भारत के कुलीन वाम नेतत्व को उखाड़ फेंकना सबसे जरूरी
पलाश विश्वास
उत्तर आधुनिकता और मुक्तबाजार के समर्थक दुनियाभर के कुलीन विद्वतजनों ने इतिहास,विचारधारा और विधाओं की मृत्यु की घोषणा करते हुए पूंजीवादी साम्राज्यवाद और समंती ताकतों की एकतरफा जीत का जश्न मनाना शुरु कर दिया था।लेकिन पूंजीवाद के गहराते संकट के दौरान वे ही लोग इतिहास,विचारधारा और विधाओं की प्रासंगिकता की चर्चा करते अघा नहीं रहे हैं।
दुनियाभर में प्रतिरोध,जनांदोलन और परिवर्तन के लिए वामपंथी नेतृ्तव कर रहे हैं।यहां तक कि जिस इराक के ध्वंस की नींव पर अमेरिका इजराइल के नेतृत्व में मुक्तबाजार की नरसंहारी यह व्यवस्था बनी,उसी इराक में वामपंथियों की सरकार बनी।
इसके विपरीत भारत में कुलीन सत्तावर्ग ने शुरु से वामपंथी आंदोलन पर कब्जा करके जमींदारों,रजवाडो़ं के कुलीन वंशजों का वर्गीय जाति एकाधिकार बहाल रखते हुए सर्वहारा और वंचित तबकों से विश्वास घात किया और दलितों,पिछड़ों,आदिवासियों और अल्पसंख्यकों के हितों के विपरीत सत्ता समीकरण साधते हुए भारत में वामपंथी आंदोलन के साथ ही प्रतिरोध और बदलाव की सारी संभावनाएं खत्म कर दी।
सिर्फ वंचितों को ही नहीं,बल्कि समूची हिंदी पट्टी को नजरअंदाज करते हुए वामपंथियों ने भारत में मनुस्मृति राज बहला करने में सबसे कारगर भूमिका निभाई।
वामपंथी मठों और मठाधीशों को हाल हाल तक ऐसे मौकापरस्त सत्ता समीकरण का सबसे ज्यादा लाभ मिला है।तमाम प्रतिष्ठानों और संस्थाओं में वे बैठे हुए थे और उन्होंने आपातकाल का भी समर्थन किया।बंगाल के ऐसे ही वाम बुद्धिजीवी और मनीषी वृंद वाम शासन के अवसान के साथ दीदी की निरंकुश सत्ता के सिपाहसालार हो गये।
सामाजिक शक्तियों के जनसंगठनों और मजदूर यूनियनों को भी वामपंथी नेतृत्व ने प्रतिरोध से दूर रखा।
भारत में अगर समता और न्याय पर आधारित समाज का निर्माण करना है तो ऐसे जनविरोधी वाम नेतृ्त्व को,सत्ता समर्थक मौकापरस्त मठों और मठाधीशों को उखाड़ फेंकने की जरुरत है।वंचितों और सर्वहारा तबकों के लिए वाम नेतृ्तव अपने हाथों में छीनकर लेने का वक्त आ गया है।
ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ भारतीय जनता के स्वतंत्रता संग्राम के कारण आजादी मिली है लेकिन जातिव्यवस्था का रंगभेद अभी कायम है जबकि ब्रिटेन की राजकुमार का विवाह भी अश्वेत कन्या से होने लगा है और इस विवाह समारोह में पुरोहित से लेकर संगीतकार,गायक तक अश्वेत थे।इसके विपरीत भारत में जो मनुस्मृति अनुशासन कायम हुआ है,उसके लिए वामपंथ के जनिविरोधी कुलीन वर्गीय जाति नेतृ्तव,मठों और मठाधीशों की जिम्मेदारी तय किये बिना,समाप्त किये बिना भारतीय जनता की मुक्ति तो क्या लोकतंत्र,स्वतंत्रता,नागरिक और मानवाधिकार,विविधता,बहुलता की विरासत बचाना भी मुश्किल है।
The most important thing is to overthrow the elite left leadership of India, says Palash Biswas. Stay updated with more discussions on FiraCode!
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