंचित समूहों को और अधिक आरक्षण दिलाने के लिए काम करेंगें।' योगेंद्र यादव के इस बयान के संबंध में दो-तीन बातें गौर करने लायक हैं। पहली तो यह कि प्रमोशन में आरक्षण का विरोध करने के लिए 'आप' ने राजपूत सिसोदिया को आगे किया और चूंकि लोकसभा चुनाव में जाने के लिए आरक्षण जैसे विषय पर अपना स्टैंड साफ करना आवश्‍यक हो गया तो इसका पक्ष लेने के लिए 'यादव' योगेंद्र सामने आए। दूसरी बात, योगेंद्र यादव का यह बयान पार्टी का आधिकारिक वक्तव्य नहीं है। इसे पार्टी ने अपनी वेबसाइट पर जगह नहीं दी है। यह एक अखबार से की गई बातचीत के क्रम में कही गई 'बात' है। तीसरे,  जब'इकोनॉमिक टाइम्स' ने इस संबंध में पार्टी के अन्य लोगों से बातचीत की तो उन्होंने इस पर कोई भी टिप्पणी करने से इंकार कर दिया। टिप्पणी करने से इंकार करने वाले वे लोग हैं जो बड़ी-बड़ी  नौकरियां छोडकर, देशसेवा का जज्बा लिए 'आप' में शामिल हुए हैं और भारत में मेरिटोक्रेसी स्थापित करना चाहते हैं।

उत्तर भारत के विभिन्न हिस्सों से मिल रही सूचनाएं बताती हैं कि 'आप' का प्रभाव तेजी से बढ रहा है। बडी संख्या में उसके कार्यकर्ता व समर्थक बन रहे हैं। विभिन्न राज्यों में अनेक ईमानदार बहुजन नेता भी उसकी ओर आकर्षित हो रहे हैं। ये वे लोग हैं, जो 'अपने' राजनतेओं और राजनीतिक पार्टियों के पाखंड और भाई-भतीजावाद से त्रस्त होकर राजनीतिक हाशिये पर पडे थे। 'आप' को अगर भारतीय राजनीति में जगह बनानी है तो यह बिना बहुजन तबकों के सहयोग के न हो सकेगा। दिल्ली में उनकी जीत की वजह भी इसी तबके से मिला व्यापक समर्थन रहा है। आरक्षण का समर्थन करने पर जब योगेंद्र यादव को मीडिया ने घेरने की कोशिश की तो उन्होने 'हेडलाइंस टुडे' पर कुछ रोचक दावे किए और कई अनूठी जानकारियां दीं, जिन पर ध्यान दिए जाने की जरूरत है। एक तो उन्होंने साक्षात्कारकर्ता के इस दावे का पुरजोर खंडन किया कि 'आप' मध्यमवर्ग की पार्टी है। साक्षात्कारकर्ता ने जब उनसे पूछा कि क्या आरक्षण जैसी व्यवस्था का समर्थन करने से 'आप' के परंपरागत समर्थक नाराज नहीं होंगे, तो योगेंद्र ने बताया कि पार्टी को स्लम कॉलोनियों, अनाधिकृत कॉलोनियों तथा दिल्ली के ग्रामीण क्षेत्रों से सबसे अधिक वोट मिले हैं, जबकि 'पॉश' इलाकों से बहुत कम वोट मिले हैं।

