Wednesday, July 31, 2013

एक वर्ष में होते एक करोड़ गिरफ्तार

एक वर्ष में होते एक करोड़ गिरफ्तार


वर्षभर में देश में लगभग एक करोड़ गिरफ्तारियां होती हैं. देश के पुलिस आयोग के अनुसार 60% गिरफ्तारियां अनावश्यक हो रही हैं. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अनुसार भी देश में पिछ्ले तीन वर्षों में कम से कम 3,668 अवैध गिरफ्तारियां हुई हैं...

मनीराम शर्मा

http://www.janjwar.com/2011-05-27-09-00-20/25-politics/4211-ek-varsh-men-hote-ek-karod-girftaar-by-maniram-sharma-for-janjwar


भारतीय गणराज्य में कार्यरत समस्त शासनाध्यक्ष और प्राधिकारियों को इस बात की भली-भांति जानकारी होगी कि अमेरिका में प्रति लाख जनसंख्या 256 और भारत में 130 पुलिस बल है. जबकि अमेरिका में भारत की तुलना में प्रति लाख जनसंख्या 4 गुना मामले दर्ज होते हैं. फिर भी भारत में प्रति लाख जनसंख्या 56 केन्द्रीय पुलिस बल इसके अतिरिक्त हैं.

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फाइल फोटो

अमेरिका में प्रति लाख जनसंख्या 5806 मुकदमे दायर होते हैं, जबकि भारत में यह दर मात्र 1520 है. फिर भी भारत में प्रति लाख जनसंख्या मात्र 68  पुलिसबल होना पर्याप्त है. मगर भारत में मात्र 25% पुलिस बल ही थानों में जनता की सेवा के लिए तैनात है और शेष बल लाइन आदि में तैनात है जिसमें से एक बड़ा भाग अंग्रेजी शासनकाल से ही विशिष्ट लोगों को वैध और अवैध सुरक्षा देने, उनके घर बेगार करने, वसूली करने आदि में लग जाता है.

भारत में अंग्रेज जनता पर अत्याचार कर उनका शोषण करने और ब्रिटेन के राजकोष को धन से भरने के लिए आये थे, अत: उनकी सुरक्षा को खतरे का अनुमान तो लगाया जा सकता है. मगर जनतन्त्र में शासन की बागडोर जनप्रिय, सेवाभावी और साफ़ छवि वाले लोगों के हाथों में होती है, अत: अपवादों को छोड़ते हुए उनकी सुरक्षा को कोई ख़तरा नहीं हो सकता. फिर भी इन राजपुरुषों की सुरक्षा को लोकतंत्र में भी कोई ख़तरा होता है, तो उसके लिए उनका आचरण ही अधिक जिम्मेदार है.

पुलिस अपनी बची-खुची ऊर्जा व समय का उपयोग अनावश्यक गिरफ्तारियों में करती है. वर्षभर में देश में लगभग एक करोड़ गिरफ्तारियां होती हैं व देश के पुलिस आयोग के अनुसार 60% गिरफ्तारियां अनावश्यक हो रही हैं. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अनुसार भी देश में पिछ्ले तीन वर्षों में कम से कम 3,668 अवैध गिरफ्तारियां हुई हैं. यह आंकडा तो मात्र रिपोर्ट किये गए मामले ही बताता है, जो वास्तविकता का मात्र 5% ही है. इसमें राज्य आयोगों और बिना रिपोर्ट हुए/दबाये गए आंकड़े जोड़ दिए जाएं तो स्थिति भयावह नजर आती है.

दुखद तथ्य है कि अपनी सुरक्षा के लिए, जिस पुलिस पर देश की जनता पूरा खर्च कर रही है उसका उसे मात्र 25% प्रतिफल ही मिल रहा है और न केवल आम नागरिक की सुरक्षा के साथ समझौता किया जा रहा है, बल्कि अनुसंधान में देरी का लाभ दोषियों को मिल रहा है.

आपराधिक मामलों में 10-15 वर्ष मात्र अनुसंधान में आम तौर पर लगना इस दोषपूर्ण तैनाती नीति की ही परिणति है. अत: अब नीति बनायी जाए की कुल पुलिस बल का कम से कम आधा भाग जनता की सेवा में पुलिस थानों में तैनात किया जाए ताकि जनता कि सुरक्षा सुनिश्चित हो सके, अपराधियों को शीघ्र दंड मिल सके और उन पर प्रभावी नियंत्रण पाया जा सके.

maniram-sharmaमनीराम शर्मा राजस्थान में वकालत करते हैं.

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