Saturday, September 22, 2012

लोकतांत्रिक कायदा टूटने से अराजकता फैली तो सुधारों का क्या होगा?

लोकतांत्रिक कायदा टूटने से अराजकता फैली तो सुधारों का क्या होगा?

बाजार के व्याकरण के मुताबिक अगर लोकतंत्र​ ​ नहीं होता तो अमेरिका अपना लोकतंत्र दुनिया पर थोंपने के लिए अंतरिक्ष तक का सैन्यीकरण न कर रहा होता। जिस अमेरिका के निर्देशानुसार देश, समाज , संस्कति और अर्थव्यवस्था के अमेरिकीकरण​ ​ पर तुला है सत्तावर्ग वहां राष्ट्रपति शासन प्रणाली है, पर राष्ट्रपति के आदेश हो या भारत पाक परमाणु संधि, संसद का अनुमोदन लेना ​​जरूरी होता है। अमेरिका दुनिय के खिलाफ युद्ध चला रहा है, पर अपने नागरिकों के खिलाफ नहीं।

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

लोकतांत्रिक कायदा टूटने से अराजकता फैली तो सुधारों का क्या होगा?इस देश की सरकार इससे बेफिक्र है। पर बाजार के लिए लोकतंत्र भी जरूरी है। दुनिया के सबसे बड़ कारपोरेट देश अमेरिका में भी लोकतांत्रिक व्यवस्था बनाये रखने की गरज होती है सत्तावर्ग को। वियतनाम युद्ध और इराक युद्ध के दरम्यान हुए प्रदर्शनों की तो सबको याद आयेगी। हाल में ​​कारपोरेट अर्थ व्यवस्था के खिलाफ हुए वाल स्ट्टीट दखल आंदोलन भी इसका उदाहरण है। बाजार के व्याकरण के मुताबिक अगर लोकतंत्र​ ​ नहीं होता तो अमेरिका अपना लोकतंत्र दुनिया पर थोंपने के लिए अंतरिक्ष तक का सैन्यीकरण न कर रहा होता। पर भारत की कारपोरेट ​​सरकार को लोकतंत्र की तनिक परवाह नहीं है। जिस अमेरिका के निर्देशानुसार देश, समाज , संस्कति और अर्थव्यवस्था के अमेरिकीकरण​ ​ पर तुला है सत्तावर्ग वहां राष्ट्रपति शासन प्रणाली है, पर राष्ट्रपति के आदेश हो या भारत पाक परमाणु संधि, संसद का अनुमोदन लेना ​​जरूरी होता है। अमेरिका दुनिय के खिलाफ युद्ध चला रहा है, पर अपने नागरिकों के खिलाफ नहीं। अंग्रेजी राज के दरम्यान दुनियाभर में​ ​ कहर ढाने वाले ब्रिटिश साम्राज्यवाद ने भी अपने नागरिकों पर अत्याचार नहीं किये।इसके उलट संसद और संविधान को हाशिये पर रखकर एक अल्पमत सरकार अधिशासी आदेशों के जरिये आम आदमी की दुहाई देते हुए आम आदमी का नामोनिशान मिटाने पर तुला है। ममता ​​बनर्जी ने फेस बुक पर ेकदम सही लिखा है। बंगाल में जो आंदोलन की लहर उसने पैदा करके वाम शासन का अंत किया, कोई​ ​ गलतफहमी न पालें, वह दिल्ली में भी संक्रमित होने ही वाला है। आम आदमी खुली आंखों से राजनीति को चौराहे पर एकदम नंगी खड़ा ​​देख रहा है। ज्यादा दिनों तक उग्रवादी आतंकवादी कहकर उसका दमन असंभव है।नई दिल्ली में विज्ञान भवन में सुरक्षा तामझाम को धता​ ​ बताते हुए जो कुछ हुआ, वह खतरे की घंटी है। यही नहीं, खुदरा कारोबार में विदेशी निवेश (एफडीआई) का विरोध कर रहे व्यापारियों के गुस्से का शनिवार को केंद्रीय कोयला मंत्री और कानपुर के सांसद श्रीप्रकाश जायसवाल को सामना करना पड़ा। व्यापारियों ने मंत्री जी के काफिले पर जूते-चप्पल उछाले।पिछले दिनों अमेरिका में आयोजित एक कॉन्फ्रेंस में भाग लेनेवाले कृषि क्षेत्र के उद्योगपतियों एवं वैज्ञानिकों ने एक सुर में भारत के कृषि क्षेत्र को विदेशी और खासतौर पर अमेरिकी कंपनियों के निवेश मंजूरी दिये जाने की वकालत की।

