Saturday, March 16, 2013

Fwd: Rihai Manch press note & report released Convention March 16, Saturday, 10 to 2 pm, UP Press Club Lucknow, "Samajwadi Party government completes a year of false promises, feudality and communalism"



---------- Forwarded message ----------
From: rihai manch <rihaimanchindia@gmail.com>
Date: 2013/3/16
Subject: Rihai Manch press note & report released Convention March 16, Saturday, 10 to 2 pm, UP Press Club Lucknow, "Samajwadi Party government completes a year of false promises, feudality and communalism"
To: "rajeev.pucl" <rajeev.pucl@gmail.com>


RIHAI MANCH
(Forum for the Release of Innocent Muslims imprisoned in the name of Terrorism)
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वादाखिलाफ, सांप्रदायिक-सामंती सरकार को वजूद में रहने का अधिकार नहीं- रिहाई मंच
अखिलेष सरकार में हुए दंगों की हो सीबीआई जांच- रिहाई मंच
आतंकवाद के नाम पर बंद बेगुनाहों को न छोड़ना पड़ेगा महंगा- रिहाई मंच
रिहाई मंच सपा सरकार की सांप्रदायिक कारनामों पर जारी की रिपोर्ट

लखनऊ 16 मार्च 2013/ सपा सरकार के एक साल पूरे होने पर रिहाई मंच द्वारा
यूपी प्रेस क्लब लखनऊ में आयोजित सम्मेलन में सरकार को वादा खिलाफ
सांप्रदायिक और सामंती करार दिया गया। इस दौरान मंच ने सपा सरकार के षासन
में हुए दंगों में सरकारी मषीनरी की भूमिका पर 'मुसलमानों को न सुरक्षा,
न निश्पक्ष विवेचना न न्याय' रिपोर्ट को जारी करते हुए प्रदेष सरकार
द्वारा विधानसभा में तस्दीक किए गए 27 सांप्रदायिक दंगों की सीबीआई जांच
कराने की मांग की गई।

सम्मेलन को संबोधित करते हुए अवामी काॅउसिल के महासचिव व रिहाई मंच नेता
असद हयात ने कहा कि पुलिस द्वारा दंगों से जुड़े मुकदमों की विवेचना
निश्पक्षता पूर्वक नहीं की जा रही है। वरुण गांधी से संबधित मुकदमें में
सरकारी वकील की भूमिका अभियोग पक्ष को मजबूत करने की न होकर बचाव पक्ष को
लाभ पहुंचाने की रही। तो वहीं पिछले दिनों सीओ जियाउलहक की हत्या के बाद
चर्चा में आए अस्थान प्रतापगढ़ सांप्रदायिक हिंसा में प्रवीण तोगडि़या के
भड़काऊ भाशण देने और उसके नतीजे में उनकी मौजूदगी में मुसलमानों के घर
लूटने और आगजनी की घटनाओं में उन्हें अभियुक्त नहीं बनाया गया। फैजाबाद,
कोसी कलां, अस्थान, बरेली, डासना, मसूरी समेत सभी सांप्रदायिक हिंसा की
घटनाओं की जांच सीबीआई द्वारा कराया जाना इसलिए आवष्यक है क्योंकि इन
दंगों में पुलिस स्वंय एक पक्षकार की भूमिका में रही है जो अपने ही
विरुद्ध पाए जाने वाले सबूतों को न केवल मिटा रही है बल्कि गवाहों को भी
प्रताडि़त कर निश्पक्ष जांच को प्रभावित कर रही है। कोसी कलां के खालिद
और भदरसा फैजाबाद के सद्दू पर रासुका लगाना अन्यायपूर्ण है जिसे वापस
लिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा आरडी निमेश जांच आयोग की
रिपोर्ट जारी न करने के खिलाफ वह कोर्ट जाएंगे।

रिहाई मंच के महासचिव व पूर्व पुलिस महानिरीक्षक एसआर दारापुरी ने कहा कि
सपा सरकार में मुसलमानों, दलित-वंचित तबकों पर सामंती हमले बढ़े हैं।
मुलायम सिंह ने जनता द्वारा पूर्ण बहुमत से भेजे जाने पर जनता को नए तरह
का सामंती निजाम तोहफे में दिया है। इन तबकों पर होते जुल्म को देख कर
ऐसा लगता है कि उत्तर प्रदेष सामंती युग में चला गया है जहां सरकार आम
जनता के बजाय सामंती ताकतों के पक्ष में काम कर रही है।

आॅल इंडिया पीपुल्स फ्रंट के नेता और इलाहाबाद विष्वविद्यालय के पूर्व
छात्र संघ अध्यक्ष लालबहादुर सिंह ने कहा कि कुंडा के सीओ जियाउलहक की
हत्या साबित करती है कि समाजिक न्याय के नाम पर वोटों की सौदागरी करने
वाली सरकार रघुराज प्रताप सिंह जैसे सामंतों से लड़ने वालों को बर्दाष्त
नहीं कर सकती। उन्होंने कहा कि सपा का अवसरवादी धर्मनिरपेक्षता मोदी के
फासीवाद से नहीं लड़ सकता। ऐसे में जरुरी हो जाता है कि तमाम
धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक ताकतें एक नए विकल्प की तैयारी करें।

मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित सामाजिक कार्यकर्ता संदीप पांडे ने
सम्मेलन में अफजल गुरु द्वारा जेल से भेजे गए पत्र को पढ़ा जिसमें उन
एसटीएफ और खुफिया विभाग के अधिकारियों का जिक्र था जिन्होंने उन्हें संसद
हमले में फंसाया और फांसी तक पहुंचा दिया। उन्होंने आगाह किया कि
अंधराश्ट्रवाद के नाम पर जिस तरह कांग्रेस भावनाओं को भड़का रही है वो
देष के लोकतंत्र के लिए खतरनाक है।

इंडियन नेषनल लीग के राश्ट्रीय अध्यक्ष व मुस्लिम मषावरत के महासचिव मो0
सुलेमान ने कहा कि अब देष को सोनिया और मुलायम जैसे सांप्रदायिक और
अमरीका के इषारे पर घुटने टेकने वाले लोगों के हवाले नहीं छोड़ा जा सकता।
उन्होंने कहा कि मषावरत दिसंबर में आतंकवाद के नाम पर निर्दोशों को
फंसाने वाली राजनीत पर ष्वेतपत्र लाएगी। उन्होंने कहा कि इस ष्वेतपत्र से
भाजपा समेत तमाम कथित सेक्युलर पार्टियां आवाम के बीच नंगी हो जाएंगी।

एपवा नेता ताहिरा हसन ने कहा कि एक गुंडा जिसको हर बार सपा सरकार जेल से
निकालकर कभी जेल मंत्री बनाती है तो कभी हत्याओं की खुली छूट देती है वह
न राजा है न भैया है। क्योंकि लोकतंत्र में न कोई राजा होता है न कोई ऐसा
भाई होता है जो किसी बहन का सुहाग उजाड़ दे और जिसके गुंडे सरेआम
बलात्कार करते हों। उन्होंने मीडिया से अपील करते हुए कहा कि मीडिया
लोकतंत्र का चैथा स्तंभ है इसलिए उसे लोकतांत्रिक मूल्यों का परिचय देते
हुए रघुराज प्रताप को राजा भैया न लिखे।

सम्मेलन में मौजूद आतंकवाद के नाम पर कैद लखनऊ के फरहान की बहन साइमा ने
कहा कि सपा हुकूमत से उम्मीद थी की उनके भाई छूट जाएंगे, लेकिन बेगुनाहों
को छोड़ने के अपने चुनावी वादे से मुकरने से उन जैसे तमाम परिवारों को
निराषा हुई है, जिनके बच्चे बिना किसी जुल्म के आतंकवाद के मामले में बंद
किए गए हैं।
मौलाना मोहम्मद जमील ने कहा कि कुछ उलेमा और मुस्लिम नेता हुकूमत के
इषारे पर बेगुनाहों को छुड़वाने के नाम पर जनता को गुमराह कर रहे हैं
जिससे जनता को चैकन्ना रहना होगा।

राश्ट्रीय मुस्लिम संघर्श मोर्चा के नेता आफताब खान ने कहा कि 1984 के
सिख विरोधी दंगे के विरोध में तमाम सिख सांसदों ने संसद से इस्तीफा दे
दिया था लेकिन 27 दंगे और बेगुनाहों की रिहाई के सवाल पर आजम खान और अहमद
हसन जैसे तमाम नेताओं की जबान नहीं खुलती और वे धर्मनिरपेक्षता के नाम पर
मुलायम जैसे फिरकापरस्त के साथ चिपके रहते हैं। उन्होंने कहा कि सपा के
तमाम मुस्लिम सांसदों और विधायकों को अवाम से यह बताना चाहिए कि इतना कुछ
हो जाने के बावजूद वे सपा में क्यों बने हुए हैं।

रिहाई मंच इलाहाबाद के संयोजक राघवेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा कि साल भर
में तीन हजार बलात्कार, चार हजार हत्याएं और 27 दंगे कराने वाली सरकार ने
प्रदेष में गुंडा राज ही नहीं मोदी राज भी कायम कर दिया है जिसे 2014 में
जनता सबक सिखाएगी।

सम्मेलन की अध्यक्षता रिहाई मंच के अध्यक्ष मो0 षुएब ने की और संचालन
रिहाई मंच आजमगढ़ के संयोजक मसीहुद्दीन संजरी ने किया।

सम्मेलन को सोषलिस्ट फ्रंट आॅफ इंडिया के प्रदेष अध्यक्ष मो आफाक, अनिल
आजमी, मो आरिफ, जहांगीर आलम कासमी, मो0 समी, दिनेष सिंह, केके वत्स,
रणधीर सिंह सुमन इत्यादि ने संबोधित किया।

सम्मेलन में बलबीर यादव, अबु जर, गुफरान, सै0 मोईद अहमद, आफताब, प्रबुद्ध
गौतम, षुभांगी, आसमा, अंकित चैधरी, सीमा, संदीप दूबे, विवेक गुप्ता,
सादिक, संजीव पांडे, समीना बानो, बाबी रमाकांत, इषहाक, बृजेष पांडे,
षोभा, योगेन्द्र यादव, षाहनवाज आलम, राजीव यादव आदि सम्लित थे।

