आगे बढ़ती औरतों को पीछे खींचते मरद
वार्ड पंच बनने के बाद नवली ग्रामसभा में गई तो देखा महिला वार्ड पंच एक तरफ घूंघट ताने बैठी रहती थी और उनके पति ग्रामसभा की कार्यवाही में हस्तक्षेप कर रहे थे. नवली ने उनका विरोध किया, नतीजतन सरपंच पति व वार्ड पंच पतियों को ग्रामसभा में अपना हस्तक्षेप रोकना पड़ा...
लखन सालवी
कभी हस्ताक्षर करते कांपते हुए हाथ अब फर्राटे से हस्ताक्षर कर रहे हैं उनमें आत्मविश्वास का जबरदस्त विकास हुआ है. कभी घूंघट में मुंह छिपाए कोने में बैठी रहने वाली महिला पंच-सरपंचों से घूंघट का त्याग कर दिया है. सूचना क्रांति के युग में पंचायतीराज में महिला जनप्रतिनिधि पुरूषों को पीछे छोड़ते एक कदम आगे चल कर सर्वांगीण विकास कर रही हैं.
राजस्थान स्थित राजसमन्द जिले की देवगढ़ पंचायत समिति की विजयपुरा ग्राम पंचायत की सरपंच रूकमणी देवी सालवी जब सरपंच का चुनाव लड़ने के लिए घूंघट की आड़ में घर की चौखट लांग कर बाहर निकली, तो गुडि़या कहकर लोगों ने अट्टाहास किया. चुनाव के दौरान ही रूकमणी देवी ने ऐसे लोगों के मुंह पर तमाचा जड़ते हुए न केवल घूंघट की आड़ तो तोड़ा, बल्कि चुप्पी भी तोड़ दी. चुनाव जीतने के बाद तो उसे ऐसे पंख लगे कि विजयपुरा ग्राम पंचायत में विकास कार्यों की कतार लगा दी. ग्राम पंचायत में पारदर्शिता को इस कदर स्थापित किया कि उसकी ग्राम पंचायत राज्य ही नहीं, वरन देश भर में पारदर्शिता के मामले में जानी जाने लगी है. हालत यह है कि विजयपुरा ग्राम पंचायत की पारदर्शिता को देखने के लिए देश-विदेश से लोग आते हैं.
सरपंच ही नहीं वरन वार्ड पंच बनकर भी महिलाएं विकास करवा रही है. ऐसा ही एक युवती है नवली गरासिया. पढ़ाई बीच में छोड़कर आदिवासी समुदाय की नवली गरासियां वार्ड पंच बनीं. पंचायतीराज के चुनावों में सिरोही जिले की आबू रोड़ पंचायत समिति की क्यारिया ग्राम पंचायत के वार्ड संख्या 8 के जागरूक लोग वार्ड पंच की उम्मीदवारी के लिए शिक्षित महिला ढूंढ़ रहे थे, क्योंकि वार्ड पंच की सीट महिला आरक्षित थी. इस वार्ड में आदिवासी समुदाय परिवारों की बहुलता है. सभी परिवारों में थाह ली, पर उम्र के तीन दशक पार चुकी कोई शिक्षित महिला नहीं मिली. तब लोगों की नजर नवली पर पड़ी. तब नवली 11वीं की पढ़ाई कर रही थी. लोगों ने उसके समक्ष वार्ड पंच का चुनाव लड़ने का प्रस्ताव रखा. नवली ने हामी भर ली, दूसरी तरफ उसके परिजन भी उसके निर्णय से खुश थे.
क्यारिया ग्राम पंचायत के वार्ड संख्या 8 के लोगों के मुताबिक कई वार्ड पंच बन गए और सरपंच भी, लेकिन उनके वार्ड में अपेक्षित विकास नहीं हुआ था. उनका मानना था कि अशिक्षित व विकास योजनाओं की जानकारी नहीं होने के कारण कोई भी वार्ड पंच उनके वार्ड में विकास नहीं करवा सका. यही कारण था कि उन्होंने शिक्षित महिला को चुनाव लड़वाने की ठानी. जब चुनाव के लिए नवली गरासिया ने आवेदन प्रस्तुत किया, उसके साथ 2 अन्य महिलाओं ने भी आवेदन किए, लेकिन लोगों ने ठान ही लिया था कि शिक्षित महिला को ही चुनाव जिताना है, इसलिए शिक्षित नवली गरासिया ही वार्ड पंच बनीं.
