Monday, November 28, 2016

#SystematicEthnicCleansingbytheGovernanceofFascistAparhteid इतनी सारी कम्युनिस्ट पार्टियां क्यों हैं भारत में? फिदेल कास्त्रो ने कामरेड ज्योति बसु से पूछा था उपभोक्ता जनता की कोई राजनीति नहीं है। उपभोक्ता जनता छप्पर फाड़ क्रयशक्ति के इंतजार में है और इस देश में ऐसी कोई राजनीति नहीं है जो उन्हें कायदे से समझा सकें कि छप्फर फाड़कर क्रयशक्ति नहीं,मौत बरसने वाली है। कमसकम भारते के कामरेडों की राजनीति ऐसी नहीं है। बाकी

#SystematicEthnicCleansingbytheGovernanceofFascistAparhteid

इतनी सारी कम्युनिस्ट पार्टियां क्यों हैं भारत में?

फिदेल कास्त्रो ने कामरेड ज्योति बसु से पूछा था

उपभोक्ता जनता की कोई राजनीति नहीं है।

उपभोक्ता जनता छप्पर फाड़ क्रयशक्ति के इंतजार में है और इस देश में ऐसी कोई राजनीति नहीं है जो उन्हें कायदे से समझा सकें कि छप्फर फाड़कर क्रयशक्ति नहीं,मौत बरसने वाली है।

कमसकम भारते के कामरेडों की राजनीति ऐसी नहीं है।

बाकी संघ परिवार और कांग्रेस में कोई फर्क नहीं है।

पलाश विश्वास

केरल और त्रिपुरा को छोड़कर भारत बंद का कहीं कोई असर नहीं हुआ है।केरल और त्रिपुरा में वामपंथी इस वक्त सत्ता में हैं,तो वहां बंद कामयाब रहा।बाकी देश में नोटबंदी के खिलाफ इस बंद का या आक्रोश दिवस का कोई असर नहीं हुआ है।भारतबंद का आयोजन वामपक्ष की ओर से था तो अब कहा जा रहा है कि किसी ने भारत बंद का आवाहन नहीं किया था।बंगाल के कामरेडों ने फेसबुक और ट्विटर से निकलकर देश भर में आम हड़ताल की अपील जरुर की थी,जिसाक मतलब भारत बंद है,ऐसा उन्होंने हालांकि नहीं कहा था।लेकिन इस आम हड़ताल में नोटबंदी के खिलाफ गोलबंद विपक्ष का नोटबंदी विरोध की मोर्चा तितर बितर हो गया।अचानक इस मोर्चे की महानायिका बनने के फिराक में सबसे आगे निकली बंगाल की मुख्यमंत्री ने नोटबंदी के विरोध के बजाय बंगाल से वाम का नामोनिशान मिटाने की अपनी राजनीति के तहत बंद को नाकाम बनाने के लिए अपनी पूरी सत्ता लगा दी और साबित कर दिया कि बंगाल में वाम के साथ आवाम नहीं है।बिहार में लालू और नीतीश के रास्ते अलग हो गये।नीतीश ने लालू से कन्नी काटकर मोदी की नोटबंदी का समर्थन घोषित कर दिया और जल्द ही उनके फिर केसरिया हो जाने की संभावना है।मायावती या मुलायम या अरविंद केजरीवाल किसी ने मोर्चाबंदी को कोई कोशिश नहीं की।

साफ जाहिर है कि इस नोटबंदी का मतलब सुनियोजित नरसंहार है,जिसके तहत करोड़ों लोग उत्पादन प्रणाली, रोजगार, अर्थव्यवस्था और बाजार से बाहर कर दिये जायेंगे और आहिस्ते आहिस्ते भारतीय किसानों और मजदूरों की तरह वे आहिस्ते आहिस्ते बेमौत मारे जायेंगे।असंगठित क्षेत्र के और खुदरा बाजार के तमाम लोगों को मारने के लिए उनसे क्रयशक्ति छीन ली गयी है।

अब अर्थशास्त्री और उद्योग कारोबार के लोग भी कल्कि महाराज के इस दांव के खतरनाक नतीजों से डरने लगे हैं।विकास दर पलटवार करने जा रही है और मंदी का अलग खतरा है तो भारतीय मुद्रा और भारतीय बैंकिंग की कोई साख नहीं बची है।कालाधन निकालने के बजाये रिजर्व बैंक के गवर्नर ने अचानक मुखर होकर डिजिटल बनने की सलाह दी है नागरिकों को तो कल्कि महाराज का मकसद डिजिटल इंडिया कैशलैस इंडिया है,संघ औरसरकार के लोग खुलकर ऐसा कहने लगे हैं।तो मंकी बातों में नोटबंदी का न्यूनतम लक्ष्य लेसकैश और अंतिम लक्ष्य कैशलैस इंडिया बताया गया है जो दरअसल मेकिंग इन हिंदू इंडिया है।

#SystematicEthnicCleansingbytheGovernanceofFascistAparhteid

भारत में इतनी कम्युनिस्ट पार्टियां क्यों हैं?

फिदेल कास्त्रो ने कामरेड ज्योति बसु से पूछा था।ज्योतिबसु ने फिदेल कास्त्रो को क्या जबाव दिया था,इसका ब्यौरा नहीं मिला है।

अब चाहे तो हर कोई कामरेड कास्त्रो पिर हवाना सिगार के साथ इस देश की सरजमीं पर प्रगट हों तो जवाब दे सकता है।कामरेडवृंद यथास्थिति की संसदीय राजनीति में अपना अपना हिस्सा कादे से समझ बूझ लेना चाहते हैं और वे सबसे ज्यादा चाहते हैं कि भारत में सर्वहारा बहुजन का राज कभी न हो और रंगभेदी अन्याय और अराजकता का स्थाई मनुस्मृति बंदोबस्त बहाल रहे,इसलिए वे सर्वहारी बहुजन जनता की कोई पार्टी नहीं बनाना चाहते,बल्कि अना नस्ली वर्चस्व कायम रखने के लिए वामपंथ का रंग बिरंगा तमासा पेश करके आम जनता को वामविरोधी बनाये रखनेके लिए नूरा कुश्ती के लिए इतनी सारी कम्युलनिस्ट पार्टियां बना दी है कि आम जनता कभी अंदाजा ही नहीं लगा सकें कि कौन असल कम्युनिस्ट है और कौन फर्जी कम्युनिस्ट है।

फिदेल ने अमेरिकी की नाक पर बैठकर एक दो नहीं,कुल ग्यारह अमेरिकी राष्ट्रपतियों के हमलों को नाकाम करके मुक्तबाजार के मुकाबले न सिर्फ क्यूबा को साम्यावादी बनाये रखा,बल्कि पूरे लातिन अमेरिका और अफ्रीका की मोर्चाबंदी में कामयाब रहे।सोवियत यूनियन,इंधिरा गांधी और लाल चीन के अवसान के बाद भी।फिदेल और चेग्वेरा ने मुट्ठीभर साथियों के दम पर क्यूबा में क्रांति कर दी जबकि क्यूबा में गन्ना के सिवाय कुछ नहीं होता और वहां कोई संगठित क्षेत्र ही नहीं है।जनता को राजनीति का पाठ पढ़ाये बिना फिदेल ने क्रांति कर दी और करीब साठ साल तक लगातार अमेरिकी हमलों के बावजूद न क्यूबा और न लातिन अमेरिका को अमेरिकी उपनिवेश बनने दिया।