द्वारा जारी-
षाहनवाज आलम, राजीव यादव
9415254919, 9452800752
________________________________________________________________
Office - 110/60, Harinath Banerjee Street, Naya Gaaon East, Laatoosh
Road, Lucknow
Forum for the Release of Innocent Muslims imprisoned in the name of Terrorism
        Email- rihaimanchindia@gmail.com

रिहाई मंच और अवामी काॅउंसिल फाॅर डेमोक्रेसी एण्ड पीस द्वारा जारी रिपोर्ट
'वादा खिलाफ, सांप्रदायिक-सामंती सपा सरकार का एक साल'
दिनांक- 16 मार्च 2013, शनिवार, यूपी प्रेस क्लब लखनऊ
मुसलमानों को न सुरक्षा, न निष्पक्ष विवेचना और न्याय

निष्पक्ष विवेचना न्याय का आधार होती है। अखिलेश सरकार मुसलमानों को न तो
सुरक्षा ही दे सकी और न ही निष्पक्ष विवेचना और न्याय ही उपलब्ध करा रही
है। सामंती और सांप्रदायिक तत्वों के गठजोड़ को जिस प्रकार सीओ जियाउलहक
हत्या मामले में देखा जा रहा है वह अन्य सांप्रदायिक दंगों में भी मौजूद
है। इसलिए इनकी भी निष्पक्ष विवेचना स्वतंत्र जांच एजेंसी सीबीआई द्वारा
कराया जाना आवश्यक है।

पुलिस द्वारा दिनांक 22 दिसंबर 2007 को बाराबंकी रेलवे स्टेशन से तारिक
कासमी और खालिद मुजाहिद को अवैध असलहे के साथ गिरफ्तार दिखाया गया है
जिसके संबन्ध में मुकदमा अपराध संख्या 1891 सन 2007 थाना कोतवाली
बाराबंकी में दर्ज हुआ। तारिक कासमी का पक्ष यह है कि उसे दिनांक 12
दिसंबर 2007 को और खालिद मुजाहिद का पक्ष यह है कि उसे दिनांक 16 दिसंबर
2007 को पुलिस द्वारा अपनी नाजायज हिरासत में ले लिया गया था और तब से
लगातार उन्हें यातनाएं दी गईं और 22 दिसंबर 2007 को बाराबंकी रेलवे
स्टेशन से गिरफ्तार दिखा दिया गया। घटना की सत्यता जानने के उद्देश्य से
एकल सदस्यी आरडी निमेष जांच आयोग का गठन किया गया। जिसके समक्ष तारिक
कासमी और खालिद मुजाहिद ने 25 गवाह पेश किए जबकि पुलिस की ओर से 46
गवाहों द्वारा अपने बयान दर्ज कराए गए। आयोग द्वारा 45 अन्य साक्षियों के
भी बयान लिखे गए। आयोग ने 31 अगस्त 2012 को अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप
दी। रिपोर्ट मंें अपने अंतिम निष्कर्ष में आयोग ने कहा है कि तारिक कासमी
और खालिद मुजाहिद की घटना बाबत मुकदमा अपराध संख्या 1891 सन 2007 में
संलिप्तता संदेह जनक प्रतीत होती है।

ज्वलंत प्रश्न- उपरोक्त मुकदमा अपराध संख्या 1891 सन 2007 में पुलिस
द्वारा चार्जशीट दाखिल की गई है परंतु इसकी विवेचना और निष्पक्षता पर
निमेष आयोग द्वारा संदेह प्रकट किया गया है। पुलिस और निमेष आयोग दोनों
ही सरकार के अंग हैं और दोनों के निष्कर्ष विरोधाभासी हैं। यदि तारिक
कासमी और खालिद मुजाहिद का पक्ष सही है कि उन्हें पहले से ही गैरकानूनी
हिरासत में लेकर रखा गया था और उनका झूठा अभियोजन किया गया है, तो यह
मानवाधिकार उल्लंघन का एक गंभीर मामला है और सरकार निमेष आयोग की रिपोर्ट
इसलिए सार्वजनिक नहीं कर रही है कि उसे डर है कि इससे उन पुलिस और आईबी
अफसरों पर गाज गिरेगी जिन्होंने तारिक-खालिद का झूठा अभियोजन किया है।
सरकार के लिए किसी नागरिक के मूल अधिकार, मानवाधिकार और न्याय प्रियता का
कोई महत्व नहीं है, बल्कि वह उनका हनन करने वाले भ्रष्ट अफसरों के बचाव
में लगी है। जबकि मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव ने सत्ता में आने से
पूर्व यह वादा किया था कि वे आतंकवाद के नाम पर पकड़े गए बेगुनाह लोगों
को रिहा करेंगे। तब ऐसे में सरकार निमेष आयोग की रिपोर्ट को क्यों
सार्वजनिक नहीं कर रही है। यदि सरकारी चाहती तो निमेष आयोग रिपोर्ट के
आधार पर पूरक रिपोर्ट अन्तर्गत धारा 173 (8) सीआरपीसी न्यायालय में दाखिल
करा सकती थी। परन्तु सरकार में इसकी इच्छा शक्ति नहीं है दरअसल वह
अल्पसंख्यकों के हितैषी होने का मात्र दिखावा कर रही है।
आतंकवाद के नाम पर मुकदमें वापस लेने और बेगुनाहों को रिहा करने में जहां
सरकार पूरी तरह से नाकाम रही है वहीं इस एक साल में सीतापुर के शकील,
आजमगढ़ के जामतुर्र फलाह के दो कश्मीरी छात्रों सज्जाद बट और वसीम बट की
भी गिरफ्तारी इस दरम्यान हुई।