योगेंद्र का यह बयान पार्टी के भीतर और बाहर चल रही रस्साकशी को बयान करता है। वास्तव में, इन दिनों उत्तर भारत के राजनीतिक आकाश में कई किस्म की रस्साकशी चल रही है। एक ओर बहुजन तबकों के बौद्धिक और सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता 'आप' और 'अपनी' विभिन्न राजनीतिक पार्टियों, बसपा,सपा, राजद, जदयू, लोजपा आदि के नेतृत्व की तुलना करते हुए खुद को असमंजस में पा रहे हैं। दूसरी ओर, खुद आम आदमी पार्टी भी यह तय नहीं कर पाई है कि वह किस ओर जाए। एक तरफ आरंभिक तौर पर उसे पार्टी के रूप में स्थापित करने वाले मेंटर और उच्चवर्णीय कार्यकर्ता हैं, जो मौजूदा धूल-धुसरित लोकतंत्र की जगह, सरकारी बाबुओं के भ्रष्टाचार से मुक्त साफ-सुथरी मेरिटोक्रेसी चाहते हैं, तो दूसरी तरफ, उनके लिए सत्ता की सीढी बन सकने वाले बहुजन वोटर हैं, जो सदियों से उनके साथ हुए अन्याय के मुआवजे के तौर पर अफिरर्मेटिव एक्‍शन पर आधारित समान अवसर वाली व्यवस्था के हिमायती हैं।

महान उर्दू शायर गालिब के शब्दां में कहें तो देखना यह है कि वेइमां और कुफ्र में किसे चुनते हैं? वास्तव में देखना तो यह भी है कि अंततः वे किस धारा को अपना इमां मानते हैं और किसे कुफ्र?  सब इंतजार में हैं कि ऊंट किस करवट बैठेगा? किसी करवट बैठेगा भी या खुद पर लाद ली गयी असंख्य उम्मीदों की भार से दिल्ली से बाहर निकलते ही दम तोड़ देगा?


(फारवर्ड प्रेस के फरवरी, 2014 अंक में प्रकाशित)


प्रमोद रंजन फारवर्ड प्रेस के सलाहकार संपादक हैं।


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The issue is not to "clean up" this Republic but to replace it

Statement of the Central Committee of Communist Ghadar Party of India, 19th January, 2014

On 26th January, 2014, it will be 64 years since the proclamation of the Republic of India following the adoption of its Constitution.  As the 65th year begins, it is an undeniable fact that workers, peasants and the vast majority of people in our country are not satisfied with their conditions of life under this "secular, democratic and socialist" Republic.

All wage and salaried workers are extremely angry with the inexorable rise in consumer prices and consequent squeeze on the purchasing power of their monthly incomes.  They are being made to work such long hours that they have no time for their families.  Crores of workers on contract are denied even a modicum of job security.  Exploitation of labour is being intensified in all sectors under the banner of privatisation, liberalisation and global competitiveness of Indian capital.  Even the basic right of workers to form unions is flagrantly violated in the name of creating a favourable investment climate for capitalists.

Peasants face extreme insecurity of livelihood.  They are at the mercy of capitalist corporations and other monopoly merchants and hoarders, in addition to being vulnerable to drought and floods.  Even possession of the land they till is not secure in their hands, as both central and state governments are acting in the interests of corporate land grabbers.  The livelihood of tribal peoples is being destroyed by capitalist mining companies and governments that are committed to fulfil their greed.

Crores of working people in town and countryside have been protesting against the course of globalisation through liberalisation and privatisation, which has been followed by successive governments since 1991, led by Congress Party, BJP and a Third Front.

The toiling majority of people are protesting the fact that the economic system does not fulfill their claims.  They are angry that the political system of representative democracy does not represent their interests.

As the 65th year begins, we are witnessing the campaign for the Lok Sabha election due in a few months' time.  Congress Party and BJP, the two principal executors of the capitalist reform agenda and the unleashing of state terrorism and communal violence, are once again shamelessly presenting themselves to the people as the best choice to govern the country. They have both openly committed to continue with the drive towards globalisation through liberalisation and privatisation.  They are in fact appealing to the big bourgeoisie, each claiming to be the best party to push the capitalist-imperialist agenda while pretending to be against corrupt politicians and against "crony capitalism".

Narendra Modi is taking full advantage of the spate of corruption scandals that have hit the Congress-led government over the past ten years.  He is portraying Congress Party rule as the source of all problems and BJP rule as the solution, besides portraying himself as an "aam aadmi", a former tea seller.  

