Tuesday, September 30, 2014

इस शर्मिंदगी का शरीक होगा कौन कि हम सारे बजरंगी हैं,कारसेवक भी हैं और आदिवासियों, विधर्मियों के सफाये के पक्षधर भी हैं? पलाश विश्वास

इस शर्मिंदगी का शरीक होगा कौन कि हम सारे बजरंगी हैं,कारसेवक भी हैं और आदिवासियों, विधर्मियों के सफाये के पक्षधर भी हैं?


पलाश विश्वास


जो मोबाइल ऐप्पस हैं,जो सोशल नेटवर्किंग में केसरिया वर्चस्व है और जो कारपोरेट मीडिया है,उनके जरिये मोदी ओबामा शिखर वार्ता की जो सबचनाएं और व्याख्याएं आप तक पहुंच रही हैं,वह या तो सरासर झूठ है या अर्धसत्य।हमने बांग्ला और अंग्रेजी में अब तक परदे के पीछे की हरकतों से ही भारतीय आम जनता को वाकिफ कराने की कोशिश की है।


आज अंबेडकरी आंदोलन में रिपब्लिकन पार्टी के अछावले धड़ में घटस्पोट की एक और वारदात पर मराठी में लिखने की इच्छा थी।इसी सिलसिले में आंनद तेलतुंबड़े से शाम को घंटेभर मोबाइल पर बात हुई।मराठी में मैंने उनसे लिखने का आग्रह भी किया और लोक के लालन रवींद्र हश्र पर चर्चा भी हुई।


मैंने उनकी राय मांगी की भाषाओं के फेंसतोड़कर संवाद हो सकता है या नही,तो उन्हंने भी कहा कि बिंदास लिखा जाये।लेकिन मार्के की बात उन्होने यह कही कि अंबेजकरी आंदोलन स्थाईभाव में भाववादी है और उसमें सामाजिक यथार्थ और अर्थव्यवस्था की समझ के अलावा इतिहास बोध नहीं है।इसलिए अंबेडकरी दुकानदारों के कामकाज का कोई महत्व है नहीं।उनपर वक्त जाया न किया जाये तोही अच्छा।


विडंबना यह है कि भारत में वैज्ञानिक विचारधारा से जुड़ी सक्रियता भी उसीतरह भाववादी हो गयी है और उसी तरह समामाजिक यथार्थ से कटी हुई है कि हम कब तक लिख पायेंगे या इस समाज में जी पायेंगे,शक है।


गौर करें कि ओबामा मोदी शिखर वार्ता हो रही है,जिनकी समामाजिक पृष्ठभूमि और उत्थान की कथा भी डुप्लीकेट हैं।


मोदी ओबामा शिखर वार्ता के अलावा मोदी की इजरायली नेता नितान्याहु से भी परदे के पीछे बातचीत हुई है,क्या बातचीत हुई है,अभी उसका ब्यौरा उपलब्ध होना नहीं है।नितान्याहु ने मोदी को तेलअबीब न्योता है।


जाहिर है कि नितान्याहु भी नईदिल्ली तशरीफ लायेंगे।इस परिघटना को मोदी ओबामा शिखर वार्ता के साथ जोड़कर समझें तो बहुत सारी बातें साफ हो जानी चाहिए।


हमारी नजर में मोदीबाबू होंगे प्रधान स्वयंसेवक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के,होंगे गुजराती पीपीपी माडल के ब्रांड एंबेसेडर राकस्टार और हो सकता है कि वे संघ परिवार,भाजपा और राष्ट्र की कमान संभालने के बाद हिटलरी शक्ति से इतने बलवान हो जाये कि संसदीय प्रणाली का खात्मा करके राष्ट्रपति प्रणाली के तहत भारतीय सैन्यशक्ति के सुप्रीम कमांडर हो जाये।


जो चाहते हुए भी इंदिरा गांधी बन नहीं पायीं।


यह मुद्दा बहरहाल भारत का आंतरिक मामला है।


उन्हें जनादेश है और वे कुछ भी करने को स्वतंत्र हैं और समर्थ भी।लेकिन वे सिर्फ संघी नहीं है,स्वतंत्र संप्रभु भारत गणराज्य के प्रधानमंत्री भी हैं।


भारत के प्रधानमंत्री की हैसियत से इजराइल और अमेरिका के सात क्या राजनयिक संबंध होंगे,वे ही तय करेंगे।हम उसके पक्ष विपक्ष में बोलते लिखते रहेंगे।


यह साफ है कि भारत अमेरिकी संबंध और भारत इजराइली संबंध अब यूपीए जमाने की तरह शाकाहारी नहीं होंगे।भारत अमेरिका,नाटो और इजराइल के युद्धों में भी बराबर हिस्सा लेने की उड़ान भरने जा रहा है, इस त्रिशुल का मूल लक्ष्य यही है।


इसपर चर्चा से पहले जो बात अबतक हमने नहीं कहीं,वह कहने को मजबूर हूं और आप हमें इसलिए माफ करें।


