Sunday, April 26, 2015

कुछ तो रचनात्मक पहल करें कामरेड महाचिव! राजनीतिक हिंसा की आपराधिक संस्कृति जनता के मुद्दों को लेकर वाम आंदोलन को मजबूत करके खत्म कर सकते है,वरना नहीं। वाम और बहुजन राजनीति को हाशिये पर धकेलकर ही हिंदू राष्ट्र के फासिस्ट एजंडा को अमल में लाना चाहता है संघ परिवार ,जो निःसंदेह बंगाल में राजनीतिक हिंसा से बड़ी चुनौती है और इसके लिए संगठन को नये सिरे से व्यवस्थित करने की जिम्मेदारी भी नये कामरेड महासचिव की है। एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

कुछ तो रचनात्मक पहल करें कामरेड महाचिव!

राजनीतिक हिंसा की आपराधिक संस्कृति जनता के मुद्दों को लेकर वाम आंदोलन को मजबूत करके खत्म कर सकते है,वरना नहीं।

वाम और बहुजन राजनीति को हाशिये पर धकेलकर ही हिंदू राष्ट्र के फासिस्ट एजंडा को अमल में लाना चाहता है संघ परिवार ,जो निःसंदेह बंगाल में राजनीतिक हिंसा से बड़ी चुनौती है और इसके लिए संगठन को नये सिरे से व्यवस्थित करने की जिम्मेदारी भी नये कामरेड महासचिव की है।


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास


विशाखापत्तनम कांग्रेस में बंगाल के कामरेडों के खास चहेते कामरेड सीताराम येचुरी ने केरल के कड़े मुकाबले के बावजूद पूर्व मुख्यमंत्री बागी कामरेड वीएस के समर्थन से माकपा कामरेड महासचिव बनते ही कम्युनिस्ट एकता जल्द हो जाने का एलान किया था।लेकिन केरल में परस्परविरोधी दो गुटों की लड़ाई से शंका होती है कि जब माकपा में ही एकता नहीं है तो कम्युनिस्टपार्टियों की विलय की बैत कैसे कर रहे हैं कामरेड महसचिव।


पूर्व कामरेड महासचिव ने पार्टी में आंतरिक लोकतंतर के पक्ष में सहमति बनाने में जो अभूमिका निभाई उससे जरुर उम्मीद बंधती है।


पोलित ब्यूरो में दो हिंदी भाषी कामरोडों सुभाषिनी अली और मोहम्मद सलीम के साथ किसानों के नेता हन्नान मोल्ला के शामिल किये जाने से लगता है कि पार्टी फिर राजनीतिक चुनौतियों का मुकाबला करने का इरादा रखती है।


कामरेड महासचिव विशाखापत्तनम में हुए परिवर्तन के बाद बंगाल आये हैं तो जाहिर है कि बंगाल के नेताओं ने पलक पांवड़े बिछाकर उनकी अगवानी की और इस मौके पर बंगाल के चुनावों में हुई हिंंसा का चुनाव आयोग से संज्ञान लेने के अलावा राष्ट्रीय कम्युनिस्ट पार्टी के कामरेड महासचिव के नाते देश के नब्वे फीसद आम जनता के जीवन मरण के सवालों पर उनकी खामोशी हैरतअंगेज है।


हिंदी पट्टी में वामदलों को फिर प्रासंगिक बनाने की जो चुनौती है,उससे बड़ी चुनौती है हैदराबाद कांग्रेस में पास दलित एजंडा को अमल में लाने की।



बंगाल में दलित और बहुजन आंदोलन एकदम जो हाशिये पर चला गया है,वह भी वाम दलों के लिए अच्छा नहीं है।


वाम और बहुजन राजनीति को हाशिये पर धकेलकर ही हिंदू राष्ट्र के फासिस्ट एजंडा को अमल में लाना चाहता है संघ परिवार ,जो निःसंदेह बंगाल में राजनीतिक हिंसा से बड़ी चुनौती है और इसके लिए संगठन को नये सिरे से व्यवस्थित करने की जिम्मेदारी भी नये कामरेड महासचिव की है।