सरकार अपनी तरफ से फैसले तो ले रही है। लेकिन उसने माना है कि इंश्योरेंस में एफडीआई की सीमा बढ़ाने जैसे लेकिन बड़े बिल पास होना अभी मुश्किल है। क्योंकि सरकार के पास इन्हें पास कराने लायक बहुमत नहीं है।

टेलिकॉम मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा कि राज्यसभा में सरकार के पास बहुमत नहीं है। ऐसे में आम सहमति बनने के बाद ही बड़े बिल संसद में लाए जाएंगे।



सरकार रिटेल एफडाआई के जरिये एसी एजंडे को अमल में ला रहा है। खुले बाजार के दम पर विकासगाथा को धर्म बना देने वाले इसी ​​एजंडे को अमल में ला रहे हैं। लेकिन कृषि अब भी भारतीय अर्थ व्यव्स्था और उत्पादन प्रणाली का स्नायुतंत्र है, जिसके गड़बड़ाने ने सेवाएं काम आयेंगी, न तकनीक और न उपभोक्ता संसकृति।नव धनाढ्य वर्ग के हाथों में खजाना लगा है और औद्योगिक घरानों के आदमी और प्रकति को लूटने , तहसनहस करने की खुली छूट मिली हुई है। वे नहीं समझना चाहते पर आयातित अर्थशास्त्री और कारपोरेट आदमी यह नहीं समझना​ ​ चाहते। समय जरूर कारपोरेय हो गया है, पर आम आदमी अभी कारपोरेट नहीं हुआ है। आत्महत्या का उलट प्रतिरोध है और प्रतिरोध का नाम वियतनाम है, जो बड़ी से बड़ी सैन्य शक्ति को शिकस्त दे सकता है।

भारतीय रक्षा उद्योग में विदेशी निवेश का दबाव बनाते हुए अमेरिका भारत को चीन और पाकिस्तान से लड़ाने की कोशिश में है। राजनीतिक बवंडर के मध्य फिर कोई  कारगिल हो जाय, तो अचरज नहीं। सत्ता बचाने में अंध राष्ट्रवाद आड़े वक्त सबसे ज्यादा कामयाब होता है और राष्ट्रीय सुरक्षा के बहाने   के बहाने लोकतंत्र को कुचलने, निरंकुश दमन के लिए यह अचूक रामवाण है।दुनियाभर में मंदी की असली वजह अमेरिकी युद्ध अर्थ​ ​ व्यवस्था  है, जिसकी वजह से आज दक्षिण एशिया को युद्ध स्थल में तब्दील करने में तुला हुआ है अमेरिका। भारत को पाकिस्तान और चीन के साथ पारम्परिक युद्ध के लिए तैयार रहना चाहिए, क्योंकि परमाणु क्षमता से ही युद्ध की सम्भावना को टाला नहीं जा सकता है जैसा कि 1999 में कारगिल युद्ध से पता चल चुका है। यह बात अमेरिका के थिंक टैंक की रिपोर्ट में कही गई।

बड़े आर्थिक सुधारों के बाद सरकार लोकलुभावन फैसले लेने की तैयारी में है। सीएनबीसी आवाज़ के संपादक संजय पुगलिया के साथ एक्सक्लूसिव बातचीत में कानून मंत्री सलमान खुर्शीद ने कहा है कि सरकार 2014 के चुनावों में जनता के सामने खाली हाथ नहीं जाएगी।आर्थिक सुधारों पर सफाई देते हुए सलमान खुर्शीद का कहना है कि सरकार के लिए वित्तीय घाटे का लक्ष्य हासिल करना सबसे अहम है। लेकिन, सरकार जनता को सुविधाएं देती रहेगी।