हमारे कामरेड करोडो़ं किसानों और करोड़ों मजदूरों,कर्मचारियों और छात्रों,लाखों प्रतिबद्ध कार्यकर्ताओं के बावजूद भारत में मेहनतकशों के हकहकूक की आवाज भी बुलंद नहीं कर सके क्योंकि वे सत्ता में साजेदार थे या सत्ता के लिए राजनीति कर रहे थे और उनका लक्ष्य न सर्वहारा वर्ग का अधिनायकत्व था और न संविधान निर्माताओं के लक्ष्य समता और न्याय से उन्हें कुछ लेना देना था।

हम अब न सामाजिक प्राणी हैं और न हमारी कोई राजनीति है।समाज के बिना राजनीति असंभव है।

हमारा कोई देश भी नहीं है।देशभक्ति मुंहजुबानी है।वतन के नाम कुर्बान हो जानेवाला शहीदेआजम भगतसिंह,खुदीराम बोस, मास्टर सूर्यसेन या अपने लोगों के हकहकूक के लिए शहीद हो जाने वाले बिरसा मुंडा,सिधो कान्हो जैसा कोई कहीं नहीं है।हमारे देश में किसी लेनिन या माओ से तुंग या फिदेल कास्त्रो के जनमने के आसार है क्योंकि बच्चे अब हगीज के साथ सीमेंट के दड़बों में जनमते हैं और जमीन पर कहीं गलती से उनके पांव न पड़े,माटी से कोई उनका नाता न हो,तमाम माता पिता की ख्वाहिश यही होती है।हालांकि हमने किसी बच्चे को सोना या चांदी का चम्मच के साथ पैदा होते नहीं देखा।हगीज के साथ पैदा हो रहे बच्चों का चक्रव्यूह रोज हम बनते देख रहे हैं।जिनमें मुक्ति कीआकांक्षा कभी हो ही नहीं सकती क्योंकि उन्हें उनकी सुरक्षा की शर्तें घुट्टी में पिलायी जा रही है।

अब इस देश में कामयाब वहीं है जो विदेश जा बसता है।हमारी फिल्मों,टीवी सीरियल में भी स्वदेश कहीं नहीं है।जो कुछ है विदेश है और वहीं सशरीर स्वर्गवास का मोक्ष है।

हमारे सारे मेधावी लोग आप्रवासी हैं और हमारे तमाम कर्णधार,जनप्रतिनिधि,अफसरान,राष्ट्रीय रंगबिरेंगे नेता, राजनेता, अपराधी भी मुफ्त में आप्रवासी हैं।

इसकी वजह यह है कि हमारा राष्ट्रवाद चाहे जितना अंध हो,हमारा कोई राष्ट्र नहीं है।

हमारा जो कुछ है,वह मुक्तबाजार है।

हम नागरिक भी नहीं है।

हम खालिस उपभोक्ता है।

उपभोक्ता की कोई नागरिकता नहीं होती।

न उपभोक्ता का कोई राष्ट्र होता है।

उपभोक्ता का कोई परिवार भी नहीं होता।

न समाज होता है।

न मातृभाषा होती है और न संस्कृति होती है।

उसका कोई माध्यम नहीं होता।

न उसकी कोई विधा होती है।

उसका न कोई सृजन होता है।न उसका कोई उत्पादन होता है।

इसलिए मनुष्य अब सामाजिक प्राणी तो है ही नही,मनुष्य मनुष्य कितना बचा है,हमें वह भी नहीं मालूम है।

इसलिए हमने जो उपभोक्ता समाज बनाया है,उसके सारे मूल्यबोध और आदर्श क्रयशक्ति आधारित है।

जिनके पास क्रयशक्ति है,वे बल्ले हैं।

जिनकी कोई क्रयशक्ति नहीं है,उनकी भी बलिहारी।

वे भी उत्पादन और श्रम के पक्ष में नहीं है और न उनके बीच कोई उत्पादन संबंध है।

वे टकटकी बांधे छप्परफाड़ क्रयशक्ति के इंतजार में हैं और उपभोक्ता वस्तु में तब्दील हर चीज,हर सेवा यहां तक कि हर मनुष्य को खरीदकर राज करने के ख्वाब में अंधियारा के कारोबार में शामिल हैं और उन्हें यकीन है कि आजादी का कोई मतलब नहीं है।

गुलामी बड़ी काम की चीज है अगर भोग के सारे सामान खरीद लेने के लिए क्रयशक्ति हासिल हो जाये।

वे मुक्तबाजार को समावेशी बनाने के फिराक में हैं।

वे मुक्तबाजार में अपना हिस्सा चाहते हैं चाहे इसकी कोई भी कीमत अदा करनी पड़े।यही उनकी राजनीति है।

मसलन तमिलनाडु,केरल और हिमाचल प्रदेश में इसी राजनीति के धुरंधर खिलाड़ी नागरिक हर पांच साल में सत्ता बदल डालते हैं तो उन्हें इससे कोई मतलब नहीं है कि शासक का चरित्र क्या है।तमिलनाडु में जो चाहिए राशनकार्ड पर उपलब्ध है तो हिमाचल में गरीबी कहीं नहीं है।किसी को कोई मतलब नहीं है कि उनका शासक कितना भ्रष्ट या गलत है।केरल के कामरेड भी हर पांच साल में दक्षिणपंथी हो जाते हैं।

कल्कि महाराज का आम जनता विरोध नहीं कर रही है क्योंकि आमं जनता को अपने अनुभव से मालूम है कि विपक्ष की राजनीति का उनके हितों से,उनके हक हकूक और उनकी तकलीफों से कोई लेना देना नहीं है।वे सत्ता की लड़ाई लड़ रहे हैं।

उपभोक्ता जनता को कोई सत्ता नहीं चाहिए।

उपभोक्ता जनता की कोई राजनीति नहीं है।

उपभोक्ता जनता छप्पर फाड़ क्रयशक्ति के इंतजार में है और इस देश में ऐसी कोई राजनीति नहीं है जो उन्हें कायदे से समझा सकें कि छप्फर फाड़कर क्रयशक्ति नहीं,मौत बरसने वाली है।

कमसकम भारते के कामरेडों की राजनीति ऐसी नहीं है।

बाकी संघ परिवार और कांग्रेस में कोई फर्क नहीं है।

हमने अमेरिका से सावधाऩ अधूरा और अप्रकाशित छोड़कर कुछ कविताएं और कहानियां जरुर लिखी हैं,लेकिन उन्हें प्रकाशन के लिए नहीं भेजा है।न हमारी किताबें उसके बाद छपी हैं।हम अपने समय को संबोधित करते रहे हैं और करते रहेंगे।पिछले दिनों बसंतीपुर से भाई पद्दो ने कोलकाता आकर कहा कि उसकी योजना है कि हमारी किताबें छपवाने की उसकी योजना है।हमने उससे कह दिया कि किताबें छापना हमारा मकसद नहीं है और न छपना हमारा मकसद है।ऐसा मकसद होता तो दूसरों की तरह आर्डर सप्लाी करते हुए अपनी कड़की का इलाज कर लेता।दिनेशपुर में पिता के नाम अस्पताल बना है,मैंने देखा नहीं है।

पद्दो ने कहा कि पिताजी की नई मूर्ति लगी है।वहां पार्क बना है और लाखों का खर्च हुआ है।मेरे पिता तो अपने लिए दो दस रुपये तक खर्च नहीं करते थे।इसलिए मुझे इसमें कोई दिलचस्पी नहीं है कि मेरे पिताजी के नाम कौन इतना सारा खर्च उठा रहा है और क्यों ऐसा हो रहा है।

