घनश्याम ढौंडियाल: अभी भी ऐसे शिक्षक होते हैं
By नैनीताल समाचार on August 3, 2011
http://www.nainitalsamachar.in/ghanshyam-dhaundhiyal-a-different-kind-of-teacher/
देवेश जोशी
बाज़ारीकरण के इस दौर में जबकि शिक्षा एक बड़े बाज़ार में तब्दील हो चुकी है और राजकीय विद्यालयों के स्तरहीन होने और राजकीय शिक्षकों के लगभग गैर जिम्मेदार होने की चर्चाएँ अधिकतर होती रहती हैं, विश्वास करना शायद कठिन होगा कि ऐसा भी एक शिक्षक अपने प्रदेश में है, जिसने उच्च शिक्षित होने के बावजूद प्राथमिक शिक्षा के लिए इस तरह अपने को समर्पित कर दिया है कि अब उसे न वेतन का ध्यान है और न पदोन्नति की चाह। जो सच्चे अर्थ में विद्यार्थियों को देवता समझता है और अपने विद्यालय को मन्दिर। जो ये भूल चुका है कि राजकीय सेवा में स्थानान्तरण जैसी भी कोई व्यवस्था होती है और जिसका विश्वास इतना दृढ़ व लगन इतनी पक्की है कि वह अपने विद्यालय के लिए हर संसाधन व विद्यार्थियों को तराशने-निखारने की हर आवश्यकता को सहज ही मुमकिन बना देता है। जी हाँ, ऐसा शिक्षक है जनपद चमोली में राजकीय प्राथमिक विद्यालय स्यूँणी मल्ली में कार्यरत घनश्याम ढेौंढियाल।
गैरसैंण-रानीखेत मोटर मार्ग पर आगर चट्टी नामक जगह से 05 किमी की खड़ी चढ़ाई पर स्थित है ढौंडियाल की कर्मस्थली-प्राथमिक विद्यालय स्यूँणी मल्ली। पहाड़ों में 05 किमी की खड़ी चढ़ाई और वहाँ की चुनौतियों का क्या अर्थ होता है, ये पहाड़ों में रह चुके लोग अच्छी तरह समझ सकते हैं। दुर्गम क्षेत्र के सरकारी विद्यालयों की सभी खामियाँ व समस्याएँ इस विद्यालय में भी थीं। कुछ हट कर करने के लिए संकल्पित ढौंडियाल ने स्थानान्तरण के जुगाड़ में जुटने की बजाय यहीं से परिवर्तन की शुरूआत करने की ठान ली। विद्यालय की तत्कालीन परिस्थितियों के सम्बंध में वे बताते हैं कि- टपकती छत वाला जीर्ण-क्षीण भवन, प्रांगण में आधी-अधूरी खुदाई से छूटे उघड़े हुए पत्थर, मैले-कुचैले अनुशासनहीन बच्चे, जो पाँचवी कक्षा में भी वर्णमाला व गिनती का ज्ञान नहीं रखते थे और नियमबद्ध खेलों व संगीत से लगभग अपरिचित बच्चे मुझे विरासत में मिले थे। पूरे गाँव में मात्र एक व्यक्ति स्नातक था। महिलाएँ घर-गृहस्थी में इतनी व्यस्त कि साल में शायद दस दिन भी बच्चों से दिन में बतियाने का समय नहीं निकाल पाती। ऐसे में मैंने कैनवस के खुरदरेपन की शिकायत करने के बजाय इसी पर अपना सब कुछ अर्पित कर कुछ बेहतर रचने-सजाने का संकल्प ले लिया।
एक वर्ष की मेहनत से ही उन्होंने विद्यालय को इस स्तर पर पहुँचा दिया कि बच्चों के द्वारा भव्य वार्षिकोत्सव का आयोजन करवा दिया। आयोजन जहाँ अभिभावकों को विद्यालयी गतिविधियों से जोड़ने में सफल रहा, वहीं अपने बच्चों की उपलब्धि व प्रदर्शन से चमत्कृत हो वे शिक्षा के महत्व व ताकत से भी परिचित हो सके। प्राथमिक विद्यालय स्यूंणी मल्ली में आने से पूर्व ही प्राथमिक विद्यालय झूमाखेत में भी उन्होंने प्राइवेट विद्यालयों में पलायन रोकने के लिए कक्षा-1 से ही अंग्रेजी शिक्षण स्वयं के प्रयासों से बिना किसी अतिरिक्त सहायता के प्रारम्भ कर दिया था। इसके अतिरिक्त विद्यालय सौंदर्यीकरण, शैक्षिक के साथ-साथ शिक्षणेतर गतिविधियों में उल्लेखनीय सुधार किया था।
