बामसेफ़ का एकीकरण (Unification of BAMCEF)
आज कल बामसेफ़ के एकीकरण का काफी प्रयास चल रहा है। यह स्वागत योग्य कदम है। इस संबंध मे एक आयोजन मुंबई मे 2-3 मार्च को हुआ है जिसमे मेशराम ग्रुप से तीसरी बार अलग हुये लोगो ने पहल की है। इसमे मुख्य रूप से निम्न लोगो की कोर कमेटी बनी है।
1. Jyothinath from Bihar
2. Abhiram Mallick from Orissa
3.Chamanlal (Cordinator) from UP
4. Palash Biswas from West Bengal
5. Bhaskar Wakde from Maharashtra
6. Vijay Kujur from Jharkhand
7. Khokan Maitra from West Bengal
8. Raoji Bhai Patel from Gujarat
9. Lt. Col. Siddharth Barves from Mumbai
10.Mod. Sukur from Karnataka
11. Sarnath Gaikawad from Maharashtra
12.Ambade from Maharashtra
इस मीटिंग को माननीय बी डी बोरकर, और माननीय तारा राम मेहना दोनों ने संबोधित किया है। एक मीटिंग लखनऊ मे भी 16-17 मार्च को हुयी जिसमे कई घर बैठ गए अत्यंत पुराने और वारिस्ठ कार्यकर्ताओ ने भाग लिया है। इस मीटिंग मे भाग लेने आए श्री रुपचन्द सेठ से हम लोगो की लखनऊ के मान्यवर कांशी राम स्मारक मे मुलाक़ात भी हुयी। इनकी अगली मीटिंग शायद नागपुर मे होनी है।
अब बात करते है एकीकरण की। जो भी साथी मेश्राम के साथ दूसरी और तीसरी बार मे छोड़ रहे है उन्हे अपनी इस गलती का एहसास होना चाहिए कि जब की सारी सीईसी ने मेश्राम को 2003 मे निकाल दिया था तो ये लोग तब ये लोग उस समय मेश्राम को नहीं पहचान पाये और उस समय मेश्राम का साथ दिया। अगर यह साथी लोग उसी समय मेश्राम को पहचान जाते तो व्यक्ति निर्माण होने की बजाय संगठन निर्माण होता। कुछ ही दिन साथ देने के बाद अपने कुछ साथियो को 2006 मे इस बात का एहसास हो गया कि हमसे गलती हो रही है और हम संगठन निर्माण के वजाय व्यक्ति निर्माण मे लगे है तो उन्होने तुरंत मेश्राम का साथ छोड़ दिया। तब भी न तो श्री तारा राम मेहना जी को, न ही इन साथियों को इस बात का एहसास हुआ और वे व्यक्ति निर्माण मे लगे रहे । बाद मे 2009 के राष्ट्रिय अधिवेशन-जयपुर मे माननीय तारा राम मेहना जी को एहसास हो गया वे अब तक संगठन के बजाय व्यक्ति निर्माण मे इस्तेमाल हो रहे थे, तब उन्होने ने भी मेश्राम का साथ छोड़ दिया। पर उस समय भी वर्तमान पहल करने वाले साथियो को एहसास नहीं हुआ और ये साथी पूरी ताकत से व्यक्ति निर्माण मे लगे रहे । ठीक उसी तरह जिस तरह आज अर्थात 2012-13 मे ये लोग तो मेश्राम को पहचान लिए है लेकिन उनके और साथी अभी भी मेश्राम के साथ है और व्यक्ति निर्माण मे लगे हुये है। वे चोथी बारी मे उनको पहचान कर अलग होंगे तब उनको भी अपनी गलती का एहसास होगा। बहर-हाल खुशी की बात यह है की धीरे-धीरे ही सही परंतु संगठन मे एक लंबे समय तक कार्य करने वाले एकमत हो रहे है कि संगठन मे लोकतन्त्र होना चाहिए और व्यक्तिगत नेतृत्व के स्थान पर संस्थागत नेतृत्व होना चाहिए।
एकीकरण किस बात का ? आइये जरा डीटेल व्याख्या करते है। जहा तक उद्देश्य की बात है तो बामसेफ़ के सारे ग्रुप का उद्देश्य व्यवस्था परिवर्तन है। अर्थात उद्देश्य का एकीकरण पहले से ही है। सारे ग्रुप की विचारधारा फुले और अंबेडकर की विचारधारा ही है। अर्थात विचारधारा का भी एकीकरण पहले से ही है। सारे ग्रुप एक ही नाम बामसेफ़ इस्तेमाल कर रहे हैं। अर्थात संगठन का भी एकीकरण पहले से ही है। सारे ग्रुप के कार्यकर्ता पहले से ही एकीकरण का दबाव दे रहे है। अब रही बात लीडरशिप के एकीकरण की तो, यदि लीडरशिप उद्देश्य के लिए समर्पित होकर बामसेफ़ चला रही है तो उनका एकीकरण हो सकता है, लेकिन यदि लीडरशिप करने वाले लोग उद्देश्य से ज्यादा अपना महत्व देना चाहते हो तो ऐसे लोगो का न तो एकीकरण हो सकता है न ही ऐसे लोग एकीकरण की प्रक्रिया को पसंद करेंगे। क्योकि उन्होने संगठन बनाया ही इस लिए है की खुद को कैसे वे स्थापित कर सके। इस लिए साथियो लीडरशिप का चरित्र लोकतान्त्रिक होना एकीकरण की पहली अनिवार्यता है।
मूलनिवासी बहुजन समाज के बुद्धजीवियों का भी इसमे योगदान है कि वे संगठन चाहते है या व्यक्ति? यह निर्णय लेकर उनको संबन्धित पक्ष का समर्थन देना होगा।
No comments:
Post a Comment