Wednesday, 13 March 2013 11:26 |
पुष्परंजन >जल को जीवन मानने वाला संत समाज, भक्तजनों को क्यों नहीं समझाता कि नदी को गंदा करना, नरक में जाने के बराबर है। शास्त्रार्थ करने वाले हमारे संत क्या उन धर्मग्रंथों की इबारतों को बदल नहीं सकते, जिनमें मूर्तियों से लेकर फूल, पूजा-हवन की सामग्री, और अस्थियों को नदी में प्रवाहित करने का विधान बनाया गया है? नदियों में शव बहा देने की परंपरा को आखिर कौन बदलेगा? सरकार के भरोसे अगर आप हैं, तो सच जान लीजिए कि यह किसी भी सरकार के बूते से बाहर की बात है। |
Wednesday, March 13, 2013
गंगा जमुना में आंसू जल
गंगा जमुना में आंसू जल
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