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा यह स्वीकार किया गया है कि उसके पिछले एक वर्ष
के शासन काल में 27 सांप्रदायिक दंगे हुए यद्यपि इनकी वास्तविक संख्या
इससे भी ज्यादा है। प्रदेश का अल्पसंख्यक मुस्लिम समाज एक ओर जहां
सांप्रदायिक हिंसा से पीडि़त है वहीं दूसरी ओर अखिलेश सरकार की पुलिस और
सरकारी वकीलों ने भी सांप्रदायिक तत्वों का तुष्टिकरण राजनीतिक आकाओं के
इशारों पर किया जिसके फलस्वरुप निर्दोष मुसलमानों को झूठा अभियुक्त बनाया
गया और सांप्रदायिक तत्वों के विरुद्ध पाए गए सबूतों को मिटाते हुए उनके
बच निकलने की राह को आसान किया गया।

13 दिसंबर 2012 को माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गोरखपुर की तत्कालीन
मेयर श्रीमती अंजू चैधरी की अपील को खारिज कर दिया गया, जिन्हें श्री
परवेज परवाज द्वारा दर्ज कराई गई रिपोर्ट में योगी आदित्यनाथ, गोरखपुर
विधायक राधा मोहन दास अग्रवाल व अन्य को 2007 जनवरी में हुए सांप्रदायिक
दंगों में अभियुक्त बनाया गया था। वर्तमान में इसकी जांच मन्द गति से
सीबीसीआईडी द्वारा की जा रही है। यह दंगा एक आपराधिक षडयंत्र के तहत
गोरखपुर और बस्ती मंडल मंे फैलाया गया था। इस दंगों की जांच भी सीबीआई
द्वारा कराया जाना आवश्यक है। यह उल्लेखनीय है कि 2007 में सपा के शासन
काल में ही गोरखपुर मंडल में दंगे हुए। एक मजार पर तोड़-फोड़ करने के
आरोप में राशिद नामक व्यक्ति द्वारा योगी आदित्यानाथ के विरुद्ध नामजद
एफआईआर दर्ज कराई गई थी जिस पर कार्यवाई करते हुए योगी आदित्यनाथ
गिरफ्तार हुए थे। इस गिरफ्तारी से नाराज होकर तत्कालीन जिलाधिकारी हरिओम
को स्थानांतरित कर दिया गया था। परन्तु भड़काऊ भाषण देने और दंगा कराने
के मामलों में रिपोर्ट दर्ज कराने के प्रयासों के बावजूद योगी आदितयनाथ
के विरुद्ध एफआईआर दर्ज नहीं हो सकीं थी, जो बाद में न्यायालय के आदेश पर
दर्ज हुईं और अभियुक्तों द्वारा मामला सर्वोच्च न्यायालय ले जाया गया था।

वरुण गांधी का पीलीभीत मुकदमा इसका एक उदाहरण है जिसमें सरकारी वकील
द्वारा उनकी आवाज का नमूना लेने का प्रार्थना पत्र न्यायालय में नहीं
दिया गया और मुकदमें में उपयुक्त रुप से गवाहों को पेश नहीं किया गया और
पक्ष द्रोही कराया गया। वरुण गांधी ने अपने भाषण में कहा था कि मुसलमान
एक बीमारी है जो चुनाव बाद समाप्त हो जाएगी और कमल कटओं की गर्दन काट
देगा। क्या अखिलेश सरकार वरुण गांधी के मामलों में अपील करेगी और सरकारी
वकील की भूमिका की जांच कराएगी?

टांडा जनपद अमबेडकर नगर में मार्च 2013 के प्रथम सत्ताह में हिंदू युवा
वाहिनी के नेता की हत्या होने पर सांप्रदायिक तत्वों द्वारा दो दर्जन
मुसलमानों के घरों व दुकानों को लूटा व जलाया गया तथा उनके वाहनों को आग
लगाई गई तथा मारा पीटा गया। पुलिस द्वारा प्रत्येक पीडि़त व्यक्ति की
रिपोर्ट दर्ज करने से इनकार कर दिया गया और कुछ ही के प्रार्थना पत्र लिए
गए।