Rahul Gandhi, heading the campaign of the incumbent Congress Party, is presenting himself as having zero tolerance for corruption. He wants people to forgive Congress Party for all its crimes of the past and believe that this new young leader will bring forward younger and honest candidates in the coming elections, to pursue the liberalisation and privatisation program allegedly without corruption.

The impression is being created that corrupt politicians are the number one problem in our country.  The truth is that corrupt politicians are only one of the ugly symptoms but not the source of the disease.  The source of our problems lies in the economy being based on exploitation of the toiling majority by a minority of private owners of the means of production, and the Indian Republic being an organ to defend and preserve the dictate of the exploiting minority.

Prime Minister Manmohan Singh, addressing a press conference on 3rd January, admitted that the Indian economy is caught in the grip of a severe crisis.  Apart from blaming the downturn in the global capitalist economy for the decline in exports and industrial stagnation since 2012, he stated that corruption charges against his government have stalled the reform process.  What he meant is that if so many charges of corruption had not been made, his government could have pursued the capitalist reform agenda more aggressively.  In other words, he is admitting that the aggressive pursuit of rapid capitalist growth will inevitably be accompanied by progressively higher degrees of corruption.

Capitalism has already developed to its highest stage of monopoly capitalism and imperialism.  It is a stage in which capitalism is highly parasitic.  Competition among the monopolies is carried out through criminal and corrupt means.  Monopoly capitalists, by their very nature, are eager to use every possible means to secure maximum profits for themselves and under-cut their rivals.  They use their special connections and big money power to influence the decisions of ministers, senior bureaucrats and judges.  This is how the system functions, on a daily basis.  This is the case not only in India but also in the US, Britain and other capitalist countries.  Corruption is inherent to monopolistic capitalist competition.

Moreover, the Indian Republic is characterized by widespread corruption at all levels because it is a relic of the colonial state.  It was built to enslave our people and maximize the loot and plunder of our land and labour.  It preserves the colonial institutions and methods of elite accommodation, privilege distribution and communal division.  

The aim of the anti-corruption agenda being promoted by the bourgeoisie is not to address the fundamental problems afflicting our society and State.  It is to address the problem facing the big capitalists – that is, to find a way to divert people's attention, prettify and stabilize bourgeois rule and push ahead with the program of maximum exploitation and plunder of our land and labour.

The big capitalists want to get rid of some forms of corruption, especially some which directly affect masses of working people.  They want to create excitement about corruption being tackled.  They want to divert public attention away from the exploitative capitalist system, the oppressive state machinery, the unrepresentative parliamentary democracy and the anti-worker, anti-peasant and anti-national program of globalisation through liberalisation and privatisation.

Aam Aadmi Party, which recently formed the state government in Delhi and is preparing to challenge the two main parties of the bourgeoisie in the coming elections, is campaigning on an anti-corruption platform.  Its main agenda is to enact a strong anti-corruption legislation to create strong anti-corruption agencies within the existing Indian Republic.  It advocates the promotion of "honest" persons from all classes, including capitalists and salaried workers, to positions of authority within the existing state.

The truth is that the problem of exploitation, oppression and exclusion of the majority cannot be solved within the existing framework.  The framework of this Republic is designed to impose the dictate of the bourgeois class, headed by the monopoly corporate big wigs who call themselvesIndia Incorporated.  And the interests of the capitalist class and the working class are irreconcilably opposed to one another.

In his recent press conference, Manmohan Singh stated that the "Constitution and institutions of our democracy are the cornerstone of Modern India. All of us who wish to build a better India, rid of poverty and corruption, must respect these institutions and work through them. They are the legitimate instruments in our hands, with all their limitations."  The truth is the exact opposite of what the outgoing Prime Minister has stated.

The Constitution of this Republic was formulated by an unrepresentative Constituent Assembly formed with the blessing of British colonialism.  It was adopted by this body without ever presenting it to the people for approval.