1980 से पेशेवर पत्रकार हूं।1991 से जनसत्ता में हूं।1973 से हाईस्कूल पास करते ही हिंदी में राष्ट्री पत्र पत्रिकाओं में निरंतर लिखता रहा हूं।मेरी जो भी हैसियत है,इसी पत्रकारिता की वजह से है।मेरी रोज रोटी पत्रकारिता से चलती है।



लेकिन मैं अब इस पत्रकारिता के लिए शर्मिंदा हूं।मैं कहीं प्राइमरी स्कूल का मास्टर होता या फिर अपने खेत जोत रहा होता या कहीं मजदूरी कर रहा होता तो मुझे यह शर्मिंदगी नहीं होती।यह शर्मिंदगी मुझे मोदी के इस अमेरिका के प्रवास की वजह से है।


आप में बतौर भारतीय थोड़ा बहुत संप्रभुता और स्वतंत्रता का अहसास होगा तो आप हमारी शर्मिंदगी समझेंगे।


वरना माहौल यह है कि कोई भी कहीं भी,मोदी राज की आलोचना की जुर्रत करेगा तो उसकी जूतम पैजार तय है।


मोदी ओबामा शिखर वार्ता के सिलसिले में राजदीप सरदेसाई के साथ जो हुआ,वह अशनिसंकेत तो है ही,मीडिया का एक बड़ा तबका इस बेशर्म कारगुजारी का जिस जोश खरोश से बचाव कर रहा है,वह बेहद शर्मनाक है।


पहलीबार इस देश के प्रधानमंत्री को बाजार के विज्ञापनी माडल बतौर पेश किया जा रहा है।


पहलीबर प्रधानमंत्री के राकस्टारअवतार पर मीडिया पुरजोर केसरिया कारपोरेट दोनों है।


हमने चूंकि मुक्तबाजारी अर्थव्यवस्था में जीना मरना मान लिया है,हम चूंकि क्रयशक्ति की अंधी दौड़ में विकासकामसूत्र पहनकर चलने लगे हैं कि भोग का कोई अवसर बेकार न चला जाय,हम देख नहीं सकते कि इस देश के कोने कोने में कैसे कैसे नर्क बने हैं,बन रहे हैं क्योंकि हम तो स्वर्ग के वाशिंदे हो गये हैं।


ऐस परिवेश में प्रधानमंत्री का राकस्टार कायाकल्प ही हश्र होना है।


मोदी बाबू बांसुरी बजाये या ड्रम,गाये या नाचे या सीधे प्रवचन दें,हम हस्तक्षेप की हालत में नहीं है।लेकिन उनकी कोई आलोचना मोदीभक्त कतई बर्दाश्त नहीं करेंगे और दो बालिश्त छोटा कर देंगे,इस बुलेट ट्रेन के शैतानी गलियारे में डिजिटल देश में अमेरिकी निगरानी में हमारा जो होगा,सो हागा, बहिस्कृत बहुसंख्य जनगण और जनपदों का ,अस्पृश्य भूगोल का क्या होगा,गैर नस्ली और विधर्मी जनता का क्या होगा,इसे समझने लिए तो माननीय नितान्याहु के चरण चिन्हों का ही अनुसरण करना होगा।


हमारी कारपोरेट पत्रकारिता जाति वर्चस्व की है,इसे हम झेलते रहे हैं।


हमारी कारपोरेट पत्रकारिता पेड न्यूज का कारोबार करती रही है मालिकान एफडीआई के मोहताज हैं और पत्रकारिता के अलावा दूसरे फायदेमंद धंधों मसलन रियल्टी के कारोबार में सत्ता का रक्षा कवच चाहते हैं,समज में आती है।


यह भी समझ में आती है कि मजीठिया भी जब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद सही सही लागू हो नहीं पाता,तो भुक्खड़,नेगं फटीचरों की जमात क्या क्या नहीं कर सकती।


लेकिन सपने में नहीं सोचा था कि पत्रकारिता में लोग विकास के लिए समूची आदिवासी आबादी के सफाये की वकालत करने लगेंगे।


लेकिन सपने में नहीं सोचा था कि  विकास के बहाने पत्रकारिता में लोग निरंकुश बेदखली,अबाध पूंजी,कालाधन,आर्थिक सुधारों के साथ साथ भोपाल गैस त्रासदी और फुकोशिमा और केदार जलप्रलय को भी अनिवार्य मानेंगे।


आदिवासी भूगोल को माओवादी बताने में मीडिया आगे है।पूर्वोत्तर को अलाववादी बताने में भी मीडिया आगे है।दक्षिण भारत और उत्तर भारत में विभाजन का पक्षधर भी मीडिया है।


कश्मीर में मानवाधिकार हनन,कश्मीर और पूर्वोत्तर में सशस्त्र सैन्यबल विशेषाधिकार कानून का भी मीडिया समर्थन करता है तो आंतकवाद उग्रवाद निरोधक कानूनों का,फर्जी मुठबेड़ों  और आधार परियोजना का भी।


हमने मेरठ में छह साल पत्रकारिता की है और दंगों का भूगोल इतिहास जिया है,उसमें मीडिया कारपोरेट भूमिका भी देखी है।हमने सिखों का नरसंहार देखा है और बाबरी विध्वंस भी।