फैजाबाद जनपद में हुई सांप्रदायिक हिसां के संबन्ध में प्रेस काउंसिल
द्वारा गठित शीतला सिंह कमीशन की रिपोर्ट आ चुकी है। जिसके अनुसार भाजपा
विधायक रामचन्द्र यादव, पूर्व भाजपा विधायक लल्लू सिंह, रुदौली नगर
पालिका चेयरमैन अशोक कसौधन आदि की भूमिकाएं षडयंत्रकारी पाई गईं। फैजाबाद
के भदरसा में दुर्गा प्रसाद की हत्या के संबन्ध में तौहीद के क्रास वर्जन
की एफआईआर दर्ज नहीं की गई और सद्दू कुरैशी पर रासुका लगा दिया गया जिसपर
हत्या करने का इल्जाम है जबकि क्रास वर्जन के अनुसार हत्या गुप्पी नामक
व्यक्ति द्वारा की गई थी। इसी प्रकार कस्बा शाहगंज में उमर की हत्या
मामले में विवेचक द्वारा उसके हत्या स्थल को बदल दिया गया और 12
सांप्रदायिक व्यक्तियों को जिन्हें नामजद किया गया था, आरोप पत्र में
हत्या के मामले से बरी कर दिया गया। फैजाबाद जनपद में मुस्लिम व्यक्तियों
द्वारा लगभग 70 एफआईआर दर्ज कराई गई हैं जिनकी निष्पक्ष विवेचना सीबीआई
द्वारा न्यायालय की निगरानी में किए जाने से ही मुमकिन है। शीतला सिंह
कमीशन द्वारा यह भी उल्लेखित किया गया है कि जिला प्रशासन द्वारा नगर
फैजाबाद में 24 अक्टूबर की रात्रि में ही अगर कफर््यू लगा दिया जाता तो
भारी जन-धन की हानि रोकी जा सकती थी। कमीशन द्वारा लड़की छेड़ेने और
मूर्तियों को खंडित करने के समाचारों को झूठा पाया गया। भदरसा में
कफर््यू लगा ही नहीं और दुर्गा पूजा समितियों के दंगाई कार्यकता खिलाफ
मुकदमें दर्ज नहीं हुए और इतना ही नहीं हिंदू युवा वाहिनी के जिला
अध्यक्ष शंभुनाथ जायसवाल को नामजद अभियुक्त होने के बावजूद गिरफ्तार नहीं
किया गया। शीतला कमीशन द्वारा यह टिप्पणी की गई है कि जिला प्रशासन में
स्थिति को नियंत्रित करने की इच्छा शक्ति नहीं थी। क्या इसके लिए अखिलेश
सरकार जिम्मेदार नहीं है? सद्दू पर लगाई गई रासुका को वापस लिया जाना
चाहिए।
कोसी कलां मथुरा दंगे में तीन निर्दोष मुस्लिम युवकों (कलवा, भूरा और
सालाउद्दीन) की निर्ममता पूर्वक हत्या हुई और 100 से अधिक मुसलमानों की
दुकानें लूटी और जलाई गईं और पुलिस मूक दर्शक बनी रही। कलवा, भूरा से
संबन्धित मुकदमा अपराध संख्या 344 ई सन 12 वादी सलीम द्वारा 52 नामजद
अभियुक्तों के विरुद्ध दर्ज कराया गया जबकि सलाउद्दीन की हत्या से संबधित
मुकदमा अपराध संख्या 344 डी सन 12 वादी इस्लाम द्वारा सोना, बलवन एवं
15-20 अन्य के विरुद्व दर्ज कराया गया। पुलिस द्वारा लूट व आगजनी व दंगा
की घटनाओं के संबन्ध में मुकदमा अपराध संख्या 344, 344ए, 344 बी दर्ज
कराया गया। कोसी कलां नगर पालिका चेयर मैन भगवत प्रसाद रुहैला, उसके भाई
राजेन्द्र, भगवत अचार वाला, गिरधारी अचार वाला, देबो पंसारी की एवं अन्य
प्रभावशाली लोगों की लूटपाट-आगजनी करने और षडयंत्र रचने में प्रमुख
भूमिका थी। इन मुकदमों के विवेचक सीओ अतरौली श्री राम मोहन सिंह कर रहे
हैं। घटना के 9 महीने बीतने के बाद भी  इन हत्याओं और दंगे के मामलों की
निष्पक्ष जांच नहीं हो रही है। अभियुक्तों द्वारा पीडि़तों को धमकियां दी
जा रही हैं कि वे गवाही न दें, जिसकी शिकायत पुलिस दर्ज नहीं कर रही है
और न ही पीडि़तों को सुरक्षा दे रही है।
एक अन्य निर्दोष युवक खालिद पर रासुका लगाई गई है। जिसके संबन्ध में हरि
सैनी और राजू नामक व्यक्तियों द्वारा आरोप लगाया गया था और हरि सैनी ने
खालिद के विरुद्ध मुकदमा अपराध संख्या 408 एच सन 12 दर्ज कराया था। जबकि
हरि की रंजिश पहले से ही थी जिसका कारण एक वक्फ संपत्ति पर हरि द्वारा
नाजायज कब्जा किया जाना था। जिसका विरोध खालिद द्वारा किया जा रहा था और
खालिद ने हरि सैनी के विरुद्ध मुकदमा भी दर्ज कर रखा था। हरि सैनी के
कब्जे को हटाने के संबन्ध में वक्फ बोर्ड द्वारा आदेश जारी कर दिया गया
था। अखिलेश सरकार द्वारा बिना तथ्यों की पड़ताल किए, सांप्रदायिक तत्वों
का तुष्टिकरण करते हुए रासुका लगा दिया गया। इस सांप्रदायिक हिंसा की
सीबीआई द्वारा जांच कराया जाना आवश्यक है। खालिद पर लगाई गई रासुका को
वापस लिया जाना चाहिए।