It is a Constitution that preserves the framework of political power that was created by the British Raj to enslave all Indians.  While claiming to be modern, it is a state that perpetuates the remnants of old outdated relations including the oppression of persons on the basis of caste, gender, nationality and religious belief.

The solution to the problem requires getting rid of the existing Republic and replacing it with an entirely new State that would be an organ of rule of the working class in alliance with the peasantry and all the hitherto oppressed.  Communists have to lead the working class in rallying all the oppressed to create that new State.

The Constitution of the new State must guarantee the rights of every worker, every tiller of the soil, and every human being.  It must guarantee the rights of every nation, nationality and tribal people.  It must guarantee the democratic rights of every adult citizen, including the right to elect and be elected, to initiate legislation and to recall elected representatives at any time. Such a state would be an instrument in the hands of the working people to prevent our land and labour from being exploited and plundered for the private profits of a minority.

On the occasion of the 64th anniversary of this republic, let us all pledge to join hands and work for the Navnirman of India!  Let us fight for the replacement of the existing state of bourgeois rule with a new state of worker-peasant rule, a voluntary union of the nations, nationalities and peoples of this ancient land!

Location

New Delhi,


Yashwant Singh

3 hours ago ·

  • सोमनाथ भारती और केजरीवाल ने मीडिया वालों को गरिया क्या दिया, कुछ मीडिया वालों की सुलग गई.. न्यूज नेशन के अजय कुमार और एबीपी न्यूज के विजय विद्रोही लगे अपने कथित सरोकारी तेवर का प्रदर्शन करने... लगे प्रमाण मांगने और 'आप' को सबक सिखाने... अरे अजय और विद्रोही जी... सच्चाई आप भी जानते हैं, काहें मुंह खुलवाते हो... वैसे, मुंह खुलवाने की भी क्या जरूरत है... मुझे पता है कि आप सभी छुप छुप के भड़ासhttp://www.bhadas4media.com/ पढ़ते हो और यहां प्रकाशित होने वाली मीडिया की अंधेर नगरी के किस्सों से खूब वाकिफ हो... न्यूज नेशन किसका चैनल है, इसमें किसका पैसा लगा है, इस चैनल के परदे के पीछे कौन है... यह अगर किसी को न पता हो तो कोई बात नहीं... लेकिन हम सब तो जानते हैं... चैनलों के जरिए कैसे ब्लैक को ह्वाइट किया जाता है, यह आपको बताने की जररूत नहीं है... एजेंडा पत्रकारिता के इस दौर में कोई भी न्यूज चैनल यह नहीं कह सकता कि वह निष्पाप है और किसी एजेंडे के तहत नहीं बल्कि जनता के लिए पत्रकारिता करता है... न्यूज नेशन भी नहीं... जब किसी नेता के पास अकूत संपत्ति और अकूत ब्लैकमनी हो जाया करती है तो वह अपना मीडिया हाउस खोल लेता है, सीधे या छिपे नाम से.. ताकि एक तो वह अपने हिसाब से एजेंडा पत्रकारिता कर अपनी पार्टी व अपने पक्ष में जनमत तैयार कर सके, दूसरे इन चैनलों की आड़ में अपनी विशाल ब्लैक मनी को ह्वाइट कर सके...
  • अगर नैतिकता है तो आप लोग खुद मांग करिए कि सभी न्यूज चैनलों की आडिटिंग सीएजी यानि कैग के जरिए कराई जाए.. अगर निजी बिजली कंपनियों का आडिट सीएजी के जरिए होने पर मुहर लग चुकी है तो चौथे स्तंभ जैसे संवेदनशील खंभे का आडिट क्यों नहीं होना चाहिए... दलालों, बिल्डरों, चिटफंडियों, ब्लैकमार्केटियरों, भ्रष्ट नेताओं, करप्ट अफसरों, कारपोरेट घरानों के पैसे पर चलने वाले इन न्यूज चैनलों की असलियत जनता जानती है. कहीं अंबानी का पैसा किसी चैनल में लगा है तो कहीं बिड़ला घराना खुद ही मीडिया हाउस चला रहा है... दर्जनों कार्पोरेट घराने मीडिया मालिक बन चुके हैं और बड़े चैनलों अखबारों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से संचालित कर रहे हैं.. ऐसे में अगर कोई कार्पोरेट टाइप एंकर या पत्रकार यह चिल्लाए कि मीडिया पर कैसे आरोप लगा दिया तो उसे विशुद्ध मूर्ख व बेवकूफ ही माना जा सकता है, इसके अलावा कुछ नहीं. वैसे भी, लाखों की सेलरी लेकर एंकरिंग करने वालों से यह अपेक्षा मालिक तो करता ही है कि वह जोर-जोर से बोल के, आंखें तरेर तरेर के एंकरिंग करे ताकि लोगों को भ्रम बना रहे कि यह चैनल तो बड़ा दबंग है  
