हिंदी कविता, कहानी और आलोचना के गली-मुहल्लों में पीटी गई औरतों पर सोचते हुए मुझे लगा कि अगर इस अन्याय का व्यापक प्रतिकार नहीं हो रहा है, तो लिखने में और आलू बेचने में कोई फ़र्क नहीं होना चाहिए। घटना के सूत्रीकरण तक पहुंचते-पहुंचते मैंने एक टीप दे मारी जो आज के 'जनसत्ता' में छप गई। इस पर बात-बहस हो सके तो हिंदी समाज का कुछ भला हो।
हिंदी कविता, कहानी और आलोचना के गली-मुहल्लों में पीटी गई औरतों पर सोचते हुए मुझे लगा कि अगर इस अन्याय का व्यापक प्रतिकार नहीं हो रहा है, तो लिखने में और आलू बेचने में कोई फ़र्क नहीं होना चाहिए। घटना के सूत्रीकरण तक पहुंचते-पहुंचते मैंने एक टीप दे मारी जो आज के 'जनसत्ता' में छप गई। इस पर बात-बहस हो सके तो हिंदी समाज का कुछ भला हो।
No comments:
Post a Comment