Saturday, March 9, 2013

थाने नहीं जनअदालत जाते आदिवासी

थाने नहीं जनअदालत जाते आदिवासी


भरोसा कंगारू कोर्ट पर भी 

426 पुलिस थानों वाले राज्य झारखंड में 95 नये थाने पिछले बारह वर्षों में खोले गए, लेकिन आदिवासी थाने जाने की बजाय कंगारू कोर्ट, पंचायतों व माओवादियों द्वारा लगायी जाने वाली जनअदालतों में अपनी समस्याओं को सूलझाना पंसद करते हैं...

राजीव 


झारखण्ड के बोकारो जिला के चंद्रपूरा थाना में 3 मार्च को झामुमो विधायक जगन्नाथ महतो ने कंगारू कोर्ट लगाकर जितेन्द्र चौधरी नामक चालक को पेड़ से लटका दिया. चालक की पत्नी सुनीता देवी ने पति के रोज शराब पीने और पैसे मांग-मांग कर प्रतिदिन प्रताड़ित करने का आरोप लगाया था. पत्नी की शिकायत सुनने के बाद विधायक ने अपने आवास के सामने एक पेड़ पर घंटों टांगे जाने की सजा सुनाई.

jharkhand-policeइलाके का एक स्थानीय दर्शक का कहना था कि विधायक जगन्नाथ महतो पहले भी कई बार कंगारू कोर्ट लगा चुके है और त्वरित न्याय देते रहते हैं. बिलंबित न्याय देने और आम लोगों के बीच पुलिस की अच्छी छवि नहीं होने के कारण राज्य के कई इलाके में समानान्तर कंगारू कोर्ट का प्रचलन जारी है. हालांकि पंचायत के माध्यम से समस्याओं का निपटारा आदिवासी रवायत भी रही है, जहां न्याय त्वरित और सुलभ होता है. खबर है कि झामुमो अपने पार्टी के विधायक जगन्नाथ महतो द्वारा लगातार कंगारू कोर्ट लगाकर न्याय करने की जांच शुरू कर दिया है.

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी ) के हालिया रिपोर्ट से पता चलता है कि झारखंड के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के ग्रामीण-आदिवासी पुलिस के वजाय पंचायत व माओवादियों की जनअदालत जाना पसंद करते हैं. एनसीआरबी की 2011 रिपोर्ट के अनुसार लगभग साढ़े तीन करोड़ आबादी वाले झारखंड राज्य में पुलिस केसों की संख्या मात्र 35, 838 दर्ज की गयी, जबकि लगभग समान आबादी वाले राज्यों जैसे केरल, असम व हरियाणा में क्रमश: 1.72 लाख, 60,000 व 66, 000 मूकदमें पुलिस ने वर्ष 2011 में दर्ज किए.

लगभग 426 पुलिस थानों वाले राज्य झारखंड में 95 नये थाने पिछले बारह वर्षों में खोले गए, लेकिन आदिवासी थाने जाने के बजाय कंगारू कंगारू कोर्ट, पंचायतों व माओवादियों द्वारा लगायी जाने वाली जनअदालतों में अपनी समस्याओं को सूलझाना पंसद करते हैं. वरिष्ठ आइपीएस अफसर एसएन प्रधान इस बात से इंकार नहीं करते कि ग्रामीण इलाकों में लोग पुलिस के पास जाने से डरती है. रिकॉर्ड के अनुसार चार मुख्य शहरों रांची, बोकारो, धनबाद व जमशेदपुर में कुल मूकदमें का 45 प्रतिशत ही पुलिस थाने में दर्ज होता है.

जन अदालतों और पंचायतों का प्रचलन झारखंड के उन राज्यों में ज्यादा है जो क्षेत्र उग्रवाद प्रभावित रहे हैं. पंचायतों के माध्यम से सिमडेगा, खूंटी, पूर्वी व सिंहभूम, लोहरदगा, गूमला, संथाल परगना व पलामू के लोग अपनी समस्याओं को सूलझाना पंसद करते है. उल्लेखनीय है कि वर्ष 2010 में अंचल स्तरीय भाजपा नेता को लातेहार जिला में माओवादियों ने जनअदालत लगाकर षड्यंत्र दोषी करार देते हुए गोली मार दिया गया था.

इसी तरह वर्ष 2010 में ही गिरिडीह में जनअदालत में सीपीआइ, माओवादी के कार्यकर्ताओं ने एक व्यक्ति को जान से मारने का फैसला सूनाते हुए उसका सर धड़ से अलग कर दिया था.

गौरतलब है कि उग्रवाद प्रभावित इलाकों में जहां ग्रामीण आदिवासी उग्रवादियों के भय से भी पुलिस में मूकदमें दर्ज नहीं कराते वहीं कई मामलों में पुलिस के भय से भी ग्रामीण आदिवासी पंचायतों में अपने विवादों को निपटाना ज्यादा आसान और सुलभ मानते है.

rajiv.jharkhand@janjwar.com

http://www.janjwar.com/2011-05-27-09-00-20/25-politics/3754-thane-kee-bajay-janadalat-jate-adivasi

No comments:

Post a Comment