मोदी को 'एलियन' बनाते भाजपाई
भाजपा नेताओं द्वारा मोदी की किसी उपलब्धि का बखान नहीं किया जाता, बल्कि उन्हें 2002 के गुजरात दंगों के महानायक के रूप में ही प्रस्तुत किया जा रहा है. इससे मोदी प्रधानमंत्री बन पायेंगे या इतिहास के पन्नों में खो जायेंगे. 2004 में आडवाणी का हश्र हम देख चुके हैं...
मोकर्रम खान
हाल ही में एक प्रतिष्ठित समाचार पत्र की वेबसाइट पर एक समाचार आया है कि नरेंद्र मोदी का अपनी पत्नी से पैचअप हो गया है और अब वह नरेंद्र भाई के साथ मुख्यमंत्री निवास में रहने को राजी हो गई हैं. यह समाचार किसी अजूबे से कम नहीं है क्योंकि अभी तक लोगों को यही मालूम था कि भाई नरेंद्र मोदी आरएसएस के बड़े नेताओं की तरह अविवाहित हैं. स्वयं मोदी ने कभी यह जाहिर नहीं किया कि वे कभी किसी स्त्री के मोह-पाश में बंधे थे.
भला हो कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह का जिन्होंने नरेंद्र मोदी को चुनौती दे डाली कि वे अपनी पत्नी के संबंध में स्थिति स्पष्ट करें वर्ना मोदी तो अपने चुनावी पर्चे में वैवाहिक स्थिति का कालम ही खाली छोड़ देते थे. दिग्गी राजा ने भले ही राजनीतिक लाभ के लिये मोदी को उकसाया हो किंतु उन्होंने जाने-अनजाने नरेंद्र मोदी तथा देश की सांप्रदायिक सद्भाव प्रेमी जनता पर बड़ा उपकार कर दिया है. इस राजनीतिक स्टंट के पीछे उपकार कहां छुपा हुआ है, यह आगे समझ में आयेगा.
अब नरेंद्र भाई गृहस्थ जीवन गुजारेंगे, जीवन के कुछ लक्ष्य तय करेंगे. पत्नी का साथ होगा तो लाइफस्टाइल भी बदलेगी और सोच भी. समाज के प्रति नज़रिया भी बदलेगा. अब दूसरों का दुख देखकर कष्ट का अनुभव भी होगा. मोदी के अंदर तथा बाहर जो सकारात्मक परिवर्तन होंगे, उसका लाभ गुजरात की जनता को अवश्य मिलेगा. यह तो हुआ जनता पर दिग्गी राजा के राजनीतिक स्टंट का उपकारी प्रभाव. स्वयं नरेंद्र मोदी पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है, इसका अनुभव नरेंद्र मोदी को पत्नी का सान्निध्य प्राप्त होते ही होने लगा होगा, क्योंकि स्त्री घर की शोभा होती है. जिस घर में स्त्री नहीं होती, उस घर में रौनक नहीं होती चाहे वह किसी राजा का राजमहल ही क्यों न हो.
पत्नीविहीन व्यक्ति घर आने में डरता है, अधिकांश समय कार्यालय या अन्यत्र बिताने का प्रयास करता है क्योंकि घर में पसरा सन्नाटा तथा अकेलापन उसे काटने को दौड़ते हैं. परिवार वाला व्यक्ति जल्दी घर पहुंचना चाहता है, क्योंकि घर पर पत्नी उसकी प्रतीक्षा कर रही होती है. अब नरेंद्र भाई को मुख्यमंत्री निवास के सन्नाटे तथा जीवन के अकेलेपन से मुक्ति मिल गई होगी या जल्दी ही मिल जायगी.
यह तो हुआ तस्वीर का एक पहलू. नरेंद्र भाई को वैवाहिक संबंधों के रिकैनलाइजेशन का असली फायदा 2014 के लोकसभा चुनावों के परिणाम आने के बाद समझ आयेगा, जब उन कठिन परिस्थितियों में सब साथ छोड़ देंगे, केवल उनकी पत्नी ही उनके साथ खड़ी होंगी. अभी यह बताने के प्रयास किये जा रहे हैं कि नरेंद्र मोदी ही सबसे बड़े नेता हैं, और वही प्रधानमंत्री बनेंगे. किंतु इस मुहिम को चलाने वाले भाजपा नेताओं के असली इरादे क्या हैं, वे नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनवाना चाहते हैं या उनका राजनीतिक कैरियर ही समाप्त कर देना चाहते हैं, एक एलियन के छवि बनाकर, कहना कठिन है.
