Friday, June 7, 2013

राजनीतिक विरोध हुआ नहीं और यूनियनों का विरोध फर्जी निकला, इसलिए कोल इंडिया का विनिवेश का रास्ता आसानी से साफ हो गया।

राजनीतिक विरोध हुआ नहीं और यूनियनों का विरोध फर्जी निकला, इसलिए कोल इंडिया का  विनिवेश का रास्ता आसानी से साफ हो गया।


इन यूनियनों के चक्कर में क्रांति का झंडा उठाने वले आम मजदूरों को इस वारदात से सबक जरुर लेना चाहिए।


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​

कोल इंडिया के विनिवेश का विरोध  राजनीतिक हथकंडा ही साबित हुआ और हमेशा कि तरह कोयला यूनियनों ने समझौता कर लिया।विनिवेश का विरोध पहले तो कोयला मंत्रालय ने भी किया और कोल रेगुलेटर के गठन के बावजूद कोयला मूल्य निर्धारण पर एकाधिकार कोल इंडिया का ही बना रहे, यह भी सुरु से कोयला मंत्रालय का तर्क रहा है। लेकिन जिन राज्यों में कोयला खदानें है, उनकी ओर से कोई विरोध न होने की वजह से प्रधानमंत्री कार्यालय कोयला ब्लाक आबंटन घोटाले में सीबीआई जांच के दायरे में होने के बावजूद विनिवेश के मामले को झटपट निपटाने के मूड में है। गौरतलब है कि जिन राज्यों में सबसे ज्यादा कोयला उत्पादन होता है, मसलन झारखंड, बंगाल और छत्तीसगढ़ में गैर कांग्रेसी सरकारें है। राजनीतिक विरोध हुआ नहीं और यूनियनों का विरोध फर्जी निकला, इसलिए विनिवेश का रास्ता आसानी से साफ हो गया। कोल इंडिया  की कर्मचारी  यूनियनों ने पीएमओ को पत्र लिखा था कि पहले फाइनैंस मिनिस्टर और अब राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने कंपनी में और विनिवेश नहीं करने का वादा किया था।


प्रधानमंत्री कार्यालय ने यह सवाल वित्त मंत्रालय से किया था, जिसका अब जवाब मिल गया है। वित्त मंत्रालय ने कहा है कि ऐसा कोई आश्वासन लिखित या मौखिक तौर पर नहीं दिया गया था।' प्रधानमंत्री कार्यालय अब ऐडमिनिस्ट्रेटिव मिनिस्ट्री से आगे बढ़कर यूनियनों से निपटने और विनिवेश की प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए कह सकता है।अभी सरकार की कंपनी में 90 फीसदी हिस्सेदारी है। कोल इंडिया में हिस्सेदारी बेचने से सरकार को लगभग 20,000 करोड़ रुपए मिल सकते हैं। इससे उसे मौजूदा वित्त वर्ष के लिए 40,000 करोड़ रुपए के विनिवेश लक्ष्य का 50 फीसदी पूरा करने में मदद मिलेगी।


यूनियनों ने विनिवेश के खिलाफ बेमियादी हड़ताल की धमकी भी दी थी, जो आखिरकार गीदड़ भभकी साबित हो गयी। सरकार ने बागी यूनियनों को परदे के पीछे मैनज कर ही लिया। कारपोरेट चंदे से चलने वाले राजनीतिक दलों से जुड़ी यूनियनों के लिए कारपोरेट लाबिइंग के खिलाफ आंदोलन करना असंभव है, यह एकबार फिर साबित हो गया। इन यूनियनों के चक्कर में क्रांति का झंडा उठाने वले आम मजदूरों को इस वारदात से सबक जरुर लेना चाहिए।