सलमान खुर्शीद के मुताबिक सरकार की दिशा साफ हो गई है और सरकार आर्थिक सुधारों की दिशा में और कदम बढ़ाती रहेगी। सलमान खुर्शीद को उम्मीद है कि बैंक, इंश्योरेंस मुद्दों पर सहमति बनेगी।

सलमान खुर्शीद का कहना है कि विश्वास मत की जरूरत नहीं है, लेकिन संसद में बल दिखाना जरूरी है। ममता बनर्जी की सोच सरकार से अलग है।

सलमान खुर्शीद के मुताबिक गठबंधन पर कुछ कहना मुश्किल है। उन्हें उम्मीद है कि खाली पदों पर अच्छी नियुक्ति होगी।

आर्थिक सुधारों को जायज ठहराने के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के राष्ट्र के नाम संदेश की पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तीखी आलोचना की है। ममता ने पीएम को निशाने पर लेते हुए कहा कि सत्ता का इस्तेमाल 'आम आदमी को खत्म' करने के लिए किया जा रहा है। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) और अन्य 'जनता' से जुड़े मुद्दों को लेकर संप्रग सरकार से तृणमूल कांग्रेस के छह मंत्रियों के इस्तीफे के बाद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने टिप्पणी की, 'मैं भले ही काट नहीं सकती लेकिन हमेशा फुफकार तो सकती ही हूं।' ममता स्वामी विवेकानंद के आध्यात्मिक गुरू श्री रामकृष्ण परमहंस से संबंधित एक लोककथा का संदर्भ दे रही थीं। माना जाता है कि रामकृष्ण ने कोबरा प्रजाति के एक सर्प से कहा था कि वह लोगों को काटे नहीं बल्कि वह केवल फुफकार कर ही लोगों को डरा सकता है।

ममता ने फेसबुक पर लिखा, 'मैं पूछना चाहती हूं कि आम आदमी की परिभाषा क्या है? लोकतंत्र की परिभाषा क्या है? क्या यह साफ नहीं है कि आम आदमी का नाम लेकर सत्ता का दुरुपयोग किया जा रहा है? आम आदमी को खत्म किया जा रहा है। क्या यह सोची समझी चाल नहीं है?'

ममता बनर्जी का यह कॉमेंट प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के राष्ट्र के नाम संबोधन के तुरंत बाद सामने याया। पीएम ने अपने संबोधन में डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी और मल्टी ब्रैंड रीटेल में एफडीआई के फैसले को जायज ठहराया था।


ममता ने यहां ताल्लाह पार्क में राज्य सरकार की जल परियोजना स्थल पर कहा, 'मैं भले ही काट नहीं सकती लेकिन फुफकार तो सकती ही हूं। अगर जनता के अधिकारियों पर खतरा मंडराएगा तो हम फुफकारेंगे। हम मां, माटी, मानुष के सामने अपना सिर झुका सकते हैं लेकिन सत्ता के घमंड के सामने नहीं।' उन्होंने कहा कि जब हमारे ऊपर चिल्लाया जाता है, हमारा विरोध उससे भी तेज आवाज में होगा। जब हमें धमकाया जाता है तो हम दहाड़ेंगे। यह हमारे स्वाभिमान की बात है।

मुख्यमंत्री ने कहा, 'हो सकता है हम गरीब हों लेकिन हमारी भी गरिमा है। जनता लोकतंत्र की मुख्य संपत्ति है। जो बंगाल आज सोचता है, दुनिया कल सोचेगी।'