नवली चुनाव तो जीत गई, मगर उसे ग्राम पंचायत, विकास कार्यों एवं पंचायतीराज की लेसमात्र भी जानकारी नहीं थी. ऐसे में वार्ड का विकास करवाना उसके लिए चुनौतीपूर्ण था. नवली के मुताबिक 'वार्ड पंच बनने के बाद ग्राम पंचायत में गई तो काफी असहज महसूस किया. जानकारियों का न होना मन को कमजोर बनाता है. मैं ग्राम पंचायत में जाती जरूर थी, लेकिन एक अन्य महिला वार्ड पंच के पास बैठ जाती थी. वो अशिक्षित वार्ड पंच थी और मैं शिक्षित, लेकिन दोनों को जानकारियों का अभाव था और बेहद झिझक थी.
दूसरी तरफ वार्डपंच बनते ही नवली की पढ़ाई भी छूट गई. हालांकि वह पढ़ाई जारी रख सकती थी, लेकिन अब पढ़ाई से ज्यादा पंचायतीराज को जानने की उसकी इच्छा बढ़ गई थी, इसलिए वह ग्राम पंचायत, वार्ड, विद्यालय, आंगनबाड़ी केंद्र आदी के ही चक्कर लगाती रहती. उसके नियमित निरीक्षण के कारण कुछ सुधार तो हुए, लेकिन नवली अपने वार्ड की मूल समस्याओं का निपटारा करना चाहती थी.
ग्राम पंचायत की बैठकों में पुरूष वार्ड पंचों की भांति उसने भी अपने वार्ड के मुद्दे उठाने आरम्भ कर दिए. उसने अपने वार्ड के विकास के लिए प्रस्ताव भी लिखवाए. नवली ने महिलाओं व बच्चों की समस्याओं के प्रति वह हमेशा संवदेनशील रही और लगातार प्रयास कर उनकी समस्याओं के समाधान भी करवाए.
नवली के कार्यकाल का पहला साल ऐसे ही बीत गया. जब एक साल के काम की समीक्षा की तो उसके चेहरे पर चिंता की लकीरें उभर आई. तभी उसकी मुलाकात क्षेत्र में कार्य कर रहे एक सामाजिक संगठन जनचेतना के कार्यकर्ताओं से हुयी. यह सामाजिक संगठन आमजन में जागृति लाने, सरकार की विकास योजनाओं की जानकारियां जन-जन तक पहुंचाने एवं वंचितों को ऊपर उठाने का कार्य कर रहा है. यह संगठन विभिन्न मुद्दों पर कार्यशालाएं भी आयोजित करता था. नवली गरासिया व कई महिलाओं ने इस संगठन से जुड़कर से जानकारियां प्राप्त कीं.
वार्ड पंच ने वार्ड में जाकर महिलाओं के साथ बैठक की तो पता चला कि महानरेगा के तहत वार्ड संख्या 8 में कोई काम नहीं करवाया गया था और न ही उसके वार्ड की महिलाओं ने महानरेगा में कार्य किया था. कार्यशालाओं में मिली जानकारियों का उपयोग करना शुरू किया और ग्रामसभा में रेड़वाकलां में नाड़ी निर्माण करवाने का प्रस्ताव लिखवाया. बाद में नाड़ी निर्माण की स्वीकृति आ गई और वार्ड की 150 महिलाओं को रोजगार मिला.
महिला मजदूरों का कहना है कि पूर्व में अन्य वार्डों मंे ही महानरेगा के काम हुए थे. दूर होने के कारण वार्ड संख्या 8 की महिलाओं ने महानरेगा के लिए आवेदन ही नहीं किए. महिलाओं के नाम पर पट्टे बनवाने, इंदिरा आवास योजना की किस्त के रुपये महिलाओं के नाम पर जारी करवाने एवं हैण्डपम्प लगवाने के कार्यों से नवली गरासिया वार्ड संख्या 8 ही नहीं पूरे ग्राम पंचायत क्षेत्र के महिलाओं की चहेती बन गई.