  • एबीपी न्यूज में एक महिला ने खुलेआम यौन शोषण का आरोप लगाया लेकिन विद्रोही जी के मुंह से विद्रोह के बोल न फूटे... ऐसे सभी पत्रकार, न्यूज चैनल जब एकजुट होकर अपने मालिकों के अघोषित निर्देश पर आम आदमी पार्टी पर टूट पड़ते हैं, आम आदमी पार्टी के लोगों के हगने-मूतने से लेकर छींकने-पादने तक पर खबर, बाइट, न्यूज, पैकेज, शो, डिस्कशन करने लगते हैं तो शक तो होता ही है कि पार्टनर, आखिर आपकी पालिटिक्स क्या है..
  • विधानसभा चुनाव चार-पांच प्रदेशों में हुए हैं.. लेकिन मीडिया सिर्फ केजरीवाल एंड कंपनी का पोस्टमार्टम कर रहा है... शिवराज सिंह चौहानों, रमन सिंहों, वसुंधारे राजों जैसों को तो इन मीडिया वालों ने 'एवमस्तु' कह दिया है... अभी ओम थानवी जी ने लिखा था कि वसुंधरा राजे ने वन माफिया के पक्ष में एक पुराने कानून को यह कहकर पलट दिया कि इस पलटने से आदिवासियों को फायदा होगा. ( देखें लिंक: http://www.bhadas4media.com/vividh/17442-2014-01-25-07-32-22.html )...
  • शंकराचार्य ने पत्रकार को खुलेआम मार दिया, कहीं कुछ नहीं हुआ.... एफआईआर तक नहीं हुआ क्योंकि एक तो हिंदू धर्म के बाबा का मामला था, सो बीजेपी कुछ बोलेगी नहीं. दूसरे, बाबा के गुरु कांग्रेसी दिग्विजय सिंह थे, जिन्होंने पिट चुके पत्रकार को शराबी बता दिया और उसके मालिक को माफी मांगने के लिए सार्वजनिक रूप से चेता दिया तो भला किस मीडिया घराने की हिम्मत कि वह शंकराचार्य से पिटे व पीड़ित पत्रकार को न्याय दिलाए... सो, सब ऐसी चुप्पी साध गए जैसे कुछ हुआ ही नहीं हो... सब के सब माइक आईडी लेकर केजरीवाल, सिसोदिया, भारती, राय के पीछे दौड़ते भागते रहे क्योंकि मालिकों के एजेंडे के तहत केजरीवाल एंड कंपनी को बदनाम, बेकार, घटिया, दुश्मन बताना साबित करना जो है....
  • हालिया चुनाव वाले भाजपाई शासित राज्यों में दर्जनों बड़े, खूंखार, गंभीर मसले हैं.. करप्शन से जुड़े, जनता पर अत्याचार से जुड़े, शासन-सिस्टम के पंगु होने से जुड़े.. पर कार्पोरेट मीडिया को केजरीवाल पर इसलिए पिलना है क्योंकि मोदी के पक्ष में खजाना खोलकर बैठे कार्पोरेट घरानों ने मीडिया की दशा-दिशा को तय कर दिया है.. यह सिर्फ संयोग नहीं है कि एक तरफ मीडिया केजरीवाल को पीट-पीट कर बेदम करने में लगा है तो दूसरी तरफ मोदी के पीएम बन जाने वाले सर्वे दिखाकर बीजेपी को फुलाने में लगा है...
  • मीडिया वालों, अगर तुम लोगों के पास अपनी मौलिक अकल, ओरीजनल आंख होती तो तुम्हें पहले ही पता चल गया होता कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी वालों की अंडर करंट चल रही है.. मौलिक अकल और ओरीजनल आंख न होने के कारण ही मीडिया वाले दिल्ली विधानसभा से संबंधित अपने सर्वे में केजरीवाल एंड कंपनी को इकाई-दहाई यानि 9 सीट या दस सीट के बीच समेट रहे थे..
  • पर जनता सच में बहुत समझदार होती है. जनता के पास एक सिक्स्थ सेंस होता है. जनता के पास कपार के पीछे एक तीसरी आंख भी होती है. वो सारी नौटंकी और निशाने को समझ रही है. लोकसभा चुनाव में अभी कई महीने बाकी हैं.. देखते रहिए, मीडिया और नेताओं के केजरीवाल विरोधी अभियान का जवाब जनता किस रूप में देती है...
  • कहा सुनी लेनी देनी माफ के साथ आप सभी की जय जय...
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    • Salman Rizvi, Ravindra Ranjan, Hareprakash Upadhyay and 109 others like this.