रिटेल में एफडीआई, डीजल और एलपीजी की कीमतें बढ़ाने के पक्ष में सरकार लाख दलील दे रही है, महंगाई के खिलाफ लोगों का गुस्‍सा कम नहीं हुआ है।शनिवार को जायसवाल अपने किसी परिचित के अंतिम संस्कार में शामिल होने कानपुर के भैरव घाट गए थे। वहां से जब उनका काफिला लौट रहा था, तो खुदरा कारोबार में एफडीआई का विरोध कर रहे कुछ व्यापारियों ने उनके काफिले को रोकने की कोशिश की, लेकिन जायसवाल का काफिला वहां नहीं रुका। इससे नाराज व्यापारियों ने जायसवाल की तरफ जूते-चप्पल उछाले, लेकिन ये किसी को लगे नहीं।काफिला नहीं रुकने से नाराज व्यापारियों और जायसवाल के पीछे चल रहे कांग्रेस कार्यकर्ताओं में जमकर झड़प भी हुई। व्यापारियों ने केंद्र सरकार, जायसवाल और एफडीआई के खिलाफ जमकर नारेबाजी की।इससे पहले यूपीए सरकार के कई मंत्रियों को पहले इसके विरोध का सामना करना पड़ा लेकिन अब खुद पीएम मनमोहन सिंह भी इससे नहीं बच सके हैं। सियासी घमासान के बीच मनमोहन ने अपने कड़े फैसलों पर सफाई दी लेकिन शनिवार को विज्ञान भवन में एक कार्यक्रम के दौरान एक शख्‍स ने शर्ट उतारकर पीएम का विरोध किया।पीएम विज्ञान भवन में आर्थिक विकास पर कॉन्‍फ्रेंस में हिस्‍सा लेने पहुंचे थे। पीएम अपना भाषण देने मंच पर पहुंचे कि सभागार में मौजूद एक वकील, जो लालू की पार्टी राष्‍ट्रीय जनता दल से जुड़ा है, टेबल पर खड़ा हो गया। उसने अपनी शर्ट निकाल ली और पीएम के खिलाफ नारेबाजी शुरू कर दी। इस शख्‍स ने डीजल की बढ़ी  कीमतें वापस लेने की मांग करते हुए नारेबाजी की। उसने कहा, 'भ्रष्‍ट पीएम वापस जाओ, वापस जाओ। डीजल में मूल्‍य वृद्धि वापस लो, वापस लो।' सुरक्षाकर्मी इस शख्‍स को पकड़कर बाहर ले गए और उससे कड़ाई से पूछताछ की। हंगामा खड़ा करने वाला शख्‍स 'वोट के बदले नोट' मामले में पीएम के खिलाफ केस चलाने की भी मांग कर चुका है। लेकिन पीएम ने सुरक्षा एजेंसियों से इस शख्स के खिलाफ सख्ती न बरतने का निर्देश दिया है।

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने शनिवार को समावेशी, तीव्र और स्थिर विकास की वकालत की और औद्योगिक क्षेत्र के विकास के लिए मौजूदा औद्योगिक एवं व्यावसायिक कानूनों के कायापलट का वादा किया।मनमोहन सिंह का कहना है कि जल्द ही सरकार कंपनी बिल को संसद में पेश करने वाली है। वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने शनिवार को कहा कि सरकार सुधारों को आगे बढ़ाने, निवेशकों का उत्साह बढ़ाने और स्थिर कर कानून उपलब्ध कराने के लिए और कदम उठाएगी। उन्होंने हाल ही में की गई नीतिगत पहल का शेयर बाजार पर सकारात्मक प्रभाव पड़ने पर संतोष जाहिर किया। 'आर्थिक वृद्धि एवं कारपोरेट वातावरण में बदलाव' विषय पर आयोजित एक सम्मेलन के दौरान उन्होंने कहा, हम कई ऐसे छोटे-बड़े कदम उठाने को प्रतिबद्ध हैं जिनसे यह सुनिश्चित हो कि हम एक स्थायी वातावरण के साथ अपनी आर्थिक वृद्धि को सहयोग देने में समर्थ हैं।उल्लेखनीय है कि वित्त मंत्रालय ने विदेश से उधारी जुटाने पर विथहोल्डिंग टैक्स कल 20 प्रतिशत से घटाकर 5 प्रतिशत कर दिया और पहली बार शेयर बाजार में नए निवेशकों को आकषिर्त करने के लिए राजीव गांधी इक्विटी बचत योजना को मंजूरी प्रदान की।वित्त मंत्रालय के इस कदम का शेयर बाजार पर जबर्दस्त असर दिखा जिससे शुक्रवार को बंबई शेयर बाजार का सेंसेक्स 404 अंक उछलकर 18,752.83 अंक पर बंद हुआ।आर्थिक सुधारों पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बयान से उद्योग जगत को काफी राहत मिली है। कई दिक्कतों से जूझ रहे उद्योग में भरोसा जागा है कि सरकार आगे भी बड़े फैसले लेती रहेगी।