हमने दरअसल किसी कद्दू में तीर नहीं मारा है।

बंगाल में न बिजन भट्टाचार्य की जन्मशताब्दी मनायी न समर सेन की।बिजन भट्टचार्ये के नबान्न से भारत में इप्टा आंदोलन सुरु हुआ।समरसेन को खुद रवींद्रनाथ भविष्य का कवि मानते थे।रवींद्रनाथ के जीते जी वे प्रतिष्ठित कवि हो गये थे।

फिर उन्होंने कविताएं नहीं लिखीं।कविता कहानी से ज्यादा जरुरी उन्हें अपने वक्त को संबोधित करना लगा और बाहैसियत पत्रकार जिंदा रहे और मरे।हाल में उनका बाबू वृत्तांत प्रकाशित हुआ जो उनका रचना समग्र है।जिसमें उनकी कविताएं भी शामिल हैं।

हमने इस संकलन से समयांतर के लिए फ्रंटियर निकलने की कथा और आपातकाल में बुद्धिजीवियों की भूमिका का बाग्ला से हिंदी में अनुवाद किया है।

समर सेन ने सिलसिलेवार दिखाया है कि वाम बुद्धिजीवी इंदिरा जमाने में आपातकाल में भी कैसे विदेश यात्राएं कर रहे थे और कैसे वे हर कीमत पर इंदिर गांधी के आपातकाल का समर्थन कर रहे थे।

यह ब्यौरा पढ़ने के बाद बंगाली भद्र समाज और बुद्धिजीवियों का वाम अवसान बाद हुए कायाकल्प से कोई हैरानी नहीं होती।

जबतक बंगाल,केरल और त्रिपुरा में सत्ता बनी रही वामदलों की वाम बुद्धिजीवियों की दसों उंगलियां घी की कड़ाही में थीं और सर भी।वे तमाम विश्वविद्यालयों,अकादमियों और संस्थानों में बने हुए थे।आजादी के बाद संघियों की सत्ता कायम होने से ठीक पहले तक विदेश यात्रा हो या सरकारी खर्च पर स्वदेश भ्रमण,वामपंथी इसमे केद्र के सत्ता दल से जुड़े बुद्धिजीवियों के मुकाबले सैकड़ों मील आगे थे।लेकिन उनकी इस अति सक्रियता से इस देश में सरवहारा बहुजनों को क्या मिला और उनके हकहकूक की लड़ाई में ये वाम बुद्धिजीवी कितने सक्रिय थे,यह शोध का विषय है।

सारा शोर इन्हीं बुद्धिजीवियों का है,बाकी जनता खामोश है।अपना सत्यानाश होने के बावजूद जनता सत्ता के खिलाफ आवाज उठाने को तैयार नहीं है क्योंकि कोई वैकल्पिक राजनीति की दिशा नहीं है।

अब पिद्दी न पिद्दी का शोरबा तमाम कामरेड अखबारों के पन्ने भरते नजर आ रहे हैं क्यूबा की क्रांति,फिदेल कास्त्रो,अेरिकी साम्राज्यावाद के खिलाफ मोर्चा बंदी और क्यूबा यात्रा के संस्मरमों के साथ।इन तमा लोगों से पूछना चाहिए कि कुल उन्नीस लोगों को लेकर क्यूबा,लातिन अमेरिका और अफ्रीका की तस्वीर फिदले कास्त्रो ने बदल दी तो तमाम रंग बिरंगी कम्युनिस्ट पार्टियों,करोडो़ं की सदस्य संख्या वाले किसान सभाओं,मजदूर संगठनों,छात्र युवा संगठनों,महिला संगठनों आदि आदि के साथ वे अब तक किस किस कद्दू में तीर मारते रहे हैं।

उन्हींका वह तीर अब कल्कि महाराज हैं।

वह कद्दू अब खंड विखंड भारतवर्ष नामक मृत्यु उपत्यका है।


Sunday, November 27, 2016

জালিয়াতি কারবারের আঁতুড়ঘর ব্রাহ্মন্যবাদঃ Saradindu Uddipan


জালিয়াতি কারবারের আঁতুড়ঘর ব্রাহ্মন্যবাদঃ 

Saradindu Uddipan

আকারে একেবারে খর্বাকৃতি হলেও "বামন" রাজা মহাবলীকে হত্যা করতে পারে তার প্রতীকী কাহিনী আমরা ভগবত পুরাণে পেয়েছি। এই কাহিনীতে গর্বভরে দাবী করা হয়েছে যে বামন আকারে ক্ষুদ্র হলেও কূটকৌশল এবং বুদ্ধিতে অপ্রতিরোধ্য দুর্জেয়। এখানে বামন ভারতবর্ষের ৩.৫% ব্রাহ্মণের প্রতিনিধি এবং রাজা মহাবলী মূল ভারতের ৯৬.৫% জনগণের শাসক। এই বিশাল সংখ্যক মানুষকে যে বুদ্ধি এবং কৌশলে গোলামীর জঞ্জির পরিয়ে একেবারে প্রসাদান্নভোগী বা উচ্ছিষ্টভোগী পর্যায়ে নামিয়ে আনতে হয় তার নাম ব্রাহ্মন্যবাদ। 
বেদ থেকে একেবারে খ্রিষ্টীয় বার শতক পর্যন্ত লেখা ব্রাহ্মন্যবাদি গ্রন্থগুলি সতর্ক ভাবে পাঠ করলেই আমরা বুঝতে পারব যে ব্রাহ্মন্যবাদ টিকে আছে সম্পূর্ণ আবেগ ও অন্ধবিশ্বাসের উপরে। আর এই অন্ধ বিশ্বাসকে টিকিয়ে রাখার জন্য ব্রাহ্মণেরা মানুষের শরীরে বেড়ি না পরিয়ে মস্তিষ্কতে ঠুলি বসিয়ে দিয়েছে এবং মানুষের আবেগকে ধর্মীয় রসায়নে জারিত করে ব্রাহ্মণের বানীকে অমৃত ভক্ষন এবং তাদের কাজগুলিকে দৈবশক্তির মহিমা হিসবে চিরস্থায়ী করে তুলেছে। তাই এখনো ভারতের মানুষ ব্রাহ্মণের জালিয়াতি, লাম্পট্য, মিথ্যাচার, শঠতা, ভেদনীতি, নরহত্যা, গুপ্তহত্যা এবং নৈরাজ্যকে অন্ধের মত অনুসরণ করে। দেব লীলা হিসেবে মেনে নেয়। 
ভারতের আরএসএস এবং তার তৈরি বিজেপি এই ব্রাহ্মন্যবাদী ব্রিগেড। এদের প্রতিটি পদক্ষেপেই রয়েছে এই জালিয়াতির প্রকৌশল। নৈরাজ্য, অরাজকতা, খুন, সন্ত্রাস, ধর্ষণ, মহামারী, মন্বন্তর এবং মহাপ্রলয়কে এরা এদের ধর্ম প্রতিষ্ঠার উপযুক্ত সন্ধিক্ষণ বলে মনে করে। তাই সুযোগ পেলেই, ক্ষমতা পেলেই ব্রাহ্মণ্যশক্তি ধর্মপরায়ণ হয়ে ওঠে। 
ভারতের বর্তমান প্রধানমন্ত্রী নরেন্দ্র দামোদর দাস মোদি এই ব্রাহ্মন্যবাদীদের পুতবারি সিঞ্চিত এবং নরমেধ যজ্ঞের মনোনীত কান্ডারী। তার গোটা জীবনের প্রোফাইলটাই জালিয়াতী প্রামাণ্য দলিল। তার চা বিক্রেতা ভূমিকা থেকে গত নভেম্বরের ৮/১১/২০১৬ তারিখে নোট বন্ধ ঘোষণার সমস্তটাই জালি কারবার। 
তিনি ভারতের দূরদর্শনের মাধ্যমে দেশের জনগণের প্রতি যে জরুরী ঘোষণা করেন যে আজ মধ্য রাত্রের পরে ভারতের ৫০০টাকা এবং ১০০০টাকার নোট আর বাজারে চলবে না। সেগুলি এখন ছেড়া কাগজের টুকরা। এই ঘোষণাকে দূরদর্শনে লাইভ টেলিকাস্ট হিসেবে দেখানো হয়। কিন্তু গবেষক এবং সাংবাদিক সত্যেন্দ্র মুরালীর করা RTI (PMOIN / R / 2016/53416) এবং DOEAF / R / 2016/80904 and MOIAB / R / 2016/80180 থেকে পরিষ্কার হয়ে যায় যে প্রধানমন্ত্রীর এই টেলিকাস্ট লাইভ ছিল না। ধরা পড়ে যাবার ভয়ে এখনো এই তথ্য জানানো হচ্ছেনা। ঘোরানো হচ্ছে এ দপ্তর থেকে সে দপ্তরে। প্রশ্ন উঠছে এর পরেও নৈতিক দায়িত্ব নিয়ে নরেন্দ্র মোদির দেশের এক মহান দপ্তরে পদ আঁকড়ে থাকা উচিৎ কি না?
নোট বদলের আসল উদ্দেশ্য কি? 
নোট বদলের পরের দিনই পরিস্থিতি মূল্যায়ন করে আমি দাবী করেছিলাম যে এটি মোদির নেতৃত্বে "ভারতের খাজানা লুট" এর সব থেকে বড় কেলেঙ্কারি। সেই দাবীর সমর্থন মিলেছে ভূতপূর্ব রিজার্ভ ব্যাঙ্কের গভর্নর এবং প্রাক্তন প্রধান মন্ত্রী মনোমোহন সিংহের কাছ থেকে। মোদিজীর এই প্রক্রিয়াকে 'Organised Loot, Legalised Plunder' হিসেবে আখ্যা দিয়েছেন। তিনি এও বলেছেন যে পৃথিবীতে এমন কোন দেশ নেই যেখানে মানুষ ব্যাংকে টাকা রাখবেন কিন্তু তুলতে পারবেন না। এটা জোর করে মানুষের অধিকার কেড়ে নেওয়া।