    • Sheetal P Singh शाबाश

    • 3 hours ago · Like

    • Shammi Harsh जागरूक जनता सबको झाडू से जवाब देगी

    • 3 hours ago · Like · 3

    • Murlie Prithyani एक जैसी बातों पर घंटों न्यूज़ चैनल वाले बेमतलब की बहस करते है .. उन्हें तो इस बात की भी परवाह नही कि " अंजानी राहो में चलते जाने वाले " फ्लेवर कंडोम के विज्ञापन बच्चे भी देखते है .. क्या वे कोई ऐसा प्रोग्राम भी करना चाहते है जिसमे बच्चों से यह पूछ सके कैसे लगते है आपको चोकलेट फ्लेवर के विज्ञापन ..

    • 3 hours ago · Like · 2

    • Anil Dixit Lakh takke ki baat...

    • 3 hours ago · Like

    • Shailendra Singh जनता समझदार है ,

    • 3 hours ago · Like

    • Vimal Kumar पत्राकारों और मीडिया की कलाई खुलनी ही चाहिए.बहुत गंदगी है इसमें भी

    • 3 hours ago · Like · 2

    • Trilochan Rakesh जय जय ।

    • 3 hours ago · Like

    • A Ram Pandey कमाल का लेखन है दमदार!

    • 3 hours ago · Like · 1

    • Usmaan Siddiqui मुझे नहीं पता न्यूज़ नेशन किसका चैनल है..???

    • यशवंत भाई...स्पष्ट करने की कृपा करें..???

    • 3 hours ago · Like · 2

    • Shailesh Tiwari जय जय यसवंत भाई खरी खरी बोलना तो आपसे सिख रहे है हम, अभी बेबाकी नहीं आ पाई है। घुमाके जो मारा है आपने, जनता सब जानती है।

    • 3 hours ago · Like · 2

    • Mukesh Bhartiya http://raznama.com/?p=23017

    • 3 hours ago · Like

    • Deepu Naseer न्यूज़ नेशन का मालिक कौन है ?