सत्ताधारी संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) से अलग होने के बाद तृणमूल कांग्रेस ने शनिवार को कहा कि अगले संसद सत्र में वह प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) पर एक प्रस्ताव लाएगी। यह फैसला राज्य सचिवालय राइटर्स बिल्डिंग में पूर्व केंद्रीय मंत्रियों की पार्टी प्रमुख ममता बनर्जी के साथ हुई एक बैठक में ली गई।पूर्व शहरी विकास राज्य मंत्री सौगत रॉय ने कहा कि हम संसद के अगले सत्र में एक प्रस्ताव लाएंगे। पार्टी ने 26 सितम्बर को नई दिल्ली के जंतर मंतर पर प्रदर्शन करने की घोषणा की है। प्रधानमंत्री के देश के नाम सम्बोधन को `प्रेरित नहीं करने वाला` बताते हुए राय ने कहा कि सम्बोधन गैर जरूरी था। उन्होंने कहा कि ऐसे सम्बोधन स्वतंत्रता दिवस या बाहरी आपात स्थिति के मौके पर दिए जाते हैं।

बीजेपी ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के राष्ट्र के नाम संदेश की तुलना विदेशी कंपनी के कारोबारी प्रमुख के संबोधन से की। बीजेपी ने कहा कि सरकार को घाटा घोटालों से है, गरीबों को दी जा रही सब्सिडी से नहीं।बीजेपी उपाध्यक्ष मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि प्रधानमंत्री देश को आर्थिक उदारवाद नहीं बल्कि उधारवाद का संदेश दे रहे थे। देश के चौराहों, चौपालों, खेतों और खलिहानों में विदेशी पूंजी निवेश के खिलाफ चल रही हवा को बदलने के लिए प्रधानमंत्री ने 'डालरी डायलॉग' का सहारा लिया।' उन्होंने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री ने देश को गुमराह किया है और हड़बड़ी में चौतरफा गड़बड़ी भी की है।


प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बयान पर कि पैसे पेड़ पर नहीं उगते, चुटकी लेते हुए मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शनिवार को आरोप लगाया कि कांग्रेस के लिए 2जी घोटाला और कोयला घोटाला पैसे का पेड़ बन गया है।

विवेकानंद युवा सम्मेलन में लोगों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि उनकी तरह का महान अर्थशास्त्री लोगों को इस भाषा में कैसे आश्वस्त करने का प्रयास कर सकता है। प्रधानमंत्रीजी, इस देश के लोग जानते हैं कि पैसे पेड़ों पर नहीं उगते। उन्होंने पूछा कि हम भी जानते हैं कि 2जी स्पेक्ट्रम आपके लिए पैसे का पेड़ है, कोयला घोटाला आपके लिए पैसे का पेड़ है। कोयला से ज्यादा बड़ा रुपये का पेड़ आपके लिए और क्या हो सकता है।

उन्होंने कहा कि मैं सीधा आरोप लगाता हूं कि कांग्रेस ने 2जी स्पेक्ट्रम और कोयला घोटाला को अपने लिए पैसे का पेड़ बना लिया है और यह हमारे देश को बर्बाद कर रही है। सिंह ने डीजल के मूल्यों में वृद्धि और बहु ब्रांड खुदरा क्षेत्र में एफडीआई को अनुमति देने के निर्णयों के पीछे कारण गिनाते हुए कल देश को संबोधित किया था। उन्होंने कहा था कि पैसे पेड़ पर नहीं उगते। अगर हमने कदम नहीं उठाए होते तो इसका मतलब उच्च मुद्रास्फीति होती।