एक तरफ नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का सबसे योग्य बताया जा रहा है, तो दूसरी तरफ भाजपा नेताओं को उनका नाम प्रधानमंत्री पद के लिए उछालने से रोका भी जा रहा है. राजनाथ सिंह ने तो मोदी का नाम प्रधानमंत्री पद के लिए उछालने पर अनुशासनिक कार्यवाही की चेतावनी तक दे दी थी. भाजपा के कई दिग्गज नरेंद्र मोदी की उम्मीदवारी का प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष विरोध कर चुके हैं.
कर्नाटक विधानसभा चुनावों में पार्टी उन्हें प्रचार में उतारेगी या नहीं, इसका निर्णय नहीं हो पाया है. इसके पहले संपन्न हुये विधानसभा चुनावों में बिहार तथा झारखंड जैसे राज्यों में उनका जाना ही प्रतिबंधित कर दिया गया. कुछ राज्यों में उन्हें भेजा तो गया, मगर प्रचार में उनकी भूमिका सीमित रखी गई. जिस व्यक्ति को प्रधानमंत्री पद के लिए सबसे योग्य बताया जा रहा है उसे राज्यों के चुनाव प्रचार से दूर रखा जा रहा है.
हाल ही में प्रवीण तोगडि़या ने कहा है कि 2015 में गुजरात को हिंदू राज्य घोषित कर दिया जायगा. संभवत: तोगडि़या देश को यह संदेश देना चाहते हैं कि मोदी पहले गुजरात को हिंदू राज्य घोषित करेंगे, फिर कुछ समय बाद भारत को भी हिंदू राष्ट्र घोषित कर देंगे. तोगडि़या मोदी के विरोधी हैं. संभव है यह बयान देश की सांप्रदायिक सौहार्द प्रेमी जनता को डराने तथा मोदी की स्वीकार्यता घटाने के लिये दिया गया हो, क्योंकि मोदी अपनी स्वीकार्यता बढ़ाने हेतु अपनी कट्टरपंथी छवि को बदलने के लिये पिछले 2 सालों से निरंतर प्रयत्नशील हैं. तोगडि़या का बयान मोदी के प्रयासों पर पलीता लगाने का प्रयास है.
भाजपा के नेताओं द्वारा मोदी की किसी उपलब्धि का बखान नहीं किया जाता, बल्कि उन्हें 2002 के गुजरात दंगों के महानायक के रूप में ही प्रस्तुत किया जा रहा है. इससे मोदी प्रधानमंत्री बन पायेंगे या इतिहास के पन्नों में खो जायेंगे, यह मोदी स्वयं भी समझते होंगे, क्योंकि वह 2004 में अपने गुरु आडवाणी का हश्र देख चुके हैं. 2002 के गुजरात दंगों के तत्काल बाद संपन्न विधान सभा चुनावों में मोदी को मिली सफलता से उत्साहित होकर भाजपा तथा संघ ने उनके गुरु तथा संरक्षक एवं देश को सांप्रदायिक राजनीति के उन्नत हथकंडों से अवगत कराने वाले, 1992-93 के राष्ट्र व्यापी दंगों के महानायक लालकृष्ण आडवाणी को सीधे पीएम इन वेटिंग ही घोषित कर दिया.
पैसे लेकर खबरें दिखाने वाले कुछ चैनलों ने ऐसा वातावरण बना दिया मानो चुनाव परिणामों की केवल औपचारिकता शेष है. वेंकैया नायडू ने तो एनडीए के किस घटक से कौन-कौन मंत्री बनेंगे तथा किसे कौन सा विभाग मिलेगा, सभी कुछ फाइनल करके लिस्ट तैयार कर ली थी किन्तु जब परिणाम आये तो सब कुछ उल्टा हो गया. यूपीए शासनारूढ़ हो गया. आडवाणी इतने व्यथित हुये कि राजनीति से संन्यास लेने की बात करने लगे, उस समय केवल उनका परिवार ही उनका सहारा बना और उन्हें ढाढ़स बंधाया.
यही इतिहास 2014 में नरेंद्र मोदी के साथ भी दोहराये जाने की काफी संभावना है क्योंकि देश की 99.9 प्रतिशत जनता हारर फिल्मों से परहेज करती है. केवल .01 प्रतिशत जनता की पसंद को पेड मीडिया ऐसा उछाल देता है, जैसे 100 प्रतिशत जनता हारर फिल्में पसंद करती है. नरेंद्र मोदी के गृहस्थ जीवन के रिकैनलाइजेशन का एक दूरगामी परिणाम यह भी हो सकता है कि उनका हृदय परिवर्तन हो जाय और वह कट्टरपंथ से किनारा कर लें. यदि ऐसा हुआ तो उन .01 पतिशत व्यक्तियों को बड़ा झटका लगेगा जो नरेंद्र मोदी को एकमात्र संहारक मानते हैं.
मोकर्रम खान राजनीतिक विश्लेषक हैं.
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