धुन के पक्के ढौंडियाल के पास हर समस्या का समाधान था। विद्यालय में विभिन्न गतिविधियों के आयोजन हेतु आर्थिक समस्याएँ आइं तो अपने वेतन का एक हिस्सा नियमित विद्यालय के लिए लगाना शुरू कर दिया। प्रांगण का सौंदर्यीकरण हो या भवन की मरम्मत, खुद अपने हाथों में हथौड़ा-सब्बल थाम लिया, देर रात तक जग कर सफेदी व रंग-रौगन कर लिया, बच्चों को संगीत सिखाने के लिए खुद हारमोनियम-तबला सीख लिया, खेल-खिलौनों के लिए स्वयं व मित्रों की सहायता से आवश्यक संसाधन जुटा लिए, फुलवारी के लिए इतने कुशल माली बन गए कि 100 से अधिक प्रजातियों के पुष्प खिलखिलाने लगे, वाल राइटिंग के लिए पेंटर बन गए। यही नहीं, अपने विद्यालय व बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए उन्होंने गैर सरकारी संघटनों व उत्कृष्ट निजी विद्यालयों के अनुभवों व अच्छी परिपाटियों को भी विद्यालय हित में प्रयोग किया। एक अच्छे प्लानर की तरह उन्होंने विशिष्ट गतिविधियों पर अतिरिक्त बल देने के लिए वर्ष भी निर्धारित किए यथा- सांस्कृतिक वर्ष, क्रीड़ा वर्ष आदि। इस प्लानिंग का प्रतिफल भी विद्यालय को खूब मिला। विद्यालय ने विकास खण्ड, जिला व राज्य स्तर पर विभिन्न प्रतियोगिताओं में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया।
जहाँ आज सरकारी कार्यां का ठेका प्राप्त करने के लिए ग्रामीणों में मारपीट तथा मुकदमेबाजी तक आम बात हो गयी है, वहीं स्यूँणी मल्ली के ग्रामीणों ने इस शिक्षक पर पूर्ण विश्वास प्रकट करते हुए सर्वसम्मति से भवन पुनर्निर्माण के समस्त निर्णयों का सर्वाधिकार ढौंडियाल को सौंपकर उनके निर्देशन में समस्त सहयोग प्रदान किया गया। फलतः अस्तित्व में आया एक ऐसा सुरुचिपूर्ण भवन, जिसका समान राशि में निर्मित जोड़ीदार पूरे प्रदेश में ढॅूढे नहीं मिलता। अपने निजी आर्थिक संसाधनों से उन्होंने विद्यालय में विद्युत व्यवस्था की व गैर सरकारी संगठन एस.बी.एम.ए. के सहयोग से पाँच हजार रुपए जमानत जमा कर कम्प्यूटर लगाकर विद्यालय को राज्य का अपने संसाधनों से कम्प्यूटर शिक्षा प्रदान करने वाला प्रथम राजकीय प्राथमिक विद्यालय बनाया।
विभिन्न सरकारी आदेशों के बावजूद जहाँ विद्यालयों में प्रार्थना सभा की गतिविधियाँ संतुलित व व्यवस्थित नहीं हो पा रही हैं, वहीं स्यूँणी मल्ली के विद्यालय में ढौंढियाल के प्रयासों से बच्चे प्रत्येक दिन के लिए निर्धारित प्रार्थना, समूहगान, राष्ट्रीय प्रतिज्ञा, योगाभ्यास, हिन्दी एवं अंग्रेजी में सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी, टॉपिक ऑव द डे, दैनिक समाचार का नियमित पाठ व अत्यंत व्यवस्थित ढंग से सम्पन्न करते हैं। प्रार्थना सभा के कुशल संचालन का ही असर है कि कक्षा-1 के बच्चे भी सामान्य ज्ञान के उन प्रश्नों का उत्तर दे देते हैं जिनका उत्तर आपको अन्य सरकारी