देश के रूपांतरकारी बदलावों के बरख्श प्रधानमंत्री ने कहा, ''हम अपने कई व्यावसायिक एवं औद्योगिक कानूनों का परीक्षण कर रहे हैं, ताकि वे आने वाली चुनौतियों के लिहाज से प्रासंगिक हो सकें, खासतौर से हमारे समाज के उपेक्षित वर्गो के सशक्तीकरण व वितरणात्मक समानता सुनिश्चित कराने के लिहाज से।''

मनमोहन ने कहा, ''हम जल्द ही संसद में नया कम्पनी विधेयक पेश करेंगे, जिसे कुछ समय से तैयार किया जा रहा है।''
मनमोहन ने यह बात 'एशिया में आर्थिक विकास एवं औद्योगिक वातावरण में बदलाव' पर आयोजित अंतर्राष्ट्रीय अकादमिक सम्मेलन-2०12 के अपने उद्घाटन भाषण में कही।

दो दिवसीय यह सम्मेलन भारतीय कानून संस्थान द्वारा कोरियाई विधान अनुसंधान संस्थान और एशियाई कानूनी सूचना नेटवर्क के साथ मिलकर आयोजित किया गया है।

प्रधानमंत्री ने कहा, ''एशियाई सरकारों के नाते यह सुनिश्चित कराने की हमारी जिम्मेदारी बनती है कि औद्योगिक कानून अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप हों, हमारे शेयर बाजारों के नियमन, वैश्विक निवेशकों की अपेक्षाओं के स्तर पर आएं और हमारे बैंकिंग व वित्तीय क्षेत्र क्षमता व स्थिरता के मिसाल बनें।''

मनमोहन ने कहा कि आर्थिक अवसरों का विकास सरकार के सभी अंगों (सरकार, संसद और न्यायपालिक) द्वारा किया जाना चाहिए।

प्रधानमंत्री ने निवेश आकर्षित करने, नवाचार को मदद व पुरस्कृत करने के अनुकूल वातावरण बनाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा, ''इन सबसे ऊपर शासन प्रक्रिया में ईमानदारी, पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित कराने की हमारी जिम्मेदारी है।''

इसके पहले प्रधान न्यायाधीश एस.एच. कपाडिया ने सम्मेलन में अपने सम्बोधन में कोयला ब्लॉक आवंटन पर सीएजी की रपट के एक स्पष्ट संदर्भ में कहा, ''बुनियादी बात यह है कि नुकसान एक तथ्यगत मामला है, जबकि लाभ विचार का एक मामला है।''

कार्नेगी एंडॉमेंट फॉर इंटनेशनल पीस की एक रिपोर्ट में भारतीय वायु सेना की भूमिका के बारे में कहा गया है, `रणनीतिक स्तर पर कारगिल युद्ध से स्पष्ट पता चलता है कि स्थिर द्विपक्षीय परमाणु प्रतिरोध सम्बंध क्षेत्रीय झगड़े को बड़ा आकार लेने से भले ही नहीं रोक पाए, लेकिन उसे सीमित कर सकता है।` रैंड कारपोरेशन के वरिष्ठ शोध सहायक बेंजामिन एस. लाम्बेथ की रिपोर्ट में कहा गया, `परमाणु प्रतिरोध के अभाव में ऐसे छोटे मोटे झगड़े पारम्परिक खुले युद्ध में बदल सकते हैं।`

`एयरपावर एट 18,000 : द इंडियन एयर फोर्स इन द कारगिल वार` रिपोर्ट में कहा गया है, `लेकिन कारगिल युद्ध से यह भी पता चलता है कि परमाणु प्रतिरोध से ही युद्ध को टाला नहीं जा सकता है। भारत के उत्तरी सीमा पर पाकिस्तान और चीन से भविष्य में पारम्परिक युद्ध की सम्भावना बनी हुई है। और भारतीय रक्षा संस्थानों को इसके अनुरूप तैयार रहना चाहिए।`