আসল ঘটনাঃ 
এই মহুর্তে দেশের ব্যাঙ্কে মোট অনাদায়ী লোন (Bad loan) এর পরিমান হলো ৬,০০,০০০ কোটি৷
কয়েক সপ্তাহ আগে Credit Rating Agency মোদী সরকারকে রিপোর্ট দেয় যে এই মহুর্তে ভারতীয় ব্যাঙ্ককে ১.২৫ লক্ষ কোটি Capital Infusion দরকার৷
জুলাই ২০১৬ তে ১৩টি ব্যাঙ্ককে ২৩,০০০ কোটি টাকা inject করা হয়৷
২০১৫ সালে অর্থমন্ত্রী অরুন জেঠলি বলেন যে আগামী ৪ বছরে (PSU) ব্যাঙ্ককে চাঙ্গা করতে আরো ৭০,০০০ কোটি দেওয়ার লক্ষ্যমাত্রা নিয়েছে কেন্দ্র৷

এই পরিমাণে টাকা বাড়াতে পারলেই শিল্পপতিদের লোন মাফ করা যাবে এবং আবার তাদের নতুন লোন দেওয়া যাবে!
ব্যাঙ্ককে টাকা বাড়ানো এবং প্রিয় শিল্পপতিদের ঋণ মকুব ক্রবার জন্য মোদী ২০০০টাকার নোট বাজারে এনে ৫০০টাকা এবং ১০০০টাকার নোট বাতিল বলে ঘোষণা করে দিলেন। ঘোষণা করলেন এই টাকা ব্যাঙ্কে রাখা যাবে কিন্তু যেমন খুশি টাকা তোলা যাবে না। সংসার চালানোর জন্য সামান্য টাকা তুলতে পারবেন।
মোদী সরকার, মোদিপন্থী এবং তাদের পোষা মিডিয়াগুলি ঢাক পেটাতে শুরু করলেন যে এটি কালো টাকা উদ্ধার, জাল টাকা বন্ধ করা এবং সন্ত্রাসবাদীদের আটকানোর জন্য সঠিক পদক্ষেপ যা ৭০ বছর ধরে কোন সরকার করে নি। এই প্রক্রিয়ায় মোদিজী ভারতকে একেবারে ডিজিটাল দুনিয়ার সর্বোচ্চ দেশ হিসেবে টক্কর দেবেন। 
RBI এর তথ্যানুযায়ী ১৪লক্ষ কোটি টাকার মধ্যে ৩৮% নোট ১০০০টাকার, আর ৪৯% নোট ৫০০ টাকার৷
'Bussiness World' এর তথ্যানুযায়ী দেশে 'Fake note' 0.002% of Rs 1,000 notes, and 0.009% of Rs 500 notes. 
কাদের দিয়ে খাজানা লুট করলেন মোদি ? 
১) ভারতের সেরা ১০০ জন Wilful ডিফল্টার দের মধ্যে State bank of India ৬৩ জনের ৭,০১৬ কোটি টাকা যার মধ্যে Kingfisher এর বিজয় মালিয়ার ১,২০১ কোটি টাকা মুকুব (Write off) করলো সরকার৷ 
২) রিলায়েন্স গ্রুপের মালিক অনিল আম্বানি মোদীর এবং বিজেপির খুব স্নেহভাজন৷তিনি দেশের সবচেয়ে বড়ো ডিফল্টার৷
টাকার পরিমান মার্চ ২০১৫ তে ১.২৫ লক্ষ কোটি৷
৩)বেদান্ত গ্রুপের মালিক অনিল আগরওয়াল৷ ধাতু ও খনির ব্যাবসায়ী দ্বিতীয় বৃহত্তম ডিফল্টার যার পরিমান ১.০৩ লক্ষ্য কোটি৷
৪) ইএসএসআর গ্রুপের মালিক রুইয়া ব্রাদার্স (শশী রুইয়া ও রবি রুইয়া) ডিফল্টার, ঋনের পরিমান ১.০১ লক্ষ কোটি৷
৫) আদানী গ্রুপের মালিক গৌতম আদানি, মোদীর খাস লোক৷ডিফল্টার ৯৬,০৩১ কোটি টাকা৷
৬)জয়াপি গ্রুপের মালিক মনোজ গৌড় ৭৫,১৬৩ কোটি টাকার ডিফ্লটার।
৭) #JSW Group: মালিক সজ্জন জিন্ডাল৷ডিফল্টার রাশি ৫৮,১৭১ কোটি 
৮) #GMR Group: মালিক প্রোমোটার GM Rao. যিনি দিল্লী T3 International Airprt Terminal বানালেন৷ ডিফল্টার রাশি ৪৬,৯৭৬ কোটি টাকা৷
৯) #Lanco Group: যার মালিক মধূসুদন রাও৷ডিফল্টার রাশির পরিমান ৪৭,১০২কোটি টাকা৷
১০) #Videocon Group: মালিক বেণুগোপাল৷ডিফল্টার রাশি ৪৫,৪০৫ কোটি টাকা৷
১১) #GVK Group: মালিক GVK Reddy৷ডিফল্টার ৩৩,৯৩৩ কোটি টাকা৷
১২) #Usha Ispat: ডিফল্টার ১৬,৯৭১ কোটি টাকা৷কোম্পানিটির বর্তমানে কোনো হদিস নেই৷একটি সংবাদ সংস্থা তদন্ত করতে গিয়ে দেখে যে কোম্পানীটি বন্ধ এবং রহস্যময় ভাবে কোম্পানীর মালিকের অস্তিত্বই নেই৷
১৩) #Lloyeds Steel: ডিফল্টার ৯,৪৭৮ কোটি টাকা৷কোম্পানীটি বর্তমানে অন্য একটি কোম্পানী অধিকৃত৷
১৪) #Hindustan Cables Ltd.:ডিফল্টার ৪,৯১৭ কোটি টাকা৷বর্তমানে ব্যাবসা গুটিয়ে নিয়েছে৷
১৫) #Hindustan Petroliam Mfg.Co.: ডিফল্টার ৩,৯২৮ কোটি টাকা৷বর্তমানে কোম্পানীটি বন্ধ৷
১৬) #Zoom Developer: ডিফল্টার ৩,৮৪৩ কোটি টাকা৷কোম্পানীটির অস্তিত্ব মেলেনি৷
১৭) #Prakash Industry: ডিফল্টার ৩,৬৬৫ কোটি টাকা৷কোম্পানী চালু অাছে৷
১৮) #Crane Software International: ডিফল্টার ৩,৫৮০ কোটি টাকা৷কোং চালু অাছে৷
১৯) #Prag Bosimi International: ডিফল্টার ৩,৫৫৮ কোটি টাকা৷কোং চালু অাছে৷
২০) #Kingfisher Airlines: ডিফল্টার ৩,২৫৯ কোটি টাকা৷এখানে বলে রাখা প্রয়োজন এটা PNB অর্থাৎ পাঞ্জাব ন্যাশনাল ব্যাঙ্ক থেকে নেওয়া৷অার অাগে যেটা মাফ হয়েছে বললাম সেটা শুধু মাত্র SBI অর্থাৎ state bank of india র ৬৩ জনের তারমধ্যে Kingfisher এর বিজয় মালিয়া একজন৷kingfisher aviation ekhon বন্ধ৷
২১) #Malvika Steel: ডিফল্টার ৩,০৫৭ কোটি টাকা৷কোম্পানীটি বন্ধ৷ 
(তথ্য সংগৃহীত)
ইতি মধ্যে মাননীয় রঘুরাম রাজন হিসেব করে দেখিয়েছেন যে এ পর্যন্ত ৪০ হাজার কোটি টাকার রাজস্য, ১.৫ লক্ষ কোটি জিডিপি এবং ৩০ কোটি শ্রমদিবস নষ্ট হয়েছে। আরো ৫০ দিন এই ভাবে চললে যে পরিমাণে অর্থনৈতিক ক্ষতি হবে তা কালো টাকার কয়েক গুন বেশি। 
প্রখ্যাত নোবেল জয়ী এবং অর্থনীতিবিদ মাননীয় অমর্ত্য সেন এই প্রক্রিয়াকে স্বৈরতান্ত্রিক হিসেবে আখ্যা দিয়েছেন। কোন অর্থনৈতিকই বিশেষজ্ঞ মোদির এই নোট কাণ্ডকে কালোটাকা ফিরিয়ে আনা বা নোটের জাল কারবার রোখার জন্য সঠিক পদক্ষেপ বলে স্বীকার করেন নি। বরং মানুষের উপর জোর করে চাপিয়ে দেওয়া এই অর্থনৈতিক অবরোধ দেশের চরম ক্ষতি এবং নৈরাজ্যের কারণ হিসেবে ব্যাখ্যা করেছেন। 
আমরা দাবী করছি মোদি আসলে ব্রাহ্মন্যবাদী নৈরাজ্যের বাহক। ব্রাহ্মণ্য ধর্ম অনুসারেই মোদির এই জালিয়াতি দেশে মহামারী এবং মন্বন্তর ডেকে আনবে। এখনি সতর্ক হওয়া দরকার।