मेवात (हरियाणा) निवासी शब्बीर नामक व्यक्ति का मथुरा पुलिस द्वारा फरवरी
2013 में फर्जी एनकाउंटर किया गया है। जिसे उसके घर से ले जाया गया था।
एनकाउंटर के पश्चात उसका शव उसके परिजनों को नहीं दिया गया। इस घटना की
भी जांच सीबीआई द्वारा जांच कराया जाना आवश्यक है।

पिछले दिनों सीओ जियाउलहक की हत्या के बाद प्रदेश के राजनीति में चर्चा
में आए जनपद प्रतापगढ़ के अस्थान ग्राम में हुई सांप्रदायिक हिंसा के कुछ
तथ्य-

अ- कुमारी रेखा के साथ बलात्कार और हत्या का मामला
दिनांक 20 जून की शाम 6 बजे की घटना बतायी जाती है जिसके संबन्ध में
दिनांक 21 जून 2012 को सुबह साढ़े 6 बजे मृतका के भाई समरजीत द्वारा थाना
नवाबगंज पर मुकदमा अपराध संख्या 87 सन 2012 अन्तर्गत धारा 376/ 302
आईपीसी दर्ज कराया गया। जिसमें कहा गया कि कुमारी रेखा 20 जून की शाम 6
बजे अपनी मां को बुलाने डिहवा जंगल की ओर गयी थीं। मां घर वापस आ गई
परन्तु रेखा वापस नहीं आई। रात भर समरजीत और उसके पास पड़ोस के लोग
कुमारी रेखा को तलाशते रहे परन्तु वह नहीं मिली। सुबह साढे़ पांच बजे गाव
की औरतों ने जंगल में रेखा का निवस्त्र पड़ा शव देखा और समरजीत को बताया
तो वह अपनी मां के साथ मौके पर पहुंचा तब वहीं पर गांव के दिनेश कुमार
सरोज, कुमारी चांदनी और नागेन्द्र ने बताया कि 20 जून की शाम को साढ़े
पांच बजे इन्होंने रेखा को जंगल की तरफ जाते हुए देखा था। जिसके पीछे
इमरान, फरहान, तौफीक और सैफ गए थे और हमें शक है कि इन्हीं लोगों ने रेखा
से बलात्कार करने के बाद उसकी गला कस कर हत्या कर दी है।

उपरोक्त रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि 21 जून की सुबह जब समरजीत और
उसकी मां लाश के पास पहुंचे तब दिनेश, चांदनी और रेखा ने उन्हें बताया था
कि 20 जून की शाम को रेखा के पीछे उक्त 4 लड़कों को जाते हुए देखा गया
था। यह एक स्वीकार किया गया तथ्य है। समरजीत के कथन से यह भी प्रमाणित है
कि उनके और पड़ोसियों द्वारा रात भर रेखा की तलाश की गई थी, परंतु वह
नहीं मिली थी। यहां यह प्रश्न पैदा होता है कि यदि 20 जून की शाम को
दिनेश, चांदनी और नागेन्द्र ने यदि वास्तव में 20 जून की शाम को रेखा के
पीछे उक्त चारों लड़कों को जाते हुए देखा था तब यह बात रात में ही रेखा
के घर वालों को क्यों नहीं बताई थी और सुबह शव मिलने पर ही घटना स्थल पर
ही यह बात क्यों बताई गई, जबकि नागेन्द्र और चांदनी मृतका कुमारी रेखा के
सगे चचेरे भाई-बहन हैं और दीपक भी कुटुंबी है और यह तीनों मृतका कुमारी
रेखा के आस-पास ही पचास मीटर के दायरे में रहते हैं, इसलिए यह संभव ही
नहीं है जब रात भर मृतका रेखा को तलाशा जा रहा था उस समय यदि वास्तव में
इन्होंने देखा होता, तो यह रात में ही जानकारी घर वालों को न देते। इससे
साबित है कि यह गवाह झूठे हैं और बनाए गए हैं। यदि विवेचक द्वारा
निष्पक्षता से काम किया गया होता तो चार निर्दोष लड़कों के विरुद्ध आरोप
पत्र दाखिल न होता। क्योंकि यह भी अजीब बात है कि यदि इन चार लड़कों को
कुमारी रेखा के पीछे जाते हुए उक्त तीनों गवाहों ने वास्तव में देखा था
तो बलात्कार करते और हत्या करते क्यों नहीं देखा, जबकि यह तीनों गवाह
कथित रुप से जंगल में ही मौजूद बताए जाते हैं।

कुमारी रेखा मृतका का पंचायत नामा और पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अवलोकन से
यह पता चलता है कि वह निवस्त्र थी परन्तु उसके शरीर के किसी भी हिस्से पर
और बालों में मिट्टी नहीं लगी थी और नहीं चोट का कैसा भी निशान था। यदि
उसी स्थल पर जहां लाश मिली, सामूहिक रुप से बलात्कार करके हत्या की गई तो
उस स्थल पर मृतका द्वारा संघर्ष करने के निशान नहीं पाए गए। यदि होते तो
उनका उल्लेख अवश्य होता। इससे साबित है कि कुमारी रेखा के साथ बलात्कार
किसी अन्य स्थल पर करके हत्या उपरान्त शव को डाल दिया गया जहां प्रातः
काल उसे अज्ञात औरतों द्वारा सर्वप्रथम देखा गया और घर वालों को सूचित
किया गया। परंतु इन औरतों के नाम अभी तक विवेचना में गवाह के रुप में
सामने नहीं आए।

उपरोक्त विवरण से साबित है कि उक्त चारों लड़कों को झूठा फसाया गया और
सांप्रदायिक तत्वों का तुष्टिकरण किया गया। इतना ही नहीं थाना अध्यक्ष
श्री नामवर सिंह द्वारा इन चारों मुस्लिम युवकों के विरुद्ध मुकदमा अपराध
संख्या 92 सन 2012 गैंगेस्टर एक्ट के तहत मुकदमा भी दर्ज किया गया। जिसकी
रिपोर्ट में यह उल्लेख किया गया कि यह चारों व्यक्ति सामूहिक बलात्कार
करने के अभ्यस्त अपराधी हैं और इनका आपराधिक इतिहास है। जबकि वास्तविकता
यह है कि इन चारों का कोई आपराधिक इतिहास नहीं है। इन चार लड़कों पर
गैंगेस्टर एक्ट के तहत कार्यवाही करना सांप्रदायिक तत्वों का तुष्टिकरण
और मुसलमानों का दमन है जिसके लिए अखिलेश यादव सरकार जिम्मेवार हैं।

ब- दिनांक 23 जून 2012 को घटित लूटपाट व आगजनी की घटनाएं

ग्राम अस्थान में सांप्रदायिक तत्वों द्वारा दिनांक 23 जून को मुसलमानों
के 52 घरों को लूटा और जलाया गया जिसके संबन्ध में फैयाज अहमद द्वारा
मुकदमा अपराध संख्या 88 सन 2012 और एसओ श्री अरुण कुमार पाठक द्वारा
मुकदमा अपराध संख्या 89 सन 2012 दर्ज कराए गए। फैयाज द्वारा अपनी रिपोर्ट
में यह भी उल्लेख किया गया कि किताबुन्निसा और अजारुन्निसा नामक वृद्ध
महिलाएं गायब हैं और उनका पता नहीं चल पा रहा है। इन दोनों मुकदमों की
विवेचना किसके द्वारा की गई यह अभी तक स्पष्ट नहीं है। जबकि आरोप पत्र
दाखिल किए गए बताए जा रहे हैं। अभी तक गांव के किसी भी पीडि़त व्यक्ति का
बयान अन्तर्गत धारा 161 सीआरपीसी नहीं लिया गया है। ऐसी स्थिति में
विवेचना निष्पक्ष हुई है, ऐसा नहीं कहा जा सकता।
स- दिनांक 23 जुलाई सन 2012 प्रवीण तोगडि़या का उत्तेजक भाषण और आगजनी-
प्रवीण तोगडि़या को अभियुक्त न बनाया जाना।

दिनांक 23 जुलाई 2012 को प्रवीण तोगडि़या हजारों सांप्रदायिक तत्वों के
साथ अस्थान गए और उत्तेजक भाषण दिए। उनके भाषण के दौरान ही उनके साथ आए
तत्वों द्वारा अस्थान ग्राम में पुनः लूटपाट व आगजनी की गई जिसके सम्बन्ध
में थाना अध्यक्ष नामवर सिंह द्वारा मुकदमा अपराध संख्या 95 सन 12 दिनांक
24 जुलाई 2012 को दर्ज कराया गया। गांव के ही एक मुस्लिम व्यक्ति तारिक
पुत्र शौकत अली द्वारा भी अपनी रिपोर्ट दर्ज करने के लिए प्रार्थना पत्र
दिनांक 25 जुलाई 2012 को थाने पर प्राप्त कराया परन्तु यह रिपोर्ट दर्ज
नहीं की गई जबकि इसमें पचास से अधिक अभियुक्तों को नामजद किया गया था और
इसमें साथ उल्लेख है कि प्रवीण तोगडि़या के साथ एक विशाल जन समूह पहुंचा
जिसने भद्दी-भद्दी गांलियां देते हुए घरों में लूट-पाट आगजनी की तथा
पथराव किया तथा घरों से कुरान शरीफ निकाल कर जला डाला। इन मुकदमों की
विवेचना भी निष्पक्ष रुप से नहीं की गई, पीडि़तों के बयान अन्तर्गत धारा
161 सीआरपीसी दर्ज नहीं किए गए और राजनीतिक दबाव वश सांप्रदायिक तत्वों
का तुष्टिकरण करते हुए प्रवीण तोगडि़या के विरुद्ध मुकदमा दर्ज नहीं किया
गया।