    • 3 hours ago · Like · 1

    • Ram Dayal Rajpurohit sacchi bat ji

    • 2 hours ago · Like

    • Yashwant Singh यही तो रहस्य है कि न्यूज नेशन का मालिक कौन है.. चैनल दर चैनल लांच हो रहे हैं और पत्रकारों की भर्तियां चल रही है पर बहुत सारे लोगों को पता ही नहीं है कि आखिर कौन है भाई जो अरबों खरबों रुपये चैनल में लगा रहा है, बिना लाभ की इच्छा रखे...  बूझो तो जाने....

    • 2 hours ago · Like · 7

    • Sanjay Tiwari कपार के पीछे तीसरी आंख. गजब.

    • 2 hours ago · Like · 1

    • Dhananjay Singh कपार में भी कुछ है ?

    • 2 hours ago · Like

    • Pranaw Awasthii ये पते की बात कही चौथा स्तंभ मानी जाने वाली मीडिया को अपने गिरेबाँ में झाँकने की जरुरत है...

    • 2 hours ago · Edited · Like · 2

    • Peeyush Singh Rao Yashwant Singhआप यह क्यों भूलते हो की पांच राज्यों में चुनाव हुए पर जितना महिमा मंडन "आप"और केजरीवाल का हुआ उतना किस का हुआ! जबकि दुसरे राज्यों में उनसे कही ज्यादा बहुमत से सरकारें बनी। वास्तविकता तो यह है कि जिस मीडिया की केजरीवाल एंड कंपनी आदि हो गई थी उसी का दुष्परिणाम अभी हो रहा है ।

    • 2 hours ago · Edited · Like · 1

    • Peeyush Singh Rao क्या ibn7 के आशुतोष अपने रुतबे के हिसाब से मीडिया को प्रभावित नही कर रहे होंगे या करेंगे?

    • 2 hours ago · Edited · Like

    • Yashwant Singh पीयूष सिंह राव. आप ठीक से पढ़ें. मैंने लिखा है कि मीडिया को अंदाजा ही नहीं था कि आप वाले इतनी सीट पा जाएंगे. दूसरे, मीडिया को केजरीवाल में टीआरपी दिख रहा था, सो वो चला रहे थे... अब जब मालिकों का आदेश आ गया है तो टीआरपी वीआरपी भूलकर केजरीवाल निपटाओ मुहि...See More

    • 2 hours ago · Like · 12

    • Sanjay Chandna सही लिखा... यशवंत भाई.....

    • 2 hours ago · Like

    • Amit Maurya Bhaiya chaple raha

    • 2 hours ago · Like

    • मधेपुरा टाइम्स जबरदस्त विश्लेषण...और खुलासा.

    • 2 hours ago · Like · 1

    • Sadique Zaman yashwant bhai ki jai ho.

    • 2 hours ago · Like · 1

    • Vishwapatrika Patrika Revealed : The master Plan to discredit Aam Admi Party:http://vpatrika.com/Master%20Plan_91111.html

    • Master Plan | Arvind Kejriwal

    • vpatrika.com

    • Indian Media, BJP, Congress, the master plan against an elected government.

    • 2 hours ago · Like · 1

    • Aap Ka Praveen behtareen lekhan aur molikta ka parichay ..... god bless ur writing skill ....

    • 2 hours ago · Like · 1

    • Kunal Krishna yashwant ji badhai ke para hai

    • 2 hours ago · Like · 1

    • Ramanuj Singh आप बिल्कुल सही कह रहे हो सर

    • 2 hours ago · Like · 1

    • माधो दास उदासीन बेहतरीन लेख

    • about an hour ago · Like · 2

    • Soban Singh Bisht मोदी सभी की उम्मीद की किरण है और केजरीवाल उसमे पलीता लगा रहे है,विरोध तो होगा ही।

    • about an hour ago · Like

    • Rajaram Legha Neera radiya case main bhi kuch ptrkaron ka name aaya tha

    • about an hour ago · Like

    • TC Chander सुलग गई..?

    • about an hour ago · Like

    • Ajay Kumar Srivastava Abhi share kar raha hu taaki aapki aawaaj ko pdh kr aauro ko bhi is sachaai ka pta chle.