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Saturday, November 26, 2016

महत्वपूर्ण खबरें और आलेख मारे जायेंगें देश के आम नागरिक, नोटबंदी नहीं, यह मृत्यु महोत्सव है!


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Friday, November 25, 2016

नोटबंदी नहीं,यह मृत्यु महोत्सव है! मारे जायेंगें देश के आम नागरिक क्योंकि तमाम रंगबिरंगे अरबपति राजनेता मुक्तबाजार के कारिंदे हैं और उन्हें इस देश की जनता से कोई मुहब्बत नहीं है। #BankruptRBI #BnakruptIndianbanking #Nobanktorefusepaymentworldwide #IndialivesonPayTMBigBazarAirtel #PoliticalsystemconvertedintoBlackhole #MultipleorganfailureculminatinginfamineandslumptoaccomplishtheHindutvaagendaofmassdestruction पलाश विश्वास

नोटबंदी नहीं,यह मृत्यु महोत्सव है!

मारे जायेंगें देश के आम नागरिक क्योंकि तमाम रंगबिरंगे अरबपति राजनेता मुक्तबाजार के कारिंदे हैं और उन्हें इस देश की जनता से कोई मुहब्बत नहीं है।


#BankruptRBI

#BnakruptIndianbanking

#Nobanktorefusepaymentworldwide

#IndialivesonPayTMBigBazarAirtel

#PoliticalsystemconvertedintoBlackhole

#MultipleorganfailureculminatinginfamineandslumptoaccomplishtheHindutvaagendaofmassdestruction

पलाश विश्वास

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने राज्यसभा में नोटबंदी को क़ानूनन चलाई जा रही व्यवस्थित लूट की संज्ञा दी है।

डा.मनमोहन सिंह मुक्तबाजार के मौलिक ईश्वर हैं और अर्थशास्त्र वे हमसे बेहतर जानते हैं भले ही कल्कि महाराज और उनकी अर्थक्रांति के बगुला विशेषज्ञ का अर्थशास्त्र उनसे बेहतर हो।

माननीय ओम थानवी ने कल फेसबुक पर टिप्पणी की है कि पुराना पाप उनका धुल गया है।लेकिन उनका पाप इतना बड़ा है कि तमाम ग्लेशियर पिघलकर गंगाजल बनकर भी उसे धो नहीं सकता।वे संसद में जो बोले,वह दरअसल मुक्तबाजार का व्याकरण है।जो सौ टका सही है।

दुनिया में सचमुच ऐसा कोई देश नहीं है जहां बैंक करदाताओं और ग्राहकों कोमना कर कर दें।भुगतान न कर पाने की स्थिति दिवालिया हो जाना है।नोटबंदी ने भारतीय बैंकिंग प्रणाली को दिवालिया बना दिया है।

सिर्फ मनमोहन सिंह ही नहीं,तमाम रेटिंग एजंसियां विकास दर में कमी की आसंका जता चुके हैं।कृषि उत्पादन ठप है।औद्योगिक उत्पादन गिर रहा है।मुद्रा का लगातार अवमूल्यन हो रहा है।अब बेदखल हुआ बाजार भी नोटबंदी की वजह से बंद है।बाजार की गतिविधियां इसी तरह ठप रही और डिजिटल देश का नानडिजिटल बहुसंख्या जनता अगर उत्पादन प्रणाली,अर्थव्यवस्था और बाजार से बाहर कर दिये जाये तो यह दिनदहाड़े डकैती नहीं है।डकैती के बावजूद अर्थव्यवस्था,उत्पदन प्रणाली और बाजार की गतिविधियां ठप नहीं पड़े जाती।