बंगाल में तेभागा आंदोलन से लेकर 1977 तक सत्ता हासिल करने तक वाम दलों में किसानों और बहुजनों की व्यापक सक्रियता थी।इसके पीछे भूमि सुधार का एजंडा खास रहा है जो वामदलों ने छोड़ दिया है।


इसके साथ ही सीमापार बांग्लादेश में जो धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक मोर्चा है और जो वाम आंदोलन है ,उसमे दलितों,पिछड़ों और आदिवासियों की खास हिस्से दारी रही है ,जो बंगाल में भी लंबे समय तक वाम आंदोलन की ताकत थी।


इस विरासत को बहाल करना कामरेड महासचिव की सबसे बड़ी चुनौती है,जिसके बिना हिंदी पट्टी और महाराष्ट्र और पंजाब जैसे राज्यों में न वाम बहुजन जनाधार वापस हो सकता है और न बहुजनों की वा आंदोलन में वापसी के बिना इस फासिस्ट कयामत का मुकाबला किया जा सकता है।


जहां तक चुनावी हिंसी की बात है, वह राजनीति की आपराधिक संस्कृति है जो बंगाल में वाम आंदोलन के भटकाव की वजह से ही पैदा हुई। पहले बिहार के चुनावों में जो नजारा नजर आता था,वह बंगाल के चुनावों में आम है।


राजनीति में अपराधियों का वर्चस्व इतना प्रबल है कि आम जनता अपनी जानमाल की हिफाजत की फिक्र करते हुए न मतदान करने की हिम्मत जुटा पा रही है और न उसकी आस्था राजनीति में है।


आर्थिक सुधारों का कोई विरोध न करने की भूमिका के चलते ट्रेड यूनियनें जनता के मुद्दों से सिरे से कटी हुई हैं और ट्रेड यूनियनों की हड़ताल से इस राजनीतिक हिंसा का प्रतिरोध असंभव है।


जिस आपराधिक राजनीतिक हिंसा के माहौल में चुनाव हुए,उसमें सत्ता की एकतरफा जीत को चुनाव आयोग भी पलट नहीं सकता और ट्रोडयूनियनों की हड़ताल के जरिये हालात बदलने की यह कवायद सिरे से फालतू है।


कामरेड महासचिव सीताराम येचुरी अत्यंत परिपक्व राजनेता हैं और उन्हें कुछ रचनात्मक पहल करनी चाहिए।


मसलन सीपीएम महासचिव बनने के बाद सीताराम येचुरी ने सीएनबीसी-आवाज़ से हुई खास मुलाकात में कहा है कि मोदी सरकार के भूमि अधिग्रहण बिल से गरीबी और बेरोजगारी दूर होने के बजाय बढ़ेगी। सीएनबीसी-आवाज़ के प्रधान संपादक संजय पुगलिया से खास मुलाकात में उन्होंने यह भी कहा कि भूमि अधिग्रहण बिल पर सहमति के लिए सरकार ने एक भी ऑल पार्टी मीटिंग नहीं की।


जाहिर है कि यह मामला सिर्फ संसदीय नहीं है अब,यह अब सड़क का मामला भी है।संसदीय लोकतंत्र की परवाह बिजनेस फ्रेंडली केसरिया कारपोरेट राज नहीं कर रही है,तो जनता को संगठित करके सड़कों पर आंदलन का जलजला बनाकर ही वे अपने कहे के मुताबिक पार्टी की प्रासंगिकता साबित कर सकते हैं और जनाधार जाहिर है कि किसी शार्ट कटचुनावी समीकरण से नहीं वापस होना है,वाम दलों के कार्यकर्ताओं और समर्थकों को देश की बहुसंख्यबहुजन जनता को साथ लेकर लंबे संघर्ष के लिए सबसे पहले खुद को तैयार करना होगा।