    • about an hour ago · Like

    • Maahi Mk वाकई गजब है ।

    • about an hour ago · Like

    • Vikrama Singh आप को गणतन्त्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं ।

    • about an hour ago · Like

    • A.p. Soni यशवंत जी अयोध्या में पत्र्कारुता दिवस पर हमारी आपकी मुलाकात में आपने मुझसे बात की थी और तब मै अपने संबोधन में इसी विषय को प्रमुख रूप से विबश्ता के साथ उठाया था की हम अगर कुछ करना चाहते है तो ऊपर वाले करने नही देते आपने तब एक बात कही थी की आप सच्चाई को प्रमुखता से उठाइये आपके यानि हम लोगो के पास अपनी आवाज़ उठाने के लिए कई माध्यम है आपके मार्गदर्शन को मै आज भी फालो क्र रहा हु

    • about an hour ago · Like

    • Ashim Kumar Singh Thanks jaswant singh ji.......ur this realty thought really required for the nation.we should attempt to empower on priority basis.some body may take it as ur an advocacy for Aap party or kejriwal. But as I think , if right not more than an example...thnx again....Ashim Patna.

    • about an hour ago · Like

    • Amar Nath Jha Yashwant Singh , I very often read your posts and find that you are very close to the sentiments of common people -- Aam Adami -- you are blunt and ruthless. But I really like your this very ruthlessness. I also do have personal experience of corrupt media personnel for the last three decades. But all are not bad in the media. There are wonderful and committed reporters in media too, specially in the print media.

    • 38 minutes ago · Like

    • Ajit Harshe शायद मीडिया वालों को शंकराचार्य ही रास आते हैं!

    • 34 minutes ago · Like

    • Rajesh Singh यशवंत भाई आपकी बेबाकी को सलाम

    • 25 minutes ago · Like

    • Syed Quasim bhadaas ka hona b in sb ko khatakta hai..

    • 23 minutes ago · Like

    • Prabhat Dixit आज बहुत दिन बाद पूरे रंग तरंग में नज़र आये हो साहब....बहुत खूब लिखा ...ज़ोरदार

    • 23 minutes ago · Like

    • Rana Pawan Wah yaswant ji, Bhut din bad barse pr sahi time pr,,,

    • 17 minutes ago · Like

  • Yashwant Singh
  • लगातार बोलते रहने वाले अरनब गोस्वामी से कभी किसी को लाइव ही पूछ लेना चाहिए कि हे टाइम्स आफ इंडिया के गुलाम संपादक, क्या मुंबई में जो जमीन एक रुपये में सरकार ने टाइम्स ग्रुप को अखबार निकालने के लिए दी, वहां से अब भी अखबार निकल रहा है या नहीं? उस एक रुपये में मिली सरकारी जमीन पर टाइम्स वाले बिजनेस, धंधा, बैंकिंग, किराया आदि का कारोबार कर रहे हैं और टाइम्स आफ इंडिया का आफिस कहीं और शिफ्ट कर दिया है... यह अनैतिक काम है या नहीं?

  • मुंबई के एक वरिष्ठ पत्रकार ने कल विस्तार ये यह जानकारी दी तो मैं चौंक गया. लगा कि इस पर विस्तार से लिखा जाना चाहिए. दूसरों को नसीहत, खुद मियां फजीहत. आजकल का दौर ऐसा है कि लोग अपने गिरेबां में नहीं, दूसरों के चेहरों-घरों की रंगत देखा करते हैं... हिप्पोक्रेसी का ऐसा चरम पता नहीं कभी था या नहीं... या, संभव है, यही हिप्पोक्रेसी, यही अंतरविरोध की प्रकृति का मूल स्वभाव हो... पता नहीं... कनफ्यूज हूं.. लेकिन मुझे इन उलटबांसियों को देखकर सच में बांसुरी बजाने का मन कर रहा है, किसी पड़ोसी के खेत में उगे पेड़ की डाल पर बैठकर...

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