देश के नागरिकों से उनकी क्रय क्षमता रातोंरात छिनकर कल्कि महाराज ने मुक्तबाजार को ही बाट लगा दी है और यह नोटबंदी मुक्त बाजार के व्याकरण के खिलाफ है।डा.मनमोहन सिंह का कहना कुल मिलाकर यही है।

सारी बुनियादी सेवाएं और बुनियादी जरुरतें जब आपकी क्रय क्षमता से जुड़ी हैं तो वह क्रयक्षमता छिन जाने से आप हवा पानी भी खरीदने की हालत में नहीं हैं और राशन पानी दूर की कौड़ी है।पूरा देश अब गैसत्रासदी के शिकंजे में हैं।

एक मुश्त खेती,कारोबार और बाजार को ठप करने का एक ही नतीजा है और वह है मौत जिसका भुगतान बैंकों की नकदी प्रवाह की तरह आहिस्ते आहिस्ते होगा।

कतारों में खड़े कुछ लोगों को नकद भुगतान जरुर हो गया है लेकिन जो अपने घरों में बीवी बच्चों,मां बाप बहन के साथ तिल तिल तड़प तड़प कर मरने को अभिशप्त हैं,उनकी लाशों की गिनती कभी नहीं होने वाली है।

पिछले सत्तर सालों से भारत के देहात में किसान सपरिवार इसीतरह मरते खपते रहे हैं और बाकी देश ने तनिको परवाह नहीं की।

आजादी के बाद से आदिवासियों की बेदखली जारी है।उनका कत्लेआम जारी है।प्राकृतिक संसाधनों की इस खुली लूट और सैन्य राष्ट्र के सलवा जुड़ुम का बाकी देश समर्थन करता है।

कश्मीर और मणिपुर में सैन्य शासन और दमन का भी राजनेता विरोध नहीं करते।न आदिवासियों,दलितों, पिछडो़ं,अल्पसंख्यकों और स्त्रियों के कत्लेआम की कोई परवाह है उन्हें,जबतक न वोटबैंक राजनीति इसके लिए उन्हें मजबूर न कर दें।

बिग बाजार कोई बैंक नहीं है।उसे बैंकिंग की इजाजत है।पेमेंट बैंकिगं अलग हो रही है।ईटेलिंग के अलावा अब कोई विकल्प बचा नहीं दिखता।

दूसरी ओर,चौतरफा खरीदारी के इस माहौल में भी आज पीएसयू बैंकों की पिटाई देखने को मिल रही है। निफ्टी का पीएसयू बैंक इंडेक्स 0.12 फीसदी की कमजोरी के साथ कोरोबार कर रहा है।

पेटीएम के अलावा नकदी कहीं नहीं है।ऐसे हालात में देहात और कस्बों से लेकर महानगरों तक किराना दुकानदारों से लेकर फलवालों,रेहड़ीवालों,फुटपाथवालों, हाकरों,सब्जी मछलीवालों का सारा कारोबरा अब शापिंग माल में चला गया है।

छह महीन तक नकदी का संकट नहीं सुलझा तो इनके पास कारोबार चलाने लायक पैसा भी नहीं बचेगा।खुदरा बाजार में कितने लोग हैं,कल्कि महाराज इसका कोई सर्वे करा लेते तो बेहतर होता।

एटीएम और बैंकों से लाशें बहुत कम निकलने वाली है जाहिर है।खेत खलिहानों, कारखानों और खुदरा बाजार,चायबागानों से लाशों का जो जुलूस निकलने वाला है,उनमें नौकरीपेशा लाशें भी कम नहीं निकलेंगी।एकाधिकार पूंजी सारी नौकरियां का जायेंगी।

नोटबंदी नहीं,यह मृत्यु महोत्सव है।

अकेले बंगाल के 300 चाय बागानों के करीब पांच लाक मजदूरों को उनकी दिहाड़ी नहीं मिल रही है।खेत मजदूरों और असंगठित क्षेत्र के करोडो़ं लोग यकबयक बेरोजगार हो गये हैं और हाट बाजार में खुदरा दुकानदारों का कारोबार ठप हैं।

किसान न खेत जोत पा रहे हैं न बीज बो पा रहे हैं।फसल तैयार है तो उसे बेच भी नहीं पा रहे हैं।

अब आगे भुखमरी है जो मंदी की वजह से और भयंकर होगी।आटा चाल दाल तेल सबकुछ मंहगा हो रहा है और आय के सारे साधन खत्म हो रहे हैं।

लोगों के हाथ पांव तो एकमुश्त काट ही लिये गये है।उनके दिलोदिमाग और एक एक अंग प्रत्यंग बेदखल हैं।

अब वे सीना ठोंककर कहने लगे हैं कि वे डिजिटल इंडिया बना रहे हैं और नोटबंदी का मकसद दरअसल कैशलैस सोसाइटी है।

कालाधन निकालने का मकसद वे खुद गलत बताने लगा है।

अपनी सिरजी आपदा को लंबे अरसे तक जारी रखकर वे एकाधिकार पूंजी केहवाले कर रहे हैं सबकुछ और आम जनता की तकलीफों,उनकी जिंदगी और मत की उन्हों कोई परवाह नहीं है।

अब 28 नवंबर को नोटबंदी के खिलाफ भारत बंद है।इस बारे में आदरणीय मोहन क्षोत्रियकी टिप्पणी लाजबाव है।उन्होने लिखा हैः

दुकान बंद हो जाती है तो लगता है भारत बंद है ,

दुकान खुली रहती है तो लगता है भारत खुला है l

बाबा को व्यापारी और व्यापारी को बाबा बनाने की नीति के बारे में सोचिये l

अब दुकानदारों को सोचना है कि भारत बंद रहेगा या खुला l

भारत तो अब 8 नवंबर से बंद ही है।सारी जनता काम धंधा बंद करके एटीएम,बैंक से लेकर बिग बाजार के सामने कतारबद्ध है।एक एक करके उत्पादन इकाइयां बंद है।असंगठित क्षेत्र में नकदी के अभाव के चलते कोई काम नहीं है।

शापिंग माल के अलावा सारा खुदरा कारोबार मय किराना साग सब्जी फल मछली अनाज हाट बाजार राशन पानी घर का चूल्हा सारा कुछ बंद है और आम जनता इसतरह केसरिया फौज हैं कि उनकी तबीयत हरी हरी है।

सावन के अंधे को सारा कुछ हरा हरा नजर आता है।कहीं किसी प्रतिरोध की सुगबुगाहट नहीं है।लोग कतार में खड़े खड़े मर रहे हैं।

लाशें निकल रही हैं एटीएम और बैंकों से।

दुनिया में भारत पहला देश है जहां नकद जमा होने के बावजूद करदाताओं और ग्राहकों को धेला भी नहीं मिल रहा है।

रोज दिहाड़ी नहीं मिल रही है।चूल्हा सुलगाने के लिए दिल्ली दरबार से रोज नये फरमान जारी हो रहे हैं।रिजर्व बैंक के नियम रोज बदल रहे हैं।

सारे बैंकों और एटीएम पर नो कैश की तख्ती टंगी है और हाट बाजार के साथ साथ काम धंधे से लोग बेदखल हो रहे हैं।

जलजंगलजमीन नागरिकता से वे पहले ही बेदखल हैं।

कानून बदलकर पूंजीपतियों के तीस लाख करोड़ देश से बाहर निकालने के बाद नोट बंदी हुई है जिसकी गोपनीयता का आलम अब बेपर्दा है क्योंकि राष्ट्र के नाम वह ऐतिहासिक भाषण लाइव नहीं था।पहले से जो रिकार्डिंग की गय़ी थी,उस संबोधन की गोपनीयता की भी बलिहारी।