विद्यालयों के दसवीं के छात्र भी कदाचित् ही दे पाएँ। अपने ही प्रयासों से उन्होंने विद्यालय में न सिर्फ पुस्तकालय व वाचनालय की स्थापना कर ली है, बल्कि बच्चों को उनका नियमित व प्रभावी प्रयोग करने में भी प्रशिक्षित कर दिया है। शहरी चकाचौंध के संक्रमण से खुद को बचाते हुए उन्होंने गाँव में ही अपना निवास रखा है और विद्यालय के निर्धारित घंटों के अतिरिक्त भी बच्चों को उपचारात्मक शिक्षण सहयोग प्रदान करते हैं। यही नहीं, पाँचवी दर्जे के बच्चों को वे नवोदय विद्यालय की प्रतियोगी परीक्षा के लिए भी तैयार करते हैं। उनके तैयार बच्चे प्रति वर्ष नवोदय विद्यालय की प्रवेश परीक्षा में सफल भी हो रहे हैं।
वर्ष 1995 में नियुक्त एम.एससी., बी.एड्. शिक्षाप्राप्त ढौंडियाल वर्ष 1999 से वर्तमान विद्यालय प्राथमिक विद्यालय स्यूँणी मल्ली में कार्यरत हैं। अपने विद्यालय व छात्रों से जुनून की हद तक लगाव रखने वाले ढौंडियाल ने जूनियर हाईस्कूल में हुई पदोन्नति को भी ठुकरा दिया। प्राथमिक विद्यालय स्यूँणी मल्ली को आज ढौंडियाल ने इस स्तर पर पहुँचा दिया है कि न सिर्फ जिला व राज्य के शिक्षक-अधिकारी वहाँ अभिदर्शन भ्रमण पर आ रहे हैं, बल्कि कई गैर सरकारी संगठन भी उनसे प्रेरणा ले रहे हैं। हाल ही में कनाडा यूनिवर्सिटी के छात्र व सर्व शिक्षा अभियान के राष्ट्रीय सलाहकार अशदउल्ला यहाँ केस स्टडी टूर पर आ चुके हैं।
उत्तराखण्ड विद्यालयी शिक्षा विभाग में अपने प्रखर विचारों, सत्यनिष्ठ छवि और शैक्षिक सुधारों के लिए बहुचर्चित पूर्व निदेशक नन्दनन्दन पाण्डेय जी ने विभाग के धरातल को समझने-परखने के उद्देश्य से वर्ष 2007 में प्रदेश के केन्द्रीय विकास खण्ड गैरसैंण को स्वयं गोद लिया था और इन पंक्तियों के लेखक को अपना प्रतिनिधि बनाकर गैरसैंण में शैक्षिक सुधारों का उत्तरदायित्व सौंपा था। मेरे द्वारा गैरसैंण में किए गए विभिन्न प्रयासों में से एक ढौडियाल के विद्यालय में किए गए प्रयासों और उपलब्धियों पर रिपोर्ट निदेशक महोदय को देना भी रहा। निदेशक महोदय द्वारा उनके कार्यों से प्रभावित होकर उन्हें राष्ट्रीय/राज्य स्तर के पुरस्कार के लिए आवेदन करने का संदेश जनपदीय अधिकारियों के माध्यम से दिया गया। नाम-दाम के लिए नहीं, बल्कि वास्तविक अर्थों में मिशन मोड में कार्य करने वाले घनश्याम ने कभी पुरस्कार के लिए आवेदन करने या प्रयास करने में कोई रुचि नहीं दिखायी। वह आत्मविश्वास से कहते हैं कि उन्हें बच्चों की आँखों की चमक में नोबेल से बड़ा पुरस्कार दिखायी देता है।
बिना आवेदन किए अगर विभाग या कोई संस्था घनश्याम ढौंडियाल और उनके विद्यालय स्यूँणी मल्ली को सम्मानित करता है या किसी भी रूप में सहयोग प्रदान करता है तो यह प्रदेश के सपनों की राजधानी में साधनारत इस सरस्वती सेवक जैसे अन्यों को प्रेरित करने की दिषा में महत्वपूर्ण कदम तो होगा ही प्रकारान्तर से मातृभूमि से पलायन को रोकने के सरोकार के लिए कुछ सकारात्मक प्रयास भी होगा।
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