उत्तर-पूर्व के मामले में भारत सरकार की नीति तो मूर्खतापूर्ण और शातिराना है ही, हमारे पढ़े-लिखे कहे जाने वाले पत्रकार भी कम नासमझ नहीं हैं। आज 7, आरसीआर में प्रधानजी ने एनएससीएन(आइएम) के साथ जो कथित शांति समझौता किया है और शाम से जिसका ढोल हर तरफ यह कह कर पीटा जा रहा है कि ''नगालैंड में अब खून नहीं बहेगा'', वह साफ़ तौर पर सात बहनों के साथ किया गया एक महान विश्वासघात है। ऐसा कर के एक तो जनता की आंखों में धूल झोंकी गई है, दूसरे अपनी नाकामी को सरकार ने काफी चतुराई से छुपा लिया है।
आज हुए शांति समझौते को समझना कोई रॉकेट साइंस नहीं है। एनएससीएन(आइएम) बीते 18 साल से भारत सरकार के साथ संघर्ष विराम की स्थिति में है। करीब 25 साल हो गए और इस समूह ने एक भी हिंसात्मक कार्रवाई नगालैंड में नहीं की है। इकलौती हिंसा की घटना जो मणिपुर के चंदेल में (नगालैंड में नहीं) इस जून के पहले सप्ताह में घटी, उसे एनएससीएन के खपलांग गुट ने (सरकार के मुताबिक) अंजाम दिया जिसने मार्च में संघर्ष विराम से खुद को अलग कर लिया था। इसाक-मुइवा का गुट तो लगातार दिल्ली के साथ संपर्क में रहा है। समस्या खपलांग को लेकर थी। विडंबना देखिए कि जिसे महान समझौता बताया जा रहा है, वह शांतिपूर्ण और पहले से ही संघर्ष विराम में शामिल आइएम गुट के साथ किया गया है जबकि हमला करने वाले खपलांग का कहीं कोई जि़क्र नहीं है। फिर नगालैंड में खून बहना कैसे रुकेगा?
करीब दस दिन पहले आइएम गुट के सह-संस्थापक और चेयरमैन इसाक चिशी स्वू को ''छाती में संक्रमण'' की शिकायत पर दक्षिणी दिल्ली के फोर्टिस अस्पताल में भर्ती करवाया गया था। अस्पताल को तब से ही भारी सुरक्षा के बीच छावनी में तब्दील कर दिया गया था। इसकी सूचना से ज्यादा कोई भी ख़बर अपने मीडिया में नहीं थी। नगालैंड पोस्ट ने शनिवार को बताया कि उन्हें अगले सप्ताह (यानी आज या बाद में) अस्पताल से डिसचार्ज किया जाना है। अब तक डिसचार्ज की खबर तो नहीं है, लेकिन बेहद गोपनीय तरीके से अचानक ''महान नगा समझौता'' ज़रूर कर लिया गया। मुझे शक़ है कि इसाक की कथित बीमारी और इस कथित समझौते के बीच कहीं कोई गहरा लिंक है।#NagaPeaceAccord
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