जिन क्षत्रपों ने राजनीतिक गोलबंदी के लिए पहल की है,कमसकम वे कल्कि महाराज के विकल्प नहीं है क्योंकि आम जनता को उनके कारनामे और तमाम किस्से मालूम है।वे अपने अपने हिस्से के कालाधन बचाने की जुगत लगा रहे हैं और कुल मिलाकर उन्हें शिकायत यही है कि संघियों और भाजपाइयों ने तो अपना कालाधन सफेद कर लिया,लेकिन उन्हें कोई मोहलत नहीं मिली है।

इसीलिए हिंदुत्व एजंडे के संघियों से भी बड़े झंडेवरदार शिवसेना के सारे अंग प्रत्यंग नोटबंदी के खिलाफ चीख पुकार मचाने लगे हैं।

इस राजनीतिक गोलबंदी से बदलेगा कुछ भी नही।

आधार परियोजना से लेकर तमाम आर्थिक सुधारों के नरमेधी अश्वमेधी अभियान के रंगबिरंगे सिपाहसालार एकजुट होकर आगामी चुनाव में सत्ता पर काबिज होने की जुगत लगा रहे हैं और यूपी पंजाब के चुनाव के बाद पता भी चल जायेगा कि इसका नतीजा क्याहोने वाला है।

1991 के बाद से लगातार हो रहे सत्ता परिवर्तन से लगातार आम जनता के सफाया का कार्यक्रम जारी है जो हर सत्ता बदल के बाद तेज से तेज होता जा रहा है,जो हिंदुत्व का विशुध पतंजलि ग्लोबल एजंडा है।

मुक्तबाजार के पहरुओं से जनांदोलन की उम्मीद लगाना बेवकूफी के अलावा कुछ नहीं है।ये तमाम लोग समता और न्याय के किलाफ रंगभेदी वर्ण वर्चस्व और अस्मिता गृहयुद्ध के महारथी हैं।

जनविद्रोह जो आजादी तक लगातार जारी रहा है,उसका सिलसिला भारत विभाजन के बाद थम गया है।

जमींदारियों और रियासतों के वारिशान ने सत्ता में साझेदारी के तहत देश के तमाम संसाधनों पर कब्जा कर लिया है और मिलजुलकर वे देश बेच रहे हैं।

हिस्सेदारी की लड़ाई बाकी है।

सलवा जुड़ुम के खिलाफ कोई नहीं बोल रहा है।फर्जी मुठभेडों के खिलाफ कोई आवाज नहीं उठा रहा है।

सैन्य दमन के पक्ष में हैं सारे के सारे और रंगभेदी युद्धोन्माद इन सभी का राष्ट्रवाद है क्योंकि वे अइपनी जमींदारी और रियासत बचाने में लगे हैं।

देश की राजनीति आम जनता के लिए ब्लैकहोल है।

यह सुरसामुखी राजनीति सबकुछ हजम कर जाने वाली है।

मारे जायेंगें देश के आम नागरिक क्योंकि तमाम रंगबिरंगे अरबपति राजनेता मुक्तबाजार के कारिंदे हैं और उन्हें इस देश की जनता से कोई मुहब्बत नहीं है।

इसी बीच टाटा ग्रुप के कार्यकारी चेयरमैन रतन टाटा ने नोटबंदी पर ट्वीट किया है। उन्होंने कहा है कि नोटबंदी के कारण जनता को काफी दिक्कत हो रही है। खासकर इलाज कराने में ज्यादा परेशानी हो रही है। कैश की कमी के कारण गरीबों को रोजमर्रा की चीजें नहीं मिल रही हैं। सरकार अपनी तरफ से नए नोट मुहैया कराने की पूरी कोशिश कर रही है लेकिन अभी वैसी राहत की जरूरत है जैसी राष्ट्रीय आपदा के समय होती है।

सीएनबीसी-आवाज़ को सूत्रों से मिली एक्सक्लूसिव जानकारी के मुताबिक सरकार कालेधन वालों को 2 विकल्प दे सकती है। बताया जा रहा है कि पहले विकल्प के तौर पर 60 फीसदी टैक्स और पेनाल्टी जमाकर चिंतामुक्त हो सकते हैं। वहीं दूसरे विकल्प के तौर पर 50 फीसदी टैक्स के साथ 4 साल के लॉक-इन पीरियड के जरिए राहत मिल सकती है।

सूत्रों का कहना है कि सरकार ने अघोषित आय पर 2 नए विकल्पों के प्रस्तावों को मंजूरी के लिए राष्ट्रपति को भेज दिया है। इन विकल्पों में गोल्ड होल्डिंग सीमा तय करने की योजना नहीं है। लेकिन, बैंक में अघोषित आय जमा करने पर 50 फीसदी टैक्स और 4 साल का लॉक-इन पीरियड लागू हो सकता है। साथ ही बैंक में अघोषित आय जमा करने पर 60 फीसदी टैक्स और पेनाल्टी लागू हो सकता है।

इस बीच नोटबंदी का आज 17वां दिन है। विपक्षी दल चाहते हैं कि सरकार इस फैसले को वापिस ले जबकि पीएम नरेंद्र मोदी का कहना है कि जनता उनके साथ है इसलिए वे अपना फैसला वापिस नहीं लेंगे। वहीं लोकसभा और राज्यसभा में आज भी जोरदार हंगामा हुआ। राज्यसभा में विपक्षी सदस्यों ने पीएम को बुलाने की मांग के साथ फिर हंगामा किया। विपक्षी दलों ने पीएम से अपने बयान पर माफी मांगने की मांग की जिसमें पीएम ने कहा था कि विपक्ष को हमारी तैयारियों से दिक्कत नहीं हैं बल्कि नोटबंदी के ऐलान ने उन्हें तैयारी करने का मौका नहीं दिया इसलिए वो भड़के हैं।

नोटबंदी के मुद्दे पर शुक्रवार सुबह विपक्ष ने आते ही राज्य सभा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर हमला बोला। विपक्ष ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि नोटबंदी के मुद्दे पर पीएम मोदी सड़कों पर खूब बोलते है लेकिन संसद में उसी बात को बोलने में क्यों डर रहे हैं। बता दें इससे पहले विपक्ष की मांग पर प्रधानमंत्री गुरुवार को राज्यसभा में बहस के दौरान मौजूद रहे लेकिन वे इस मुद्दे पर एक शब्द भीनहीं बोले। विपक्ष नोटबंदी के मुद्दे पर संसद में बहस के दौरान प्रधानमंत्री की लगातार मौजूदगी की मांग कर रहा है। आज भी इस मुद्दे को लेकर राज्यसभा में विपक्ष हंगामा किया।

आजतक के मुताबिक नोटबंदी को लेकर संसद में हंगामा जारी है. शुक्रवार सुबह 11 बजे से लोकसभा-राज्यसभा की कार्यवाही शुरू हुई. राज्यसभा में विपक्षी सदस्यों ने पीएम को बुलाने की मांग के साथ फिर हंगामा किया, जिसके बाद सदन को 2.30 बजे तक स्थगित कर दिया गया. वहीं हंगामे के चलते लोकसभा को 28 नवंबर तक स्थगित कर दिया गया है. इस बीच कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने पीएम मोदी पर निशाना साधा. उन्होंने कहा कि मोदी जी पहले हंस रहे थे, फिर रोने लगे.