कर्मचारी यूनियनों की नहीं चली और अब सरकार इसी महीने कोल इंडिया में 10 फीसदी हिस्सेदारी बेचने को हरी झंडी दिखा सकती है। प्रधानमंत्री कार्यालय को वित्त मंत्रालय से जरूरी जानकारी मिलने के बाद इसी महीने कोल इंडिया पर फैसला हो सकता है।दरअसल सरकार की योजना इस साल कोल इंडिया का विनिवेश कर 20,000 करोड़ रुपये जुटाने की है। लेकिन कोल इंडिया के कर्मचारियों ने सरकार के इस फैसले का विरोध किया था। साथ ही कहा था कि पूर्व वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने उन्हें भरोसा दिलाया था कि कंपनी में और हिस्सेदारी नहीं बिकेगी।लेकिन वित्त मंत्रालय ने अब साफ कर दिया है कि प्रणव मुखर्जी ने ऐसा कोई वादा नहीं किया था। इस सफाई के बाद सरकार अब हिस्सेदारी बेचने का आखिरी फैसला ले सकती है। दरअसल कोल इंडिया के विनिवेश को पहले ही इंटर मीनिस्टीरियल ग्रुप की मंजूरी मिल चुकी है। वित्त मंत्रालय ने सीआईएल की यूनियनों की सभी चिंताओं का जवाब दे दिया है।


कोल इंडिया में करीब 3.57 लाख वर्कर्स हैं और कंपनी में पांच यूनियन हैं। यूनियनों ने कंपनी में हिस्सेदारी बेचने को लेकर सरकार के आगे बढ़ने पर बेमियादी हड़ताल पर जाने की धमकी दी थी। कोयला मंत्रालय कंपनी के लिए लॉन्ग-टर्म रोडमैप तैयार करने के मकसद से एक कंसल्टेंट को नियुक्त करेगी। फाइनैंस मिनिस्ट्री के एक अधिकारी का कहना था, 'कोल इंडिया के लिए रास्ता तैयार है। इंटर-मिनिस्टिरियल ग्रुप ने सभी तैयारियां कर ली हैं। अगर कैबिनेट की मंजूरी मिल जाती है, तो हम एक महीने में इश्यू लॉन्च कर सकते हैं।'


कोयला मंत्रालय में अच्छे काम नहीं हुए हैं लेकिन जो पिछले कामकाज हुए हैं उसको लेकर देश की तमाम जांच एजेंसियां, मीडिया सब आपके मंत्रालय के कामकाज पर उंगली उठाती रही हैं।केंद्रीय कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने कोल ब्‍लॉक आवंटन में अनियमितताओं के सामने आने के बाद उन्‍होंने बीते कुछ माह में विभिन्‍न मंचों पर साफगोई से अपनी राय जाहिर की।अब वे दावा कर रहे हैं कि कोयला ब्लाकों के आबंटन को घोटाला नहीं कहा जा सकता। ऐसे कोयला मंत्री के बयान से विनिवेश या कोलइंडिया का पुनर्गठन रुकने की कोई संभावना नहीं है।


एक टीवी चैनल को दिये अपने ताजा इंटरव्यू में केंद्रीय कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने  बताया, `आप घोटाला कह सकते हैं। मैं आज भी कह रहा हूं, मैंने पहले भी कहा है और आगे भी कहूंगा कि कोई घोटाला नहीं है। इसके अलावा और कोई विकल्प किसी सरकार के पास था नहीं। 1993 से कोल ब्लॉक अलोकेशंस शुरू हुआ था। 28 कोल ब्लॉक्स तो एनडीए के शासन के दौरान अलोकेट हुए हैं। क्यों अलोकेट हुए। कोई सिस्टम ही नहीं था उस समय। यूपीए-1 के दौरान तो एक सिस्टम बनाया गया कि हम अखबारों में एड देंगे। एक स्क्रीनिंग कमेटी बनाई गई, उसके द्वारा अलोकेशन शुरू हुए। उसके पहले तो कोई सिस्टम ही नहीं था बगैर सिस्टम के बुला-बुला के देते रहे कोल ब्लॉक्स।'


कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने  बताया, `कार्रवाई तो जरूरत से ज्यादा हुई है। जबसे ये रिपोर्ट आई है तबसे लगभग 50-55 ब्लॉक डिलोकेट हो गए जिसके बाद 30 के करीब शो-कॉज़ नोटिस इश्यू हुए हैं। सीबीआई की जांच बिठाई गई। सीबीआई ने करीब 11 एफआईआर लिखी तो कार्रवाई जितनी होनी चाहिए संवैधानिक तरीके से मैं समझता हूं कार्रवाई तो खूब हो रही है और एक बात और मैं आपको बतला दूं कि कार्रवाई अपनी जगह पर है कोल इंडिया का प्रोडक्शन, कोल इंडिया का ऑफटेक, कोल इंडिया का ओवी रिमूवल सुचारु रूप से चल रहा है। हमारा प्रोडक्शन भी बढ़ा है, हमारा ओवी रिमूवल भी बढ़ा है। हमारा ऑफटेक भी बढ़ा है। पॉवर स्टेशंस को हमारी सप्लाई भी बढ़ी है। आज की तारीख में देश का कोई भी पॉवर स्टेशन ऐसा नहीं है जो कह सके कि हमारे पास कोयले की सप्लाई की कमी है। कुछ एक पॉवर स्टेशन ऐसे हैं जो ये कह देंगे की हमारे पास एक्स्ट्रा कोल हो गया तो आप कृपया अभी फिलहाल सप्लाई ना करें। ये रिपोर्ट हमारे पास लिखित में आ रही हैं, तो काम तो सुचारु रूप से चल रहा है। हां जो पिछले यूपीए के कार्यकाल में जो कोल ब्लॉक अलोकेट किए गए थे उसके पीछे मकसद केवल एक ही था कि कोल इंडिया की एक सीमा है उससे ज्यादा कोल इंडिया कोल प्रोड्यूस नहीं कर पाएगा और अगर हम देश की ग्रोथ को बढ़ाना चाहते हैं, देश में इंड्रस्ट्री को बढ़ाना चाहते हैं तो हमें पॉवर चाहिए, हमें कोल चाहिए। कोल पब्लिक सेक्टर में है कोल इंडिया उतना कोयला पैदा नहीं कर पा रहा है जितनी डिमांड होती जा रही है। इसलिए प्राइवेट सेक्टर को कोल ब्लॉक्स अलोकेट किए गए उसको लेकर बहुत सारी कहानियां कही गई। इसमें कोई शक नहीं है कि कोई भी कानून बनाए, कोई भी योजना बनाएं। उसका नाजायज फायदा उठाने वाले लोग, वेस्टेड इंट्रेस्ट वाले लोग समय-समय पर सक्रिय हो जाते हैं। तो इसमें अगर वेस्टेड इंट्रेस्ट वाले लोग सक्रिय हुए हैं तो उससे हम इंकार नहीं कर सकते। ये काम सीबीआई का है कि वो पता लगाए और जिन लोगों ने जानबूझ कर गलत इंफार्मेशन के आधार पर कोल ब्लॉक्स अलोकेट करवाए हैं या जिन अधिकारियों ने गलत इंफार्मेशन को वेरिफाई किया है उनके खिलाफ कार्रवाई करे और कर रही है।'


दुनिया की सबसे बड़ी कोल माइनिंग कंपनी कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) का मई में प्रॉडक्शन टारगेट से लगभग 20 लाख टन कम रहा है। इसकी वजह कंज्यूमर्स का कम कोयला खरीदना और गर्मी की वजह से कर्मचारियों का शिफ्ट में पूरा काम नहीं कर पाना रहा। एनटीपीसी जैसे बहुत से कंज्यूमर्स ने स्टॉक अच्छा होने की वजह से सीआईएल पर डिलिवरी धीमी रखने का दबाव डाला था।


सीआईएल ने मई में लगभग 3.45 करोड़ टन कोयले का प्रॉडक्शन किया, जबकि इस महीने के लिए टारगेट 3.65 करोड़ टन का था। कंपनी के एक सीनियर ऑफिशल ने कहा, 'प्रॉडक्शन घटने की बड़ी वजह उड़ीसा सरकार को सुबह 11 बजे से दोपहर 3.30 बजे तक काम पर प्रतिबंध लगाना थी। इससे महानदी कोलफील्ड्स में प्रॉडक्शन कम हुआ। इससे सीआईएल की सब्सिडियरी में कोयले की लोडिंग भी कम रही।'


सीआईएल के मुताबिक, महानदी कोलफील्ड्स ने मई में 70.47 लाख कोयले का प्रॉडक्शन किया, जबकि इसका टारगेट 80.68 लाख टन का था। कंज्यूमर्स के खरीद कम करने के फैसले से सीआईएल की एक और सब्सिडियरी ईस्टर्न कोलफील्ड्स को भी प्रॉडक्शन घटाना पड़ा। ऑफिशल्स ने बताया, 'ईस्टर्न कोलफील्ड्स का टारगेट 26.9 करोड़ टन का था। इसके मुकाबले में इसने 2.64 करोड़ टन का प्रॉडक्शन किया।'


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