Monday, March 11, 2013

विभाजित चेतना

विभाजित चेतना

riday, 21 September 2012 11:11

जनसत्ता 21 सितंबर, 2012:  पिछले दिनों 'शिक्षित बनो, संगठित रहो और संघर्ष करो' के आंबेडकरवादी विचार के बैनर तले संचालित बामसेफ का हरियाणा राज्य अधिवेशन फरीदाबाद में बड़े जोश के साथ संपन्न किया गया। कांशीराम ने बामसेफ की स्थापना की थी, जो सभी कर्मचारियों को संगठित कर उनके जनतांत्रिक अधिकारों के लिए संघर्ष करेगा और समाज के बीच जागरूकता फैलाएगा। एक दौर तक बामसेफ आंबेडकर के विचारों और कांशीराम के सोच को पोषित करता रहा, लेकिन बाद के वर्षों में सोच-विचार की भिन्नताओं और नेतृत्व के व्यक्तिगत अहं और स्वार्थ के चलते बामसेफ आज चार-पांच टुकड़ों में बंट गया है और जातीय आधार पर भी संगठन के बीच विभाजन बढ़ता जा रहा है।
इन विभिन्न टुकड़ों और समूहों के बीच ऐसा रिश्ता दिखाई देता है जैसा मार्क्सवाद-पूंजीवाद के बीच और आंबेडकर-ब्राह्मणवाद के बीच है। इसी तर्ज पर एक ही राज्य, एक ही तारीख, एक ही समय पर एक ही संगठन बामसेफ का हरियाणा राज्य अधिवेशन हुआ, पर शहर अलग-अलग। एक फरीदाबाद और दूसरा पानीपत में। दोनों समूहों के बीच ऐसी गलाकाट प्रतियोगिता क्यों? अगर दोनों संगठन एक ही होते तो शायद उसी दिन फरीदाबाद में मुख्यमंत्री की रैली से ज्यादा भीड़ इस सम्मेलन में होती, जहां लोग सपरिवार अपने खर्चे पर आए हुए थे। यह सच है कि बामसेफ के अंदर बहुमत आबादी दलितों की है। लेकिन नेतृत्व की वैचारिक भिन्नता के चलते तन-मन-धन से पूरी तरह समर्पित कार्यकर्ता समझ नहीं पा रहे हैं कि कौन-सा बामसेफ आंबेडकरवादी है और कौन-सा अन्य विचार वाला।
कार्यकर्ताओं मेंएक अंधभक्ति-सी है, जिसके चलते उनके नेता ने जो कह दिया वही आखिरी सत्य बन जाता है। अबकी बार हद तो तब हो गई जब फरीदाबाद अधिवेशन में बामसेफ ने अपने सांगठनिक अधिवेशन में जातिवादी और ब्राह्मणवादी मूल्यों से संचालित 'जाट खाप' के एक अध्यक्ष को न केवल अधिवेशन में मुख्य अतिथि के बतौर बुलाया, बल्कि जाट आरक्षण की मांग का समर्थन भी किया और उन्हें अपने सहयोगी के तौर पर प्रस्तुत कर कहा कि 'जो गोत्र जाटों के हैं उनमें से अधिकतर गोत्र दलितों के भी हैं, इसलिए ऐतिहासिक दृष्टि से हमारे बीच भाईचारा है। हमें इतिहास को जानने की जरूरत है।' ये शब्द थे मंच से बामसेफ के राष्ट्रीय नेतृत्व के।

अधिवेशन में ब्राह्मणवाद की आलोचना की गई। लेकिन क्या सिर्फ जाति से यह तय किया जाएगा कि ब्राह्मणवाद क्या है? हरियाणा में तो दलितों के शोषण-उत्पीड़न में सीधे तौर पर जाटों की सबसे ज्यादा भूमिका बनती है। हालांकि यह सही है कि गुरबत में जीने के बावजूद अधिकतर ब्राह्मणों का जातीय अहं बना हुआ है। हमें सामाजिक और मानवीय होना चाहिए, पर सामने वाले में भी ऐसा कुछ सोच दिखाई देना चाहिए, जिससे उनका मानवीय होना, सबको बराबर इंसान समझना उनके व्यवहार और कृत्यों से झलकता हो। ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो आज भी दलितों को अपनी अघोषित संपत्ति मानते हैं, मगर इंसान तक मानने को तैयार नहीं हैं। संगठन के नेतृत्व और बाकी लोगों को विवेक से काम लेना होगा। दलितवाद के अंदर निरंतर बढ़ रहे ब्राह्मणवादी मानसिकता को भी समझने की जरूरत है। यब बात अलग है कि आज देश का दलित समाज भी भयंकर ब्राह्मणवाद से ग्रसित हो चुका है। बंधुत्व और समानता जैसे शब्दों के अर्थ अभी इनके बीच भी खुलने बाकी हैं।
'मुकेश कुमार, महावीर एनक्लेव, दिल्ली

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