कामरेड महासचिव,जवानी जमा खर्च से संघ परिवार के फासिस्ट हिंदू साम्राज्यवादी एजंडे के अश्वमेध अभियान का प्रतिरोध असंभव है।वामदलों को पिर जनांदोलन में नेतृत्वकारी भूमिका लेनी होगी और तभी उसकी खोयी हुई साख वापस मिलेगी।खोया हुआ जनाधार वापस मिलेगा।


बहरहाल सीताराम येचुरी के मुताबिक जमीन अधिग्रहण कानून से रोजगार में कोई बढ़ोतरी नहीं होगी अलबत्ता किसानों को इस बिल से नुकासान ही होगा। उन्होंने कहा कि ये बिल कुछ खास लोगों को फायदा पहुंचाएगा। सीताराम येचुरी ने ये भी कहा कि बीजेपी को अब चुनाव प्रचार  की मानसिकता से बाहर निकल कर वास्तविक धरातल पर काम करना चाहिए।


सीताराम येचुरी ने कहा कि सरकार द्वारा जमीन अधिग्रहण बिल को पास कराने के लिए ज्वाइंट सेशन बुलाने की धमकी गलत है। सरकार को इस बिल पर आम सहमति बनाने के लिए ऑल पार्टी मीटिंग बुलानी चाहिए। उन्होंने कहा कि ये बिल अपने वर्तमान स्वरूप में खास सेक्टर के लिए ही फायदेमंद होगा। सीताराम येचुरी  के मुताबिक बीजेपी को दिल्ली हार से सबक लेते हुए जनविरोधी नीतियों से दूर रहना चाहिए।

गौरतलब है कि निकाय चुनाव में धांधली और बूथ दखल के लिए वाममोरचा के साथ-साथ सीटू, इंटक, एटक सहित छह श्रमिक संगठनों ने संयुक्त रूप से 30 अप्रैल को आम हड़ताल का आह्वान किया है। 12 घंटे की यह हड़ताल सुबह छह बजे तक शाम छह बजे तक होगा, जबकि तृणमूल कांग्रेस ने हड़ताल का विरोध किया है।


वाम मोर्चा के अध्यक्ष विमान बसु ने कहा कि कोलकाता व जिलों में निकाय चुनाव के दौरान विभिन्न जगहों पर विरोधी दल सहित माकपा समर्थित वाममोर्चा के समर्थकों पर हमला किये जाने के खिलाफ यह हड़ताल बुलायी गयी है। सीटू के वरिष्ठ नेता श्यामल चक्रवर्ती ने हड़ताल की घोषणा करते हुए कहा कि निकाय चुनाव में हिंसा के खिलाफ यह हड़ताल बुलायी गयी है।

उन्होंने कहा कि चुनाव के दौरान प्रजातंत्र की हत्या की गयी है। यदि निकाय चुनाव में इस तरह के हिंसक वारदात हो रहे हैं, तो फिर 2016 के विधानसभा चुनाव में क्या होगा। यह निरंतर जारी नहीं रह सकता है। इसका विरोध होना चाहिए।


इंटक के बंगाल इकाई के अध्यक्ष रमेन पांडेय ने कहा कि वे लोग प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी से आग्रह करेंगे कि कांग्रेस इस हड़ताल का समर्थन करे। उन्होंने कहा कि वे लोग हड़ताल का निश्चित रूप से समर्थन करेंगे। यह जारी नहीं रखा जा सकता है।  

प्रदेश एटक के सचिव नवल किशोर श्रीवास्तव ने कहा कि वे लोग भी हड़ताल का समर्थन कर रहे हैं। निकाय चुनाव में गणतंत्र की हत्या की गयी है। लोगों के प्रजातांत्रिक अधिकार का हनन किया गया है। इसका वे लोग लगातार विरोध जारी रखेंगे। इसी दिन परिवहन संगठनों ने परिवहन हड़ताल का भी आह्वान किया है। इस कारण आम लोगों को काफी असुविधा होने की आशंका है।


दूसरी ओर, तृणमूल कांग्रेस के महासचिव पार्थ चटर्जी ने हड़ताल का विरोध करते हुए कहा कि तृणमूल समर्थित सभी संगठन हड़ताल का विरोध करेगा।


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