Sunday, 24 June 2012 16:55 |
मधुकर उपाध्याय उसे, जिसे अपने एकछत्र राज के लिए कभी अश्वमेध यज्ञ करने की जरूरत महसूस नहीं हुई। वह जानता है कि अगर सचमुच कोई अविनाशी है, कचरा ही है। |
Sunday, June 24, 2012
मुलम्मा, महामहिम!
मुलम्मा, महामहिम!
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment