Monday, June 25, 2012

‘अ’ माने अल्लाह और ‘ब’ माने बंदूक सीख रहे हैं पाकिस्तानी बच्चे

Monday, 25 June 2012 10:13

लंदन, 25 जून (एजेंसी)। बच्चों के पाठ्य सामग्री में टी के लिए टकराव, ज (जे) के लिए 'जिहाद', 'जुनुब', ह (हे) के लिए 'हिजाब' और ख (खे) के लिए खंजर हैं। पाकिस्तान में प्राथमिक शिक्षा की पोल खोलते हुए इस्लामाबाद के एक विद्वान ने उदाहरण देकर बताया कि देश में बच्चों को दी जा रही शिक्षा में कट्टर धार्मिकता और भारत विरोधी मतों को डाला जा रहा है और इस प्रवृत्ति में कमी आने का कोई संकेत नहीं मिल रहा है।
परमाणु भौतिकीविद और समसामयिक मुद्दों पर प्रख्यात टिप्पणीकार परवेज हूदभाई ने यहां किंग्स कॉलेज में एक संगोष्ठी में 'आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष में शिक्षा की भूमिका' विषय पर अपने संबोधन में तमाम उदाहरण दिए। उन्होंने प्राथमिक पाठ्यपुस्तक से जो पाठ्य सामग्री और तस्वीरें पेश कीं उनमें उर्दू की वर्णमाला में अ (अलिफ) के लिए 'अल्लाह', ब (बे) के लिए 'बंदूक', ते के लिए टकराव, ज (जे) के लिए 'जिहाद', 'जुनुब', ह (हे) के लिए 'हिजाब' और ख (खे) के लिए खंजर हैंं।
हूदभाई की प्रस्तुति का शीर्षक था- 'इस्लामी पाकिस्तान गणतंत्र में शिक्षा कैसे आतंकवाद को बढ़ावा देती है'। इसमें आग की लपटों के बीच एक कॉलेज को दिखाया गया है। उसमें हराम के रूप में पतंग, गिटार, सेटेलाइट टीवी, कैरम बोर्ड, शतरंज बोर्ड, शराब की बोतलें और हारमोनियम की तस्वीरों को दिखाया गया है। हूदभाई ने कक्षा पांच के छात्रों से जुड़े एक अन्य पाठ्यक्रम दस्तावेज का उदाहरण दिया है जिसमें 'हिंदू-मुसलमान के बीच के अंतर को समझना और फलस्वरूप पाकिस्तान की जरूरत', 'पाकिस्तान के खिलाफ भारत की साजिश' और 'शहादत व जिहाद पर भाषण दें' जैसे विषयों पर चर्चा संंबंधी कार्यकलाप शामिल हैं।

उन्होंने कहा कि पिछले छह दशक में पाकिस्तान में आमूलचूल बदलाव आया। लेकिन जनरल जिया उल हक ने शिक्षा में जो जहर घोला था, उसे बाद के शासकों ने नहीं बदला। कई सालों के दौरान दृष्टिकोण बदले और मेरे देश को मेरे खिलाफ बना दिया। कराची में बिताए अपने बचपन के दिनों को याद करते हुए उन्होंने कहा कि यह शहर हिंदुओं, पारसियों और ईसाइयों का स्थान था। वे सभी चले गए गए। पाकिस्तान के दूसरों हिस्सों के लिए भी यह बात सच है। आज पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के लिए कोई स्थान नहीं है।
हूदभाई ने इस स्थिति के लिए मदरसों को आंशिक रूप से जिम्मेदार ठहराया और अफसोस जताया कि जनरल परवेज मुशर्रफ के शासनकाल के दौरान सुधार के शुरू किए गए प्रयास ज्यादा दूर नहीं जा पाए। उन्होंने कहा कि 2007 के लाल मस्जिद प्रकरण के बाद उदारवादी विचारों का पाकिस्तान के समाचार मीडिया में कम स्वागत किया जाने लगा। शैक्षिक सुधार का हर प्रयास पाठ्यक्रम से घृणा फैलाने वाली सामग्री दूर कर पाने में विफल रहा। अल्पसंख्यक बदलाव चाहता है। लेकिन जब तक हालात बदलने के लिए कोई बड़ा कदम नहीं उठाया जाता है तब तक उसमें गिरावट जारी रहेगी। शिक्षा में बहुलतावाद और धर्मनिरपेक्षता पर बल देते हुए भारत के पूर्व राजनयिक जी पार्थसारथी ने कहा कि जब तक शिक्षा विविधता और अन्य धर्मों के प्रति सम्मान की सीख नहीं देती है तो तनाव बढ़ने लगता है।

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