रिपोर्ट में कहा गया, `कारगिल युद्ध भारतीय सैन्य इतिहास में मील का पत्थर है। और इससे भारत के सामने भविष्य के युद्ध की चुनौती का पता चलता है।` रिपोर्ट में कहा गया कि यह युद्ध एक ऊंचे पहाड़ी परिस्थिति में वायुशक्ति के प्रयोग का उदाहरण प्रस्तुत करता है और इससे भारत की भावी वायु शक्ति को समझने का मौका मिलता है।

रिपोर्ट के मुताबिक इस युद्ध में वायु सेना की महत्वपूर्ण भूमिका रही, लेकिन इसी समय भारत की सैन्य क्षमता की कुछ खामियों का भी पता चलता है। रिपोर्ट के मुताबिक कश्मीर में पाकिस्तान की घुसपैठ से भारत की चौकसी की खामी का पता चलता है।

भारतीय कानूनों व व्यवस्थाओं को वैश्विक मानकों के अनुरूप किए जाने के योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलुवालिया के विचारों से खुद को अलग करते हुए वित्त मंत्री पी़ चिदंबरम ने आज कहा कि जिस चीज की हमें जरूरत है वह उचित एवं पक्षपातरहित नियम हैं।

चिदंबरम ने कहा कि मोंटेक का कहना है कि हमें अपने कानूनों व व्यवस्थाओं को वैश्विक मानकों के अनुरूप दुरुस्त करना चाहिए। मैं समझता हूं कि वैश्विक मानक सर्वोत्तम हों यह जरूरी नहीं। सभी वैश्विक मानक सर्वोत्तम नहीं हैं। यहां इंडियन ला इंस्टीटयूट द्वारा आयोजित एक सेमिनार को संबोधित करते हुए चिदंबरम ने कहा कि यह बात समझी जानी चाहिए कि इस असमान विश्व में देश विकास के विभिन्न चरणों में हैं। चिदंबरम के मुताबिक, हाल के वैश्विक वित्तीय संकट ने यह दिखा दिया है कि भारतीय मानक अमेरिकी मानकों से कहीं बेहतर हैं।उन्होंने कहा कि उदाहरण के तौर पर, बैंकिंग नियमन के संबंध में हमने पाया कि भारतीय मानक अमेरिकी मानकों से कहीं बेहतर हैं और हमें 2008 में इस बात का एहसास एवं आश्चर्य हुआ।

18 सितंबर, 2012 को सीआइआइ ने वाशिंगटन डीसी, अमेरिका के जॉन हॉपकिंस विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ एडवांस्ड इंटरनेशनल स्टडीज में एक महत्वपूर्ण सम्मेलन आयोजित किया था। इसमें कृषि क्षेत्र के भारत के प्रमुख उद्योगपतियों एवं वैज्ञानिकों ने भाग लिया।सम्मेलन का विषय था : भारतीय कृषि में परिवर्तन। भारत का प्रतिनिधित्व करनेवालों में सीआइआइ के को-चेयरमैन सलिल सिंघल, इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीटय़ूट के सीनिअर फेलो सुरेश बाबू, आइआइटी खड़गपुर के प्रोफेसर एचएन मिश्र, ट्रैक्टर मैन्यूफैक्चर्स एसोसिएशन के प्रेसिडेंट और ट्रैक्टर कंपनी टैफे के सीओओ टीआर केशवन, तमिलनाडु एग्रिकल्चर यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार पी सुब्बियन, जैन इरिगेशन सिस्टम के सीओओ नरिंदर गुप्ता, केवेंटर एग्रो के मालिक मयंक जालान और सीआइआइ की मीतू कपूर प्रमुख थे।इनके अलावा पेप्सी, मोंसांतो, वालमार्ट एवं कृषि क्षेत्र के अन्य कंपनियों के प्रतिनिधियों ने भी इस सम्मेलन में हिस्सा लिया।हैरानी की बात है कि इस कॉन्फ्रेंस में सभी उद्योगपति एवं वैज्ञानिकों ने एक सुर में भारत के कृषि क्षेत्र को विदेशी और खासतौर पर अमेरिकी कंपनियों के निवेश की मंजूरी दिये जाने की वकालत की. केवेंटर एग्रो के मालिक मयंक जालान ने अमेरिका के एग्रिकल्चर सेक्रेटरी से मुलाकात का हवाला देते हुए कहा, 'समय आ गया है कि भारत यह समझ ले कि कृषि को समाज सेवा के तौर पे नहीं चलाया जा सकता और किसानों को मिलनेवाली सब्सिडी भारत एवं राज्य सरकारें जल्द से जल्द खत्म करे।' उन्होंने इस बात पर खासा जोर दिया कि जीडीपी में खेती से सिर्फ 17 प्रतिशत का योगदान होता है।