नवली ने अपने समुदाय की महिलाओं की दयनीय दशा को बदलने की दिशा में महत्वूर्ण कार्य किए. नवली के अनुसार पहले मकानों के पट्टे पुरूषों के नाम पर जारी किए जाते थे. इंदिरा आवास योजना के तहत मकान निर्माण की राशि भी परिवार के मुखिया पुरूष के नाम पर ही जारी की जाती थी. अधिकतर मामलों में पुरूष इंदिरा आवास की किस्त के रूपयों को अन्य कार्यों में खर्च कर देते है, ऐसे में ग्राम पंचायत के दबाव के कारण घटिया सामग्री का उपयोग कर मकान बना लिया जाता है.
कई ऐसे मामले भी आये कि पत्नी के जीवित होने पर पति दूसरी पत्नी ले आया. पहली पत्नी को घर से निकाल दिया गया, मजबूरीवश उस महिला को या तो अपने मायके जाना पड़ता है या दूसरे पुरूष से शादी करनी पड़ती है. ऐसे मामलों को देखकर नवली विचलित हुयी. महिलाओं को सम्मान मिले और उनकी सुरक्षा हो, इसके लिए उसने ग्राम पंचायत में प्रस्ताव रखा कि मकानों के पट्टे महिलाओं के नाम बनाए जायें और इंदिरा आवास योजना की राशि भी महिला के नाम ही जारी की जाएं. ताकि ऐसी हालत आने पर वो खुद को सुरक्षित महसूस कर सके. हालांकि ग्राम पंचायत के पुरूष वार्ड पंचों ने उसके प्रस्तावों का विरोध किया, लेकिन नवली ने अपने प्रस्ताव लिखवाकर ही दम लिया.
नवली ने महिला वार्ड पंचों को भी उनके अधिकार दिलवाने की पैरवी की. ग्राम पंचायत में कुल 11 वार्ड हैं और 6 महिला वार्ड पंच है. नवली के मुताबिक वार्ड पंच बनने के बाद जब वह ग्रामसभा में गई तो देखा महिला वार्ड पंच एक तरफ घूंघट ताने बैठी रहती थी और वार्ड पंच पति ग्राम सभा की कार्यवाही में हस्तक्षेप कर रहे थे. यहां तक कि सरपंच संतोष देवी गरासिया की बजाए सरपंच पति ने ग्रामसभा की बागडोर अपने हाथ संभाल रखी थी. एक साल तक ऐसे ही चलता रहा, लेकिन बाद में नवली ने ग्रामसभा में सरपंच पति व वार्ड पंच पतियों का विरोध करना आरम्भ कर दिया. नतीजतन सरपंच पति व वार्ड पंच पतियों को ग्रामसभा से अपना हस्तक्षेप रोकना पड़ा.
शिक्षा के महत्व को भली-भांति समझने वाली नवली ने सबसे पहले आदिवासी लड़के-लड़कियों को शिक्षा से जोड़ने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. लड़कियों को शिक्षा से जोड़ने के लिए घर-घर गई, महिलाओं-पुरूषों को समझाया और लड़कियों को शिक्षा से जोड़ने में भागीदारी निभाई. जब स्कूल में बच्चों का नामांकन बढ़ा तो प्राथमिक विद्यालय को क्रमोन्नत करवाकर उच्च प्राथमिक विद्यालय करवाया, ताकि वार्ड व गांव के बच्चों को पढ़ाई के लिए अन्यत्र नहीं जाना पड़े.
बच्चे विद्यालय तो जाते, लेकिन बरसात में बच्चों के लिए पानी का एक नाला रोड़ा बन गया. वार्ड और स्कूल के बीच पानी का नाला है जिसमें बारिस का पानी तेज बहाव से बहता है. नवली के प्रयासों से नाले पर पक्की पुलिया का निर्माण हो चुका है और अब बच्चों को स्कूल जाने में कोई परेशानी नहीं है.
