Saturday, July 26, 2014

अगर सभी बांध प्रभावित ‘पुनर्वसित’ है, तो ‘आपदा प्रबंधन’ पर करोडों का व्यर्थ खर्च क्यों? क्या 318 लाख रु.से सरदार सरोवर प्रभावित 40,000 परिवारों की खेती,मकान,मंदिर,शाला,लाखो पेड बचेंगे?

अगर सभी बांध प्रभावित पुनर्वसित’ है,
तो आपदा प्रबंधन’ पर करोडों का व्यर्थ खर्च क्यों?
क्या 318 लाख रु.से सरदार सरोवर प्रभावित 40,000  परिवारों की खेती,मकान,मंदिर,शाला,लाखो पेड बचेंगे?

बड़वानी/नई दिल्ली, 26 जुलाई 2014: नर्मदा घाटी में जोरदार वर्षा की शुरुआत होती हैउपरी या नीचले क्षेत्र में पानी बरसता हैनाले-उपनदीयॉं उफान पर आती है तो शासन की हैरानी नजर आती है। बांधों से प्रभावित लोगोंके लिए राहत कॅम्प्स और उसके लिए लाखो या करोडो रु.का बजत जाहीर होता है। सरदार सरोवर के साथ इस बार अप्पर वेदा मानजोबट,इंदिरा सागर और ओंकारेश्वर बांधो के जलाशय क्षेत्रों के लिए रु.551 लाख याने ५.५ करोड रु.की घोषणा हुई है। जब कि जून 24,2014 के रोज नर्मदा की ओंकारेश्वर और इंदिरासागर नहरों के संबंध की आंदोलन की याचिका में न्या.खानविलकर मुख्य न्यायाधीश,मध्य प्रदेश ने आदेश दिया है कि समूची नर्मदा घाटी के लिए आपदा प्रबंधन योजना’ तयार की जाए। जब कि 1979 से मंजूर हुए सरदार सरोवर जैसे बांध के लिए भी 214 किमी तक फ़ैले जलाशय के बावजूद ऐसी योजना आजतक नहीं बनी हैतो भी पिछले कई सालों से महाराष्ट्र,गुजरात और मध्य प्रदेश के गावों मे,धरमपुरी नगर में भी आपदा’ तो पैदा हुई है।

बिना पुनर्वास घर और खेत जैसे 1993-94 से महाराष्ट्रगुजरात व मध्य प्रदेश के पहाडी आदिवासी गावों मे डूबेवैसे ही अब पिछले 2-3 सालोंसे निमाडमध्य प्रदेश के धनी जनसंख्याके गावों मे पक्के,अधपक्के मकान,दुकान और खडी फसल के साथ खेतभी डूबने लगे है। यह इसलिए हुआ है कि हजारो परिवारों का,जिनमें किसानमजदूरमछुआरेकुम्हार, दुकानदार,शामिल हैपुनर्वास केवल कागज पर हुआ है। बिल्कुल वही बात तो २००६ में श्री.सैफउद्दिन सोजश्रीमती मीरा कुमार व श्री.पृथ्वीराज चौहान जी के मन्त्री समुहने तीन दिवसीय नर्मदा घाटी का दौरा करने के बाद कहा था। आज की बांध की उंचाई१२२ मी.की डूब में भी मध्य प्रदेश के १७७ गांव है और उनमें से कई गावों के सैंकडो घरधरमपुरी नगर के कुछ वॉर्डस पिछले साल भी डूब से विनाश भुगत चुके है। जबकी १२२ मी.तक बांध बढाने का २००६ में निर्णय लेते हुए यह कहा गया था किपुनर्वास पुरा हुआ है तो इन परिवारों को न्या.खरे शिकायत निवारण प्राधिकरण के आदेशों के बावजूद म.प्र.शासन व नर्मदा घाटी प्राधिकरण नुकसान भरपाई देने के लिए तैय्यर नही है। जब की कानून और कानूनी फैसलों के अनुसार डूब के छ: महीने पहले परिवार पुनर्वसित होने है तब उल्लंघन क्यों ?

राहत के नाम पर मात्र जो केंद्र खडे किए गयेउनकी पहाडी आदिवासी गावों से दूरी कही दस या पंधरा किलोमीटर भी रही हैजहां से मकान डूबने पर बाल बच्चों के साथ बूढे-बिमार को लेकर आदिवासी अब रास्ते डूब गये है तो बोट से आकर कॅंपों में खाना खायेयह अपेक्षा शासन करती है। नही आये लोग तो कर्मचारी गांव के दो चार इर्द-गिर्द के लोगों को लेकर (जो उनकी सेवा करते है) कॅंप में खाना,पीना,आराम भी जारी रखते है यही अनुभव है। कितना चावल,कितने प्याजदाल इस्तमाल हुवी का हिसाब कभी कभार बाहर आ ही जाता है। राहत के लिए बडे बडे गावों के ७०० से २००० तक पक्के,कच्चे मकानदुकानशालाएं,धर्मशाला इ. बचाने के इरादे सेशासन नर्मदा किनारे दो या चार नही २० बोंटों का इन्तजाम करती आयी है हर साल। प प्रत्येक महीना २५ या ३० हजार रुपये देकर बन्धक रखा जाता है ऐसा की सामान्य गांववासी आदिवासीयों को भी बारीश में जलाशय बनने परगांव से बाजार आनेजाने बोट आसानी सेसस्ती नही मिलती। क्या ७०० या १५०० मकानों में से जो जो डूबेंगे (बरसते पानी अनुसार) उन्हे बोट में रखकर सामान सहित बचायेंगे या केवल जानमाल में से जान बचायेंगेमाल नही वह भी कितने परिवारों कायह सवाल पूछें कौन ?

इस बार सरदार सरोवर प्रभावित गावों में अब कोई बचा नहीसभी १२२ मी.तक तब तो पुनर्वसित हो ही गये इस दावे के साथ हमारा झूठ-झूठ” का आक्रोश अनसुना करते हुए बांध को खंबे गेट्स बिठाने के निर्माण कार्य द्वारा आगे बढाने का निर्णयमोदी शासन का पहला निर्णय था। आज भी ४०००० से अधिक परिवार और हजारो ढोर ,लाखो पेडसरदार सरोवर के डूब क्षेत्र में निवासरत है। और इनमें से हजारों इसी साल डूब में आ सकते है। तो इनके मकानखेती गांव बचाने के लिए क्या ५५१ में से ३१८ लाख रुपये काम आयेंगे क्या राहत / आपदा प्रबंधन के नाम पर यह मलिदा भी खा नही जायेंगे।शासनकर्ता और दलालों का गिरोह?

कमला  यादव        मदुभाई           मीरा              जामसिंग

Contact- 09179148973

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