इस पर देश का काफी ज्यादा पैसा सब्सिडी के रूप में खर्च होता है। श्री जालान ने अमेरिकी विशेषज्ञों को बताया कि उनके कंपनी केवेंटर एग्रो को हाल ही में बिहार सरकार ने भागलपुर के कहलगांव में फूड पार्क स्थापित करने के लिए तकरीबन 50 करोड़ का पैकेज दिया है। इस वजह से वह अपना व्यवसाय कर्नाटक, महाराष्ट्र या बंगाल के बदले बिहार में स्थापित कर रहे हैं।
यह पूछे जाने पर कि क्या प्राइवेट कंपनियों को मिलनेवाली इतनी बड़ी सब्सिडी जायज है, उन्होंने कहा कि इस पैकेज को सब्सिडी कहना गलत होगा, क्योंकि यह तो बिहार सरकार की मजबूरी है, नहीं तो भागलपुर जैसे पिछड़े इलाके में फूड पार्क लगाने कोई क्यों जायेगा, इसके साथ-साथ फूड पार्कलगने से हजारों किसानों का भला होगा और लोगों को रोजगार मिलेगा।

भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने कहा कि बिहार बदल रहा है। अगर बिहार चाहता है कि कृषि क्षेत्र में वह तरक्की करे, तो उसे नरेंद्र मोदी की तरह किसानों को कम से कम सब्सिडी और प्राइवेट कंपनियों को टैक्स माफी और कारखाना लगाने के लिए जमीन और पैसा मुहैया कराना पड़ेगा।एफडीआइ के निर्णय की भरपूर तारीफ करते हुए कहा कि विदेशी कंपनियों के निवेश से ही छोटे एवं पिछड़े किसानों का भला हो सकता है और सरकार को कृषि क्षेत्र में किसी भी प्रकार की दखलंदाजी नहीं करनी चाहिए।वालमार्ट के आने से भारत में न सिर्फ मध्यम वर्ग को खरीदारी का अलग एहसास मिलेगा, बल्कि, छोटे किसानों को बेहतर दाम भी मिलेगा।

प्रतिनिधिमंडल ने यह भी कहा कि अमेरिकी कंपनियों के आने से कृषि क्षेत्र में नयी तकनीक आयेगी और बिहार, बंगाल, उत्तर प्रदेश जैसे राज्य जो एफडीआइ का विरोध कर रहे हैं, आनेवाले समय में उन्हें भरपूर घाटा उठाना पड़ेगा।

उद्योगपतियों ने कहा कि बिहार, बंगाल, यूपी, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्रियों को मोदी से सीख लेने की जरूरत है। अमेरिका के जॉन हॉपकिंस विश्वविद्यालय के कृषि विशेषज्ञ वाल्टर अंदेर्सन एवं रोबेर्ट थोम्सो ने कहा कि मोदी ने बीटी कॉटन को गुजरात में मंजूरी देकर अमेरिकी कंपनियों के सामने एक बहुत मजबूत दोस्ती की नींव रखी है, जो आनेवाले समय में और सुदृढ़ होगी।

प्रतिनिधिमंडल ने समाजवादी विचारधारा को पिछड़ा और संसार विरोधी करार देते हुए यह कहा कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भारत के राजनैतिक इतिहास में एफडीआइ के जरिये एक नयी कड़ी जोड़ी है. अमेरिकी संबंध को और मजबूत करने के लिए कृषि क्षेत्र को विदेशी निवेश के लिए हर हाल में खोलना पड़ेगा।

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