जनसत्ता में हमारे पूर्व संपादक ओम थानवी के मुताबिक मोदी और उनके भक्त आपस में नोटबंदी "सर्वे" की बधाई बाँट रहे हैं, हक़ीक़त यह है कि लोग त्राहिमाम-त्राहिमाम कर उठे हैं। यह होना ही था। रिज़र्व बैंक की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक़ देश में 16.4 लाख करोड़ के नोट चलन में हैं। इनमें 38.6 प्रतिशत 1000 के नोट हैं, 47.8 प्रतिशत 500 के। अर्थात् देश की 86 प्रतिशत से ज़्यादा की मुद्रा को बग़ैर बदलवाए उसका 'धारक' इस्तेमाल नहीं कर सकता।

इसे किसी ने बेहतर उपमा यों दी है - आप अगर किसी के शरीर से 86 प्रतिशत ख़ून निकाल दें, तो उसका Multiple Organ Failure होना लाज़िमी है।

पर इस बात को देश के स्वनामधन्य "सर्जन" को कौन समझाए? उनके इर्द-गिर्द चापलूसों की भीड़ है, जैसे इंदिरा गांधी के गिर्द हुआ करती थी। ख़ासकर इमरजेंसी के "अनुशासन पर्व" के बाद।

राजनीति और राजनेताओं की साख के मद्देनजर ही हमारे गुरुजी ताराचंद्र त्रिपाठी ने लिखा हैः

जस अम्बानी तस पेटीएम.

भाई पलाश! अभी गहराई से देखते रहो. राजनीतिक दलों की हाय तोबा तो अपने कालाधन पर खतरे के कारण है. कम से कम नोट्बन्दी के इस दर्द के सहते हुए भी आम जन के चेहरे पर उम्मीदों की लाली देख रहा हूँ क्या साम्यवाद या समाजवाद के झंडा बरदारों ने आम जनता में भीतर ही भीतर में पनप रहे इस आक्रोश को वाणी व देने ाका प्रयास किया.. हिन्दूवाद का घोर विरोधी होते हुए भी मैं अभी इस मामले में मोदी के साथ हूँ. 'अभी" शब्द पर भी ध्यान दें

रौतेला जी! जुगाड़ और कथनी और करनी में अन्तर ही भारतीय संस्कृति की आत्मा है. यही उपनिषदों के तवत्तिष्ठति दशांगुलम का सार है.( वह उससे ( हर विधान से) दस अंगुल आगे है) मौका लगने पर हम भी कहाँ पीछे रहने वाले हैं. जनधन खातों में इक्कीस हजार करोड़ की माया आ गयी है. महाभारत है मित्र! जो जुए में पत्नी को भी दाँव पर लगा दे वह धर्मराज, जिसके लिए लक्ष्य प्राप्ति के लिए नीति और अनीति में कोई फर्क ही न हो केवल गीता का उपदेश दे. जो ्नियम से चलने का प्रयास कर उस राम को १२ कलाओं का अवतार माना जाय और जो आज के अर्थों में चालू हो ( कृष्ण)वह १६ कलाओं का अवतार. सब लीला है.

ललित सती ने अपने फऱेसबुकवाल पर खूब लिखा हैः

- बाकी पार्टियों ने 2014 में काले धन से चुनाव लड़ा, हमने 10 हजार करोड़ रुपया अनुलोम-विलोम करके उत्पन्न कर लिया, बस उत्ते से पैसे से काम चला लिया। एक कानी कौड़ी ब्लैक मनी नहीं हमारे पास

- कैसे-कैसे भ्रष्टाचारी, दुराचारी, देशद्रोही दूसरी पार्टियों में भरे पड़े हैं। हमारे यहाँ एक नहीं। हमारे यहाँ जो आता है हम उसके कान में एक मंत्र फूँक देते हैं, वह तत्काल प्रभाव से सदाचारी, पक्का राष्ट्रभक्त हो जाता है

- स्कैम, घोटाला जैसा कोई शब्द हमारी डिक्शनरी में कहीं नहीं है। हमने उन्हें अपनी भाषा से बहिष्कृत कर दिया। भ्रष्टाचार शब्द ही नहीं रहेगा तो भ्रष्टाचार का वजूद कैसा। हम यज्ञ और उत्सव की परंपरा वाले हैं। व्यापमं यज्ञ, विमुद्रीकरण उत्सव आदि

- कांग्रेस ने कैसी देश विरोधी नीतियाँ लागू कर रखी थीं, देशी-विदेशी लुटेरों की मौज आई हुई थी। हमने सारी नीतियों को शंख फूँककर अपना बना लिया, वे अब राष्ट्रवादी हो गईं। अवतार के तेजोमयी प्रकाश में लुटेरों का हृदयपरिवर्तन हो गया, वे अब देशसेवक हो गए। बला के जादूगर हैं हम

.... और भी बहुत बहुत कुछ हैं हम। बताएँगे नहीं। हमारा मातृसंगठन भी बहुत कुछ नहीं बताता है। उसने आज तक नहीं बताया कि आजादी की लड़ाई में कहाँ थे हम। हालाँकि अब समय आ गया है अपने इतिहासकारों से लिखवाएँगे कि कहाँ थे हम। नये सत्य गढ़ने के पारंगत जो हैं हम।

'नोटबंदी क़ानूनन चलाई जा रही व्यवस्थित लूट'

साभार बीबीसी हिंदी

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने राज्यसभा में नोटबंदी को क़ानूनन चलाई जा रही व्यवस्थित लूट की संज्ञा दी है.

संसद में कई दिनों तक नोटबंदी के मामले में सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच हुई हंगामें के बाद राजयसभा में नोटबंदी पर बहस शुरू हुई है.

मनमोहन सिंह ने अपने भाषण में ये 6 अहम बातें कहीं-

1. मैं नोटों को रद्द किए जाने के उद्देश्यों से असहमत नहीं हूं, लेकिन इसे ठीक तरीके से लागू नहीं किया गया.

2. पीएम बताएं ऐसा कौन सा देश है जहाँ लोग बैंक में पैसा जमा करा सकते हैं लेकिन अपना पैसा निकाल नहीं सकते हैं.

3. लॉन्ग रन या लंबे समय में असर की बात हो तो उस अर्थशास्त्री की बात याद करें - दीर्घकाल में तो हम सब मर चुके होंगे.

4. असर क्या होगा मुझे नहीं पता. इससे लोगों का बैंकों में विश्वास ख़त्म होगा. जीडीपी में 2 पर्सेंट की गिरावट आ सकती है.

5. इससे छोटे उद्योगों और कृषि को भारी नुकसान का सामना करना पड़ेगा.

6. बैंक हर दिन नियम बदल रहे हैं जिससे लगता है कि पीएमओ और रिज़र्व बैंक ठीक से काम नहीं कर रहे हैं.

मनमोहन सिंह के बाद राज्यसभा में बोलते हुए समाजवादी पार्टी सांसद नरेश अग्रवाल ने कहा कि प्रधानमंत्री, अहंकार हमेशा अंधकार की ओर ले जाता है. उन्होंने कहा कि इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाया था तो उन्हें भी लगता था जनता इस फ़ैसले से खुश है लेकिन चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था. अग्रवाल ने कहा कि पीएम मोदी को भी ऐसा ही लगता है कि लोग खुश हैं पर आनेवाले चुनाव में उन्हें पता चल जाएगा.

बहुजन समाजवादी पार्टी चीफ़ मायावती ने भी कहा कि उनकी पार्टी नोटों को रद्द करने के ख़िलाफ़ नहीं है लेकिन इसे लागू करने का तरीका सही नहीं है. उन्होंने कहा कि लोगों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. मायावती ने प्रधानमंत्री से आग्रह किया कि वह सदन में मौजूद रहें.