उत्तराखंड आपदा के अनसुलझे सवाल
उत्तराखंड में आई प्राकृतिक आपदा को दस दिन हो गए हैं. क़ुदरत के इस क़हर में सैकड़ों लोगों की जानें गईं हैं और हज़ारों अब भी लापता हैं.
लेकिन अब तक कई ऐसी बातें हैं जिनके बारे में कोई जानकारी नहीं मिल सकी है. आइए एक नज़र डालते हैं कुछ ऐसे अनसुलझे सवालों पर-
कितनी जानें गईं?
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देहरादून स्थित संवाददाता शालिनी जोशी के अनुसार उत्तराखंड के आपदा प्रबंधन विभाग की मानें तो मंगलवार शाम तक 568 लोग मारे गए हैं.
राज्य के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने मंगलवार को ही कहा था कि मरने वालों की संख्या एक हज़ार से ज़्यादा हो सकती है.
और तो और आपदा प्रबंधन मंत्री यशपाल आर्या ने कहा कि मरने वालों की संख्या पांच हज़ार से अधिक हो सकती है.
ये सही है कि मुख्यमंत्री या आपदा मंत्री ने क्लिक करेंउत्तराखंड में मारे गए लोगों के बारे में इन आंकड़ों की पुष्टि नहीं की है लेकिन इस बारे में जानकारी देने वाले तीनों लोग तो सरकार के ही हैं फिर उनके बयानों में इतना फ़र्क़ क्यों?
कितने लोग अभी तक फंसे हुए हैं?
तीन-चार दिन पहले तक सरकार कह रही थी कि 71 हज़ार लोगों को बचाया जा चुका है और 40 हज़ार लोग (कुल एक लाख 11 हज़ार) अलग-अलग जगहों पर फंसे हुए हैं. लेकिन मंगलवार को सरकार ने कहा कि 97 हज़ार लोगों को निकाला जा चुका है और अब केवल साढ़े चार हज़ार (कुल एक लाख डेढ़ हज़ार) लोग फंसे हुए हैं.
सवाल ये है कि आंकड़ों में लगभग 10 हज़ार का फ़र्क़ कैसे आया और ये लोग कहां गए.
पिछले एक हफ़्ते से उत्तराखंड का दौरा कर रहे बीबीसी संवाददाता नितिन श्रीवास्तव के अनुसार खुद उनकी कम से से कम सौ ऐसे व्यक्तियों से मुलाक़ात हुई है जिनके हाथ में एक दो नहीं बल्कि सात, दस और पंद्रह लोगों की तस्वीरें थीं और उनका इनमें से किसी से भी त्रासदी के बाद संपर्क नहीं हो सका है.
नितिन श्रीवास्तव के अनुसार ऋषिकेश और हरिद्वार से हर साल इन तीर्थ स्थलों के लिए तीर्थयात्रियों की बुकिंग कराने वाले तमाम टूर ऑपरेटरों का कहना है कि इस मौसम में लाखों की तादाद में तीर्थयात्री आते हैं और अगर नब्बे हज़ार से ज़्यादा बचा भी लिए गए हैं तब भी कई हज़ार का अता-पता नहीं है.
सवाल ये भी है कि बचे हुए लोगों का पता कब तक लग सकेगा और लग भी सकेगा या नहीं ये कह पाना अभी बहुत मुश्किल है.
बचाए गए लोग
सरकार का दावा है कि उसने मंगलवार तक 97 हज़ार लोगों को बचा लिया है लेकिन ये सारे लोग अलग-अलग जगहों से निकाले गए हैं और अलग-अलग जगहों पर रखे और फिर भेजे जा रहे हैं. उनके बारे में कोई सही जानकारी नहीं मिल पा रही है कि वे लोग कौन हैं, कहां से आए हैं और फिर कहां जा रहे हैं.
इसी से जुड़ी एक अहम बात ये है कि सरकार दावा कर रही है कि सारे लोगों को निःशुल्क सरकारी ख़र्चे पर निकाला जा रहा है लेकिन सुरक्षित निकाले गए लोगों में से कई लोगों का आरोप है कि निजी विमान के पायलटों ने उनसे ढेर सारे रूपए लिए हैं.
शालिनी जोशी के अनुसार कुछ लोगों का तो आरोप है कि उन्होंने 4-5 लाख रूपए भी दिए हैं. इसको लेकर कुछ एक जगह पर राज्य पुलिस और निजी विमान के पायलटों के बीच लड़ाई-झगड़े की भी ख़बरें हैं.
तीर्थयात्रियों की संख्या क्या थी?