स- अस्थान पुलिस चैकी पर तैनात एसआई दिनेश राय और एसआई गिरीश चन्द्र
पांडे की मृत्यु संदेह के घेरे में-

ग्राम अस्थान में लूटपाट और आगजनी की घटनाएं होने के पश्चात प्राइमरी
स्कूल में पुलिस चैकी बनाई गई, जिसका प्रभारी दिनेश राय को बनाया गया।
जिनकी मृत्यु संदेह जनक परिस्थितियों में हुई। इनके पश्चात श्री गिरीश
चन्द्र पांडे को चैकी का प्रभारी बनाया गया। जिन्हें थाना अध्यक्ष श्री
साधू राम यादव के छुट्टी जाने के कारण एक दिन के लिए थाने का प्रभार भी
दिया गया, परन्तु उसी दिन दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई जिसकी रिपोर्ट
अज्ञात ट्रक के विरुद्ध कराई गई। बताया जाता है कि दोनों मृतक पुलिस
अधिकारी किसी न किसी रुप से अस्थान के लूटपाट व आगजनी की घटनाओं से
संबन्धित मुकदमों की विवेचना से जुड़े थे। इसलिए इन पुलिस अधिकारियों की
मृत्यु की जांच भी सीबीआई द्वारा कराई जानी आवश्यक है।

सरकारी वकील शचीन्द्र प्रताप सिंह की भूमिका-

अस्थान ग्राम के पीडि़तों द्वारा जिला जज महोदय प्रतापगढ़ को प्रार्थना
पत्र दिया गया जिसमे सरकारी वकील शचीन्द्र प्रताप सिंह के विरुद्ध शिकायत
की गई। जिसमें उल्लेख है कि मुकदमा अपराध संख्या 88 सन 2012 और मुकदमा
अपराध संख्या 89 सन 2012 के अभियुक्तों की जमानत प्रार्थना पत्रों की
सुनवाई के समय उक्त सरकारी वकील द्वारा अभियुक्त गणों के वकील की बहस पर
सहमति व्यक्त करते हुए कहा गया कि निर्दोष व्यक्तियों को पुलिस ने फसांया
है और उन्हें जमानत दिए जाने पर कोई आपत्ति नहीं है। सरकारी वकील के इस
आचरण से साबित है कि सांप्रदायिक तत्वों का तुष्टिकरण न्यायालय के समक्ष
भी किया गया।

कोटेदार अवधेश सिंह की भूमिका। कोटा बर्खास्त होना और पुनः बहाल होना-

ग्राम अस्थान के विवाद में कोटेदार अवधेश सिंह की भूमिका बताई जाती है।
ग्राम के मुसलमानों द्वारा आपत्ति किए जाने पर कि उक्त कोटेदार द्वार
वितरण में धांधली की जाती है जिला पूर्ती अधिकारी प्रतापगढ़ द्वारा
दिनांक 19 अपै्रल 2012 को उक्त कोटेदार का कोटा निलंबित कर दिया गया था
और अस्थान ग्राम के कार्ड धारकों को ग्राम कडरों के कोटा विक्रेता श्री
पटेल से संबन्धित कर दिया गया था।

बताया जाता है कि अवधेश सिंह इस कारण से मुसलमानों से नाराज था। हालांकि
मुस्लिम महिला का प्रधान चुना जाना भी उसकी नाराजगी का एक अन्य कारण भी
था। अवधेश सिंह को अभियुक्त बनाया गया है। अखिलेश यादव सरकार उक्त
कोटेदार पर इतनी मेहरबान हुई की अभी कुछ समय पूर्व न केवल उसका कोटा बहाल
किया गया बल्कि स्थान ग्राम के समस्त कार्ड धारकों को पुनः उसी के साथ
जोड़ दिया गया। पुनः सांप्रदायिक तत्वों द्वारा सरकार का तुष्टिकरण किया
गया। कोटेदार अवधेश सिंह को रघुराज प्रताप सिंह का गुर्गा बताया जाता है।

उपरोक्त मुकदमा अपराध संख्या 87 सन 2012 वादी समरजीत मौर्या, मुकदमा
अपराध संख्या 88 सन 2012 वादी फैयाज, मुकदमा अपराध संख्या 89 सन 2012
वादी एसओ अरुण कुमार पाठक, मुकदमा अपराध संख्या 92 सन 2012 गैगेस्टर एक्ट
वादी नामवर सिंह, मुकदमा अपराध 95 सन 2012 वादी नामवर सिंह व संलग्न
प्रार्थना पत्र प्रार्थी तारिक पुत्र शौकत के मामलों की विवेचना सीबीआई
द्वारा कराया जाना आवश्यक है।

सम्पर्क- 09793512969, 09415012666, 09532835303, 09415254919, 09452800752
Email- rihaimanchindia@gmail.com

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