छोटे बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के लिए भी सफल प्रयास किए गए. राज्य सरकार द्वारा आदिवासी वर्ग के छोटे बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के लिए मां-बाड़ी केंद्र संचालित किए जाते है. इन केंद्रों में बच्चों को न केवल शिक्षा प्रदान की जाती है, बल्कि उन्हें पोषण भी दिया जाता है. पाठ्य सामग्री से लेकर, कपड़े, स्वेटर, टाई, बेल्ट, जूते, मौजे तथा सुबह का नाश्ता व मध्याहन भोजन निःशुल्क दिया जाता है. बच्चों को पढ़ाने एवं नाश्ता व मध्याहन भोजन बनाने के लिए भी आदिवासी वर्ग के महिला-पुरूष को नियुक्त किया जाता है. जानकारी के अनुसार जिस बस्ती या वार्ड में 30 छोटे बच्चों का नामांकन हो जाता है, वहीं मां-बाड़ी केंद्र खोला जा सकता है.
नवली ने घर-घर जाकर सर्वे किया तो देखा कि वार्ड संख्या 8 में छोटे बच्चों की संख्या 30 से अधिक थी, जबकि वहां मां-बाड़ी केंद्र नहीं चल रहा था. उसके अथक प्रयासों से वार्ड में बंद पड़े मां-बाड़ी केंद्र को शुरू किया गया. उसके इस प्रयास से न केवल बच्चे शिक्षा से जुड़े पाए, बल्कि आदिवासी समुदाय के 1 युवा व 2 महिलाओं को रोजगार भी मिला.
नवली ने महिलाओं को शिक्षित करने की दिशा में भी पहल की. उसने अपने घर पर चिमनी के उजाले में महिलाओं का पढ़ाना आरम्भ किया. नवली खुद भी स्नातक की डिग्री प्राप्त करना चाहती है. सरपंच बनने के बाद एक साल तो उसने अपनी पढ़ाई ड्राप कर दी, लेकिन उसके बाद उसने ओपन स्टेट से 12वीं की पढ़ाई की.
पितृसत्तात्मक समाज में महिलाओं की आजादी एवं उनका प्रतिनिधित्व पुरूषों को रास नहीं आता. नवली के मामले में भी ऐसा हो रहा है.एक सिरफिरे ने तो नवली के मोबाइल फोन पर कॉल किया और अश्लील बातें कही. इतना ही नहीं, बल्कि पुलिस में शिकायत करने पर उसे जान से मारने की धमकी भी दी. मगर नवली डरी नहीं, वह थाने में एफआईआर दर्ज करवाने गई. लेकिन थाने में उसकी एफआईआर दर्ज करने को मना कर दिया गया. तब वह पुलिस अधीक्षक के पास गई और थानेदार और अश्लील कॉल करने वाले की शिकायत की. पुलिस अधीक्षक के आदेशों के बाद थाने में उसकी एफआईआर दर्ज हुई और अश्लील कॉल करने वाले को गिरफ्तार किया गया.
आदिवासी सरपंच सरमी देवी गरासिया, वार्डपंच नवली गरासिया, सरपंच यशोदा सहरिया, वार्ड पंच मांगी देवी सहरिय, दलित रूकमणी देवी सालवी, गीता देवी रेगर, मनप्रीत कौर, राखी पालीवाल, वर्धनी पुरोहित व कमलेश मेहता जैसी राजस्थान की सैकड़ों महिला पंच-सरपंचों के हौसलों व उनके द्वारा किए जा रहे कार्यों को देखकर लगता है कि 73वें संविधान संशोधन की भावना पूरी हो रही है. पहली पीढ़ी की महिला जनप्रतिनिधि घूंघट में थी, आज एक भी घूंघट में नहीं है. कोई माने या न माने बदलाव की बयार बहनी शुरू हो चुकी है.
लखन सालवी जनसंघर्षों से जुड़े पत्रकार हैं.
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