नितिन श्रीवास्तव का कहना है कि अभी तक उत्तराखंड सरकार इस बात का पता लगाने के लिए जूझ रही है कि आख़िर कितने तीर्थयात्री और पर्यटक पंद्रह और सोलह जून के दरमियान केदारनाथ, बद्रीनाथ, गौमुख, गंगोत्री इलाक़ों में मौजूद थे.
सरकार के पास ऐसा भी कोई आंकड़ा नहीं है कि कितने लोग हर साल यात्रा करने जाते हैं.
ऐसे में ये बताना लगभग असंभव है कि हादसे के शिकार कितने लोग हुए हैं क्योंकि इस तरह के हादसों में शव मिलते भी नहीं हैं और सरकार आधिकारिक आंकड़े तभी देती है जब उसे शव बरामद हो जाते हैं.
एक अनुमान के मुताबिक़ यात्रा की चरम सीमा पर केदारनाथ में एक दिन में औसतन 13 से 15 हज़ार लोग होते हैं. हज़ारों लोग रास्ते में होते हैं जो दर्शन के लिए जा रहे होते हैं या लौट रहे होते हैं. इससे सिर्फ़ अंदाज़ा ही लगाया जा सकता है कि इस हादसे के शिकार कितने लोग हुए होंगे. सरकार या फिर दूसरी कोई भी संस्था सही आंकड़े देने में सक्षम नहीं हो सकती है.
केदारनाथ में अंतिम संस्कार, लेकिन कब और कैसे?
राज्य सरकार कह रही है कि केदारनाथ में मारे गए लोगों की सामूहिक क्लिक करेंअंत्येष्टिकी जाएगी.
राज्य सरकार के अनुसार पहले शवों की पहचान के लिए तस्वीरें खींची जाएंगी और उनके डीएनए सैंपल लिए जाएंगे लेकिन 10 दिनों के बाद शवों की हालत बेहद ख़राब हो चुकी है.
इसके अलावा अब भी मलबा जमा है और जब तक पूरा मलबा नहीं हट जाता पूरे शव नहीं निकाले जा सकेंगे.
ऐसे में डीएनए सैंपल लेना या तस्वीरें लेने की प्रक्रिया कैसे सफलता से लागू हो पाएगी ये कहना मुश्किल है.
नष्ट हुए मकान, पुल, स्कूल, अस्पताल, पशुओं की संख्या?
आपदा प्रबंधन विभाग रोज़ाना आंकड़े जारी करता है जिनमें क्षतिग्रस्त मकान, स्कूल, कॉलेज या पशुओं के बारे में जानकारी दी जाती है.
लेकिन ये सारे आंकड़े उन इलाक़ों के होते हैं जो शहरी इलाक़े हैं या फिर ऐसे इलाक़े हैं जहां बचाव और राहतकर्मी पहुंचने में सफल हुए हैं और जहां मीडिया की नज़रें हैं.
लेकिन बहुत सारे ऐसे इलाक़े हैं जहां अभी तक कोई नहीं पहुंच पाया है न सरकार, न राहतकर्मी और न मीडिया. इसलिए तबाही का सही आकलन करना फ़िलहाल असंभव है.
विरोधाभासी बयान क्यों?
केंद्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार क्लिक करेंशिंदे ने अपने दौरे में कहा था कि सरकारी संस्थाओं में तालमेल की कमी है लेकिन अब संस्थाओं में ही नहीं राजनेताओं और अधिकारियों के बयानों में भी विरोधाभास देखे जा रहे हैं.
शिंदे ने कहा था कि राहत और बचाव कार्यों को देखते हुए कोई वीआईपी वहां न जाएं क्योंकि इससे उन कामों पर नकारात्मक असर पड़ता है लेकिन उसके बावजूद भी गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चह्वाण, हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा और कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने वहां का दौरा किया.
राज्य सरकार कह चुकी है कि केदारनाथ में बचाव का काम पूरा हो चुका है और अब सारा ध्यान बद्रीनाथ पर है लेकिन केंद्र सरकार कह रही है कि अब भी केदारनाथ में काम हो रहा है. ऐसे में आम जनता को कुछ पता ही नहीं चल पा रहा है कि फ़िलहाल वास्तव में हालात क्या हैं.
मंगलवार शाम को राज्य के मुख्य सचिव ने कहा कि एम-17 विमान ने तो उड़ान ही नहीं भरी है जबकि सच्चाई है कि विमान ने उड़ान भी भरी और फिर हादसे का शिकार भी हुआ जिसमें 19 लोग मारे गए.
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