लेकिन सपने में नहीं सोचा था कि पत्रकारिता में लोग सीधे बजरंगी हो जायेंगे और कारसेवक बनकर विधर्मी धर्मस्थलों के विनाश और विधर्मियों के सफाये की विचारधारा के अंध समर्थक हो जायेंगे।


गुजरात नरसंहार मामले में मोदी को साफ सुथरा बताना वैसा है जैसे वेदीकी साहित्य को भारतीय इतिहास बताना और साबित करना।


हिंदुत्व के तर्क पत्रकारिता का सौंद्रयशास्त्र बानायेंगे,यह लेकिन सपने में नहीं सोचा था।


ऐसे लोग इस अपमान को क्या खाकर समझेंगे कि हमारे प्रधानमंत्री को विदेश की धरती पर किसी शातिर अपराधी की तरह मुंह चुराने के लिए अमेरिकी राजनयिक रक्षाकवच की आड़ लेनी पड़ी क्योंकि एक अदद अमेरिका अदालत ने उनके खिलाफ गुजरात नरसंहार के मामले में सम्मन भेजा है।


गौरतलब है कि यह वही मामला है जिसके हवाले शिखर वार्ता के दूसरे पक्षकार बाराक हुसैन ओबामा भारत की बोगडोर संभालने से पहले तक मोदी को अमेरिका में अवांछित मानकर लगातार लगाता वीसा देने से निषेध करते रहे हैं।


इस पर मजा देखिये,अमेरिकी वीसा के लिये लोहे के चने का जायका ले चुके हमारे प्रधानमंत्री नें अमेरिकी नागरिकों के लिए वीसा ऐट एराइवल का ही बंदोबस्त नहीं किया है,बल्कि स्थाई वीसा की पेशकश की है।


हो सकता है कि अमेरिकी कंपनियों के सीईओ समग्र के साथ बैछक में जो टैकस् रियायतों के पैकेज पर समझौता हुआ हो,उसमें यह प्रावधान हो।


हो सकता है कि भारतीय खुदरा बाजार अमेरिका के हवाले करने को आकुल व्याकुल शंघपरिवार को अमेरिका भी भारत से ज्यादा स्वदेश नजर आता हो।


भारतीय कृषि का सत्यानाश करने के लिए जैसे पवार अवतार का अवदान है वैसे ही भारत में खुदरा कारोबार के कफन पर कीलें ठोंकने के लिए परम आदरणीय राकस्टार कल्कि अवतार असंभव भी नहीं है।


मुक्त बाजार माना है तो कंडोम,जंक,फास्टफुड,पिज्जा,डियोड्रेंट,ईटेलिंग,माल,सेज महासेज कारीडोर बेदखली सब कुछ मान लेना है।


अमेरिका और इजराइल के पार्टनर हुए और व्हाइट हाउस,नाटो और पेंटागन के साथ गोपनीयता के उल्लंदन निजता हनन के नजरदारी समजौते के साथ नितान्याहु निर्देशन में मोसाद हवाले देश होना है  और विधर्मियों का सफाय भी होना है।तेल युद्ध में झुलस जाने से क्या डरना है।


मिनमम गवर्नेंस दरअसल अबतक की सर्वश्रेष्ठ मार्केटेंगि युद्धक रणनीति हैं,इसे आत्मसात कर लें तो बाकी जो आर्थिक रणनीतिक राजनयिक सैन्य समझौते हो गये,उससे हाजमा खराब होने की वजह से नारफ्लाक्स टी जेड का इस्तेमाल करना नहीं है।

हम तो अपनी बिरादरी की मौत का मातम मना रहे हैं.जो जाति पूछकर ही किसी को भाव देते हैं और नस्ली भेदभाव के भी अभ्यस्त रहे हैं शुरु से।हमने उनके बीच पूरी जिंदगी बिता दी है।लेकिन वे मोदी राज में हिंदुत्व के कारसेवक स्वयंसेवक होकर एंटी मुसलमान एंटी आदिवासी होकर इथेनिक क्लींजिंग के इजरायली विशेषज्ञता के भी मुरीद बन जायेंगे,ऐसा सपने में नहीं सोचा था।


भरतीय संविधान के मुताबिक संविधान के दायरे में कानून बनाना भारतीय संसद का विशेषाधिकार है,उस विशेषाधिकार हनन के सात राकस्टार प्रधानमंत्री ने भारतीय कायदे कानून को थोक भाव से खारिज करके नये कानून बनाने की जो घोषणा की है,जाहिर है कि इस पर अंध भक्तों को शर्म आयेगी नहीं और न मीडिया बजरंगियों,कारसेवकों को इसकी कोई परवाह है,लेकिऩ भारतीय जनगण को जरुर पुनर्विचार करना चाहिए कि शाकाहारी प्रधानमंत्रित्व के हिंदुत्व एजंडे में आदगे जो गुल खिलने वाले हैं ,उनसे कितना आबाद रहेगा यह गुलशन हिंदोस्तां हमारा,हमारा भारतवर्ष।


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